राज्यपाल नियुक्ति और कार्यकाल (Governor appointment and tenure) |

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राज्यपाल नियुक्ति और कार्यकाल (Governor appointment and tenure) |

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राज्यपाल

राज्यपाल नियुक्ति और कार्यकाल(Governor appointment and tenure) -

राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर से करता है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है, न की निर्वाचन के द्वारा। क्योंकि यदि वह जनता द्वारा निर्वाचित होता तो राज्यपाल व विधानमंडल के बीच शक्तियों के प्रयोग को लेकर संघर्ष की संभावना हो सकती थी तथा राज्यपाल विधान मंडल और मुख्यमंत्री के बीच अस्तित्व को लेकर विवाद हो जाता तथा राज्यपाल निर्वाचित दल के हितों से ऊपर नहीं उठ पाता और निष्पक्ष नहीं रह पाता ।

निर्वाचित राज्यपाल राज्य जनता का प्रतिनिधि होता है, केन्द्र सरकार का नहीं और संकटकाल में एकात्मक शासन के साथ संघीय प्रतिनिधि बन कर कार्य करना संभव नहीं होता अतः राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। साधारणतः राज्यपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है व राष्ट्रपति के कार्यकाल पर्यन्त पद धारण करता है चाहे तो वह राष्ट्रपति को लिखकर अपना पद त्याग सकता है।

पाँच वर्ष पूर्ण होने पर ही जब तक नया राज्यपाल पद ग्रहण नहीं कर लेता तब तक पुराना राज्यपाल ही पदस्थ रहता है। संविधानानुसार एक से अधिक राज्यों के लिए राष्ट्रपति एक ही राज्यपाल नियुक्त कर सकता है।

राज्यपाल बनने के लिए कौन- कौन सें योग्यता होनी चहिए-

(What are the qualifications required to become a governor?) -

v  भारत का नागरिक हो ।

v  जिसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो ।

v  केन्द्रीय संसद या किसी राज्य की विधानसभा का सदस्य न हो। यदि ऐसा व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त कर दिया जाए। जो विधानसभा व संसद का सदस्य है तो संसद या विधानसभा की उसकी सदस्यता तुरंत समाप्त समझी जाएगी। राज्यपाल नियुक्त हो जाने के बाद वह कोई अन्य लाभकारी पद ग्रहण नहीं कर सकता ।

 

राज्य की कार्यपालिका(State executive)

राज्य की कार्यपालिका में राज्यपाल और राज्यमंत्री परिषद शामिल हैं। सामान्यतः राज्य के शासन में राज्यपाल की स्थिति वही है जैसी कि संघ शासन में राष्ट्रपति की है। संविधान ने राज्यों में भी संसदीय शासन व्यवस्था स्थापित की है। इसके अनुसार राज्यपाल नामधारी प्रमुख है और नाममात्र की कार्यपालिका है। राज्य की वास्तविक कार्यपालिका राज्य की मंत्रीपरिषद है जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है।

राष्ट्रपति से राज्यपाल चार बातों में भिन्न-

(Governor differs from President in four things)

·        राज्यपाल को राष्ट्रपति की भाँतिअधिकार प्राप्त नहीं है।

·     राष्ट्रपति केवल अपनी मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करने को बाध्य है । राज्यपाल पर दोहरा उत्तरदायित्व है। (अ) राज्यपाल राष्ट्रपति तथा संघीय सरकार की आज्ञाओं को मानने के लिए बाध् य है और (ब)उसे राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करना भी आवश्यक है।

·     राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकता है। राज्यपाल को राष्ट्रपति पद से हटा सकता है।

·        राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी रहता है।

वेतन तथा भत्ते ( Salary and allowances)-

राज्यपाल को 1 लाख 10 हजार रूपए मासिक वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त निःशुल्क, निवास स्थान, भत्ते तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती है। उसके वेतन भत्तों में उसके कार्यकाल में कमी नहीं की जा सकती। ये सुविधाएँ एवं भत्ते आपातकाल में भी कम नहीं किए जा सकते हैं।

राज्यपाल की शक्तियाँ एवं कार्य -

राज्यपाल राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता है। राज्य की कार्यपालिका, शक्ति उसी में निहित होती है। अतएव राज्यसरकार के सभी कार्य उसके नाम से होते हैं। यद्यपि शासन विधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि उसे प्रत्येक कार्य मंत्रीपरिषद की सलाह से ही करने पड़ेंगे तो भी उससे यह आशा की जाती है कि वह फिर मंत्रीपरिषद के मतानुसार ही कार्य करेगा। किंतु राज्य की स्थिति के अनुरूप उसे कुछ कार्य विवेक से भी करने पड़ते हैं। जिनके लिए वह राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी रहता है। क्योंकि राज्य कार्यशासन का अंतिम उत्तरदायित्व उसी का रहता है। वह निम्न कार्य करता है

राज्यपाल के कार्य( Functions of the governor )-

राज्य संवैधानिक  प्रधान के रूप में राज्यपाल के सामान्यतः वही कार्य होते हैं। जो संघ में राष्ट्रपति के होते हैं।

(1) यह मंत्रिमंडल की नियुक्ति करता है तथा उस पर नियंत्रण रखता है।

(2) वह विधानसभा में भाषण देकर राज्य की नीतियों व कार्यों को स्पष्ट करता है।

(3) राज्यपाल राष्ट्रपति का प्रतिनिधि है। इस नाते वह विधानसभा के विभिन्न कार्यों व शासन व्यवस्था की जानकारी राष्ट्रपति को देता है तथा जब वह यह अनुभव करता है कि राज्य में संविधान के कानूनों का उल्लंघन हो रहा है या संविधान के अनुसार शासन चलाना मुश्किल है तो वह राष्

राज्यपाल की शक्तियाँ ( Powers of governor)

1.प्रशासनिक कार्य व शक्तियाँ ( Administrative functions and powers )
2 विधायी अधिकार :( legislative authority )
3.वित्तीय अधिकार:(Financial rights)-
4.न्याय संबंधी शक्तियाँ:( Judicial powers )

1.    प्रशासनिक कार्य व शक्तियाँ( Administrative functions and powers )-

o   राज्यपाल को अपने राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति का अधिकार होता है। इसके अतिरिक्त वह राज्य महाधिवक्तालोकसेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।

o   राज्य सरकार के उचित कार्य संचालन के लिए वह आवश्यक नियम एवं उप नियम बनाता है।

o   मंत्रिपरिषद के द्वारा किये गये निर्णयों से जिससे वह असंतुष्ट हो या पुनः विचार आवश्यक समझता हो। ऐसे निर्णय पुनः विचार हेतु प्रेषित करता है।

o   राज्यशासन को अधिकाधिक उत्तम बनाने के लिए वह शासन के विभिन्न विभागों व प्रधान कर्मचारियों के कार्यों पर नियंत्रण रखने हेतु आवश्यक आदेश देने का अधिकार रखता है।

 

o   अपने राज्य का शासन कार्य संविधान की धाराओं के अनुसार चलानाअपने राज्य के आदिवासियों व परिगणित अनुसूचित जन जातियों के हितों की रक्षा करना तथा समय-समय पर राष्ट्रपति से प्राप्त आदेशों को कार्यरूप में परिणित करने की जिम्मेदारी राज्यपाल पर होती है। अतः उसे राज्य सरकार द्वारा लागू करानेउचित पालन कराने का उत्तरदायित्व राज्यपाल का होता है।

o   राज्यपाल को अपनी मंत्रिपरिषद को है कि प्रोत्साहन करनेपरामर्श देने व चेतावनी देने का पूर्ण अधिकार होता है।

o   वह उच्च न्यायालय की नियुक्ति में भी राष्ट्रपति को सलाह देता है तथा आवश्यकतानुसार मुख्यमंत्री से सलाह मांग सकता है।

(2) विधायी अधिकार:( legislative authority)

v  राज्य की विधायिका का राज्यपाल अनिवार्य अंग है। उसकी स्वीकृति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता।

v  धन विधेयक को छोड़कर अन्य सभी विधेयक को विधानसभा द्वारा पारित किये जाने पर भी अस्वीकार कर सकता है अथवा पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। किंतु यदि वह बिल दोनों सदनों में पुनः स्वीकार हो जावे तो उसे हस्ताक्षर करने ही पड़ते हैं।

v  राज्यपाल को विधानसभा के अधिवेशन बुलाने, स्थिगित करने तथा विधानसभा भंग करने की सिफारिश करने दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का अधिकार होता है। वह के प्रारंभ में उद्घाटन भाषण देता है। हमारे छत्तीसगढ राज्य विधान मंडल का एक ही सदन है, अर्थात विधान सभा

v  जब विधानसभा अधिवेशन न चल रहा हो तथा को कानून बनाना हो तो वह अध्यादेश जारी है जो कानून के समान मान्य होता है। विधानसभा प्रारंभ 6 सप्ताह तक ये लागूरहते हैं। यदि विधानसभा उसे स्वीकृति दे दे तो कानून बन जाते हो जाते है

v  राज्य किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु रोक सकता है। यदि कोई विधेयक    राज्य की न्यायपालिका से संबंधित है तो उस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है।

 3.वित्तीय अधिकार (Financial rights)-

राज्य के आय-व्यय का अनुमानित ब्यौरा प्रतिवर्ष केवल राज्यपाल की सिफारिश से ही राज्य की विधानसभा में पेश किया जाता है। राज्य की अनुमानित वार्षिक आय-व्यय का ब्यौरा 'वार्षिक वित्त विवरण' कहा जाता है। राज्यपाल की सिफारिश के बिना वार्षिक वित्त विवरण विधानसभा में कदापि पेश नही किया जा सकता। इस प्रकार राज्य सरकार की कोई भी आर्थिक मांग केवल. राज्यपाल की सिफारिश से ही विधानसभा में पेश की जा सकती है परंतु विधानसभा द्वारा पास किये गये अर्थविधेयक को राज्यपाल के स्वीकृति के लिए भेजे जाने पर वह स्वीकृत करने के लिए बाध्य होता है।

 (4) न्याय संबंधी शक्तियाँ:( Judicial powers) -

राज्यपाल उन अपराधियों को क्षमा कर सकता है, अपराध को कम कर सकता है, स्थगित कर सकता है, जो राज्य की कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हों। वह अपनी इस शक्ति का प्रयोग उन अपराधियों के संबंध में नहीं कर सकता। जो केन्द्रीय कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

(1) महाधिवक्ता:- 

प्रत्येक राज्य में राज्यपाल को कानूनी सलाह देने के लिए एक महाधिवक्ता होता है। न्याय संबंधी कार्यों पर वह महाधिवक्ता से कानूनी सलाह ले सकता, उसकी नियुक्ति भी राज्यपाल के द्वारा की जाती है तथा वह 5 वर्ष तक अपने पद पर रहता है वह राज्य का अनुभवी विधिवेत्ता होता है तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान योग्यता रखता है। वह राज्यपाल के आदेशानुसार राज्य हेतु कानूनी कार्यवाही करता है

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