छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत
(Cultural Heritage of Chhattisg arh)

वर्तमान में छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से ब्राहमण, क्षत्रिय, कायस्थ, शिल्पी, तेली, बैरागी, कुर्मी, कंवर, बनिया, गोड़, स्वर्णकार, देवार, धसिया, सतनामी, व कबीरपंथी जाति के लोग निवास करते हैं। रहन सहन:  छत्तीसगढ के लोगों का रहन-सहन आर्थिक एवं जातिगत आधार पर विभाजित  किया जा सकता है। यहाँ के लोग प्रायः सीधा-सादा जीवन व्यतीत करते हैं। कमजोर आर्थिक स्थिति के लोग कच्चे मकानों में रहते हैं तथा सम्पन्न लोग पक्के ईट पत्थरों से बने मकानों में रहते हैं। 

वेशभूषा:( Uniform)

    यहाँ के पुरूषों की वेशभूषा अंगोछी पटका या पछा है। यह मुश्किल से घुटनों तक पहुंचती है। सम्पन्न लोग कमीज कुर्ता, धोती पहनते हैं। महिलाएँ लुगरा साड़ी के समान पहनती है। चोली या पोलका पहनने का रिवाज पहले न के बराबर था किन्तु अब इसका प्रचलन बढ़ गया है। आभूषणः(Jewelery)

    मुख्य रूप से पहने जाने वाले आभूषण हमेल, सुता, पुतरी, रूपया गले में पहना जाने वाला आभूषण है। पैरी, गठिया, सांटी, झाझर, लच्छा, तोड़ा और घुंघरू पैरों में पहना जाता है। पैर की अंगुलियों में चुटकी बिछिया और अंगूठे में चुटका पहनते है। हाथ के आभूषण में काँघ, चांदी की चूड़ी जिसमें ऐंठी पटा आदि आते है। नाक में नथ, बेसर, लौंग, फूली धारण करते हैं। कान में झुमका वाली तरकी, बाजुओं में बहुटा पहुंची आदि आभूषण प्रचलित हैं।

     खान-पान(Food and drink)

    छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग प्रायः तीन बार भोजन करते हैं। खाने में 'बासी' जो कि पानी में भीगा हुआ भात होता है। प्रमुखता से खाया जाता । ग्रामीण क्षेत्रों में रात का भोजन भात है। सामान्य तौर पर लोगों का भोजन दाल, चावल और सब्जी है।

     विवाह: (Marriage) 

    यहाँ की अधिकांश जातियाँ हिन्दू संस्कारों के अनुसार विवाह करते हैं। कन्या का विवाह छोटी उम्र में ही किया जाना लोग पसन्द करते हैं। यहाँ कई तरह के विवाह प्रचलित हैं, जैसे- छुट्टा विवाह कइनादान (कन्यादान), गुरावट देहडा विवाह तथा चढ़ विवाह इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ चूड़ी की प्रथा भी प्रचलित है।

    शिक्षा:( Education) 

    छत्तीसगढ़ के नहीं बराबर उच्च जाति के लोग अपने बच्चों शिक्षा की व्यवस्था स्वयं घर करते थे। शिक्षा कार्य करने वाले व्यक्ति भेट स्वरूप अन्न, वस्त्रादि प्राप्त होता था पाठशाला मन्दिरों या वृक्षों के लगती थी। का माध्यम हिन्दी था

    मनोरंजन साधनः(Entertainment device) 

    मनोरंजन के साधन बच्चों गुल्ली डंडे का प्रचलन है। साधारण राऊत नाचा डण्डानाच, रासलीला नाटक आदि से अपना मनोरंजन करते

    मनोरंजन साधनः (Major festival) 

    छत्तीसगढ अनेक हैं। त्यौहारों -हरेली, नागपंचमी, रामनवमी, दीपावली, होली, भोजली, रक्षाबंधन, हलषष्ठी, व्रत, बहुरा चौथ, रथ भीमसेनी एकादशी, इतवारी बुधवारी अगहन के बृहस्पतिवार की पूजा, जन्माष्टमी, पोला, नवरात्र, विजयादशमी, गोवर्धन पूजा, छेरछेरा आदि छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व हैं।

    छत्तीसगढ़ कलाएं :( Chhattisgarh Arts )

    मूर्तिकला:( sculpture)

    छत्तीसगढ़ की मूर्तिकला गुप्तकाल के बाद की मानी जाती है। इसे कला का संक्रमण युग भी कहा जाता है। संक्रमण काल की मूर्तिकला को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। जिसमें प्रथम वर्ग में भित्ति स्तम्भों पर उत्कीर्ण विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियाँ है- जो राजिम के राजीव लोचन, खरौद के लक्ष्मणेश्वर, भोरमदेव बालोद और देवरबीजा में स्थित है। द्वितीय वर्ग की मूर्तियाँ स्वतंत्र रूपेण स्थित है। 

    इनको मंदिरों के प्रांगण में स्थापित किया गया। इनमें सिरपुर से प्राप्त 'मन्जुश्री' व विष्णु की मूर्ति राजिम से प्राप्त वामन और त्रिविक्रम मूतियाँ प्रमुख है। इन मूर्तियों में कला की विकसित परम्परा दिखती है। छत्तीसगढ़ के स्थापत्य और मूर्ति शिल्प में यहाँ के लोकजीवन में प्रचलित वेशभूषा, नृत्य, संगीत, आखेट आदि के दर्शन होते हैं। यहाँ के विभिन्न स्थापत्य केन्द्रों में क्षेत्रीय लोककला और सामान्य जन का अंकन मिलता है

    चित्रकला: (Drawing )

    छत्तीसगढ़ में लोक चित्रकला की एक समृद्ध परम्परा प्रचलित है। यहाँ अनेक प्रकार के चित्रांकन विभिन्न अवसरों पर किये जाते हैं। मुख्यतः अंचल में बनाए जाने वाले लोक चित्र सावन में मनाएं जाने वाले त्यौहार और पर्वों में बनाए जाते हैं। जिनमें प्रमुख हैं सवनाही. नागपंचमी के चित्र, कृष्ण जन्माष्टमी के चित्र, विवाह के अवसर में बनाये जाने  छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत वाले चित्र, चौक, कलश पर चित्रांकन, राउतो के हाथे आदि। छत्तीसगढ़ी लोक चित्र की एक शैली गोदना भी है।

     इसमें स्त्रियों अपने विभिन्न अंगों में विभिन्न प्रकार की आकृतियों फूल आदि चित्रित करवाती हैं। गोदना आदिवासियों के सौंदर्य और गहनों के प्रति लगाव को भी प्रदर्शित करते हैं।  इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक चित्रों में जहाँ । एक ओर यहाँ की धार्मिक परम्पराओं और आस्थाओं का वर्णन होता है। वहीं इनमें प्रागैतिहासिक और आदिम मानव की प्रथम अनुभूतियों से उपजी परम्परा भी परिलक्षित होती है।

    नृत्य एवं संगीत कला नृत्य कला:( Dance and Music Art Dance Art) 

    अपनी भावनाओं को शारीरिक चेष्टाओं व्यक्त करना मानव का आदिम गुण है। जब तक उसने सिर्फ शारीरिक चेष्टाओं से ही अपनी खुशी को प्रदर्शित किया। इस खुशी को अधिक करने के लिए उसने क्रमशः इन चेष्टाओं को लयबद्ध करना आरंभ किया। शारीरिक लय प्रधान क्रियाओं के साथ | आनन्द और सौन्दर्य की अभिव्यक्ति जिस सामूहिक रूप से होती है उसे 'लोक नृत्य   कहते हैं। लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के निवासियों की अपनी जातीय परम्परा एवं संस्कृति का परिचायक है।

    छत्तीसगढ़ के अनेक लोकगीतों में से कुछ गीतों का सम्बंध नृत्य से है। करमा डंडा और सुआ गीत नृत्य के योग से  सजीव हो उठते हैं। ये नृत्य छत्तीसगढ़ के लोक जीवन से घुल मिल गये हैं। इन नृत्यों में कुछ नृत्य पुरूषों के द्वारा तथा कुछ नृत्य स्त्रियों के द्वारा किये जाते हैं। करमा एवं डंडा पुरूष नृत्य तथा सुआ स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। कुछ नृत्य स्त्री-पुरुषों दोनों के द्वारा किये जाते हैं। जिनमें आदिवासी क्षेत्रों में किया जाने वाला नृत्य डोमकच और सरहुल प्रमुख नृत्य है। इसी तरह कुछ लोक नृत्य जाति विशिष्ट द्वारा किया जाने वाला होता है। इनमें के राउत जाति के द्वारा किया जाने वाला गहिरा नृत्य और सतनामी लोगों के द्वारा किया जाने वाला पंथी नृत्य है।

    संगीत कला:( Musical art )

    जीवन और संगीत का अभिन्न सम्बंध है जिसका वास्तविक परिचय हमें लोक संगीत के माध्यम से प्राप्त होता है। लोक संगीत में प्रेम आदि मानव जीवन के सभी अंगों का समावेश है। छत्तीसगढ़ी अंचल में लोक संगीत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख वाद्य यन्त्र- मांदर, ढोल, टिमकी, नंगाडा, ठिसकी, तम्बुरा, चिकारा, बांसुरी, तुरही, सिंगी आदि प्रमुख है।  छत्तीसगढ़ में लोक गीतों का भंडार है। वह ऐसा शाश्वत प्रवाह है जिसकी धारा यहाँ का जनजीवन प्रवाहित होता दिखाई देता है। छत्तीसगढ़ का सामूहिक व्यक्तित्व यहाँ के लोक गीतों में प्रतिबिम्बित होता है।  छत्तीसगढ़ के लोक गीतों का वर्गीकरण निम्न लिखित रूप में किया जा सकता है:

     (1) संस्कार गीतः (Sanskar song )

    •  जन्म के गीत
    •  विवाह के गीत

    (2)  पर्व गीत:( Gala song )-

    सुआ गीत, गौरा गीत, मड़ई, डंडा गीत, होली गीत, दीवाली गीत, जवारा गीत, भोजली गीत ।

    (3) श्रृंगार गीतः(Makeup song )- 

    •  ददरिया
    •  बारह मासी

     (4) विविध गीतः(Miscellaneous songs )- 

    • करमा गीत
    • बांस गीत
    • देवार गीत।