ब्रायोफाइटा(Bryophyta)
प्रभाग - ब्रायोफाइटा (Gk; Bryon = oss, Phyton = plant) की अब तक लगभग 25,000 जातियों का अध्ययन किया जा चुका है। इस प्रभाग को पादप जगत
का उभयचर कहा जाता है, क्योंकि ये जल
एवं स्थल दोनों आवासों में रह सकते हैं। इन्हें प्रथम स्थलीय पौधा भी माना जाता
है।
ये नम क्षेत्रों जैसे-नदियों के किनारे, झीलों तथा झरनों के आस-पास पुरानी नम दीवारों जैसे स्थानों पर पाये जाते हैं। ये नम एवं ठण्डे स्थानों पर एक हरी पर्त बनाते हैं। प्रायः वर्षा के दिनों में हरी दीवारों व नलों के पास इन्हें चौड़ी पतली पत्तियों के समान रचना के रूप में देखा जा सकता है। ये वर्षा के दिनों में चट्टानों, वृक्षों तथा सूखी लकड़ियों की छालों पर भी पाये जाते हैं।
ब्रायोफाइट्स भारत के पहाड़ी क्षेत्रों (जैसे कि पूर्वी तथा पश्चिमी हिमालय) की नम भूमि तथा चट्टानोंपर छाया में बहुलता से पाये जाते हैं।
सामान्य लक्षण (General Features)
इनके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
1. ये असंवहनी (Non-vascular), हरित लवक युक्त नम भूमि या छालों इत्यादि पर पाये जाने वाले ऐसे पौधे हैं, जिनमें निषेचन के बाद भ्रूण (Embryo) बनते हैं।
2. मुख्य पौधा युग्मकोद्भिद (Gametophyte) होता है, बीजाणुद्भिद (Sporophyte) युग्मकोद्भिद के ऊपर आश्रित रहता है।
3. इनके जनन अंग बहुकोशिकीय होते हैं तथा बंध्या (Sterile) आवरण (Jacket) से घिरे रहते हैं। नर अंग को ऐन्थीरिडिया (Antheridia) तथा मादा अंग को आर्कीगोनियम (Archegonium) कहते हैं।
4. निषेचन के लिए जल आवश्यक होता है।
5. इनके जीवन-चक्र में दो बहुकोशिकीय रचनाएँ पायी जाती है-एक अति तथा दूसरी द्विगुणित होती है। इन अगुणित और द्विगुणित रचनाओं में स्पष्ट विषमरूपी (Heteromorphic alternation of generation) पीढ़ी एकान्तरण पाया जाता है।
6. इनका थैलसनुमा शरीर प्रायः द्विपार्श्व सममित (Bilateraly symmetrical) शाखित पत्ती के समान होता है। जैसे- रिक्सिया (Riccia), मार्केशिया (Marchantia) जिसकी प्रतिपृष्ठ सतह पर मूलरोमों (Roothairs) के समान रचनाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें मूलाभास (Rhizoids) कहते हैं। ये मूलाभास जड़ों के समान जल अवशोषण व पौधों को स्थिर रखने का कार्य करते हैं। कुछ विकसित ब्रायोफाइट्स में अरीय सममिति (Radial symmetry) पायी जाती है। जैसे-मॉस फ्यूनेरिया (Funaria) जिसमें तने सदृश रचना भी पायी जाती है। ऐसी स्थिति में ये पत्ती, तने तथा मूलाभास के बने होते हैं।
ब्रायोफाइट्स में
विभिन्न समूह एवं उनकी जीवन पद्धति (Different Groups of Bryophytes and their Life Style)
ब्रायोफाइट्स प्रभाग को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं
(A) वर्ग - हिपैटिसी (Hepaticae)
इस वर्ग के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
- इनका युग्मकोद्भिद (Gametophyte = 1n) प्रायः सूकायवत् (Thallus like) या पर्णिल (Leaf like)होता है। यदि पर्णिल होता है, तो पत्ती में मध्य शिरा नहीं पायी जाती।
- मूलाभास में पट (Septa) नहीं पाये जाते।
- एक कोशिका में अनेक हरित लवक पाये जाते हैं। इनमें पायरीनॉइड (Pyrinoids) नहीं पाया जाता।बीजाणुभिद (Sporophytey या बीजाणु पैदा करने वाली अवस्था में स्तंभिका (Columella) नहीं पाया जाता स्तंभिका (Columnella) बीजाणुद्भिद में पायी जाने वाली एक विशिष्ट मृदूतकीय कोशिकाओं की
- बनी बन्ध्य (Sterile) रचना है, जो बीजाणुद्भिद के सम्पुट (Capsule) में बने बीजाणुओं को भोजन व जल देती है। रिक्सिया (Riccia) तथा मार्केन्शिया (Marchantia) इस वर्ग के उदाहरण हैं।
(B) वर्ग - ऐन्थोसिरॉटी (Anthocerotae)
इसके मुख्य लक्षण
निम्नलिखित हैं :-
1.
युग्मकोद्भिद
सूकायवत् होता है तथा इसमें वायु प्रकोष्ठ (Air chambers) व शल्क नहीं पाये जाते।
2.
मूलाभास में पट्ट
नहीं पाया जाता।
3. (iii) इसकी प्रत्येक कोशिका में एक बड़ा पायरीनॉइड युक्त हरित लवक पाया जाता है।
4.
इनके सम्पुट में
स्तम्भिका (Columella) पायी जाती है।
इस वर्ग के उदाहरण हैं- ऐन्थोसिरॉस (Anthoceros), नोटोथायलस (Notothylus) आदि।
(C) वर्ग-मसाई (Musci)
इसके मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं
· युग्मकोद्भिद (अगुणित अवस्था) एक शयान प्रथम तन्तु (Protonema) व एक ऊर्ध्व रचना युग्मकोधर (Gametophore) में विभेदित होता है। युग्मकोधर मूलाभास, तना तथा पत्ती में विभेदित तथा प्रोटोनिमा एकतन्तुवत् रचना है।
· युग्मकोधर पर्णिल होता है अर्थात् इसमें पत्तियाँ पायी जाती हैं।
· मूलाभास बहुकोशिकीय व तिरछे पटों युक्त होता है।
· इनमें इलेटर्स (Elaters) नहीं पाये जाते (इलेटर्स बीजाणुद्धिदों में पायी जाने वाली विशिष्ट कोशिकाएँहैं, जो सम्पुट के स्फुटन में सहायता करते हैं)।
वे ब्रायोफाइट्स जिनका काय हरा सूकायवत् तथा शाखित होता है, लिवरवर्ट (Liverwort) कहलाते हैं अर्थात् हिपैटिसी और ऐन्बोसिटी वर्ग के ब्रायोफाइट्स ही लिवरवर्ट हो सकते हैं। वे ब्रायोफाइट्स जिनका शरीर मूलाभास, तना तथा पत्ती में विभेदित होता है, मॉस कहलाते हैं। मसाई वर्ग के सदस्य मॉस ही होते हैं।
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