जरायुन्यांस या
बीजाण्डन्यास (Placentation)
अण्डाशय में बीजाण्ड बीजाण्डासन पर एक विशेष क्रम में व्यवस्थित रहते हैं, इसी क्रम को बीजाण्डन्यास कहते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि जायांग एक रूपान्तरित पत्ती है वही पत्ती गोलाई में मुड़कर जायांग की रचना करती है, इस रूपान्तरित पत्ती के दोनों किनारे एक स्थान पर मिले प्रतीत होते हैं। सामान्यतः बीजाण्डासन अण्डप तलों (किनारों) के मिलने के स्थान पर बनते हैं।
पौधों में निम्न प्रकार के बीजाण्डन्यास पाये जाते हैं
1.सीमान्त (Marginal)
जब बीजाण्डन्यास एकाण्डपी जायांगों में पाया जाता है। इसमें बीजाण्डासन अण्डप
के दोनों किनारों के मिलने के स्थान पर बनता है तथा इसके बीजाण्ड अधर सीवन (Ventral suture) पर रेखीय क्रम में लगे होते हैं, जैसे-मटर, अरहर, चना, बबूल, अमलतास, सेम, गुलमोहर ।
2.भित्तीय (Parietal)
यह बीजाण्डन्यास एक से अधिक अण्डपों वाले संयुक्ताण्डपी अर्थात् एककोष्ठीय जायांगों में पाया जाता है। इसमें बीजाण्ड अण्डाशय की भीतरी दीवार पर उस स्थान से लगे होते हैं, जहाँ अण्डपों के किनारे मिलते हैं। इसमें बीजाण्डासनों (Placenta) की संख्या अण्डपों की संख्या पर निर्भर करती है जैसे- पपीता, सरसों, लौकी ।
3.आधारलग्न (Basal)
यह बीजाण्डन्यास द्वि या बहुअण्डपी, लेकिन अनिवार्यतः एककोष्ठीय अण्डाशय में पाया जाता है। इसमें अण्डाशय के आधार से केवल एक बीजाण्ड लगा होता है। जैसे-सूरजमुखी, गेंदा। कभी-कभी बीजाण्ड आधार के स्थान पर अण्डाशय के ऊपरी भाग से जुड़ा होता है।
4.पृष्ठीय या धरातलीय (Superficial)
यह बीजाण्डन्यास बहुअण्डपी युक्तण्डपी, बहुकोष्ठीय अण्डाशयों में पाया जाता है। इसमें बीजाण्ड अण्डपों की भीतरी दीवार से चारों ओर लगे रहते हैं। जैसे-कमल, निम्फिया, सिंघाड़ा।
5.अक्षीय (Axile)
वह बीजाण्डन्यास है, जो बहुअण्डपी, युक्ताण्डपी ऐसे जायांगों में पाया जाता है जिसमें कोष्ठकों की संख्या अण्डयों की संख्या के बराबर होती है। इसमें अण्डपों के किनारे जुड़ने के पश्चात् अन्दर की ओर बढ़कर केन्द्र में जुड़ जाते हैं तथा एक केन्द्रीय अक्ष का निर्माण करते हैं। यही अक्ष फूलकर बोजाण्डासन (Placenta) बना देता है जिससे बीजाण्ड जुड़े होते हैं। जैसे-बैंगन, गुड़हल, टमाटर, नीबू, सन्तरा, नारंगी।
6.मुक्त स्तम्भीय ( Free central)
यह बीजाण्डासन ऐसे जायांग में पाया जाता है, जो बहुअण्डपी युक्ताण्डपी होता है। इसमें बीजाण्ड अण्डाशय के केन्द्रीय कक्ष के चारों तरफ स्वतन्त्र रूप से लगे होते हैं। इसका केन्द्रीय अक्ष दो प्रकार से बनता है।
I. कुछ एककोष्ठीय अण्डाशयों का पुष्पासन लम्बा होकर अण्डाशय की गुहा में आ जाता है और केन्द्रीयअक्ष का निर्माण करता है, जो फूलकर बीजाण्डासन बनाता है जिससे बीजाण्ड जुड़े होते हैं। जैसे— प्राइमुला।
II. कुछ जायांग शुरू में बहुकोष्ठीय होते हैं लेकिन बाद में केन्द्रीय अक्ष तथा अण्डप के बीच के पट समाप्त हो जाते हैं। फलतः अण्डाशय एककोष्ठीय हो जाता है और उसके अक्ष से स्वतन्त्र रूप में बीजाण्ड जुड़े होते हैं। जैसे- डायन्थस ।
बीजाण्ड की
संरचना (Structure
of Ovule)
बीजाण्ड को गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium) भी कहते हैं, क्योंकि इसी के अन्दर मादा युग्मक (Female gametophyte) या गुरुबीजाणु (Megaspores) स्थित होता है। बीजाण्ड अण्डाशय की दीवार से एक डण्ठल अथवा वृन्त द्वारा जुड़ा रहता है इसे बीजाण्डवृन्त (Funicle) कहते हैं। बीजाण्डवृत्त जिस स्थान पर बीजाण्ड के शरीर से जुड़ा रहता है वह स्थान नाभिका (Hilum) कहलाता है। बीजाण्ड का मुख्य भाग बीजाण्डकाय (Nucellus) कहलाता है। यह भाग पतली भित्ति वाली कोशिकाओं से निर्मित होता है।
बीजाण्ड एक द्विस्तरीय झिल्ली से घिरा रहता है, जिसकी बाहरी स्तर बाह्य आवरण (Outer integument) और भीतरी स्तर अन्तः आवरण (Inter integument)) कहलाती है। कुछ बीजाण्डों में यह आवरण केवल एक ही स्तर का बना होता है। आवरण या अध्यावरण बीजाण्डों के बीजाण्डकाय को पूरा नहीं ढकते बल्कि इनका कुछ भाग खुला ही रह जाता है, इस स्थान को बीजाण्डद्वार (Micropyle) कहते हैं। बीजाण्ड का आधारीय भाग जहाँ से अध्यावरण निकलते हैं, निभाग (Chalaza) कहलाता है। बीजाण्डद्वार के पास एक कोष पाया जाता है जिसे भ्रूण कोष (Embryo sac) कहते हैं, यही पौधे का मादा युग्मक होता है जिसमें छः कोशिकाएँ पायी जाती हैं। इनकी तीन कोशिकाएँ बीजाण्डद्वार के पास स्थित होती हैं जिसमें से बड़ी
कोशिका अण्डाणु (Ovum) तथा शेष कोशिकाएँ सहायक कोशिकाएँ (Synergids) कहलाती हैं। इसकी तीन कोशिकाएँ निभाग की तरफ स्थित होती हैं,
जिन्हें प्रतिमुख (Antipodal) कोशिकाएँ कहते हैं। भ्रूणकोष के मध्य में दो केन्द्रकों के
मिलने से बना एक केन्द्रक पाया जाता है जिसे द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) कहते हैं, यह केन्द्रक निषेचन के बाद भ्रूण के लिए भोज्य पदार्थों
(भ्रूणपोष ) का निर्माण करता है। निषेचन के बाद अण्डाणु-भ्रूण, बीजाण्ड-बीज तथा अण्डाशय फल का निर्माण करता
है।
बीजाण्ड के प्रकार
(Types of Ovules) अण्डद्वार (Micropyle), बीजाण्डवृत्त (Funicle) एवं निभाग
(Chalaza) की स्थिति के अनुसार बीजाण्ड निम्न प्रकार के हो सकते हैं
(A) ऋजुवर्ती (Orthotropous) :- यह बीजाण्ड सीधा (Straight) होता है, जिसमें बीजाण्डन्त (funicle) एवं निभाग (Chalaza) एवं अण्डद्वार (Micropyle) एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं, नग्नबीजाणु (Gymnosperm) में केवल इसी प्रकार का बीजाण्ड मिलता है। इसके अलावा कालीमिर्च, पान आदि में भी यह मिलता है।
(B) प्रतीप या अधोमुखी (Anatropous) :– यह बीजाण्ड उल्टा
होता है जैसा उपर्युक्त चित्र में बताया गया है। इसमें बीजाण्डदार बीजाण्डासन के करीब आ
जाता है, निभाग के दूसरे सिरे पर
रहता है। मटर, सेम, अण्डी में पाया जाने वाला यह बीजाण्ड सबसे अधिक
पौधों में पाया जाता है।
(C) अनुप्रस्थावर्त (Hemianitropous) :— इसमें बीजाण्ड अक्ष, वृन्त के साथ लगभग समकोण बनाता है। बहुत कम पौधों में यह पाया जाता है,
जैसे- रैननकुलस, लेमना, पॉपी आदि में।
(D) अनुप्रस्थ (Amphitropous): – इसमें बीजाण्ड अपने अक्ष पर इस तरह घूम जाता है कि भ्रूणकोष में भी पर्याप्त वक्रता आ जाती है। जैसे- नीबू, नारंगी।
(E) वक्रावर्त (Campylotropous): – यह बीजाण्ड अपने वृत्त पर घोड़े की नाल की आकृति में स्थित रहता है। बीजाण्डद्वार और निभाग काफी नजदीक आ जाते हैं। क्रूसीफेरी, चीनोपोडियेसी कुल के सदस्यों के अलावा मिरैबिलिस में भी यह मिलता है।
(F) कुण्डलित (Circinotropous):- आरम्भिक अवस्था में यह बीजाण्ड ऋजुवर्ती रहता है। वृद्धि के साथ यह अधोमुखी हो जाता है, किन्तु पूर्ण वृद्धि होने तक बीजाण्ड अपने अक्ष पर कुण्डलित होता जाता है। पूर्ण विकसित बीजाण्ड का वृन्त उसे अधिकांश भाग में घेरे रहता है। यह नागफनी (Opuntia) में देखा गया है।
अण्डाशय से जुड़ने के
आधार पर बीजाण्ड चार प्रकार के होते हैं
1. ऊर्ध्वं (Erect);—यह बीजाण्ड अण्डाशय के आधार से जुड़ा रहता है।
2. निलम्बित (Suspended): — यह बीजाण्ड अण्डाशय की पार्श्व भित्ति से लटका रहता है।
3. निलम्बी (Pendulus ):- यह बीजाण्ड की
ऊपरी भित्ति से लटका रहता है।
4. आरोही (Ascending) :— बीजाण्ड अण्डाशय की पार्श्व भित्ति से तिरछे रूप से जुड़े रहते हैं।
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