फियोफाइटा या भूरे सेवाल (Phaeophyta or Brown Algae)

फियोफाइटा (Gk, Phaios = brown, Phyton plant) वर्ग के शैवाल मुख्यतः तीन वंशों Heribauchiella, Pleurocladia Bodanella को छोड़कर समुद्री या अलवण जलीय होते हैं, इन्हें भूरा समुद्री खरपतवार (Brown sea weed) कहते हैं। ये आर्कटिक और अण्टार्कटिक महासागरों में पाये जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे उष्ण कटिबन्धीय समुद्रों की ओर बढ़ते हैं, इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जाती है। भूरे शैवाल 110 मी. से. अधिक गहरे पानी में नहीं पाये जाते। अब तक इनकी लगभग 1,000 जातियाँ ज्ञात हो चुकी हैं। इस वर्ग के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

1)     ये पौधे भूरे रंग के होते हैं, क्योंकि इनमें फ्यूकोजैन्थिन मुख्य वर्णक अधिक मात्रा में होता है। इसके अलावा इनमें क्लोरोफिल a, c और B कैरोटिन भी पाये जाते हैं।

2)     इनके प्रजनन में द्विपक्षीय चल जन्यु (Zoospores) बनते हैं, जिनमें दो असमान कशाभिकाएँ पार्श्व रूप से लगी। रहती हैं। एक कशाभिका टिनसेल (Tinsel) प्रकार तथा दूसरी ह्विपलेश प्रकार (Whiplash type) की होती है।

3)     संग्रहित भोजन मैनीटॉल (Mannitol) और लैमीनेरिन (Laminarin) के रूप में पाया जाता है।

4)     कोशिका भित्ति पर ऐल्जिनिक अम्ल (Alginic acid) तथा फ्यूसिनिक अम्ल आदि का जमाव या एकत्रीकरण होता है।

5)     प्यूकोसन वेसीकल (Fucosan vesicle) का कोशिकाओं में पाया जाना । होती।

6)     युग्मनज में विश्राम अवस्था कम होती है या नहीं

7)     पादप शरीर अचल तथा बहुकोशिकीय थैलस के रूप में होता है।

    संरचना (Structure)

    ये हमेशा बहुकोशिकीय तथा शाखित होते हैं। इस वर्ग के पौधों में एक शाखित वृन्त (Stipe) होता है, जिससे फलक (Lamina) जुड़े होते हैं। इनका वृन्त होल्डफास्ट (Holdfast) के द्वारा जल में स्थित किसी ठोस आधार से जड़ा रहता है। इनका फलक प्रकाश-संश्लेषी

    से जुड़ा रहता है। इनका फलक प्रकाश-संश्लेषी ' होता है, जबकि इनका वृन्त स्थलीय पौधों के तने के समान होता है। कुछ भूरे शैवालों में फ्लोएम के समान नलियाँ पायी जाती हैं, जो भोजन को फलक के होल्डफास्ट तक लाती हैं। इसकी कोशिका भित्ति भी दो पर्तों की बनी होती है। भीतरी पर्त सेल्युलोज तथा बाहरी एक जिलैटिनी पदार्थ की बनी होती है, जो फाइको कोलॉइड्स (Phyco collonds) ऐलजिनिक अम्ल के नाम से जाना जाता है। यह पर्व पौधों को सूखने और ठण्डा में जमने (Freezing) से रक्षा करती है। इसके अतिरिक्त यह फाइको कोलॉइड इन शैवालों का उस समय बचाव करती है जब समुद्री लहरें इन्हें चट्टानों से टकराने पर मजबूर करती हैं।

     इसके कोशिकाद्रव्य में इकाई झिल्ली युक्त कोशिकांग पाये जाते हैं। प्रत्येक कोशिका के मध्य में एक बड़ी रिक्तिका पायी जाती है। प्रत्येक कोशिका में एक या अधिक हरित लवक पाया जाता है। क्रोमैटोफोर में स्थित फ्यूकोर्जेन्थिन वर्णक अन्य वर्णकों की अपेक्षा प्रभावी होता है एवं इनको आच्छादित कर लेता है, इसी कारण ये भूरे रंग के दिखाई देते हैं। इनकी कोशिकाएँ एक केन्द्रकीय होती हैं। इनकी चल रचनाओं में दो कशाभिकाएँ पायी जाती हैं,

    जिनमें से एक बड़ी तथा एक छोटी होती है। लैमिनेरिया तथा सारगैसम इस वर्ग के मुख्य सदस्य हैं। सारगैसम उत्तरी अटलाण्टिक सागर के कुछ हिस्से में इतनी अधिकता से पाया जाता है कि इस हिस्से को 'सारगैसो सी' (Sargasso sea) कहते हैं। यह जहाजों के आवागमन में भी बाधा पहुँचाता है। सबसे बड़ी भूरे रंग की शैवाल का नाम है

     मैक्रोसिस्टिस (Macrocystis)

     प्रजनन (Reproduction)

    वर्धी जनन खण्डन (Fragmentation) तथा अलैंगिक जनन इन भूरे शैवालों जैसे कि ऐक्टोकार्पस (Eectocarpus) में यूनीलाक्यूलर स्पोरेन्जिया (Unilocular sporangia) अथवा बहुकोशिकीय स्पोरेन्जिया की सहायता से होता है, जो द्वि-कशाभिकीय चल बीजाणु उत्पादित करते हैं। लैंगिक जनन समयुग्मकता (Isogamy) (जिसमें नर तथा मादा युग्मक चल एवं आकारिकीय में समान होते हैं) अथवा विषमयुग्मकता (Oogamy) (जिसमें नर युग्मक चल तथा मादा युग्मक बड़ा तथा अचल होता है तथा जल में स्वतंत्र रूप से निष्कासित नहीं होता) द्वारा होता है। पीढ़ी एकान्तरण होता है, जिसमें अगुणित तथा द्विगुणित बहुकोशिकीय पीढ़ियाँ बनती हैं। वृहद् भूरे शैवालों जैसे कि फ्यूकस तथा सारगैसम में स्थलीय सम्वहनी पौधों के समान द्विगुणित अवस्था जीवन चक्र में प्रभावी होती है, क्योंकि इसमें अगुणित अवस्था एक कोशिकीय नर तथा मादा युग्मकों के रूप में प्रतिनिधित्व की जाती है।

    आर्थिक महत्व (Economic Importance)

    जापानी लोग भूरे शैवालों की 20 से भी अधिक जातियों को खाते हैं। भूरे शैवालों के शुष्क भार का लगभग

    30% भाग पोटैशियम क्लोराइड होता है, जिसके कारण इनमें पोटैशियम लवण निकाले जाते हैं। इनसे किण्वन विधि के द्वारा ऐसीटिक ऐसिड निकाली जाती है। कुछ का प्रयोग औषधि उद्योग तथा मुर्गियों का खाना तैयार करने में किया जाता है। जापानी लोग इसका उपयोग भोजन के समय सलाद के रूप में अधिकता से करते हैं। लैमीनेरिया जेपोनिका, कोन्ड्रस, क्रिस्मस आदि में विटामिन B पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ऐस्कोफिल्लम (Ascophyllum), फ्यूकस(Fucus) तथा लैमीनेरिया आदि जानवरों के खाद्य (Cattle feed) के रूप में प्रयुक्त होते हैं। भूरे शैवालों से आयोडीन (lodine) मुख्यतया प्राप्त किया जाता है।

    ऐलजिनिक अम्ल बहुत ही उपयोगी होता है, क्योंकि यह पदार्थ एक चिकनर (या गाढ़ापन पैदा करने के लिए) (Thickner) के रूप में खाद्य उद्योग में जैसे- आइसक्रीम में, सौन्दर्य प्रसाधनों में, कपड़ा उद्योग में प्रयोग किया जाता है।