लोकसभा का संगठन (Organisation of Loksabha) | निर्वाचन | योग्यताएँ|कार्यकाल | कार्य व शक्तियाँ|

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लोकसभा का संगठन (Organisation of Loksabha) | निर्वाचन | योग्यताएँ|कार्यकाल | कार्य व शक्तियाँ|

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Organisation of Loksabha 

लोकसभा 

लोकसभा का संगठन(Organisation of Loksabha) -

लोकसभा संसद का निम्न व लोकप्रिय सदन है इसमें जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। संविधान लागू होते समय इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 निर्धारित की गई थी। संविधान के 31 वें संशोधन के अनुसार 547 निश्चित की गई, किन्तु 1987 में इसकी अधिकतम संख्या 552 कर दी गई वर्तमान में इसकी सदस्य

संख्या 545 है। 530 सदस्य विभिन्न राज्यों से चुने जाते हैं। केन्द्र शासित प्रदेशों से 20 प्रतिनिधि तथा राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय समुदाय के लिए 2 सदस्य निर्वाचित करता है। यदि उन्हें उचित प्रतिनिधित्व न मिला हो।

लोकसभा के सभी सदस्यों का निर्वाचन:-

लोकसभा के सभी सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के द्वारा होता है। सभी भारतीय जिनकी आयु 18वर्ष है या उससे अधिक है इस निर्वाचन में भाग ले सकते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से 5 लाख जनसंख्या पर एक सदस्य चुना जाता था, किन्तु अब जनसंख्या की अधिकतम सीमा का निर्धारण परिवर्तित परिस्थितियां

के अनुसार किया जावेगा। अतः प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर उस राज्य को उतने ही निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक जिसका नाम निर्वाचन सूची में दर्ज हो तथा पागल दीवालिया, अपराधी न हो मतदान में भाग ले सकता है। लोकसभा का निर्वाचन संयुक्त निर्वाचन प्रणाली द्वारा गुप्त रीति से किया जाता है। 2010 तक अनुसूचित जातियो एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए इसमें पद आरक्षित रहते हैं। प्रत्येक मतदाता एक मत देता है। छत्तीसगढ़ से लोकसभा के लिए 11 सदस्य चुने जाते हैं।

लोकसभा सदस्यों की योग्यताएँ( Qualifications of Lok Sabha Members ) -

लोकसभा के सदस्य होने वाले उम्मीदवार में निम्न योग्यताएं होनी चाहिए-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।
  3.  भारत सरकार या राज्य सरकार में लाभ के पद पर न हो।
  4. पागल, दिवालिया या अपराधी न हो।
  5. उसमें वे सब योग्यताएँ होनी चाहिए जो समय-समय पर संसद निर्धारित करे।
  6. जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के अनुसार तथा 1988 के अनुसार उसे आतंकवाद गतिविधियों में लिप्त, जमाखोरी, मिलावट तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाला नहीं होना चाहिए।

लोकसभा का कार्यकाल (Tenure ) -

लोकसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। किन्तु प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति पाँच वर्ष के पूर्व इसे भंग कर सकता है। संकटकाल में इसका कार्यकाल  एक वर्ष राष्ट्रपति बढ़ा सकता है। किन्तु यह कार्यकाल 3 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

संविधान के 52वें संशोधन 1985 के अनुसार कोई लोकसभा सदस्य बिना दल के अनुमति के दल के विरूद्ध मतदान करता है या अनुपस्थित रहता है तो उसकी सदस्यता पाँच वर्ष के पूर्व समाप्त की जा सकती है।

लोकसभा सदस्यों के विशेषाधिकार (Privileges of Lok Sabha Members ) -

  1.   लोकसभा के सदस्यों पर लोकसभा में उनके द्वारा कहीं गई किसी बात, भाषण या आलोचना के आधार पर उन पर किसी न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
  2.   संसद का अधिवेशन चालू होने के 40 दिवस पहले और समाप्ति के 40 दिन बात तक लोकसभा के किसी सदस्य को दीवानी अभियोग में बंदी नहीं बनाया जा सकता ।
  3.     प्रत्येक सदस्य को संसद द्वारा निर्धारित मासिक वेतन तथा अधिवेशन के दिनों में दैनिक भत्ता दिया जाता है। 
  4. इसके अतिरिक्त उन्हें निःशुल्क निवासपत्रव्यवहारदूरभाष तथा रेल में प्रथम श्रेणी की सुविधा दी जाती है। उन्हें पेंशन दिये जाने की भी व्यवस्था है।


*लोकसभा बैठक व गणपूर्ति ( meeting and quorum )-

लोक सभा के दो अधिवेशनों के बीच 6 माह से अधिक समय नहीं बीतना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर सामान्यतया संसद की बैठक बसंत तथा शरदकाल में होती है। पहला सत्र जनवरी से अप्रैल तक व दूसरा सत्र, सितंबर से दिसंबर तक चलता है। संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की बैठक कभी भी बुला सकता या विसर्जित कर सकता है। सबसे पहले संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है। जिसमें राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है। सरकार की नीतियों की घोषणा की जाती है।

लोकसभा की कार्यवाही( Proceedings of Lok Sabha )-

लोकसभा की कार्यवाही के लिए कुल सदस्य संख्या का कम से कम 10 भाग की उपस्थिति आवश्यक है। इसे गणपूर्ति या कोरम कहते हैं।

लोकसभा के पदाधिकारी( Officer )-

लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करने के लिए एक अध्यक्ष होता है वह सदन की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्य स्वयं अपने सदस्यों में से करते हैं लोकसभा का एक उपाध्यक्ष भी होता है। उसका चुनाव भी लोकसभा के सदस्य करते है। उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता करते हैं।

और उसकी कार्यवाही का संचालन करता । भारत में अध्यक्ष प्रायः बहुमत दल से संबद्ध होता है, परन्तु अध्यक्ष निर्वाचित हो जाने पर वह यही प्रयास करता कि वह सदन की कार्यवाही का संचालन निष्पक्षता से करें। सदन की कार्यवाही उसकी व्यवस्था के अनुसार संचालित होती है। मंत्री सत्तारूढ़ के सदस्य तथा विपक्षी दलों के सदस्य सभी उसके आदेशों का पालन करते हैं। प्रथम लोकसभा अध्यक्ष श्री गणेश वासुदेव भावलंकर थे। वर्तमान अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी है

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के निर्वाचन के विरूद्ध किसी न्यायालय में याचिका प्रस्तुत नहीं की भारतीय संघ एवं राज्य का जा सकती। अध्यक्ष की प्रतिमाह 40,000 चेतन तथा अन्य भत्ते व सुविधाएँ मिलती है। | दोनों ही पदाधिकारियों को संसद सदस्यों को प्राप्त सभी सुविधाएँ प्राप्त है "अध्यक्ष सदन की शान है। यह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और उसकी स्वतंत्रता का प्रतीक है।"

लोकसभा अध्यक्ष के कार्य शक्तियाँ(Functions and Powers of Lok Sabha Speaker)

    अध्यक्ष का कार्य सदन की कार्यवाही। संचालित करना और सदन में अनुशासन स्थापित करना है।

2.    किसी विधेयक के धन विधेयक होने का प्रमाणीकरण अध्यक्ष करता है।

3.      संदन में कोई प्रश्न काम रोको प्रस्ताव या अन्य प्रस्ताव अध्यक्ष की स्वीकृति से ही रखा जा सकता है।

4.      अव्यवस्था की स्थिति में अध्यक्ष सदन की कार्यवाही स्थगित कर सकता है।

5.      गणपूर्ति का निर्णय अध्यक्ष द्वारा ही किया जाता है।

6.      किसी सदस्य के द्वारा व्यवस्था तोड़ने या उसमें बाधा उत्पन्न करने की चेष्टा करने पर अध्यक्ष द्वारा उसका नाम निर्देशित किया जा सकता है या मार्शल की सहायता से उसे बाहर किया जा सकता है।

7.      अध्यक्ष वह क्रम निर्धारित करता है। जिसमें सदस्यगण बोलते हैं।

8.      विचार विमर्श के बाद पक्ष-विपक्ष के मत लेना, मतों के गणना करना और परिणाम घोषित करना अध्यक्ष का कार्य है। मत साम्य की दशा में वह निर्णायक मत दे सकता है।

9.      अध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह दलगत पक्षपात से रहित होकर कार्य करें।

10.   यह सदन की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को निकाल सकता है जो असंसदीय या अशिष्ट भाषा में बोले गये हो ।

11.   संसद एवं राष्ट्रपति के मध्य होने वाला समस्त पत्र-व्यवहार उसी के माध्यम से होता है।

12.   सदन में गंभीर अव्यवस्था उत्पन्न होने की स्थिति में वह सदन को स्थगित कर सकता है।


लोकसभा की शक्तियाँ एवं कार्य (Functions and Powers of Loksabha)

1)      यद्यपि लोकसभा संसद का निम्न सदन है फिर भी राज्यसभा की तुलना में लोकसभा को विधायी, वित्तीय व कार्यपालिका संबंधी अधिक अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि यह सदन जनता के प्रति उत्तरदायी है। लोकसभा के कार्य व शक्तियाँ निम्नानुसार है:

(1)    लोकसभा, संघ सूची, समवर्ती सूची एवं अवशिष्ट विषयों पर कानून निर्माण करती। है।

(2)    साधारण विधेयकों पर लोकसभा व राज्यसभा में उत्पन्न गतिरोध की अवस्था में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में, लोकसभा की सदस्य संख्या अधिक होने से, निर्णय लोकसभा के पक्ष में ही होता है। सभी महत्पूर्ण विधेयक लोकसभा में ही रखे जाते। है। राज्यसभा द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार या अस्वीकार करने का पूरा अधिकार लोकसभा के पास रहता

(3)    वित्त पर लोकसभा का पूरा नियंत्रण रहता है। संविधान के अनुच्छेद अनुसार सभी वित्त विधेयक लोकसभा ही सर्वप्रथम रखे जाते हैं। राज्यसभा उन विधेयकों को दिन अन्दर पारित भेजने होती बाध्य है। राज्यसभा उनमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकती है। न रद्द कर सकती है।

(4)    संधीय मंत्रिमंडल लोकसभा प्रति उत्तरदायी होता तथा प्रश्न पूछकर काम रोको प्रस्ताव, बजट कटौती, निन्दा प्रस्ताव आदि द्वारा वह मंत्रिमंडल पर अपना नियंत्रण रखती लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव को लगाकर मंत्रिमंडल को अपदस्थ भी कर सकती है।

(5)    संविधान संशोधन बिल लोकसभा ही जाते है।

(6)    लोकसभा राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति निर्वाचन कार्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाती

(7)    लोकसभा राष्ट्रपति महाभियोग, न्यायधीशों महालेखाकार, चुनाव आयुक्त अपदस्थ करने मुख्य रोल निभाती

(8)    जनता समस्याओं शिकायतों का निवारण करने सरकार बाध्य करती है । 


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