GOSE

Energy Resources, Types of Energy Resources, Conventional and Non-Conventional Distribution, Use and Conservation

          उर्जा संसाधन

आज के विकसित देशों में विभिन्न रूपों में शक्ति का विकास किया गया है। उर्जा का उपयोग न केवल प्रकाश करने, घरेलू कार्यों में, परिवहन, उद्योग और संवाद संचार के साधनों में ही किया जाता है, वरन् इसके द्वारा कृषि में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन किए गए हैं। औद्योगिक क्रांति के पश्चात तो मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों में उर्जा का विकास द्रुत गति से हुआ है।

मानव को अपने समस्त क्रिया-कलापों को सुचारू रूप से सम्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उर्जा की आवश्यकता होती है।

    उर्जा संसाधन (Energy resources ) -

    जिन पदार्थों से मानव को उर्जा की प्राप्ति होती है, उन्हें उर्जा संसाधन कहा जाता हैं। " मानव प्राचीन युग में उर्जा के लिए मानव-शक्ति, पशुशक्ति तथा लकड़ी पर निर्भर करता था । किन्तु आज वह कोयला, पेट्रोलियम, जल विद्युत, प्राकृतिक गैस, परमाणु खनिज, सूर्य की किरणें, पवन, भूगर्भीय ताप, ज्वारीय तरंगे, गन्ने की खोई, गोरबर गैस, कूड़ा-करकट आदि का उपयोग कर उर्जा प्राप्त करता हैं। जिन्हें औद्योगिक शक्ति कहा जाता है।

    ऊर्जा संसाधन के प्रकार(Types of energy resources)

    ऊर्जा संसाधनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

    1.परम्परागत संसाधन :( Conventional resources )-

    परम्परागत संसाधन वे संसाधन हैं जिनके भण्डार सीमित हैं और कभी भी समाप्त हो सकते हैं-

    परम्परागत संसाधन श्रोत -

    1. कोयला
    2. प्राकृतिक गैस 
    3. पेट्रोलियम पदार्थ
    4. परमाणु खनिज
    अन्य परम्परागत उर्जा श्रोतों में लकड़ी, कोयला, खनिज तेल आदि का प्राचीन काल से प्रयोग हो रहा है। अतः भविष्य में इनकी समाप्ति की आशंका है। अतः इनका उपयोग सावधानीपूर्वक एवं मितव्ययिता से किया जाना चाहिए।

    2.गैर परम्परागत संसाधन (Non-conventional resources)-


    परम्परागत उर्जा संसाधनों की सीमितता से गैर परम्परागत उर्जा के संसाधनों को खोजा गया और उनके प्रयोग पर अधिकाधिक बल दिया जाने लगा। 

    गैर-परम्परागत उर्जा श्रोत

    1. सौर उर्जा,
    2. पवन उर्जा,
    3. बायो गैस
    4. जल विद्युत मुख्य संसाधन हैं। 
    इसके साथ-साथ महासागरीय उर्जा, भूतादीय उर्जा, बैटरी हाइड्रोजन जैसी अनेक तकनीक का प्रयोग भी आरंभ हो गया है।

    कोयला संसाधन:( Coal resource )-

    कोयला उर्जा का प्रमुख साधन हैं जो भूमि की परतों में दबी हुई वनस्पति का पारिवर्तित रूप है। आधुनिक उद्योग-लोहा, - इस्पात तथा रासायनिक उद्योगों के लिए कोयला अनिवार्य है। कोयला जितने अधि क समय तक भूगर्भ में दबा रहता है, उतना ही उत्तम और कार्बनयुक्त हो जाता है।

    भारत में व्यापारिक शक्ति का 60 प्रतिशत से भी अधिक आवश्यकताएँ कोयले और लिग्नाइट से पूरी होती है। कोयला उर्जा का प्रमुख साधन होने के साथ-साथ एक कच्चा माल भी है, जिससे वैज्ञानिकों ने आज तक लगभग दो लाख विविध वस्तुओं का निर्माण किया है।

    कोयले के प्रकारः(Types of coal)

    भारत में निम्नलिखित प्रकार के कोयल पाए जाते हैं: -

    1.लिग्नाइट कोयला:( Brown coal )-

    इसमें कार्बन का अंश 45 से 55 प्रतिशत जल का अंश 20 से 25 प्रतिशत तथा वाष्पीय पदार्थ 35 से 40 प्रतिशत तक होता है। इस प्रकार का कोयला राजस्थान में बीकानेर, तमिलनाडु के अर्काट, असम में लखीमपुर तथा कश्मीर के कोरवा में पाया जाता है।

    2.बिटुमिनस कोयला: (Bituminous coal )-

    यह कोयला गोडवाना काल की कई शिलाओं में मिलता है। इसका रंग काला होता है और जलते समय इससे धुआं कम उठता है। इसमें कार्बन का अंश 60 से 80 प्रतिशत जल का अंश 5 प्रतिशत तथा वाष्पीय पदार्थ का अंश 20 से 35 प्रतिशत तक होता है। भारत में सामान्यतः मध्यम श्रेणी का बिटूमिनस कोयला ही मिलता है।

    3.ऐंथ्रेसाइट कोयला :( Anthracite coal )-

    यह सबसे उत्तम श्रेणी का होता है। जलते समय इसकी ज्वाला नीली, तेज प्रकाश वाली तथा आंरहित होती है। इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95 प्रतिशत, जल का अंश 2 से 5 प्रतिशत और वाष्पीय पदार्थ 10 से 25 प्रतिशत तक होता है। इस प्रकार का कोयला कश्मीर तथा रानीगंज की खान से प्राप्त होता है।

    4.पीट कोयला :( Coco peat )-

    यह कोयला सलेम जनपद की शिवराय पहाड़ियों में, तमिलनाडु में नीलगिरि पर्वत पर, नेपाल तथा कश्मीर की घाटियों में तथा बह्मपुत्र घाटी में सिलहट और कच्छार की झीलों में प्राप्त होता है। यह निम्न कोटिका कोयला है, जिसमें कार्बन की मात्रा 40 प्रतिशत से कम होती है।

    कोयला वितरण: (Coal distribution) -

    भारत का 98 प्रतिशत कोयले गोडवानायुगीन है, यहाँ 75 प्रतिशत कोयला भण्डार दामोदर नदीघाटी क्षेत्र में स्थित है। यहाँ रानीगंज, झरिया, गिरिडीह, बोकारो एवं कर्णपुरा कोयले के मुख्य क्षेत्र है। गोदावरी, महानदी, सोन तथा वर्धा नदियों की घाटियों में भी कोयले के भण्डार पाये जाते हैं।

    छत्तीसगढ़ में कोयला रायगढ़, सोनहट, चिरमिरी, विश्रामपुर तथा लखनपुर, उड़ीसा में तालचिर व सम्बलपुर, महाराष्ट्र के चन्द्रपुर, आंध्रप्रदेश के सिगरैनी में कोयले के विशाल भण्डार क्षेत्र हैं। झारखण्ड राज्य का कोयला प्राप्ति में प्रथम स्थान है। यहाँ उत्तम कोटि का बिटुमिनस कोयला प्राप्त होता है। छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश का कोयला प्राप्ति क्षेत्रों में द्वितीय स्थान है।

    कोयले का उत्पादनः(Coal production )-

    कोयला उत्पादन में भारत का विश्व में पाँचवा स्थान है। भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के अनुसार सन 1986 तक 1,59,29,916 करोड़ टन कोयले का भण्डार 1200 मीटर की शहराई एवं 05 मीटर से अधिक मोटी परत के रूप में मौजूद है।

    भारत में लिग्नाइट के उत्पादन में निरंतर वृद्धि होती रही है। 1975 में इसका उत्पादन मात्र 28.5 लाख टन था जो कि 1985 में तेजी से बढ़कर 78.00 लाख टन तथा 1999-2000 में पुनः लाख टन हो गया । तेजी से बढ़कर 275

    कोयले का उपयोगः(  Use of coal) -

    भारतीय कोयले की सबसे अधिक मांग देश के उद्योगों तथा विद्युत गृहों में होती है। इसके अतिरिक्त कोयले का उपयोग लिपिस्टिक तथा सुगंधित तेलों, प्रसाधन की वस्तुएँ- नायलोन, डेक्रोन जैसे सुइम धागे

    वाले वस्त्र, प्लास्टिक, टूथब्रश, बटन, वाटरप्रुफ कागज, नैपथालिन, अमोनिया जैसी वस्तुएँ कोलतार, कोक, कृत्रिम रबर, कृत्रिम पेट्रोलियम, रंग पेंट, सेक्रीन, इत्र, दवाइयाँ, पालिश के रंग बालों का रिवजाब, नील, वार्निश, प्रिंटिंग प्रेस की स्याही, फोटो कलर प्रिंटिंग की स्याही आदि बनाई जाती है। कोयले से ही हाइड्रोजनीकरण की क्रिया से पेट्रोल प्राप्त किया जाता है। धातुओं को गलाने, तापशक्ति का निर्माण करने एवं भापशक्ति बनाने का कार्य में भी कोयले का उपयोग होता है।

    व्यापारः(Business )-

    भारत में कोयले का निर्यात मुख्यतः पड़ोसी देशों- म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, सिंगापुर, हांगकांग, अदन, मारीशस, पूर्वी अफ्रीका और मध्यपूर्व के देशों को होता है। घरेलू कोयला (Cooking Coal)की घरेलू माँग पूरी करने के लिए इसका आयात किया जाता है।