विधान-मंडल |
राज्य की व्यवस्थापिका को विधान मण्डल कहते हैं। राज्य की कार्यपालिका के अंतर्गत राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीपरिषद के सदस्य होते हैं।
प्रत्येक राज्य में एक विधानमंडल होगी जो राज्यपाल तथा दो सदनों से मिलकर बनेगी। पहला सदन विधानसभा तथा दूसरा सदन विधान परिषद के नाम से जाना जायेगा । छत्तीसगढ़ में दूसरा सदन नहीं है।
प्रत्येक राज्य के लिए विधानमंडल की व्यवस्था की गई है। राज्यपाल को विधान मंडल का अभिन्न अंग माना गया है।
विधान-मंडल(State legislative )
सरकार के तीन अंग
हैं:-( There are three organs
of government)
v व्यवस्थापिका(Legislature)
v कार्यपालिका(Executive)
v न्यायपालिका(Judiciary)
राज्य विधानमंडल के तीन अंग है( The state legislature has three organs )-
1.राज्यपालः(Governor ) -
राज्यपाल किसी सदन का सदस्य नहीं होता तथा यह नाममात्र की कार्यपालिका है। किन्तु इनके हस्ताक्षर के बिना कानून पूर्ण नहीं होते।
2.विधानसभा(Assembly )-
यह निम्न सदन भी कहलाता है। इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचित होते है। विधानसभा के
बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री कहते हैं।
3.विधानपरिषद(Legislative Council )-
यह द्वितीय एवं उच्च सदन कहलाता है। इसके सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। जिन राज्यों में विधानमंडल के दो सदन हैं। वहाँ राज्यपाल, विधानसभा, विधान परिषद मिलकर विधान मंडल बनता है। जहाँ केवल एक सदन विधानसभा है। वहाँ राज्यपाल व विधानसभा मिलकर कार्य करती है। वर्तमान में बिहार, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, जम्मूकश्मीन और महाराष्ट्र में विधानमंडल के दो सदन है।
विधानमंडल का गठन(Constitution of legislature)
विधानसभा मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद से मिलकर बनती है। इसे विधानमंडल का प्रथम या निम्न सदन कहते हैं।
(1) सदस्य संख्या:- संविधान के अनुच्छेद 17 (1) के अनुसार विधानसभा की सदस्य संख्या अधिकतम 500 तथा न्यूनतम 60 होगी। सिक्किम राज्य इसका अपवाद है। छत्तीसगढ़ की विधानसभा में 90 सदस्य ।
(2) सदस्यों का निर्वाचनः- विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। लोकसभा विधानसभा की सदस्यता के लिए योग्यताएँ लगभग समान है।
(3) मतदाताओं की योग्यताए:- मतदाता की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। जिसका नाम मतदाता सूची में है तथा जो पागल, दिवालिया या अपराधी न हो।
(4) सदस्यों की योग्यताएँ:-
v भारत का नागरिक हो।
v 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
v जिसका नाम मतदाता सूची में नाम हो
v सरकारी कर्मचारी अथवा सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो
v विधानसभा की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ सकता है।
(5) कार्य काल:- विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। परंतु राज्यपाल के द्वारा इसके पूर्व विधानसभा को भंग किया जा सकता है।
(6) पदाधिकारी - विधानसभा के प्रमुख पदाधिकारी होते हैं। 1. अध्यक्ष ।
2. उपाध्यक्ष, ये दोनों
पदाधिकारी विधानसभा के सदस्य होते हैं। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष कार्य
संभालता है। ये दोनों एक-दूसरे को अपना त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकते है।
विधानसभा की शक्तियाँ एवं कार्य:( Powers and functions of the Legislative Assembly)-
विधानसभा विधानमंडल का प्रमुख और शक्तिशाली सदन है। इसके निम्नलिखित कार्य एवं शक्तियाँ हैं
1.व्यवस्थापिका संबंधी:-
कानून निर्माण की शक्ति विधानसभा को विधानपरिषद से ज्यादा है। वह राज्यसूची व समवर्ती सूची पर कानून बनाती है। परंतु संसद के विरोध में बनाये गये कानून रद्द हो जाते हैं। विधान परिषद को केवल तीन माह तक साधारण विधेयक रोकने का राज्य सरकार अधिकार है अंततः विधानसभा का निर्णय ही अंतिम होता है।
2. कार्यपालन संबंधीः-
कार्यपालिका संबंधी कार्य में विधानसभा सर्वेसर्वा है। राज्यमंत्री परिषद विधानसभा के विश्वास पर्यंत अपने पद पर रहती है तथा सामूहिक रूप से उत्तरदायी है। विधानसभा मंत्री परिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके अपदस्थ कर सकती है। इसके अलावा इसके सदस्य "प्रश्न पूछकर" कार्य स्थगन और निन्दा प्रस्ताव रखकर सरकार की नीति की आलोचना कर सकते हैं।
3.वित्त संबंधी:-
कोई भी वित्त विधेयक सबसे पहले विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है। विधान परिषद केवल वित्त विधेयक को 14 दिन तक रोक सकती है। उसके बाद स्वयंमेव पारित मान लिया जाता है।
4.अन्य कार्य:-
1. संविधान के संशोधन के लिए उसके कम से कम 2 / 3 सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है।
2. राष्ट्रपति के निर्वाचन में विधानसभा के सदस्य भाग लेते हैं।
विधानसभा विधानमंडल का एक शक्तिशाली सदन है। व्यवहार के लिए यही विधान मंडल है।
विधान परिषद् का
गठन (Constitution of legislative council)
विधानमंडल का दूसरा व उच्च सदन विधान परिषद् है। इसका गठन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर हुआ है।
(1) सदस्य संख्या:- विधान परिषद की सदस्यों की संख्या विधानसभा की सदस्यों की संख्या की एक तिहाई से अधिक व 40 से कम नहीं होनी चाहिए।
(2) निर्वाचन:- राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्यों को छोड़कर शेष सदस्यों का निर्वाचन एकल संक्रमणीय अनुपातिक पद्धति के आध र पर अप्रत्यक्ष निर्वाचन होता है। निर्वाचन मंडल द्वारा सदस्यों का निर्वाचन होता है।
Ø इसके 1/12 सदस्य स्थानीय निकायों जैसे नगरपालिका, नगरनिगम, जिला परिषदों तथा संसद द्वारा निर्वाचित होते हैं।
Ø स्नातकों के निर्वाचन मंडल द्वारा 1/12 सदस्य जो बी.ए. या उसके समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण की हो उससे कम से कम 3 वर्ष तक राज्य में रहते हो ।
Ø शिक्षकों के मंडल द्वारा कुल संख्या का 1/12 सदस्य निर्वाचित होते है।
Ø विधानसभा के निर्वाचन मंडल द्वारा 1 / 3 सदस्य निर्वाचित होते हैं जो विधन सभा के सदस्य न हो।
Ø राज्यसभा द्वारा मनोनीत सदस्य कुल 1/6 सदस्य मनोनीत करते हैं, जो साहित्य, कला, विज्ञान या ख्याति प्राप्त है।
(3) सदस्यों की योग्यताएँ –
v भारत का नागरिक हो
v कम से कम 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
v किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो
v (4)जिसका नाम मतदाता सूची में हो।
(4) कार्य कालः- विधानपरिषद का कार्यकाल छह वर्ष का होता है। यह स्थायी सदन है। इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के उपरांत अवकाश ग्रहण करते रहते हैं। उसके स्थान पर नये सदस्य निर्वाचित होते हैं
(5) पदाधिकारी:- विधानपरिषद में दो पदाधिकारी होते हैं
1. सभापति
2. उपसभापति
ये दोनों सदस्य विधानपरिषद के सदस्यों में से ही चुने जाते हैं तथा एक-दूसरे
को त्यागपत्र देकर पद छोड़ सकते हैं। सभापति के अनुपस्थिति में उपसभापति कार्य
संभालते हैं।
विधानपरिषद की
शक्तियाँ एवं कार्य(Powers and Functions of
Legislative Council)
(1) व्यवस्थापिका संबंधी:- वित्त विधेयक एवं सामान्य विधेयक दोनों में विधानपरिषद की स्वीकृति आवश्यक है। साधारण विधेयक के लिए तीन माह और वित्त विधेयक के लिए 14 दिन विचाराधीन होते हैं। परंतु विधेयक को समाप्त करने की शक्ति विधान परिषद् को नहीं है।
(2) कार्यपालिका संबंधी:- विध् नपरिषद प्रश्नों प्रस्तावों तथा वादविवादों के माध्यम से मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखती है। परंतु उसे अपदस्थ नहीं कर सकती।
(3) वित्त संबंधी शक्तियाँ एवं कार्य:- वित्त विधेयक को 14 दिन के भीतर लौटाना होता है। यदि नहीं लौटाती तो उसे पारित मान लिया जाता है।
उपर्युक्त शक्तियों के आधार पर यदि हम तुलना करें तो विधानसभा को विध नपरिषद के ज्यादा शक्तियाँ प्राप्त है। इसका यह अर्थ नहीं कि यह सदन दिखावे मात्र का है क्योंकि द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका वाले राज्य में शासन तंत्र का एक अनिवार्य अंग माना गया है तथा जनमत अभिव्यक्ति का माध्यम है।
विधान सभा और विधानपरिषद में (तुलनात्मक) संबंध((Comparative) Relations between the Legislative Assembly and the Legislative Council)
(1) नामकरण:- विधानसभा को निम्न सदन तथा विधानपरिषद को उच्च सदन कहा जाता है। विधान सभा को अस्थायी सदन तथा विधानपरिषद को स्थायी सदन कहा जाता है।
(2) प्रतिनिधित्व:- सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व विधानसभा करती है तथा कुछ विशेषवर्गों का प्रतिनिधित्व विधानपरिषद करती है।
(3) सदस्य संख्या:- अधिकतम संख्या विधानसभा की 500 व न्यूनतम 60 है। विध् नपरिषद की अधिकतम संख्या विधानसभा की संख्या के एक तिहाई हो सकती है और न्यूनतम 40 सदस्य संख्या है।
(4) कार्यकालः- विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का है तथा विधानपरिषद का कार्यकाल 6 वर्ष का है। विधानपरिषद के सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद एक तिहाई अवकाश ग्रहण करते है।
(5) पदाधिकारी:- विधानसभा में अध् यक्ष व उपाध्यक्ष होता है जिसका कार्यकाल 5 वर्ष है तथा विधानपरिषद में सभापति व उपसभापति होते हैं जिसका कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
राज्य विधानमंडल पर प्रतिबंध(State Legislature Restrictions)
(1) कुछ विषयों पर संबंधित राज्य सूची के विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना यहां प्रस्तुत नही किये जा सकता ।
(2) राज्यविधान मंडल द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से ही विध यक बन सकते हैं।
(3) राज्य विधानमंडल न्यायाधीशों के ऐसे कर्त्तव्यों की आलोचना नहीं कर सकता जो उन्होंने कर्त्तव्य पालन हेतु किये हो ।
(4) राज्यसभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने पर एक विषय या कुछ विषयों पर निश्चित अवधि के लिए संसद ही कानून बना सकती।
(5) संकटकाल की घोषणा होने पर अथवा राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राज्य विधानसभा राज्यसूची पर कानून नहीं बना सकती यह अधिकार संसद को जाता । " प्राप्त हो
राज्य के दोनों सदनों अर्थात विधान परिषद् व विधान सभा में मतभेद की स्थिति में संसद के समान संयुक्त अधिवेशन की कोई व्यवस्था राज्य में नहीं हैं। प्रजातंत्र व संघात्मक व एकात्मक शासन की स्थापना के लिए राज्य विधानमंडल पर प्रतिबंध आवश्यक हैं।
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