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India Industry
भारत के प्रमुख उद्योग
वाहन उद्योग (Automotive industry)
1.रेल उद्योग (Rail industry) -
देश में वैगन निर्माण में 14 कम्पनियाँ कार्यरत हैं। जिनमें चार सार्वजनिक क्षेत्र में तथा दस निजी क्षेत्र में है। इनकी वार्षिक क्षमता 32 हजार वैगन निर्माण की है। रेल इंजन बनाने के तीन उद्योग हैं- चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (पश्चिम बंगाल), डीजल लोकोमोटिव वर्क्स वाराणसी (उत्तर प्रदेश) दोनों सार्वजनिक क्षेत्र का तथा टाटा इन्जीनियरिंग लोकोमोटिव जमशेदपुर (TELCO) हैं।
2.जलयान उद्योग:( ship industry )-
भारत में जलयान निर्माण के चार प्रमुख केन्द्र हैं । प्रथम हिन्दुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड विशाखापट्नम, द्वितीय गार्डन रिवशिप बिर्ल्डस एण्ड इन्जीनियर्स कोलकाता, तृतीय मझगाँव गोदी मुम्बई और चतुर्थ, कोचीन पत्तन हैं।
3.वायुयान उद्योग( aircraft industry )-
वायुयान उद्योग के अंतर्गत हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड नामक कम्पनी वायुयान, जेटयान, हेलिकॉप्टरों का निर्माण, वायुसेना, नौसेना द यातायात परिवहन के लिए करता है। इसकी प्रमुख इकाईयाँ बंगलौर, कानपुर, नासिक, कोरापुर, हैदराबाद तथा कोरवा (लखनऊ) में हैं। बंगलौर में विमान असेम्बल होता है। कानपुर व नासिक में विमानों के ढाँचे बनाये जाते हैं। कोरापुर में इंजन तथा हैदराबाद में विमानों की संचार व्यस्था सम्बन्धी उपकरण बनाये जाते हैं। कोरवा में वायु एवं नौसेना के विशिष्ट विद्युत व संचार उपकरण तैयार किये जाते हैं।
पेट्रो रसायन
उद्योग( Petrochemical industry)
पेट्रो रसायन से आशय खनिज तेल से विभिन्न प्रकार के रसायन प्राप्त करने से है। पेट्रो रसायन उद्योग के लिए खनिज तेल को साफ करने से अनेक प्रकार का कच्चा माल प्राप्त होता है। जैसे-पैराफीन, नेप्थालिन, बेंजिन डिस्टिलेट, गैस का तेल, चिकना करने का तेल, मोम, वैसलीन, गैसोलीन, मिट्टी का तेल आदि जिनकी सहायता से लगभग 5000 किस्मों की उप-वस्तुएँ प्राप्त की जा सकती है।
इसीलिए पेट्रो-रसायनों ने घरेलू व औद्योगिक उत्पादनों से प्लास्टिक, कृत्रिम रबड़, कृत्रिम रेशे, कृत्रिम धुलाई पाउडर, वार्निश, लिपिस्टिक, नाखून पालिश, ग्रामोफोन की चूड़ियाँ, स्प्रिट, साबुन, विस्फोटक पदार्थ, छापने की स्याही, फोटोग्राफी की फिल्में, कोल्डक्रीम, लोशन सुगन्धित तेल, इत्र, मलहम, एल्कोहॉल, कृत्रिम नायलॉन, टेलरिंग धागा, रासायनिक खाद, औषधियाँ, रंग आदि अनेक वस्तुएँ बनायी जाती हैं। इतनी अधिक और महत्व की वस्तुओं के निर्माण का स्रोत होने के कारण पेट्रो रसायन देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसीलिए इसके विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा हे।
पेट्रो-रसायन उत्पादनों की बढ़ती माँग की पूर्ति के लिए इण्डियन पेट्रो-केमिकल कॉपोरेशन लिमिटेड (IPCL) बड़ोदरा के पास एक समन्वित परिसर सन 1973 में स्थापित किया गया है, जो विविध प्रकार के उत्पाद तैयार करता है। IPCL इस समय नागोथीन नामक स्थान में महाराष्ट्र गैसे क्रैफर कॉम्लेक्स बना रहा है। पेट्रो फिल्म को-ऑपरेटिव लिमिटेड भारत सरकार व बुनकर सहकारी संघों का एक संयुक्त उपक्रम हैं जिसके गुजरात के बड़ोदरा और नलधारी में दो संयंत्र पोलिएस्टर धागा एवं नाइलोन फिलामेंट धागा तैयार करते हैं। प्लास्टिक इन्जीनियरिंग व प्रौद्योगिकी के केन्द्रीय संस्थान की स्थापना सन 1968 में प्लास्टिक उद्योग के विकास के लिए की गयी। संस्थान के आठ विस्तार केन्द्र अहमदाबाद, लखनऊ, हैदराबाद, भोपाल, भुवनेश्वर, इम्फाल, अमृतसर और मैसूर में कार्यरत है।
इन केन्द्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल्स, इन्जीनियरी, प्लास्टिक, आवास व पैकेजिंग आदि उत्पाद तैयार किये जायेंगे।
कच्चे माल का उत्पादन 3.30 लाख टन हुआ। रबड़, प्लास्टिक, पेट्रोलियम उत्पाद के औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक 1980-81 में 100 के आधार से बढ़कर 1988-89 में 168.3 हो गया। इस उद्योग की सबसे बड़ी समस्या खनिज तेल व प्राकृतिक गैस की कमी है। देश में वर्तमान समय में खनिज तेल का उत्पादन माँग की तुलना में बहुत कम होता है। इसलिए विदेशों से इसका बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है।
सीमेन्ट उद्योग(Cement industry)-
सीमेन्ट उद्योग:- किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए सीमेन्ट उद्योग का अत्यन्त महत्व है। सभी प्रकार के निर्माण कार्य में सीमेंट की आवश्यकता होती है। भारत में सन 1904 में चेन्नई में प्रथम सीमेन्ट कारखाने की स्थापना हुई। जो असफल रहा। सन 1914 में गुजरात पोरबन्दर में दूसरा कारखाना लगाया गया जो सफल रहा। वर्तमान में भारत में 280 सीमेंन्ट कारखाने हैं। जिनमें 20 सार्वजनिक क्षेत्र में तथा शेष निजी क्षेत्र में हैं। 'सीमेंट अनुसंधान संस्थान' ने देश में सीमेंट उत्पादन में वृद्धि के लिए लघु सीमेंट संयंत्र लगाने का सुझाव दिया है। इससे प्रेरित होकर विभिन्न राज्यों में 184 लघु संयंत्र स्थापित किये गये हैं। इस समय सीमेंट उद्योग 'एसोसियेटेड सीमेन्ट कम्पनी' तथा 'डालमिया सीमेन्ट ग्रुप' के नियंत्रण में है। सन 2000 में भारत ने 100.2 मिलियन मीट्रिक टन सीमेंट का उत्पादन किया।
भारत में सीमेन्ट उत्पादन का वितरण ( Distribution of Cement Production in India)
भारत में सीमेन्ट उद्योग दक्षिणी राजस्थान से आरंभ होकर, उत्तरी मध्यप्रदेश, दक्षिण उत्तर प्रदेश, विन्ध्य पहाड़ियों से होती हुई झारखण्ड तक विस्तृत है। झारखण्ड व मध्यप्रदेश में सीमेंट उद्योग के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियाँ मौजूद हैं, परन्तु अत्यधिक माँग के कारण सीमेंट उद्योग का विस्तार अब गुजरात, तमिलनाडु आदि राज्यों में भी हो गया।
(1) मध्यप्रदेश :- सीमेन्ट उद्योग की दृष्टि से मध्यप्रदेश का भारत में प्रथम स्थान है। यहाँ सीमेन्ट के 8 विशाल कारखाने तथा कई लघु संयंत्र कार्यरत हैं। जिनमें भारत का 15 प्रतिशत सीमेन्ट तैयार किया जाता है। यहाँ चूना पत्थर, जिप्सम, चीका मिट्टी स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाती है। यहाँ सीमेन्ट के कारखाने मुख्य रूप से ग्वालियर, कटनी, सतना, दमोह, जबलपुर आदि स्थानों पर स्थित है।
(2) तमिलनाडु:- सीमेन्ट उत्पादन में तमिलनाडु राज्य का दूसरा स्थान है। यहाँ सीमेंट के 8 कारखानें है। जहाँ देश का 12 प्रतिशत सीमेन्ट तैयार किया जाता है। तिलाई युथू, तुलूकापट्टी अलगुलम, तिरुनलवेल्ली, डालमियापुरम, आदि स्थानों पर सीमेंट के विशाल कारखानें हैं।
(3) आन्ध्र प्रदेश:- यहाँ चूना पत्थर के विशाल भण्डार पाये जाते हैं। सीमेन्ट उत्पादन में आन्ध्र प्रदेश का तीसरा स्थान है। यहाँ 11 बड़े तथा 12 लघु संयंत्र सीमेंट उत्पादन में लगे हुए हैं। विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा आदि सीमेंट उत्पादन के प्रमुख केन्द्र हैं।
(4) राजस्थान: - इस राज्य का सीमेन्ट उत्पादन में चौथा स्थान है। यहाँ सीमेंट के 10 बड़े कारखाने हैं। यहाँ देश का 10 प्रतिशत सीमेंट निर्मित किया जाता है। सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, लाखेरी, चुरू आदि प्रमुख सीमेन्ट उत्पादक केन्द्र हैं। राज्य में चूना-पत्थर तथा जिप्सम के विशाल भंडार प्राप्त होते हैं।
(5) गुजरात :- गुजरात में 20 लाख टन वार्षिक सीमेंट का उत्पादन किया जाता है। यहाँ सिक्का, पोरबन्दर, रानावाव,अहमदाबाद, बड़ोदरा आदि सीमेंट उत्पादन के प्रमुख केन्द्र हैं।
(6) अन्य राज्य :- इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, केरल, उड़ीसा, असम आदि भी
सीमेंट उत्पादक राज्य है। उत्तर प्रदेश में चुर्क व डाला नामक स्थानों पर सीमेंट
के विशाल कारखानें स्थापित किए गए हैं।
व्यापार :( Business)
भारत विदेशों को भी सीमेंट का निर्यात करता है। बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, कम्बोडिया आदि भारतीय सीमेंट के प्रमुख ग्राहक है ।
कृषि आधारित उद्योग ( Agro based industries)
सूती वस्त्र उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग देश का सबसे बड़ा एवं प्राचीनतम उद्योग है। प्राचीन काल में भारतीय मलमल की मिस्र एवं यूरोपीय देशों में बहुत माँग थी। उस समय यह ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग के रूप में था। आधुनिक सूती वस्त्र कारखाने सबसे पहले कोलकाता के फोर्ट गैलेस्टर नामक स्थान पर स्थापित किया गया, जो असफल रहा। इसका वास्तविक प्रारंभ सन 1854 में हुआ, जब पूर्णतया भारतीय पूँजी से पारसी उद्यमी कावसजी ढ़ाबर ने मुम्बई में सूती वस्त्र उद्योग स्थापित किया ।
देश विभाजन के पश्चात अधिकांश कपास उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में
चला गया। अतएव स्वतंत्र भारत में कपास उत्पादन की ओर विशेष ध्यान दिया गया,
फलतः वस्त्र उद्योग का विस्तार हुआ। सन 1999 में देश में सूती वस्त्र कारखानें की कुल संख्या
1824 थी जिनमें से सार्वजनिक क्षेत्र में,
1479 निजी क्षेत्र में एवं 153 सहकारी क्षेत्र में हैं
वितरण:-
यह देश का सबसे अधिक विकेन्द्रीकृत उद्योग है। महाराष्ट्र और गुजरात इस उद्योग
में अन्य राज्यों से आगे हैं। अन्य महत्वपूर्ण राज्य तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश,
पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि हैं।
महाराष्ट्र:- सूती वस्त्रों के उत्पादन में इस राज्य का प्रथम स्थान है।
यहाँ 122 कारखानें हैं जिनमें 62 कारखाने केवल मुम्बई महानगर में स्थापित हैं।
मुम्बई के अतिरिक्त अमरावती, शोलापुर, कोल्हापुर, सांगली, जलगाँव व नागपुर
आदि अन्य प्रमुख सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्र हैं। इस राज्य में 3 लाख भी अधिक श्रमिक कार्य में लगे हुए हैं। इस
राज्य में सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्रीकरण के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं:
चीनी उद्योग (Sugar Industry) –
भारत विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। गन्ने के रस से गुड़ व खाण्ड
बनाने की परम्परा भारत में प्राचीन समय से ग्रामीण उद्योग के रूप में चली आ रही
है। यहीं से यह कला विदेशों में फैली। आधुनिक चीनी मिल का वास्तविक विकास सन 1903 में तमिलनाडु के कोयम्बटूर से हुआ। वर्तमान
में 435 चीनी मिले हैं। जिनसे सन
1998-99 में 155.2 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ।
स्थापना प्रतिरूप (Locational Pattern)
चीनी बनाने के लिए गन्ना ही कच्चा माल है। इसे अधिक समय तक संचित नहीं रखा जा सकता। क्योंकि यह शीघ्र सुख जाता है और मिठास में कमी आ जाती है। गन्ना सस्ता किन्तु भारी पदार्थ है। अतः चीनी उद्योग को गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के समीप ही स्थापित होना अनिवार्य है अन्यथा परिवहन व्यय अधिक होने के कारण चीनी की उत्पादन लागत भी अधिक हो जाएगी गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज दक्षिण भारत में अधिक है, किन्तु यह उद्योग उत्तरी भारत में उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, पंजाब, हरियाणा में स्थापित है, क्योंकि चीनी उद्योग के केन्द्रीयकरण के लिए यहाँ निम्न सुविधाएँ उपलब्ध हैं:
v यहाँ की उर्वर जलोढ़ मिट्टी गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त है।
v पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में नलकूपों एवं नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधाएँ हैं।
v सघन आबादी के कारण सस्ते श्रमिक और विस्तृत बाजार उपलब्ध हो जाता है।
v चीनी मिलें गन्ना उत्पादन क्षेत्रों के निकट ही स्थापित है। अत परिवहन व्यय अधिक नहीं आता है।
v गन्ने की खोई का प्रयोग ऊर्जा के रूप में किया जाता है।
वर्तमान में चीनी उद्योग धीरे-धीरे दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो रह है। जिसके लिए निम्नलिखित कारण हैं
1. उत्तर भारत के मैदानों में गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन केवल 4000 कि.ग्रा. है, जबकि कर्नाटक में यह समजलवायु समुद्री हवाओं एवं पाला रहित जाड़ा के कारण उत्पादन 8000 कि.ग्रा. तक हो जाता है।
2. गन्ने का मूल्य किसानों की दृष्टि में सस्ता है। अतः गन्ने के अंतर्गत बोई जाने वाली भूमि में भी कमी आ रही है। वर्ष 1960-61 से 1980-81 तक के दो दशक में उत्तर भारत में इसका प्रतिशत 60 से घटकर 28 ही रह गया, जबकि इन्हीं दो दशकों में महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु में गन्ने के अंतर्गत बोई जाने वाली भूमि 21 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो गयी। यदि यही प्रवृत्ति बनी रहती है तो स्थानीयकरण प्रवृत्ति में भी परिवर्तन आ सकता है।
3. उत्तर एवं दक्षिण भारतीय गन्ने मेंशर्करा की मात्रा में भी अंतर है।वितरण
उत्तर प्रदेश:-
देश में चीनी उद्योग का
सर्वाधिक केन्द्रीयकरण इसी राज्य में हुआ है। देश के कुल उत्पादन की 35 प्रतिशत चीनी प्राप्त होती है। यहाँ वर्तमान
में 85 मिलें चीनी उत्पादन में
लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग की दृष्टि से दो क्षेत्र अधिक
महत्वपूर्ण है। प्रथम गंगा-यमुना का दोआब जिसके अंतर्गत सहारनपुर, मेरठ, बुलंदशहर, कानपुर, मुरादाबाद आदि हैं। द्वितीय तराई क्षेत्र हैं,
जिसके अंतर्गत देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, गौड़ा, रामपुर, बहराइच, पीलीभीत आदि प्रमुख केन्द्र है।
महाराष्ट्रः- इस राज्य के चीनी
उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में अच्छी प्रगति की है। यहाँ पर चीनी की 66 मिलें हैं। वर्तमान में उत्पादन की दृष्टि से
इस राज्य का प्रथम स्थान है। यहाँ की मिलें वर्ष में 140 दिन काम करती है। जबकि उत्तरप्रदेश में मात्र 120 दिन मिलें। चल पाती हैं। चीनी की मिलें
शोलापुर, कोल्हापुर, नासिक, पूना, सतारा, औरंगाबाद आदि जिलों में केन्द्रित है।
तमिलनाडु:- यहाँ पर चीनी की 20 मिलें स्थापित है। गन्ने का प्रति हेक्टेयर
उत्पादन इस राज्य में सबसे अधिक है। देश के कुल उत्पादन की 7 प्रतिशत चीनी इस राज्य से प्राप्त होती है। यह उद्योग
कोयम्बटूर, उत्तरी और दक्षिणी अरकाट,
तिरूचिरापल्ली एवं मदुराई जिलों में केन्द्रित
हैं।
आन्ध्र प्रदेश:- देश के कुल
उत्पादन की लगभग 6.5 प्रतिशत चीनी
यहाँ से प्राप्त होती है। यहाँ चीनी की लगभग 23 मिलें हैं। प्रमुख केन्द्र हैदराबाद, पूर्वी व पश्चिमी गोदावरी, कृष्णा, विशाखापट्टनम, चित्तूर आदि जिले हैं।
कर्नाटक:- कर्नाटक राज्य ने
चीनी उत्पादन में तीसरा स्थान प्राप्तकर लिया है। यहाँ चीनी का 21 मिले हैं जो बेलगाँव, बीजापुर, शिमोगा, चित्र दुर्ग आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं।
बिहार:भारत में चीनी उत्पादन में बिहार का चौथा स्थान है। यहाँ चीनी की 42 मिलें हैं। इसके प्रमुख केन्द्र सारन, चम्पारन, पटना, गया आदि हैं।
अन्य राज्य:-गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, पंजाब,केरल, आन्ध्रप्रदेश भारत में अन्य चीनी उत्पादक राज्य
हैं। चीनी का उत्पादन : औद्योगिक दृष्टि से चीनी उद्योग का देश में दूसरा स्थान
है। वर्तमान में देश में चीनी उत्पादन 18,100 हजार मीट्रिक टन हैं।
कागज उद्योग(Paper industry)
वर्तमान समय में कागज दैनिक उपयोग की एक महत्वपूर्ण वस्तु हैं। शिक्षा और ज्ञान के प्रसार में कागज को बहुत अधिक महत्व है। यद्यपि भारत में बहुत पहले से ही कागज बनाने का कार्य कुटीर उद्योग के रूप में होता चला आ रहा है। परंतु आधुनिक ढंग से मशीनों द्वारा कागज बनाने का पहला प्रयास 1816 ई. में ट्रंकुवार (चेन्नई) में हुआ। परन्तु इसमें सफलता नहीं मिल पाई। दूसरा सफल प्रयास 1867 ई. में बेली (कोलकाता) नामक स्थान पर रॉयल पेपर मिल के रूप में किया गया। इसके बाद सन 1879 में लखनऊ में तथा सन 1881 में टीटागढ़ में पेपर मिलों की स्थापना हुई। आज देश में गत्ता एवं कागज की 302 बड़ी और 2748 लघु इकाईयाँ उत्पादन में संलग्न हैं।
कागज उद्योग का
स्थानीयकरण (Localization of paper
industry)
कागज उद्योग की स्थापना के लिए कच्चा माल, स्वच्छ जल, रासायनिक पदार्थ, शक्ति के संसाधन, सस्ते व कुशल श्रमिक, परिवहन के विकसित साधन, पर्याप्त माँग तथा सरकारी सहायता व संरक्षण आवश्यक होते हैं। भारत में कच्चे माल के रूप में सबाई घास, गन्ने की खोई, फटे-पुराने चिथडे, बाँस, कोमल लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। रद्दी कागज तथा फटे-पुराने कपड़ों का पुनर्चक्रण कर उनका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
कागज निर्माण केन्द्र(Paper manufacturing center )
कागज उद्योग भारत में मुख्यतः दक्षिण-पूर्वी भागों में केन्द्रित है। पश्चिम
बंगाल में टीटागढ़, नैहाटी, आन्ध्रप्रदेश में सिरपुर व राजमुन्द्री,
महाराष्ट्र में बल्लारपुर, कल्याण, बिहार में डालमिया नगर, हरियाणा में जगाधरी, उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, लखनऊ आदि प्रमुख केन्द्र हैं। सन 2000 में भारत ने 3,459 हजार मीटरी टन कागज व गत्ते का निर्माण किया । अत्यधिक माँग के कारण उत्पादन वृद्धि होने के
बावजूद भारत को विशिष्ट प्रकार के रासायनिक कागज, विद्युत अवरोधक व फिल्टर कागज का आयात करना पड़ता है। सन 2000 में भारत ने 1,778 करोड़ रूपए के कागज तथा 1,069 करोड़ रूपए मूल्य की लुग्दी व रद्दी कागज का आयात किया ।
मध्य प्रदेश:- इस राज्य में 33 प्रतिशत भाग पर वनों का विस्तार है। अतः बाँस व सवाई घास
कच्चा माल के रूप में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। लगभग 11 मिलें यहाँ स्थापित हैं जो देश के कुल उत्पादन
का 9 प्रतिशत कागज प्रदान
करती है। इन्दौर, अमलाई, भोपाल प्रमुख केन्द्र हैं। नेपानगर में अखबारी
कागज का सरकारी कारखाना स्थित है। होशंगाबाद भी इसी राज्य में स्थित है, जहाँ नोट छापने के कागज बनाने के सरकारी
कारखाना सिक्यूरिटी पेपर मिल स्थापित हैं।
व्यापार ( Business)- भारत में कागज का उपभोग तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है। जिसकी पूर्ति देश में उत्पादन किए गए कागज द्वारा संभव नहीं हो पा रही हैं। फलस्वरूप कागज का आयात करना पड़ रहा है। सन 1992-93 में 922 करोड़ रूपए मूल्य के कागज का आयात किया गया।
ऊनी वस्त्र
उद्योग ( Woolen
textile industry )
ऊनी वस्त्र उद्योग भी भारत में कुटीर उद्योग के रूप में हैं। प्रमुख ऊनी वस्त्र उत्पादक राज्य पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश है।
भारत का दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंधीय होने के कारण ऊनी वस्त्र उद्योग सीमित है। ऊनी वस्त्र उद्योग का केन्द्रीकरण लुधियाना से अमृतसर तक है।
जूट उद्योग(Jute industry)
जूट उद्योग:- जूट से टाट, बोरे, रंग-बिरंगे परदे, कालीन, दरियाँ फार और सोफे के गद्दे आदि वस्तुएँ बनायी जाती हैं। वर्तमान में भारत में जूट के 73 कारखानें हैं जिनमें 6 कारखानें राष्ट्रीयकृत । जूट उद्योग का सबसे अधिक केन्द्रीयकरण पश्चिम बंगाल में है । यहाँ जूट कारखाने हुगली नदी के दोनों किनारे पर लगभग 100 कि.मी. लम्बी एवं 3 कि.मी. चौड़ी पट्टी में स्थित है। प्रमुख केन्द्र अगरपाड़ा, कान-किनारा, टीटागढ़, रिशरा, श्रीरामपुर, शिवपुर, हावड़ा, श्यामनगर, बारलपुर, मानिकपुर आदि हैं।
जूट उद्योग के
विकास के निम्न कारण है ( The reasons for the development of the jute industry are
as follows: )-
v यहाँ के डेल्टाई प्रदेश में अनुकूल जलवायु एवं उर्वर मिट्टी के कारण जूट की कृषि बहुतायत से होती है।
v गंगा एवं उसकी सहायक नदियाँ परिवहन की सुविधा प्रदान करती है। साथ ही जूट को रंगने एवं साफ करने के लिए पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल मिल जाता है।
v रानीगंज एवं झरिया की खानों से कोयला मिलता है
v घनी बस्ती होने के कारण सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं।
v कोलकाता बन्दरगाह से जूट के व्यापार की सुविधा प्राप्त है।
v यहाँ के श्रमिक एवं कर्मचारी प्रारंभ निर्माण उद्योग से ही जूट की खेती एवं उद्योग में संलग्न है। पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के कानपुर एवं सहजनवा, छत्तीसगढ़ के रायगढ़, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्नम व गुंटुर, बिहार के पूर्णिया, कटिहार एवं दरभंगा में जूट के कारखाने हैं।
v
यहाँ के श्रमिक
एवं कर्मचारी प्रारंभ निर्माण उद्योग से ही जूट की खेती एवं
उद्योग में संलग्न है। पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के कानपुर एवं
सहजनवा, छत्तीसगढ़ के रायगढ़,
आंध्र प्रदेश में विशाखापट्नम व गुंटुर,
बिहार के पूर्णिया, कटिहार एवं दरभंगा में जूट के कारखाने हैं।
व्यापार ( Business)- भारत में विश्व का लगभग 50 प्रतिशत जूट का सामान तैयार होता है। सन 1998-99 में कुल 595 करोड़ रूपए के सूती वस्त्र का निर्यात किया गया। 2002-03 में यह बढ़कर 16217 करोड़ रूपए हो गया। भारतीय जूट उद्योग को बांगलादेश एवं चीन के सिन्थेटिक रेशे से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है।
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