सूक्ष्मकाएँ (Microbodies)

सूक्ष्मकाएँ या सूक्ष्मांग इकहरी इकाई झिल्ली के बने आशय (Vesicles) या थैलियाँ (Bags) हैं, जो जन्तु तथा पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। इनमें कुछ विशेष प्रकार के प्रकिण्वों युक्त एक आधार द्रव्य-आधात्री (Matrix ) भरा होता है। सम्भवतः इनका निर्माण एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, गॉल्गी काय या प्लाज्मा झिल्ली के आशय के रूप में अलग होने से होता है। लाइसोसोम, स्फेरोसोम, परऑक्सीसोम, ग्लाइ ऑक्सीसोम, लोमासोम और ट्रान्सोसोम कुछ प्रमुख सूक्ष्मकाएँ हैं लाइसोसोम का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है।

    1. स्फेरोसोम (Spherosomes) :– 

    ये सूक्ष्म गोलाकार इकहरी इकाई झिल्ली की बनी रचनाएँ हैं, जो ER के मुकुलन (Budding) से बनती हैं। ये केवल पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं और जन्तु कोशिकाओं के लाइसोसोम की तरह होते हैं। इनमें लाइसोसोम के समान फॉस्फेटेज, इस्टेरेज, राइबोन्यूक्लिएज, हाइड्रोलेज, प्रोटीएज आदि प्रकिण्व पाये जाते हैं, लेकिन विशिष्ट वसीय लक्षण के कारण ये लाइसोसोम से भिन्न होते हैं। इन हाइड्रोलिटिक (Hydrolytic) प्रकिण्वों की उपस्थिति के कारण ऐसा समझा जाता है कि इनका कार्य कोशिकीय पदार्थों का पाचन करना है। इनका लगभग 98% भाग वसा और शेष भाग प्रोटीन का बना होता है, इसमें से कुछ प्रोटीन प्रकिण्व होते हैं। इनका मुख्य कार्य वसा का संश्लेषण, संग्रहण तथा स्थानान्तरण है। स्फेरोसोम को प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के द्वारा कोशिका को सूडान रंग (Sudan dye) और ऑस्मियम टेट्रा ऑक्साइड (Osmiurn tetraoxide) में रंगकर देखा जा सकता है।

    2. परऑक्सीसोम (Peroxisome):- 

    परऑक्सी सोम को सबसे पहले टॉलबर्ट (Tolbert) तथा उसके सहयोगियों ने सन् 1968 में 'भग्न हरितलवक' के अंश के घनत्व प्रवणता के अपकेन्द्रन (Density gradient centrifugation) द्वारा प्राप्त किया था। इनका व्यास 0-5 1-0pm के लगभग होता है। ये इकहरी इकाई झिल्ली की बनी गोलाकार रचनाएँ हैं, जिनमें हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2), उपापचय से संबंधित प्रकिण्व जैसे-कैटेलेज, परॉक्सीसडेज, यूरेज ऑक्सीडेज, D-अमीनो ऐसिड ऑक्सीडेज आदि अधिकता से पाये जाते हैं। ये भी स्फेरोसोम के समान ER के मुकुलन से बनते हैं, जबकि इनके प्रकिण्व RER से लगे राइबोसोम में बनते हैं। ये सभी प्रकाश संश्लेषी उच्च पौधों की कोशिकाओं और जन्तुओं की लिपिड उपापचय से संबंधित कोशिकाओं में 70 से 100 की संख्या में पाये जाते हैं। इनके अन्दर एक कणिकामय आधात्री (Matrix) भरा होता है।

    पराऑक्सीसोम प्रकाश श्वसन (Photo respiration) में सहायता करते हैं। यह क्रिया हरे पौधों में प्रकाश की तीव्रता, CO, की कम सान्द्रता और 02 की अधिकता में माइटोकॉण्ड्रिया हरितलवक और परऑक्सी सोम की सहायता से होती है। इस क्रिया में हरिलतवक में निर्मित ग्लाइकोलिक अम्ल (Glycolic acid) के अणु परऑक्सीसोम में प्रवेश करते हैं और इनमें इस अम्ल का ऑक्सीकरण होता है तथा CO2 मुक्त होती है। प्रकाश श्वसन के अतिरिक्त परऑक्सीसोम जन्तु कोशिकाओं में वसा उपापचय में भाग लेते हैं। ये वसा को कार्बोहाइड्रेट में बदलते हैं और H2O2 उपापचय में भाग लेते हैं।

    3. ग्लाइऑक्सीसोम (Glyoxysome)

    इनकी खोज बीवर्स (Beevers) ने अरण्ड बीज के भ्रूणपोष के सूत्र कलिका में की थी। ये भी एक परत वाले इकाई झिल्ली के बने गोलाकार कण हैं, जिनमें ग्लाइऑक्जीलेट चक्र (Glyoxylate cycle) के दो विशिष्ट प्रकिण्व आइसोसाइट्रेडलेज (Isocitradlase) तथा मैले सिन्वेटेज (Malate synthetase) तथा कुछ अन्य संबंधित प्रकिण्व भरे होते हैं। ये भी ER के मुकुलन से बनते हैं वसा का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तन ग्लाइऑक्सीसोम में ही ग्लाइ ऑक्जलेट चक्र के द्वारा होता है। यह चक्र क्रेव्स चक्र का एक रूपान्तरण है, जिसमें वसा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित किया जाता है। ग्लाई ऑक्सीसोम बीजों की कोशिकाओं में अधिकता से पाये जाते हैं और अंकुरण के समय बीज के वसा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित करते हैं। इसके अतिरिक्त ये कुछ प्रोटोजोआ जन्तुओं और पौधों की कोशिकाओं में भी पाये जाते हैं।

    4. लोमासोम और ट्रान्सोसोम (Lomasomes and transosomes )

    लोमासोम को मीसोसोम (Mesosome) भी कहते हैं। ये पौधों की कोशिकाओं में पायी जाती हैं। जीवाणुओं में ये प्लाज्मा झिल्ली की अति वृद्धि से बनी विशिष्ट अण्डाकार या गोलाकार रचनाएँ हैं, जो कोशिकाद्रव्य में धँसी रहती हैं। कवकों (Fungi) में विशेष तौर पर ये कोशिका भित्ति और कोशिका झिल्ली के बीच में कुछ झिल्लिका-बद्ध पुटिकाओं के रूप में पाई गई हैं। यद्यपि इसके कार्य के बारे में कुछ भी पूर्ण रूप से सिद्ध नहीं हुआ है, परन्तु ऐसा विश्वास किया जाता है। कि लोमसोम सेल्युलोज को छोड़कर अन्य कार्बोहाइड्रेट्स का संश्लेषण करते हैं और नई कोशिका भिति के निर्माण में भाग लेते हैं। जीवाणु में ये रचनाएँ श्वसन से संबंधित रहती हैं, क्योंकि श्वसन के विकर इसमें पाये जाते हैं।