GOES
श्रम विभाजन (Division of Labour) |
श्रम विभाजन का अर्थ
श्रम विभाजन का अर्थ किसी वस्तु के उत्पादन की क्रियाओं को कई खण्डों तथा उपखण्डों में बांटकर तथा उपखण्ड को श्रमिकों के विशेष समूह को उनकी अभिरूचि एवं क्षमता के अनुसार सौंपने की प्रक्रिया होता है। प्रत्येक श्रमिक वृहद पैमाने पर होने वाले कुल उत्पादन के एक छोटे भाग का ही उत्पादन करता है। यही श्रम विभाजन है।
श्रम विभाजन का अर्थ
श्रम विभाजन का अर्थ किसी वस्तु के उत्पादन की क्रियाओं को कई खण्डों तथा उपखण्डों में बांटकर तथा उपखण्ड को श्रमिकों के विशेष समूह को उनकी अभिरूचि एवं क्षमता के अनुसार सौंपने की प्रक्रिया होता है। प्रत्येक श्रमिक वृहद पैमाने पर होने वाले कुल उत्पादन के एक छोटे भाग का ही उत्पादन करता है। यही श्रम विभाजन है।
श्रम विभाजन का परिभाषा ( Definition of division of labor )
श्रम विभाजन को विद्वानों
ने अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है।
v उत्पादन की क्रिया को अनेक उपक्रियाओं में विभाजित करके प्रत्येक उपक्रिया को उत्पादन के साधनों को (जो निपुण होते हैं) करने के लिए देना और फिर सबके उत्पादन को मिलाकर विशेष उपयोग की वस्तुएँ बनाने की उत्पादन व्यवस्था को श्रम विभाजन कहते हैं ।
v कार्यों का विशिष्टीकरण ही श्रम विभाजन है"
v श्रम विभाजन का अर्थ आर्थिक क्रियाओं का विशिष्टीकरण है।"
इन परिभाषाओं के आधार पर श्रम विभाजन के संबंध में निम्नलिखित तथ्य सामने आते हैं:
· प्रत्येक उत्पादन क्रिया को अनेक खण्डों एवं उपखंडों में विभक्त किया जाता है ।
· प्रत्येक उपखण्डों के अंतर्गत आने वाले कार्यों को ऐसे श्रमिकों से सम्पन्न करवाया जाता है जो उन कार्यों में दक्ष होते हैं।
श्रम विभाजन के
प्रकार श्रम विभाजन के प्रकार:(
Types of division of labor types of division of labor )-
1. सरल अथवा व्यावसायिक श्रम विभाजन :-
यह श्रम विभाजन का प्राचीन रूप है। इसके
अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति कई वस्तुओं का
उत्पादन न करके किसी एक अब कार्य का चुनाव करता है और प्रारंभ से अंत तक उसी कार्य को
करने में लगा रहता है। अतः जब किसी कार्य को पारंभ से अंत तक एक ही व्यक्ति द्वारा
सम्पन्न किया जाता है। तो यह सरल श्रमविभाजन कहलाता है।जैसे किसान का खेती करना,
बढ़ई का लकड़ी का कार्य करना सरल श्रम विभाजन के
अंतर्गत आता है। भारत की जाति व्यवस्था सरल श्रम विभाजन की घोतक है।
(2) जटिल श्रम विभाजन:-
जब उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को
अनेक खण्डों या उपखण्डों में इस प्रकार विभक्त किया जाता है कि प्रत्येक खण्ड या
उपखण्ड उस व्यक्ति द्वारा सम्पादित किया जाता है, जो उसमें विशेष योग्यता रखता है। जटिल श्रम विभाजन के तीन
रूप होते हैं:
क) पूर्ण क्रियाओं का श्रम विभाजन:- जब किसी उद्योग
के उत्पादन कार्य को कई छोटे-छोट पूर्ण कार्यों में विभक्त कर दिया जाता है तथा
प्रत्येक कार्य को अलग-अलग श्रमिकों द्वारा सम्पन्न कराया जाता है एवं प्रत्येक
व्यक्ति समूह के द्वारा उत्पादित वस्तु उसी व्यवसाय के किन्हीं अन्य श्रमिकों के
लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग में लायी जाती है तब उसे पूर्ण क्रियाओं का श्रम
विभाजन कहते हैं। उदाहरणार्थ- सूती कपड़ा तैयार करने की सम्पूर्ण उत्पादन व्यवस्था
पूर्ण विधियों में इस प्रकार विभाजित है
कि कपास का उत्पादन किसी एक व्यक्ति के एक समूह द्वारा किया जाता है, कपास के बिनौले निकालने का कार्य किसी दूसरे
व्यक्ति समूह द्वारा, बंधाई का कार्य
तीसरे व्यक्ति समूह द्वारा, रूई कातने का
कार्य चौथे व्यक्ति समूह के द्वारा
धागे को रंगने का कार्य पांचवे और धागे से कपड़े बुनने का कार्य छठवे व्यक्ति समूह
द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक विधि अपने आप में पूर्ण है और
प्रत्येक श्रम समूह द्वारा उत्पादित वस्तु दूसरे श्रम समूह के लिए कच्ची सामग्री
का काम देती है।
ख.) अपूर्ण क्रियाओं का श्रम
विभाजन: श्रम विभाजन का
यह रूप मशीन के युग साथ ही आरंभ हुआ। किसी उद्योग में उत्पादन कार्य के अंतर्गत
उत्पादन की प्रत्येक पूर्ण क्रिया को अनेक अपूर्ण क्रियाओं में विभाजित कर दिया
जाता है तथा प्रत्येक अपूर्ण क्रिया एक पृथक श्रमिक के द्वारा सम्पादित की जाती है
तब उसे अपूर्ण क्रियाओं का श्रम विभाजन कहा जाता है। उदाहरणार्थ तैयार कमीज बनाना
एक पूर्ण क्रिया है किन्तु सिलाई उद्योग में एक श्रमिक केवल ग्राहकों का नाप लेता
है, दूसरा नाप के अनुसार
कपड़ा काटता है, तीसरा सिलता है,
चौथा बटन लगाता है और पाँचवाँ इसमें इस्त्री
करता है। यह अपूर्ण क्रियाओं का श्रम विभाजन है। स्पष्टत: इस प्रक्रिया में हर
स्तर का कार्य अपूर्ण है और सभी स्तर के कार्य मिलकर पूर्ण कार्य बनते हैं।
स) प्रादेशिक श्रम विभाजन:- जब किसी स्थान पर उत्पादन के विभिन्न साधनों के
उपलब्ध होने के कारण वहाँ उद्योग या व्यवसाय केन्द्रित हो जाते हैं तो उसे
प्रादेशिक श्रम विभाजन कहते हैं। जैसे- अहमदाबाद में सूती मिलें, असम में चाय उद्योग आदि प्रादेशिक श्रम विभाजन
के ही कारण हैं।
श्रम विभाजन के लाभ( Benefits of division of labor )-
विभाजन से लाभ संबंध एडम ने कहा कि "श्रम की कार्य क्षमता, उसकी कुशलता एवं निर्णयशक्ति में वृद्धि सबसे
अधिक श्रेय को है" श्रम विभाजन लाभों को अग्रलिखित बिन्दुओं आधार पर समझा जा
सकता हैं।
1. उत्पादकों को लाभ (profit to producers)
2. श्रमिकों लाभ (workers benefits)
3. उपभोक्ताओं को लाभ (benefit to consumers)
4. समाज को लाभ (Benefit to society)
1.उत्पादकों को लाभ (profit to producers) :-
इस वर्ग क़े अंतर्गत निम्नलितिखत का वर्णन किया सकता है।
1.उत्पादन में
वृद्धि:-
श्रम विभाजन के करण मे वृद्धि हो जाती है। क्योंकि (अ) प्रत्येक व्यक्ति वह विशिष्ट कार्य
करता है जिसके लिए वह विशेष से योग्य होता है। निरंतर ही कार्य करने के कारण
व्यक्ति उस कार्य में निपुणता प्राप्त कर है। एडम स्मिथ के अनुसार यदि एक व्यक्ति
अकेले ही आलपिन बनाने के कार्य लगाया जाय तो दिन भर 20 आलपिन से अधिक नहीं बना सकता है। लेकिन व्यक्तियों को श्रम
विभाजन के अनुसार यह कार्य दिया जाये तो 4400 आलपिनों का निर्माण किया जा सकता है।
2.उत्पादन व्यय
कमी
श्रम विभाजन के
व्यक्ति द्वारा कम समय ही अधिक में ही अधिक वस्तुएँ उत्पादित की जाती है। इसलिए प्रति वस्तु
उत्पादन व्यय में कमी आ जाती है।
3.उत्पादन की
श्रेष्ठता :-
निपुण श्रमिकों द्वारा वस्तुओं का उत्पादन होने के कारण उनकी गुणवत्ता बढ़
जाती हैं ।
4.मशीनों का अधिक प्रयोग :-
श्रम विभाजन में सम्पूर्ण उत्पादन क्रिया को अनेक उपक्रियाओं में विभाजित कर
दिया जाता है। इसलिए प्रत्येक क्रिया सरल हो जाती है। और मशीनों के द्वारा की जाने
लगती है। इस प्रकार श्रम विभाजन से मशीनों का प्रयोग अधिक संभव जाता है।
5.साधनों की
बर्बादी में कमी :-
श्रम विभाजन में प्रत्येक कार्य विशेषज्ञों द्वारा सम्पन्न किया जाता है।
इसलिए उत्पादन के क्रम में साधनों की बर्बादी में कमी आ जाती है।
6.समय की बचत :-
श्रम विभाजन पर आधारित उत्पादन प्रणाली में समय की बचत तीन प्रकार से होती
है:- (अ) अधिक निपुणता के कारण श्रमिक थोडे समय में ही अधिक कार्य कर लेते हैं।
(ब) सभी श्रमिकों का कार्य तथा कार्य स्थल निश्चित होता है। अतः उन्हें अधिक भाग
दौड नहीं करनी पड़ती है। (स) श्रमिक मशीनों की सहायता से कार्य करते हैं जिससे समय
की बचत होती है।
7.नये अविष्कार :-
श्रमिकों द्वारा विशेष कार्यों को लगातार किये जाने के कारण कार्य की सूक्ष्म से सूक्ष्म गलतियों को जान वे जाते हैं और उन्हें दूर करने के लिए नये-नये अविष्कार करते हैं।
सामाजिक विज्ञान-10
2.श्रमिकों को लाभ (workers benefits)
श्रम विभाजन से श्रमिकों को निम्नलिखित लाभ होते हैं:
1. श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि : श्रम विभाजन प्रणाली में श्रमिक किसी एक विशेष
कार्य को करते रहने के कारण उस कार्य में दक्षता हासिल कर लेता है। इससे उसकी
कार्यक्षमता में वृद्धि होती हैं।
2. श्रमिकों की गतिशीलता में वृद्धि :- श्रम विभाजन के अंतर्गत चूंकि उत्पादन कार्य को अनेक सूक्ष्म उपविधियों में बाँट दिया जाता है तथा प्रत्येक उपविधि इतनी सरल व सुगम हो जाती है कि आवश्यकता पड़ने पर कोई भी श्रमिक उसे आसानी से सीख सकता है। इसलिए यदि श्रमिक एक उद्योग को छोड़कर दूसरे उद्योग में प्रविष्ट होता है तो उसे दूसरे कार्य को सीखने में अधिक समय नही लगता फलतः श्रमिकों की व्यावसायिक गतिशीलता अधिक हो जाती है।
व्यावसायिक गतिशीलता से श्रमिकों को दो प्रकार से लाभ होता है । :- (अ) एक उद्योग में बेकारी बढ़ने पर दूसरे उद्योग
में लग सकता है। (ब) श्रमिकों को अच्छी मजदूरी प्राप्त होती है।
3 प्रशिक्षण में कम समय व धन के व्यय में बचत :- श्रम विभाजन के अंतर्गत पूर्णक्रिया के सीखने
के बजाय एक छोटे से मात्रा को ही सीखना पड़ता है। इसलिए श्रमिकों को प्रशिक्षण में
कम समय और कम व्यय लगता
4. पारिश्रमिक में
वृद्धि :- श्रम विभाजन के
कारण उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे श्रमिकों को पारिश्रमिक अधिक मिलता है।
5. रोजगार में वृद्धि :- श्रम विभाजन के कारण कई प्रकार के कार्यों का
सृजन होता है तथा कार्य कई टुकड़ों में बंट जाता है। अतः स्त्री, पुरुष, बुजुर्ग, जवान तथा बच्चे
सबको उनकी योग्यतानुसार कार्य मिल जाता है।
6. सहयोग की भावना
का प्रयोग :- श्रम विभाजन ने
वृहद उत्पादन प्रणाली को जन्म दिया है, जिससे सैकड़ों व हजारों मजदूर एक साथ मिलकर एक स्थान पर काम करते हैं। अतः
उनमें पारस्परिक एकता तथा सहयोग की भावना होती है।
7. श्रमिकों का
सांस्कृतिक विकास: - जब किसी कारखाने में हजारों मजदूर देश के विभिन्न हिस्सों से आकर परस्पर मिलकर
कार्य करते हैं तो इससे श्रमिक एक-दूसरे के रीति रिवाजों तथा सांस्कृतिक जीवन से
परिचित होते हैं। उनमें आपस में सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है।
8. श्रमिकों की
संगठन और सौदा करने की शक्ति में वृद्धि - श्रम विभाजन के कारण उत्पादन का पैमाना बड़ा हो
जाता है। इसलिए बड़ी संख्या में श्रमिक कार्य करते हैं। परस्पर साथ रहने से उनमें
वर्ग चेतना आती है और वे मिलकर श्रमिक संघ बनाते हैं। इससे उनमें मालिकों के साथ
सौदा करने की शक्ति बढती है और उनके कार्य करने की अवस्थाओं में सुधार आता है।
(3) उपभोक्ताओं को लाभ (benefit to consumers)
श्रम विभाजन के फलस्वरूप उपभोक्ताओं को निम्नलिखित लाभ होते हैं
v वस्तुओं की कम
कीमतः- श्रम विभाजन के
द्वारा वस्तुओं की निर्माण लागत कम हो जाती है जिससे उपभोक्ताओं को कम कीमत में वस्तुएँ प्राप्त
होती हैं।
v
उत्तम वस्तुओं की प्राप्तिः - श्रम विभाजन के द्वारा मशीनों और योग्य
श्रमिकों द्वारा उत्तम किस्म की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। फलस्वरूप
उपभोक्ताओं को उच्च कोटि की वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
v रोजगार के अवसरों
में वृद्धि - उत्पादन का
बड़ा पैमाना, विस्तृत आकार
उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता बढाने में सहायक होता है। उद्योगों में रोजगार प्राप्त
करके उपभोक्ता अपनी आय बढ़ा सकते हैं। उनके लिए रोजगार के अवसरों में
वृद्धि होती है।
v
नवीन वस्तुओं की उपलब्धता - श्रम विभाजन प्रणाली में अविष्कारों द्वारा
नवीन वस्तुओं का निर्माण किया जाता है जिससे उपभोक्ताओं के पास क्रय के लिए अनेक
प्रकार की वस्तुओं की उपलब्धता होती हैं।
v उपभोक्ता की सन्तुष्टिः- श्रम विभाजन के द्वारा कम कीमत और अधिक गुणवत्ता की वस्तुओं का निर्माण होने से उपभोक्ताओं को अधिक सन्तुष्टि मिलती है।
(4) समाज को लाभ (
Benefit to society)
श्रम विभाजन के द्वारा समाज को
निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते
हैं:
·
आविष्कारों की संख्या में वृद्धिः - श्रम विभाजन के द्वारा एक ही प्रकार के कार्य
को करते रहने के कारण श्रमिक उस कार्य में विशिष्टता प्राप्त कर लेते हैं और उसको
सरल विधियों के द्वारा सम्पन्न करने के लिए नवीन आविष्कार करते रहते हैं।
·
संसाधनों का उचित उपयोगः- श्रम विभाजन के कारण उपलब्ध संसाधनों का
सर्वोत्तम उपयोग संभव होता है।
· रोजगार के अवसरों का विस्तारः- श्रम विभाजन के फलस्वरूप उद्योगधंधों का विस्तार एवं विकास होता है इससे रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ जाती हैं।
·
कुशल संगठन कर्ताओं में वृद्धि:- जटिल श्रम विभाजन
के अंतर्गत उत्पादन की प्रत्येक उपविधि में समन्वय स्थापित करने के लिए योग्य एवं
कुशल संगठनकर्ताओं की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए देश में उनकी संख्या में वृद्धि
होती है।
· सहयोग की भावना में वृद्धिः - श्रम विभाजन उत्पादन पद्धति के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति या परिवार आत्मनिर्भर नहीं हो पाता, इसलिए समाज में सहयोग की भावना का विकास होता है।
श्रम विभाजन से होने वाली हानियाँ (Demerites of Division of Labour)
श्रम विभाजन से होने वाली हानियों तथा उसके दोषों का अध्ययन निम्नलिखत
बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है
(क)
श्रमिकों की दृष्टि सेः-
श्रम विभाजन से श्रमिकों को निम्नलिखित हानियाँ होती है:
ü
1.नीरसता:- एक श्रमिक निरंतर एक काम को करते हुए उससे ऊब
जाता है और ही कार्य क्षेत्र में नीरसता उत्पन्न हो जाती है।
ü कार्यक्षमता में कमी:- श्रम विभाजन में श्रमिक किसी कार्य का अल्पाश ही सीखता है और कालान्तर में श्रमिक इसे यन्त्रवत करने लगता है और फिर उसे अपनी कार्य विधि के विषय में कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती इससे उसकी कार्यकुशलता का ह्रास होने लगता है।
ü उत्तरदायित्व का अभाव:- श्रम विभाजन के अंतर्गत मजदूरों में उत्तरदायित्व का ह्रास हो जाता है। क्योंकि अंतिम उत्पादन सब श्रमिकों की चेष्टाओं का परिणाम होता है। यदि अंतिम उत्पादन किसी कारण घटिया किस्म का है तो उसके लिए किसी एक श्रमिक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है
ü श्रमिक गतिशीलता में कमी :-श्रम विभाजन में श्रमिक किसी निर्माण प्रक्रिया की एक छोटी सी क्रिया को ही सीखता है और उसमें निपुणता प्राप्त करता हैं। किन्तु जब तक उस क्रिया की मांग न हो श्रमिक को कार्य नहीं मिलता। इससे श्रमिक की गतिशीलता में कमी आ जाती है।
ü मालिकों से संघर्ष :- श्रम विभाजन प्रणाली के कारण श्रमिकों के संगठन निर्मित हो जाते हैं और अपने हितों की रक्षा के लिए इनका मालिकों के साथ निरंतर संघर्ष होता रहता है।
ü स्त्री एवं बाल शोषणः- श्रम विभाजन में अनेक कार्यों को स्त्री एवं बाल श्रमिकों द्वारा कराया जाता है जिनका मालिकों द्वारा अक्सर शोषण किया जाता है।
(ख)
उत्पादक दृष्टिकोण से:-
श्रम विभाजन से निम्नलिखित हानियाँ होती है
o श्रम विभाजन के कारण उत्पादन का पैमाना वृहद हो जाता है। इसलिए उसके प्रबंध एवं प्रशासक का कार्य अत्यंत जटिल हो जाता है।
o श्रम विभाजन के कारण श्रमिक संगठनों का निर्माण होता है। इसलिए उत्पादकों को उचित अनुचित मांगों के लिए इनके द्वारा हडताल का भय बना रहता है।
ग) समाज के
दृष्टिकोण से:-
श्रम विभाजन से समाज को
निम्नलिखित हानियाँ होती है:
o
श्रम विभाजन से
फैक्टरी प्रणाली का जन्म हुआ जिससे अनेक तरह के हानिकारक प्रभाव जैसे गन्दगी,
मकानों का अभाव, गुण्डागर्दी तथा विभिन्न सामाजिक कुरीतियों फैलती है।
o
गांवों से
व्यक्ति शहरों में आने लगते हैं।
o
मजदूरों का शहरों
में दबाव बढ़ता है।
o
औद्योगिक शहरों
की स्थापना से महंगाई में वृद्धि होती है।
o
स्त्री बच्चों का
शोषण
o श्रम विभाजन के कारण समाज के विभिन्न वर्गों की आत्मनिर्भरता समाप्त हो जाती है। सूतीवस्त्र उद्योग में सूत तैयार करने वाले श्रमिकों की हड़ताल से न केवल कपड़ा मिल बन्द हो जाएगी बल्कि कपास व्यापारियों का व्यवसाय भी ठप्प हो जाएगा।
0 Comments