GOES - India Agriculture
Major agriculture/main crops known in India.
भारत देश मे की जानें वाली प्रमुख कृषि वा मुख्य फसलें
कृषि(Agriculture) -
कृषि एक बहुत प्रचलित व्यवसाय है मानव सभ्यता के विकास में स्थायी कृषि एक महत्वपूर्ण चरण था भूमि अथवा मिट्टी को जोतने, बीज बोकर बीज उत्पन्न करने, सहायक के रूप में पशु पालने, मत्स्याखेट करने एवं वानिकी की सम्पूर्ण कार्य प्रणाली की कला एवं विज्ञान को कृषि कहते हैं।
इस प्रकार कृषि में बीज से बीज उत्पन्न करना एवं पशुपालन, मत्स्याखेट, वानिकी सभी सम्मिलित हैं। इसी व्यवसाय से विश्व की समस्त जनसंख्या को भोजन प्राप्त होता है एवं वस्त्र व आवास संबंधी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति होती है । कृषि के प्रकार:
भारत देश मे की जानें वाली प्रमुख कृषि(Major agriculture known in India) -
A. स्थानांतरण कृषि(Shifting agriculture)
B. बागाती कृषि(Plantation agriculture)
C. गहनभरण वाली कृषि(Intensive farming)
D.भूमध्यसागरीय कृषि व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि(Mediterranean agriculture commercial non- productive agriculture)
E. व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि(Commercial grain farming)
F. मिश्रित खेती(Mixed farming)
G. फसलों एवं सब्जियों की कृषि(Cultivation of crops and vegetables)
H. शुष्क कृषि(Dry agriculture)
I. सहकारी कृषि(Cooperative agriculture)
J. विस्तृत कृषि(Extensive agriculture)
(1) स्थानांतरण कृषि :( Shifting agriculture )-
इस कृषि के अंतर्गत कृषक अपना एवं कृषि क्षेत्र बदलते रहता है। वनों को काटकर तथा झाड़ियों को जला कर छोटे से भूखण्ड को साफ कर लकड़ी के हल या अन्य औजार द्वारा खोद कर बीज बो दिया जाता है। इस कृषि में मोटे अनाज जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा उत्पन्न किये जाते हैं।
(2) बागाती कृषि:( Plantation agriculture )-
बहुतायत देशों में कृषि बागानों के रूप में किया जाता है। इसमें बड़ी बड़ी
उपजें, बागानों में उत्पन्न होती
हैं। बागाती कृषि में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं।
·
इसके अंतर्गत
विशिष्ट उपजों का ही उत्पादन किया जाता है। जैसे:- केला, रबड़, कहवा, चाय आदि।
·
इस कृषि के
उत्पादों का उपयोग समशीतोष्ण कटिबंधीय देशों द्वारा किया जाता है।
· यह कृषि फामों
अथवा बागानों में की जाती है। अधिकांश बागानों में विदेशी कम्पनियों का अधिपत्य
रहा है।
(3) गहनभरण वाली कृषिः(Intensive farming ) –
यह कृषि उन देशों में विकसित हुई है। जहाँ उपजाऊ भूमि की कमी तथा जनाधिक्य
पाया जाता है। अधिकांश मानसूनी देशों में यह कृषि की जाती है।
(4) भूमध्यसागरीय कृषि:( Mediterranean agriculture )-
इस कृषि का विस्तार भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेशों में हुआ है। यहाँ पर शीतकाल
में वर्षा होती है तथा ग्रीष्मकाल शुष्क रहता हैं। इस जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता
यह है कि यहाँ दो प्रकार की फसलें उत्पन्न होती है।
शीतकाल में वर्षा के कारण यहाँ गेहूँ, आलू, प्याज, टमाटर तथा सेम की फसले उत्पन्न की जाती है । ग्रीष्मकाल में
यह प्रदेश शुष्क होता है। इसी कारण यहाँ ऐसी फसलें उत्पन्न की जाती है। जिन्हें
वर्षा की कम आवश्यकता होती है। अंगूर, जेतून, अंजीर, सेब, नाशपाती तथा सब्जियाँ ग्रीष्मकाल की हैं । प्रमुख फसलें
(5) व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि:( Commercial grain farming
)-
व्यापार के उद्देश्य से कम जनसंख्या वाले देशों में यह कृषि की जाती है। रूस, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि देश इसके अंतर्गत आते हैं। इस कृषि की प्रमुख विशेषता:
o यहां पर जोते बड़े आकार की होती हैं
o इस कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
o गेहूँ इस कृषि की प्रमुख उपज है।
o इस प्रकार की कृषि मशीनों द्वारा की जाती है।
(6) मिश्रित खेती:( Mixed farming )-
इस प्रकार कृषि कार्यों के साथ-साथ पशुपालन व्यवसाय भी किया जाता है। यहाँ पर
कुछ फसलों का उत्पादन मानव के लिए तथा कुछ का उत्पादन पशुओं के लिए किया जाता है।
इन प्रदेशों में चौपाये, भेड़, बकरीयाँ, गधे आदि भी पाये जाते हैं।
(7) फसलों एवं सब्जियों की कृषि:( Cultivation of crops and vegetables )-
नगरीय केन्द्रों के समीपवर्ती कृषि
प्रदेश में फल एवं सब्जियों का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है। बाजार
केन्द्र की समीपता एवं परिवहन संसाधनों की सुविधा के आधार पर इस कृषि का विकास हुआ
है। संयुक्त राज्य की कैलीफोर्निया घाटी, फ्लोरिडा, अंध महासागर के
तटीय औद्योगिक प्रदेशों में "यह कृषि की जाती है।
(8) शुष्क कृषि:( Dry agriculture )-
यह कृषि पूर्णतः वर्षा जल पर निर्भर रहती है। देश की कुल कृषि भूमि के 70 प्रतिशत भाग पर यह कृषि की जाती है। इन स्थानों में दालें, तिलहन, मूंगफल्ली, ज्वार, बाजरा और मक्के की कृषि की जाती है। शुष्क प्रदेशों में शुष्क कृषि तकनीक को अपनाते हुए कृषि की जाती है। जो निम्नानुसार है:ü वर्षा
- जल को सचित रखने का प्रयास किया जाता है।
- खेतों को वर्षा होने से पूर्व जोता जाता है।
- ऐसे बीजों का उपयोग किया जाता है जो कम सिचाई में भी अधिक उत्पन्न हो ।
- सिंचाई सुविधा जुटाया जाता है।
(9) सहकारी कृषि :( Cooperative agriculture )-
ऐसे कृषि क्षेत्रों में छोटे-छोटे
खेतों के स्वामियों को सामूहिक खेती करने हेतु प्रेरित किया गया। सभी कृ षक
अपनी-अपनी कृषियोग्य जमीन मिलाकर फार्म बना लेते हैं। वे सभी मिल कर मालिक की तरह
लगन और क्षमता से कार्य करते हैं तथा उत्पादन से अपनी खेत की रकम के बराबर बांट
लेते हैं। भारत वर्ष में भी इस कृषि पद्धति को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
(10) विस्तृत कृषिः(Extensive agriculture )-
जिन क्षेत्रों में कृषियोग्य भूमि अधिक उपलब्ध होती है, वहाँ ये कृषि की जाती है। यहाँ अधि काशत कृषि मशीनों द्वारा की जाती हैं इसका कारण यह है कि यहाँ श्रमशक्ति का | अभाव पाया जाता है। वहाँ भी कृषिभूमि के | बडे-बडे फार्म बनाये जाते हैं। इस प्रकार की कृषि संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेन्टाईना, आस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्राजील आदि देशों में की जाती है।️
भारत क़े मुख्य फसलें Main Crops of India -
- चाँवल(Rice)
- गेंहूँ
(Wheat)
- ज्वार-बाजरा(Millet)
- मक्का(Maize)
- दाले(Pulses)
- रेशेदार फसलें(Fibrous crops)
- कपास(Cotton)
- जूट या पटसन(Jute or jute)
- रेशम(Silk)
- तिलहन(Oilseeds)
चाँवल( Rice )-
चावल भारत की एक मुख्य खाद्यान्न फसल है। चांवल उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु
वाला पौधा है। अतः गर्म और आर्द्र जलवायु में खूब पनपता है। इसलिए इसे मुख्यरूप से
खरीफ की ऋतु में उगाया जाता हैं चांवल को 25 अंश से अधिक तापमान तथा 100 से.मी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत
ये क्षेत्र आते हैं।
A.
पश्चिमी तटीय
पट्टी
B.
प्रमुख डेल्टा
प्रदेशों सहित पूर्वीय तटीय पट्टी
C. उत्तरपूर्वी मैदान तथा निचली पहाडियाँ
4. पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तरप्रदेश,
छत्तीसगढ़ एवं सम्पूर्ण उड़ीसा ।
भारत का चावल का क्षेत्रफल संसार में सबसे अधिक है। लेकिन चावल के उत्पादन में
चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। जितने क्षेत्रफल में अनाज बोया जाता है।उसके 47 प्रतिशत भाग में चावल उगाया जाता है।
छत्तीसगढ़ में चावल की फसल अधिक होती है। इस क्षेत्र में धान की दो फसल ली जाती
है।
हमारा देश निरंतर वर्धन काल वाला देश है। कावेरी, कृष्णा, गोदावरी और
महानदी के डेल्टा क्षेत्रों में सिंचाई की नहरों का सघन जाल बिछा हुआ है। यहाँ के
किसान एक वर्ष में दो और कहीं-कहीं तीन फसलें भी उगातें हैं।
धान अधिक उपज देने वाली फसल है। रोपाई की सुधरी तकनीकों, सुनिश्चित सिंचाई सुविधाओं तथा उर्वरकों के उपयोग से कम समय में ही अच्छे परिणाम निकलते हैं।
गेंहूँ:( Wheat) -
गेहूँ भारत की प्राचीन फसल है। लगभग चार हजार साल पहले गेहूँ मध्य एशिया विशेष
रूप से पूर्वी भूमध्य सागर तथा पश्चिमी एशिया में यहाँ लाया गया था। उत्तरी मैदान
विशेष रूप में पंजाब, हरियाणा और
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दोमट मिट्टयों में गेहूँ की अच्छी पैदावार होती है।
उत्तर प्रदेश के शेष भागों में बिहार, राजस्थान, गुजरात और
महाराष्ट्र में भी कहीं-कहीं गेहूँ पैदा किया जाता है। लेकिन गेहूँ मुख्य रूप से
उत्तर भारत की फसल है। गेहूँ के लिए 50 से.मी. से लेकर 75 से. मी तक वर्षा
उपयुक्त है। गेहूँ के उत्पादन में जो सफलता हमें मिली है। उसे हरित क्रांति कहा जा
सकता है। इस सफलता का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि वैज्ञानिकों को
जाता है।
ज्वार-बाजरा(Millet) -
ज्वार बाजरा खरीफ की फसल है और वर्षा के सहारे पैदा होती है। इन्हें सिंचाई की
जरूरत नहीं पड़ती है। इन्हें कम वर्षा की आवश्यकता होती है। इनके पैदावार के मुख्य
क्षेत्र कर्नाटक, आंध्रप्रदेश,
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ हैं।
ज्वार-बाजरे के उत्पादन में संसार में भारत का पहला स्थान है ज्वार-बाजरे में
गेहूँ और चावल की तुलना में अधिक प्रोटीन होता है।
मक्का ( Maize)-
मक्का का मूल स्थान अमेरिका है। भारत में इसकी खेती कुछ देर से शुरू हुई।
लेकिन अधिक उपज देने के कारण लोकप्रिय होती जा रही है। मक्का विविध प्रकार की
मिट्टियाँ तथा विविध प्रकार की जलवायु की दशाओं में पैदा की जा सकती है। उत्तर प्रदेश,
राजस्थान, बिहार और पंजाब प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
दाले ( Pulses )-
भारत दालों का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है। भारी वर्षा
वाले क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में दालें उगाई जाती हैं। ये फसलें
वर्षा के अधीन हैं। दालों में चना, अरहर या तुअर,
मूंग, उड़द, मसूर और मटर मुख्य दाले
हैं
दालें फलीदार पौधें हैं जो मृदा की उर्वरता को बढ़ाने में सहायता करती हैं।
इसलिए इन्हें अन्य फसलों से अदल-बदल कर बोया जाता है। दालें सामान्यतः दूसरी फसलों
के साथ उगाई जाती है।
इनका उत्पादन बढ़ाने के लिए सुनिश्चित सिंचाई तथा भारी मात्रा में रासायनिक
उर्वरकों का उपयोग अनिवार्य है।
रेशेदार फसलें ( Fibrous crops) -
कपास, जूट या पटसन, ऊन तथा प्राकृ तिक रेशम चार प्रमुख रेशें वाली
फसलें हैं। प्रथम दो मृदा से
प्रत्यक्ष रूप से मिलते हैं तथा अंतिम दो अप्रत्यक्ष रूप से मिलते हैं।
कपास( Cotton ) -
भारत कपास के पौधों का मूल स्थान है। सिन्धुघाटी सभ्यता से प्राप्त अवशेषों के अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि उस समय भी कपास पैदा किया जाता था। उस समय लोग कपास से सूत कातते थे तथा कपड़ा बुनकर मध्यपूर्व के देशों को निर्यात करते थे। कपास का उत्पादन दक्कन के पठारी भागों में अधिक होता है ।
गुजरात और महाराष्ट्र कपास के प्रमुख उत्पादक राज्य है। पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश अन्य उत्पादक राज्य हैं।
जूट या पटसन( Jute or jute )-
जूट को भारतीय उपमहाद्वीप का सुनहरी रेशा कहा जाता था। देश विभाजन के पश्चात
कलकत्ता के आस-पास स्थित जूट के कारखानें तो भारत में रह गये। लेकिन जूट पैदा करने
वाले क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान अर्थात आज के बंगला देश में चले गये परंतु कुछ
वर्षो में इस हानि को पूरा कर लिया गया
इसके लिए उच्चतापमान का होना भी जरूरी है। पश्चिमी बंगाल, असम और उड़ीसा जूट तथा मेस्ट (जूट की एक किस्म)
के प्रमुख उत्पादन राज्य है।
रेशम( Silk )-
रेशम की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। रेशम उत्पादन एक ऐसा उद्योग है ।
जिसमें बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों को पालना पड़ता है। ये कीड़े बहुत भूक्खड़
होते हैं। एक पौंड भार के कीड़े एक वर्ष में शहतूत की एक टन पत्तियाँ खा सकते हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में कच्चा रेशम पैदा किया जाता है।
रेशम से बनी वस्तुओं के निर्यात से भारत करोड़ों रूपयों की विदेशी मुद्रा
कमाता है रेशम के उत्पादन और निर्यात में चीन का संसार में पहला स्थान है।
तिलहन( Oilseeds )-
वनस्पति तेल हमारे भोजन का मुख्य अंग बन गया है। मूँगफली तथा सरसों और तोरिया
प्रमुख तिलहन है। मूँगफली खरीफ की फसल एवं सरसों, तोरिया रबी फसलें हैं ।
तिल, सोयाबीन, अलसी, सूरजमुखी, नारियल अन्य तिलहन है। मूँगफली पश्चिमी और दक्षिणी भारत में पैदा की जाती है। गुजरात इस का प्रधान उत्पादक राज्य है। छत्तीसगढ़ में भी सोयाबीन बोया जा रहा है। मध्यप्रदेश सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक राज्य है।
1 Comments