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Consumer's Surplus
उपभोक्ता
उपभोक्ता की बचत (Consumer's Surplus )
सर्वप्रथम, प्रारंभिक रूप
में उपभोक्ता की बचत की धारणा को फ्रांसीसी अर्थशास्त्री डयूपिट (Dupit) ने प्रस्तुत किया, किन्तु आगे चलकर मार्शल ने इसे वैज्ञानिक एवं पूर्ण रूप से
प्रस्तुत किया और इसे "उपभोक्ता की बचत" नाम दिया।
उपभोक्ता की बचत का अर्थ (Meaning of Consumer's Surplus)
उपभोक्ता की बचत की धारणा हमारे दैनिक जीवन के अनुभवों पर आधारित है। जब हम
किसी वस्तु को खरीदना चाहते हैं। तो हमारी दृष्टि में उस वस्तु की कुछ उपयोगिता
होती है और हम उसकी उपयोगिता के बराबर उस वस्तु के लिए मूल्य देने को तैयार हो
जाते हैं,
किन्तु किन्हीं कारणों से वह वस्तु हमारे द्वारा विचार किये गये मूल्य से कम
कीमत पर मिल जाती है तो हमें कुछ लाभ का अनुभव होता है। इसी लाभ को हम उपभोक्ता की
बचत कहते हैं अर्थात उपभोक्ता की बचत वस्तु के प्रत्याशित मूल्य तथा वास्तविक
मूल्य के बीच का अंतर होता है।
उपभोक्ता की बचत की परिभाषाएँ (Definetions of consumer's Surplus) :-
Ø पेंन्सन के अनुसार : " जो कुछ हम देने को तैयार हैं और जो कुछ हम वास्तव में देते हैं, इन दोनों के अंतर को ही उपभोक्ता की बचत कहा जाता। है।"
Ø मार्शल के अनुसार : "किसी वस्तु के उपभोग से वंचित रहने की अपेक्षा उसके लिए जो कीमत उपभोक्ता देने को तैयार है, तथा वास्तव में जो कीमत वह देता है, उसका अंतर ही उस अतिरेक (बचत) संतुष्टि का माप है। इसे उपभोक्ता की बचत कहा जाता है।
उक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि" किसी वस्तु से प्राप्त कुल उपयोगिता और उस वस्तु को प्राप्त करने के लिए व्यय की जाने वाली द्रव्य की कुल उपयोगिता के अंतर को ही उपभोक्ता की बचत कहते हैं।
" सूत्र:
उपभोक्ता की बचत =
जो कीमत उपभोक्ता देने को तैयार है
(-) जो कीमत वह वास्तव में देता है।
अथवा
उपभोक्ता की बचत =
कुल उपयोगिता मूल्य
(-) कुल विनिमय मूल्य
उपभोक्ता की बचत उत्पन्न होने के कारण (Reasons of Creation of Consumers Surplus ) :
उपभोक्ता की बचत निम्न कारणों से उत्पन्न होती है:-
1.वस्तु की प्रारंभिक इकाईयों के उपभोग से तृष्टिगुण प्राप्त होना:-
जब कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की कुछ इकाईयों का उपभोग करता है तो उसे उस वस्तु की प्रारंभिक इकाईयों के उपभोग से उनके बाद वाली इकाईयों उपभोग की अपेक्षा अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होता है। लेकिन वस्तु की सभी इकाईयों के लिए समान कीमत चुकानी पड़ती है। अतः उसे वस्तु की प्रारंभिक इकाईयों के उपभोग से जो अतिरिक्त तुष्टि गुण प्राप्त होता है, उसका आर्थिक माप ही उपभोक्ता की बचत कहलाती है।
2.वस्तु की इकाई से उसकी कीमत की अपेक्षा कम तुष्टि गुण मिलने पर उपभोग बंद हो जाना :-
उपभोक्ता किसी वस्तु का उपयोग उस इकाई के बाद बंद कर देता है जिसके उपयोग से प्राप्त तुष्टि गुण उसके लिए चुकाई गई कीमत के बराबर हो जाता है इसके बाद वाली इकाई वह इसलिए नहीं खरीदता क्योंकि उसे तुष्टि गुण की हानि होगी।
3.वस्तु की प्रत्येक इकाई की कीमत समान होना:-
उपभोक्ता को वस्तु की प्रत्येक इकाई के लिए समान कीमत चुकानी पड़ती है। क्योंकि बाजार में प्रत्येक इकाई की कीमत समान होती है। वस्तु की कीमत उसके सीमान्त तुष्टि गुण के बराबर होती है। अतः इसके पहले वाली इकाईयों के उपभोग से सीमान्त तुष्टिगुण की अपेक्षा जो अधिक तुष्टि गुण प्राप्त होता है वही उपभोक्ता की बचत कहलाता है।
4.वस्तु की सीमान्त इकाई के अतिरिक्त अन्य सभी इकाईयों का तुष्टिगुण अधिक होना :-
उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की उपभोग की गई अन्य इकाईयों से प्राप्त तुष्टिगुण उस वस्तु की अंतिम इकाई के उपभोग से प्राप्त तुष्टिगुण की अपेक्षा अधिक होता है। अतः अंतिम इकाई के अतिरिक्त इकाईयों के उपभोग से जो अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होता है वही उपभोक्ता की बचत कहलाता हैं।
उपभोक्ता की बचत की माप(Measurement of Consumers Surplus)
किसी वस्तु के उपभोग से एक उपभोक्ता को कितनी उपयोगिता मिलती है, इसे मापा नहीं जा सकता क्योंकि उपयोगिता एक
मनोवैज्ञानिक धारणा हैं। लेकिन प्रो. मार्शल का विचार है कि उपभोक्ता की बचत को
मुद्रा की सहायता से मापा जा सकता हैं। उपभोक्ता की बचत को मापने के लिए निम्न
लिखित दो सूत्र का प्रयोग किया जा सकता हैं
1. उपयोगिता के आधार पर,
2. मूल्य के आधार पर,
उपभोक्ता की बचत
के माप की कठिनाईयाँ (Difficulties in the Measure ment of Consumers Surplus)
उपभोक्ता की बचत को मापने
में निम्नलिखित
कठिनाइयां आती है :-
1. उपयोगिता की संख्यात्मक माप संभव नहीं।
2. द्रव्य की सीमान्त उपयोगिता स्थिर नहीं रहती।
3. उपभोक्ता की रूचि आय आदि में अंतर होता है।
4. स्थानापन्न वस्तुओं की उपस्थिति ।
5. जीवन रक्षक वस्तुओं पर उपभोक्ता की बचत लागू नहीं होती।
6. उपभोक्ता को माँग सारणी का ज्ञान नहीं।
7. केवल औसत उपभोक्ता की बचत | की माप ही संभव है।
8. उपभोक्ता की बचत की धारणा परिवर्तनशील है ।
1.उपयोगिता की संख्यात्मक माप संभव नहीं :-
उपयोगिता को संख्यात्मक रूप से मापा जा सकता है। क्योंकि उपयोगिता एक
व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक धारणा है, जिसे मापा नहीं जा सकता । जब उपयोगिता अमापनीय है तो उस पर आधारित उपभोक्ता की
बचत को भी नहीं माप सकतें।
2.द्रव्य की
सीमान्त उपयोगिता स्थिर नहीं रहती :-
सीमान्त उपयोगिता स्थिर नहीं रहती है। द्रव्य (मुद्रा) की मुद्रा को खर्च करते
जाने पर मुद्रा की अंतिम इकाईयों उपयोगिता
बढ़ती उपभोक्ता की धारणा उपयोगिता को स्थिर चलती हैं। अतः की बचत की माप
3.उपभोक्ता की
रूचि आय में अंतर होता हैं:-
उपभोक्ता की एवं आय आदत, आदि में अंतर
पाया है। अलग-अलग वस्तुओं से अलग-अलग हैं। इसके उपभोक्ता की बचत मापना कठिन हो
जाता हैं।
4.स्थानापन्न
वस्तुओं उपस्थिति:-
स्थानापन्न वस्तुओं उपस्थिति के कारण
वस्तु से उपयोगिता विभिन्न उपभोक्ताओं के अलग-अलग हो जाती है, अतः इसे मापना कठिन जाता हैं।
5.जीवन रक्षक वस्तुओं उपभोक्ता की बचत लागू नहीं
होती :-
रक्षक वस्तुओं के उपभोग से उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है, इसकी माप कठिन उदाहरणार्थ रेगिस्तान में से
तड़पता एक धनी व्यक्ति, एक पानी के लिए
लाखों रूपये देने के तैयार हो सकता है क्योंकि इस समय प्राणों की रक्षा केवल एक
गिलास पानी ही हो सकती हैं। अतः कहा जाता है जीवन आवश्यकताओं उपभोक्ता की असीमित
मात्रा में प्राप्त होती जिसका आसानी से संभव नहीं
6.उपभोक्ता को
माँग सारणी का ज्ञान नहीं :-
उपभोक्ता की बचत सही माप करने में कठिनाई यह है उपभोक्ता के पास माँग-मूल्य की पूर्ण सूची का
अभाव होता है। वह स्वयं यह नहीं जानता कि प्रत्येक इकाई के लिए वह कितना मूल्य
देने को तैयार है। क्योंकि वह मूल्य बाजार में प्रचलित नहीं हैं। इस प्रकार
विभिन्न मूल्यों पर जो मांग सूचियाँ तैयार की जाती हैं, वे कल्पित होती हैं। अतः इन सूचियों पर आधारित उपभोक्ता की
बचत भी अनिश्चित होती हैं।
7. केवल औसत उपभोक्ता की बचत की माप ही संभव है :-
उपभोक्ता की बचत का सही अनुमान नहीं
लगाया जा सकता। इसक मुख्य कारण यह है कि एक वस्तु से विभिन्न उपभोक्ताओं को
अलग-अलग उपयोगिता मिलती हैं। अतः उन्हें अलग-अलग उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है,
जिससे समाज की उपभोक्ता की बचत का सही अनुमान
नहीं लगाया जा सकता । केवल औसत बचत का पता ही लगाया जा सकता है।
8.उपभोक्ता की बचत की धारणा परिवर्तनशील है :-
उपभोक्ता की बचत की माप वस्तु के मूल्य पर निर्भर रहती है। वस्तु का मूल्य
बढ़ने पर यह घट जाती है, और मूल्य घटने पर
बढ़ जाती है, अतः • उपभोक्ता की बचत स्थायी न रहकर परिवर्तनशील है,
क्योंकि वस्तुओं के मूल्य स्थिर नहीं रहते वरन्
उनमें परिवर्तन होता रहता हैं।
"उपभोक्ता की बचत का महत्व (Importance of Consumers Surplus )
उपभोक्ता की बचत की धारणा अर्थशास्त्र में सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से
महत्वपूर्ण हैं
1) सैद्धान्तिक
महत्व:-
§ उपयोग मूल्य और विनिमय मूल्य में अंतर ।
§ सामाजिक जीवन के महत्व की व्याख्या
(2) व्यावहारिक
महत्व:
· आर्थिक स्तर की तुलना में सहायता ।
· एकाधिकारी मूल्य निर्धारण ।
· कर निर्धारण एवं आर्थिक सहायता प्रदान करने में सहायक ।
· सरकार द्वारा उद्योगों को सहायता ।
· अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को मापने में सहायक ।
1.सैद्धान्तिक महत्व :-
उपभोक्ता की बचत के
सैद्धान्तिक महत्व को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
§ उपयोग मूल्य और विनिमय मूल्य में अंतर :- उपभोक्ता की बचत का विचार उपयोग मूल्य एवं विनिमय मूल्य के अंतर को स्पष्ट करता है। दैनिक जीवन में हम बहुत सी वस्तुऐं पाते हैं जिनका उपयोग मूल्य बहुत अधिक होता है, किन्तु इन्हें प्राप्त करने के लिए बहुत कम मूल्य देना पड़ता है। जैसे :- दिया सलाई, अखबार, पोस्टकार्ड, नमक आदि ऐसी वस्तुएं हैं जिनके लिए उपभोक्ता अधिक मूल्य देने को तैयार रहता है, क्यों कि इनकी उपयोगिता बहुत अधिक होती हैं, परन्तु इन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए विनिमय मूल्य बहुत कम देना पड़ता हैं। अतः ऐसी वस्तुओं से उपभोक्ता को बहुत अधिक बचत प्राप्त होती हैं।
§ सामाजिक जीवन के महत्व की व्याख्या : उपभोक्ता की बचत का विचार सामाजिक जीवन के महत्व को भी बताता हैं। सामाजिक जीवन में माचिस, पोस्टकार्ड सामाचार पत्र, टेलीफोन आदि का महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसका उपयोग करने से उपभोक्ता की बचत बढ़ती हैं।
(2) व्यवहारिक महत्व:-
· आर्थिक स्तर की तुलना करने में सहायता :- उपभोक्ता की बचत की सहायता से दो स्थानों में रहने वाले व्यक्तियों की आर्थिक दशाओं की तुलना की जा सकती हैं और यह बताया जा सकता है कि किस देश के निवासियों का जीवन-स्तर ऊँचा है और किसका जीवन-स्तर निम्न हैं। प्रायः जिस देश में उपभोक्ताओं को अधिक बचत प्राप्त होती है उस देश के निवासियों | का जीवन स्तर ऊँचा होता है तथा इसके विपरित उन देशों के लोगों का जीवन-स्तर निम्न होता हैं, जिन्हें कम उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती हैं। इसका कारण यह कि उपभोक्ता की बचत उस देश के लोगो हैं को अधिक प्राप्त होगी जिस देश में वस्तुओं की कीमतें अपेक्षाकृत सस्ती होंगी।😘
· एकाधिकारी मूल्य निर्धारण :- एकाधिकारी का उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना होता हैं। परिणाम स्वरूप एकाधिकारी अपनी वस्तु के लिए अधिकतम मूल्य उस सीमा तक निश्चित कर सकता है जिस सीमा तक उपभोक्ता वस्तु के उपभोग से वंचित न रहने के लिए मूल्य देने को तैयार होता है। यदि एकाधिकारी अपनी वस्तु का मूल्य उपभोक्ता की बचत से अधिक बढ़ायेगा तो उसके वस्तु की मांग अत्यन्त कम हो जावेगी । परिणाम स्वरूप एकाधिकारी को अधिकतम लाभ नहीं मिल सकेगा। इसलिए एकाधिकारी अपनी वस्तु का मूल्य उपभोक्ता की बचत की अधिकतम सीमा से थोड़े कम मूल्य ही निर्धारित करता हैं।
· कर निर्धारण एवं आर्थिक सहायता प्रदान करने में सहायक:- वित्तमंत्री को वस्तुओं पर कर लगाते समय उपभोक्ता की बचत की धारणा से बहुत सहायता मिलती हैं। सरकार उन वस्तुओं से अधिक कर प्राप्त कर सकती है। जिनसे उपभोक्ता को अधिक उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है । इसका कारण यह है कि ऐसी वस्तुओं पर कर में वृद्धि करने से लोगों द्वारा अधिक कर-भार का अनुभव नहीं किया। जावेगा। इसके विपरित जिन वस्तुओं से उपभोक्ता को कम बचत प्राप्त होती हैं, उन पर कम कर लगाना उचित माना जाता है।
· सरकार द्वारा उद्योगों को सहायता:- सरकार उन लोगों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है जिनके उत्पादन से उपभोक्ताओं को अधिक उपभोक्ता की बचत प्राप्त होती है। सरकार जब किसी उद्योग को आर्थिक सहायता देती है तो उसको हानि होती है, किन्तु उद्योग के द्वारा निर्मित वस्तु का मूल्य आर्थिक सहायता प्राप्त करने के कारण कम होता है। इससे उपभोक्ताओं को जो बचत प्राप्त होती है वह होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करती है, बल्कि उसके भी अधिक होती हैं।
· अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों को मापने के लिए सहायक:- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत एक देश दूसरे देशों से ऐसी वस्तुऐं आयात करता है, जो अपने देश में महंगी और दूसरे देश में सस्ती होती है। यदि इन वस्तुओं का आयात- विदेशों से नहीं किया जाता तो देश के उपभोक्ताओं को अधिक मूल्य स्वदेशी वस्तुओं के लिए देना होगा, किन्तु विदेशों से वस्तुओं का आयात करने से उन्हें कम मूल्य देना पड़ता हैं अतः उपभोक्ता के द्वारा आयात के पहले वस्तुओं के लिए जो मूल्य देना पड़ता है और आयात के बाद जो मूल्य देना पड़ता है, इन दोनों मूल्य का अंतर ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली बचत है। यह बचत जितनी अधिक होगी. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राप्त होने वाला लाभ भी उतना ही अधिक होगा।
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