खनिज एवं उर्जा संसाधन(MINERAL AND ENERGY RESOURCES)
में विभिन्न प्रकार के खनिजों की खानें पायी जाती है। यदि विश्व के सभी देशों
से भारत का व्यापारिक सम्बंध होता अथवा यदि यहाँ निकाले गए खनिजों की विदेशी
व्यापार की प्रतिस्पर्धा से रक्षा की जाती है तो इसमें कोई संशय नहीं कि भारत अपने
देश ही में प्राप्त हुए खनिज पदार्थों से सम्पूर्ण रूप से अपनी आवश्यकताओं की
पूर्ति कर लेगा।"
खनिज (Minerals)
भूगर्भ से खोदकर निकले गए पदार्थों को खनिज कहा जाता है। खनिज शब्द का
वैज्ञानिक अर्थ ऐसे अजैव पदार्थ से है जिसका एक विशिष्ट रासायनिक संगठन होता है
तथा इसके कणों के मिश्रण से शैल का निर्माण होता है। कुछ खनिज समुद्रतल के नीचे से
भी निकाले जाते हैं। जैसे- पेट्रोलियम पदार्थ । अधिकांशतः खनिज पदार्थों का भण्डार
समाप्त होने वाला होता है, भूगर्भ से निकाल
लिए जाने के पश्चात् इन्हें उस स्थान से फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
जैसे पेट्रोल कोयला क्योंकि ये प्रकृति द्वारा लाखो-करोड़ों वर्षो में निर्मित
किया जाता है। यह मानव जाति को प्रकृति का अनमोल उपहार है। मानव सभ्यता के प्रारंभ
से ही मानव अनेक प्रकार के खनिजों का उपयोग करता आया है। सर्व-प्रथम ताँबा और
काँसे का प्रयोग मानव ने किया था । इसलिए मानव सभ्यता में ताम्रयुग और काँस्य युग
सबसे पहले आते है। वर्तमान युग को तो 'खनिज सभ्यता का युग ही कहा जाता है। खनिजों के गुण तथा मात्रा में विपरीत
संबंध पाया जाता है। उत्तम गुण वाले खनिज कम मात्रा में तथा निम्नगुण वाले खनिज
अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इनका निक्षेप भी असमान रूप से होता हैं कहीं किसी
क्षेत्र में वृहद निक्षेप मिलते हैं। तो कहीं क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के
खनिज नहीं पाए जाते हैं।
भारत में खनिज सम्पत्ति पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। विभिन्न प्रकार के उपयोगी खनिज विहन यहाँ योग्य मात्रा में उपलब्ध है और यदि इनका ठीक तरह से उपभोग किया जाए तो यह देश को औद्योगिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बना सकते हैं।
खनिजों के प्रकार (Types of minerals)
खनिज के प्रमुख तीन प्रकार हैं:-
· धात्विक खनिज(Metallic minerals)
o लोह युक्त खनिज
o अलौहयुक्त खनिज
· अधात्विक खनिज (Nonmetallic mineral)
· खनिज ईंधन (Mineral fuel)
1.धात्विक खनिज (Metallic Minerals) :-
जिन खनिजों से धातु की प्राप्ति होती है। जिन्हें शुद्ध करने के पश्चात्
कूटा-पीटा या दबाया जा सकता है और इच्छित रूप में ढाला जा सकता है। ध् त्विक खनिज
में तन्यता और चमक होती. है। उदाहरणार्थ:- सोना चाँदी, लोहा, ताँबा, एल्युमिनियम आदि।
इसके दो उपवर्ग हैं:
1. लौह युक्त धात्विक खनिजः- इनमें लौह अंश पाया
जाता है। जैसे: लौह अयस्क ।
2. अलौह धात्विक खनिजः- इनमें लोहे का अंश नहीं पाया जाता है।
जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा
(2) अधात्विक खनिज (NonMetallic Mineral) :-
इनमें धातु प्राप्त नहीं होती है तथा इसमें तन्यता और चमकने का गुण भी नही होता है। यह कठोर होते है। इसलिए इन्हें काटा या तराशा जाता है। उदाहरणार्थ:- हीरा, जिप्सम, अभ्रक, नमक, संगमरमर, सल्फर, ग्रेनाइट, स्लेट, ग्रेफाइट, चूना पत्थर आदि ।
(3) खनिज ईंधन :( Mineral fuel)-
वे खनिज जो उर्जा प्रदान करते है। खनिज ईंधन की श्रेणी में आते हैं। कोयला,
पेट्रोलियम आदि को जलाकर शक्ति उत्पादन किया
जाता है। जबकि यूरेनियम, थोरियम एवं
बेरीलियम अणु शक्ति वाले खनिज हैं।
भारत में प्रमुख खनिज एवं उनका वितरण
लौह अयस्क
भारत में लौह अयस्क के विशाल भंडार है, विश्व का एक-चौथाई लौह-अयस्क भारत में संचित है। लोहा भूमि
में शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता है। इसमें कई प्रकार के यौगिकों का मिश्रण होता
है, इस अशुद्ध लोहे को ही लौह
अयस्क कहते हैं। लोहा आधुनिक यांत्रिक सभ्यता की जननी मानी जाती है। वर्तमान युग
में सुई से लेकर बड़े-बड़े जलयान तक इसी से बनाए जाते हैं। लौह धातु का मानव के
जीवन में इतना अधिक महत्व है कि मानव सभ्यता का एक युग ही "लौह युग” के नाम से जाना जाता हैं।
भारत में चार प्रकार के लौह-अयस्क(Four types of iron ore in India)
1.
मैग्नेटाइट अयस्क :- यह काले रंग का सर्वोत्तम किस्म का चुम्बकीय
लौह अयस्क है। इसमें धातु का अंश 72 प्रतिशत तक होता
है।।
2. हैमेटाइट अयस्कः- यह लाख एवं भूरे रंग की लौह-अयस्क है। इसमें धातु का प्रतिशत 60 से 70 तक होता है।
3. लिमोनाइट अयस्क:- यह आक्सीजन, जल और लोहे का सम्मिश्रण होता है। इस लिए यह निम्न श्रेणी की अयस्क होती है। इसमें लोहे का अनुपात 30 से 40 प्रतिशत तक होता है। इसका रंग हल्का पीलापन लिए होता है।
4. लैटेराइट अयस्क:- यह शैलों के ऋतु क्षरण के फलस्वरूप अवशिष्ट खनिज के रूप में घटिया लोहे और ऐलुमिनियम का संकेन्द्रण होता है। इसका रंग भूरा होता है। इसमें लोहांश 10 से 48 प्रतिशत तक होता है।
भारत में लौह अयस्क का वितरणः(Distribution of iron ore in india)
भारत में लौह अयस्क प्रमुखतः झारखंड राज्य के सिंहभूमि जिले एवं उड़ीसा राज्य
के क्योझर, बोनाय और मयूरभंज
क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जो लौह-अयस्क
प्राप्त करने का विश्व का सबसे बड़ा एवं सम्पन्न क्षेत्र है। झारखण्ड के हजारी बाग
जिले से भी लौह-अयस्क प्राप्त किया जाता है।
वितरण:-
झारखण्ड :- यहाँ भारत का सबसे अधिक लौह-अयस्क मिलता है। इस राज्य में
सिंहभूमि, हजारी बाग,
धनबाद, पालामऊ, सन्थाल परगना तथा
राँची लौह अयस्क प्राप्ति के प्रमुख क्षेत्र हैं । पालामऊ की डाल्टनगंज तथा
सिंहभूमि की नोआमुंडी विश्व प्रसिद्ध खान है। जहाँ हैमेटाइट एवं मैग्नेटाइट अयस्क
मिलता है।
उड़ीसा :-
भारत में लौह अयस्क उत्पादन में उड़ीसा का तीसरा स्थान है। जहाँ देश का लगभग 30 प्रतिशत लौह अयस्क भण्डार सुरक्षित है। क्योझर,
बोनाय, सुन्दरगढ़, गुरूमहिसानी,
मालकनगिरि, बदाम-पहाड़ क्षेत्रों में लौह अयस्क की प्रमुख खदानें हैं।
मयुरभंज में भारत की सबसे बड़े लौहे की खदान है।
छत्तीसगढ़ :-
छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग, (दल्लीराजहरा) एवं बस्तर जिलों में लौह-अयस्क के विशाल
भण्डार है। यहाँ बस्तर जिले के बैलाडीला के पठार पर उत्तम कोटि का लौह अयस्क पाया
जाता है। जहाँ से सबसे उत्तम किस्म का लोहा जापान को निर्यात किया जाता है।
दल्लीराजहरा के अयस्क का उपयोग भिलाई इस्पात संयंत्र में किया जाता है। रायगढ़,
बिलासपुर एवं सरगुजा में भी कुछ मात्रा में
लौह-अयस्क निकाला जाता है।
मध्यप्रदेश :-
मध्यप्रदेश में मण्डला जबलपुर एवं बालाघाट जिलों में लौह-अयस्क के भण्डार
स्थित हैं।
गोवा:-
गोवा राज्य में भारत का 32 प्रतिशत लौह
अयस्क प्राप्त होता है। यहाँ लोहे की खुली खाने हैं। उत्तरी गोवा में पिरना - अदोल,
पाले-ओनडा एवं कुडनेम -सुरला लौह अयस्क की
प्रमुख खाने हैं।
कर्नाटक :-
कर्नाटक के चिकमंलुर की बाबाबुदान की पहाड़ी, कुद्रेमुख तथा चितलदुर्ग, शिभोगा, तुमकुर जिलों में
मैग्नेटाइट किस्म के लौह अयस्क प्राप्त होता है।
महाराष्ट्र :-
यहाँ के चांदा जिले के लोहारा, पीपलगाँव,
अकोला, देवलागाँव, रत्नागिरि,सूरजगढ़ क्षेत्र के रेंडी सावन्तवाडी, गुल्डुर खानों इसके अतिरिक्त तमिलनाडु के सेलम व
तिरुचिरापल्ली, केरल कुछ
आंध्रप्रदेश के कृष्णा, कुरनूल, कुडप्पा तथा नैलोर, राजस्थान में उदयपुर, जयपुर, अलवर, पश्चिम बंगाल क्षेत्र, के मिर्जापुर, उत्तरांचल के गढ़वाल, नैनीताल क्षेत्र
में लौह अयस्क के निक्षेप पाए जाते हैं।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि लौह अयस्क का अधिकांश उत्पादन निर्यात के लिए होता है। विशाखापट्टनम,
मार्मागोआ, पाराद्वीप, और कोलकाता के
बंदरगाहों से लौह अयस्क का निर्यात विशेषरूप से किया जाता है। बैलाडीला से निकाले
जाने वाले लौह अयस्क का निर्यात जापान में किया जाता है। एग्रीमेंट के अंतर्गत
सबसे उत्तम लौह अयस्क निर्यात कर दिए जाते हैं। बी-श्रेणी का अयस्क भिलाई इस्पात
संयंत्र में उपयोग किया जाता है तथा सी और डी जो ठीक से तैयार नहीं हो सके थे
उन्हें खुले पहाड़ों में फेक दिया
जाता है, जिससे आयरन
आक्साइड बनता जो वर्षा के जल में धुलकर इन्द्रावती की सहायक नदियों-डंकनी और शंखनी
में आ जाता है। जिससे नदी का जल इतना प्रदूषित हो गया है कि वह पीने तथा सिंचाई के
योग्य ही नहीं रहा ।
भारत में लौह अयस्क का उपयोग :( Iron ore use in india)
लौह अयस्क का उपयोग भारत में इस्पात
मिलों में किया जाता है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों का लौह अयस्क भिलाई एवं
विशाखापट्टनम संयंत्रों, उड़ीसा के
क्योंझर बोनाय क्षेत्रों तथा झारखण्ड में सिंहभूमि जिले का लौह अयस्क टाटा आयरन
एण्ड स्टील कम्पनी जमशेदपुर, बोकारो, कुट्टी, हीरापुर, बर्नपुर, आसनसोल, दुर्गापुर, तथा राउरकेला
इस्पात संयंत्रों कर्नाटक राज्य का अयस्क भद्रावती तथा सेलम इस्पात कारखाने प्रयोग
किया जाता है। कर्नाटक कुद्रेमुख लौह अयस्क खानों का लौह अयस्क विदेशों निर्यात
किया जाता है। विशाखापट्टनम मार्मागोआ, पाराद्वीप, कोलकाता और
मंगलोर पतनों भी लौह अयस्क का निर्यात किया जाता है। लौह उत्पादन की दृष्टि से
भारत का सम्पूर्ण विश्व छठवां स्थान है।
मैगनीज:( Manganese)
मैगनीज धातु काले रंग की प्राकृतिक भस्मों रूप धारवाड युग की अवसादी शैलों में
जाती इसके मुख्य अयस्क साइलोमैलीन और ब्रोनाइट है। इसके अतिरिक्त पायरोलसाइट,
सीतापराइट, हाउसमैनाइट, रोडोनाइट,
मॅगेनोइट आदि मैगनीज लोहे की ही भांति
एक बड़ा प्रस्तर होता है। जिस लौह प्रस्तर में प्रतिशत से मँगनीज होता है। लोहा
कहलाता और जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक
मैगनीज होता है।
वह मैगनीज कहलाता है। जिस प्रस्तर लोहा और मैगनीज दोनों अधिक होते हैं मैगनीज
लोहा या मँगनीज अयस्क कहते हैं। मैगनीज का भारत वितरण स्थान मध्यप्रदेश,
छत्तीसगढ एवं महाराष्ट्र: यहाँ निक्षेपों मेखला
लगभग 200 किलो मीटर की लम्बाई में फैली है जो 25 किलो मीटर चौड़ी है। यही मेखला महाराष्ट्र के
नागपुर और भण्डारा जिलों तक चली गई है।
मैगनीज मध्यप्रदेश के बालाघाट और छिंदवाड़ा जिले में मुख्यतः पाई जाती है।
इन्दौर, मांडला, जबलपुर, धार, झाबुआ भी मैंगनीज
प्राप्त होता है। में छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर तथा बिलासपुर जिलों में मैगनीज
प्राप्त होता हैं। मैगनीज उत्पादन की दृष्टि से महाराष्ट्र का देश में द्वितीय
स्थान है। यहाँ नागपुर जिले मैं मैगनीज के निक्षेप डुमरीकला से खण्डाला तक लगभग 19 किलोमीटर तक फैले हुए हैं।
भण्डारा जिले में भी मैगनीज पाया जाता हैं
गुजरात:- गुजरात के बडोदरा और पंच महल जिलों से मैगनीज प्राप्त होता है।
गोवा:-गोवा में इसका उत्पादन परनेम और बारदेर क्षेत्र से प्राप्त होता है।
आन्ध्रप्रदेश:- आन्ध्रप्रदेश में देश के कुल उत्पादन का लगभग 15 प्रतिशत मैगनीज प्राप्त किया जाता है। विशाखापट्टनम, कडुप्पा और श्रीकाकुलम जिले इसके प्रमुख उत्पादक हैं। बिहार-झारखण्ड और उड़ीसा:- यहाँ मैगनीज के क्षेत्र सिंहभूम से लगाकर सुन्दरगढ़, क्योंझर, कोरापुट, बोलंगिरि और कालाहांडी जिलों तक फैले हैं। इन राज्यों में मैगनीज का उत्पादन 40 से 55 प्रतिशत तक है।
राजस्थान व कर्नाटक:- राजस्थान में मध्यम श्रेणी का मैगनीज उदयपुर,
बांसवाड़ा और पाली जिले में मिलता है। कर्नाटक
में चित्रदुर्ग, सन्दूर, कादूर, चिकमगलुर, शिंमोगा, तुंमकुर, बेलारी और बेलगांव जिलों में प्राप्त होता है।
उपयोगः(Use )
मैगनीज का उपयोग इसकी अचुम्बकीय प्रकृति, अत्यधिक कठोर और दृढ़ होने के कारण अनेक प्रकार के खनन, खुदाई के यंत्रों, युद्ध सामग्री, वायुयान आदि में होता है। मैगनीज - तांबे के मिश्रण से टर्बाइन ब्लेड्स तथा मैगनीज-कांसा से जलयानों के प्रोपैलरों का निर्माण किया जाता है।
खनिज एवं उर्जा संसाधन ऐलुमिनियम के साथ मैगनीज मिलाकर विद्युत तारों का
प्रतिरोधक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस मिश्रित धातु से वायुयान
मोटरगाड़ियों और रेलगाड़ियों के डिब्बे तथा हवाई टैंक बनाए जाते हैं।
इसके अतिरिक्त पोटेशियम परमैगनेट नामक लवण बनाना, बैटरी निर्माण, कांच बनाना, रासायनिक उद्योग,
कांच का रंग उड़ाने, रोगन और लेपों को सुखाने आक्सीजन, क्लोरीन गैस और ब्लीचिंग पाउडर भी इससे बनता है। खाद
निर्माण व रंग बनाने में भी इसका उपयोग होता है। मैगनीज के विविध उपयोग के कारण ही
इसे "जैक ऑफ ऑल ट्रेड" भी कहा जाता है
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