निर्माण उद्योग |
निर्माण उद्योग( construction industry)
हमारा अतीत भले ही कृषि से संबंधित रहा हो, लेकिन भविष्य उत्तरोत्तर उद्योगों पर आश्रित होता जाएगा कृषि के विकास ने भूख और जीवित बचे रहने की निरंतर चिन्ता से मुक्त नहीं कर दिया बल्कि उद्योग ने हमारे जीवन को सुखी एवं सुविधा संपन्न बना दिया हैं। दूसरे शब्दों में जितना ही देश का औद्योगिक विकास होगा, उतना ही जीवन स्तर ऊँचा उठेगा।
इसका यह अर्थ नहीं है कि कृषि और उद्योग एक दूसरे से अलग, है । इन दोनों को तो साथ-साथ आगे बढ़ना है। यदि कृषि ने हमें उद्योगों की सुदृढ आधार शिला रखने के लिए योग्य बनाया है, तो उद्योगों ने बदले में उसकी उपज को बढ़ाने में भारी योगदान दिया है।
किसी भी उद्योग का विकास अनेक कारकों पर निर्भर रहता है। सबसे पहले कच्चे माल की लगातार और पर्याप्त पूर्ति होनी चाहिए। भारत में कृषि पर आधारित उद्योगों का महत्व तिलहन, रबड़ और तंबाकू जैसे कृषि के प्राथमिक उत्पादों पर निर्भर रहता है। उद्योगों का दूसरा वर्ग लौह अयस्क खनिज तेल, कोयला, जिप्सम, बाक्साइट और गन्धक जैसे खनिज पदार्थों पर आधारित है। उद्योगों के तेजी से विकास के लिए सस्ती बिजली की पूर्ति अत्यावश्यक है। शीघ्र परिवहन की पर्याप्त सुविधाएँ भी उतनी ही आवश्यक हैं। मशीनों को लगाने, कच्चे माल की खरीद और श्रमिकों को वेतन देने के लिए उद्योगों को विशाल मात्रा में पूँजी की आवश्यकता रहती है। दक्ष और भलीभाँति प्रशिक्षित श्रमिक भी आसानी से उपलब्ध होने चाहिए। उद्योगों के उत्पादों की बिक्री के लिए अच्छी मांग भी चाहिए । सौभाग्य से इन आवश्यकताओं में से अधिकांश की पूर्ति हम करते है ।
निर्माण उद्योग को प्रभावित करने वाले कारक
( Factors affecting the construction industry)
1 कच्चा माल (Raw material)
2. शक्ति आपूर्ति (Power supply)
3 मानव संसाधन (Human resource)
4. बाजार (Market)
5. यातायात (Transportation)
6. पूँजी (Capital)
7. अन्य (Other)
1.कच्चा माल (Raw material)-
इसके तहत् धातु, अयस्क, पत्थर, अनाज, रेशम आदि अन्य पद्धार्थ आते है जिनसे औद्योगिक उत्पादन होता है।
2.शक्ति आपूर्ति (Power supply):-
शक्ति की आपूर्ति तापीय विद्युत् शक्ति, जल विद्युत, पेट्रोलियम, कोयला अथवा उर्जा के गैर परम्परागत साधनों से प्राप्त की जाती है।
3.मानव संसाधन (Human resource):-
इसके तहत् कुशल एवं प्रशिक्षित मजदूर एवं कर्मचारी आते है, जिनके बिना कार्य संभव नहीं है ।
4.बाजार (Market):-
उद्योगों से निर्मित वस्तुएं बाजार में बेचकर उनसे लाभ प्राप्त किया जाता
5.यातायात (Transportation):-
कारखानों में उद्योगों तक सामग्री लाने तथा ले जाने के लिए परिवहन तथा यातायात के समुचित साधन का होना भी आवश्यक हैं।
6.पूँजी (Capital):-
उद्योग निर्माण हेतु सबसे महत्वपूर्ण कारक है पूँजी, यह एक गतिशील कारक है। पूँजी के बिना किसी भी उद्योग की स्थापना की कल्पना नहीं की जा सकती है।
7.अन्य (Other):- उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त अन्य कई तत्व भी निर्माण
उद्योग को प्रभावित करते है, इनमें से प्रमुख
है- उपयुक्त जलवायु, राजनीतिक स्थिरता,
राष्ट्रीय नीति, सरकारी संरक्षण, सस्ती भूमि, की प्राप्ति,
अनुभव, श्रमिकों का वेतन, तैयार माल का
लागत मूल्य इत्यादि ।
कुटीर उद्योग(Cottage industry)
कुटीर उद्योग में वस्तुओं का निर्माण स्थानीय कच्चे माल के प्रयोग द्वारा घरों में हाथों से किया जाता है इन उद्योग में सारा काम परिवार के सदस्य करते हैं और निर्मित वस्तुओं का उपयोग परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता हैं या उन्हें स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। इस प्रकार का उद्योग यातायात और पूँजी जैसे कारको से बिल्कुल प्रभावित नहीं होता
यूरोप और उत्तर अमेरिका के विकसित देशों से वास्तविक कुटीर उद्योग अब बिल्कुल
विलुप्त हो गए है। एशिया में यह अब भी अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्योग हैं। एशिया के
देशो में कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित प्रमुख वस्तुएँ खाद्य पदार्थ, कपड़े, दरियाँ, चटाइयाँ, मछली पकड़ने के जाल, नावों के पाल, सूत, रेशम, लेम्प, पटसन, लकड़ी, रद्दी कागज और पत्तियों के बने विभिन्न प्रकार
के थैले या सामान रखने की वस्तुएँ, चर्मशोधक पदार्थ,
जूते-चप्पल, औजार, चीनी और मिट्टी
के बर्तन, रस्सी, ईटे, तथा सोना-चाँदी, कीमती पत्थर दाँत
और काँसे के आभूषण हैं। कुटीर उद्योग का सबसे अधिक लाभ यह है कि लोग इससे काम बुआई
और फसल की कटाई के बाद बचे फुर्सत के समय में कर सकते हैं। कुटीर उद्योग किसानों
को खाली समय काम करने का अवसर देते हैं।
छोटे पैमाने के
उद्योग(Small scale industries)
कुटीर उद्योग का स्वाभाविक विस्तार छोटे पैमाने का उद्योग कहलाता है। शिल्पकारों के अलग-अलग संगठनों के बनने से छोटे पैमाने के उद्योगों का जन्म हुआ । पहले वे इनमें हाथों से काम करते थे परन्तु अब विद्युत् की मदद से मशीनें चलाकर वस्तुएँ बनाई जाती हैं। छोटे पैमाने के उदयोगों में कम् पूँजी और कम मशीनों की आवश्यकता होती हैं। इस उद्योग में कच्चा माल दूर स्थित प्रदेशों से लाकर प्रयोग किया जाता है और इसके तैयार माल की बिक्री भी दूर के बाजारों में की जाती है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास बड़ी तेजी से हुआ है। इन उद्योगों में खाद्य पदार्थ, लवण, मसाले, सिगार, बीड़ी, खाँडसारी चीनी और गुड़, लट्ठों का आरा मिलों में काटना से लेकर तिलहनों से तेल निकालना, छुरी- काँटों का बनाना जूते चप्पल, चमड़े की अन्य वस्तुएँ, ताँबे और पीतल के बर्तन आदि बनते हैं। आधुनिक वस्त्र निर्माण उद्योग बहुत तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन भारत के दो-तिहाई बुनकर छोटे पैमाने के उद्योग में लगे हुए हैं । आगे आने वाले समय में छोटे पैमाने के उद्योग विश्व की घनी जनसंख्या के प्रदेशों में अधिकाधिक लोगों को काम दे सकेंगे।
बड़े पैमाने के उद्योग (Large scale industries)
बड़े पैमाने के उद्योगों में विशाल मशीनों के द्वारा अत्यधिक मात्रा में उत्पादन होता है । इस प्रकार के उद्योग का विकास गत 200 वर्षो से हुआ है। विविध प्रकार का कच्चा माल, अत्यधिक मात्रा में विद्युत शक्ति या ईधन, प्रचुर मात्रा में पूँजी, बहुसंख्यक कुशल श्रमिक, उच्च गुणवत्ता वाली अत्यधिक मात्रा में मानव-वस्तुओं का उत्पादन और अति जटिल प्रबन्ध, बड़े पैमाने के उदयोगों की विशेषताएँ हैं।
भारत में बड़े पैमाने के उद्योगों के अन्तर्गत लोहा-इस्पात, मशीन औजार, रसायन, विदयुत उपकरण,
वस्त्र निर्माण एवं चीनी उद्योग आते हैं जो
निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में हैं।
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण( Classification of industries on the basis of ownership)-
1.निजी उद्योग :- जिन उद्योगों का स्वामित्व भार किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के समूह पर होता है उसे निजी उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों को चलाने, नीति निर्धारण करने तथा लाभ-हानि का पूर्ण जिम्मेदार स्वयं मालिक होता है, उदाहरण- जमशेदपुर का टाटा आयरन एवं स्टील कम्पनी, वनस्पति तेल उद्योग ।
(2) सार्वजनिक उद्योग :- जिन उद्योगों में सम्पूर्ण पूँजी सरकार द्वारा
लगाई जाती है और जिसका स्वामित्व सरकार का होता है, उन्हे सार्वजनिक उद्योग कहा जाता है. इसमें राज्य तथा
स्थानीय प्रशासन के सभी प्रतिष्ठान शामिल होते है। उदाहरण- कोल इण्डिया लिमिटेड,
हिन्दुस्तान मशीन टूल्स आदि ।
(3) सम्मिलित क्षेत्र उद्योग:- चे उद्योग जिनका व्यवस्थापन सहकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है, उन्हें सम्मिलित क्षेत्र उद्योग कहते है।
उदाहरण- सीमेन्ट उद्योग।
(4) सहकारी क्षेत्र उद्योग :- इसमें उद्योगों का व्यवस्थापन सहकारी संस्थाओं निर्माण उद्योग द्वारा किया जाता हैं। उदाहरण- महाराष्ट्र तथा गुजरात की चीनी मिले, गुजरात का अमूल डेयरी उद्योग ।
कच्चे माल की प्रकृति के आधार पर उद्योग:( Industry on the basis of
nature of raw material)
(1) आधार भूत उद्योग (Basic In dustry) :- आधारभूत उद्योग को पूँजीगत माल के उद्योग भी कहते है, इनमें उत्पादों का उपयोग अन्य प्रकार से उत्पादन करने के लिए किया जाता है। इन उद्योगों में दूसरे उद्योगों के लिए मशीन, औद्योगिक सामान, विशिष्ट उपकरण एवं अन्य उद्योगों की कार्य-कुशलता तथा क्षमता बढ़ाने वाले उपकरणों का निर्माण किया जाता है। उदाहरण- लोहा एवं इस्पात उद्योग
(2) उपभोक्ता वस्तु उद्योग (Con sumer product Industrs) :- उपभोक्ता वस्तु उद्योग के को रखा जाता है जो व्यक्ति संस्थाओं की तहत् उन उद्योगों आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करते हैं। इन उद्योगों में घरेलू एवं दैनिक उपभोग की वस्तुएँ तैयार की जाती है, उदाहरण सभी प्रकार के वस्त्र उद्योग, खाद्यतेल, चाय, ब्रेड, रेडियों, दवाईयाँ, साबुन, टेलीविजन आदि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उपभोक्ता वस्तुउद्योगों की संख्या अभूतपूर्व वृद्धि हुई हैं
(3) कृषि पर आधारित (Agro . based Industry) :-यद्यपि तथापि कृषि प्राप्त पदार्थों का उपयोग कच्चे माल के रूप में उद्योगों में किया है। कृषक भूमि से कई प्रकार की फसलें चावल, गेहूँ, मक्का, कपास, जूट, गन्ना, तम्बाकू, चाय, तिलहन, कहवा इत्यादि का उत्पादन करते हैं। कृषि उत्पादक उद्योगों लिए कच्चा माल प्रदान करते उदाहरणार्थ धान चावल मिल, गेहूँ पर सूजी उद्योग, गन्ने चीनी उद्योग, कपास पर वस्त्र उद्योग, जूट पर उद्योग, तम्बाकू पर सिगरेट उद्योग, तिलहन तेल उद्योग, फल पर बनाने उद्योग आश्रित हैं। इन उद्योगों कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता हैं कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना उनके उत्पादन क्षेत्रों समीप ही की जाती है। जैसे- के जूट उद्योग पश्चिम बंगाल में केन्द्रित की पश्चिम सर्वाधिक होती कृषि आधारित उद्योगों के विकास कारण यहाँ कृषि प्राप्त पदार्थ का निर्यात नहीं किया जाता, उससे निर्मित माल का निर्यात होता है। कृषि पर आधारित उद्योगों का विशेष महत्व है
इसने कृषि क्षेत्र को व्यावसायिक तथा अधिक लाभदायक बनाया है तथा लाखों लोगों को रोजगार प्रदान किया है।
(4) वनों पर आधारित उद्योग:( Forest based industries)- वन बहुत से ऐसे उत्पादों के स्त्रोत हैं जिनका प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल की तरह किया जाता है। जैसे जड़ी-बूटियाँ, छाल, जड़ें, गोंद, सुपारी आदि। महत्वपूर्ण वस्तुएँ प्राप्त होती हैं, साथ ही कागज, खुशबूदार तेल, प्लाई बोर्ड, हार्डबोर्ड, रंग-रोगन, दवाइयाँ आदि बनाने हेतु कच्चा माल प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त आरा मिलें, माचिस उद्योग, नारियल एवं नारियल-जटा उद्योग भी बगानों एवं वन उत्पादों पर आश्रित उद्योग हैं। वनों पर आधारित उद्योग देश की बहुत बडी जनसंख्या को रोजगार प्रदान करता है।
वनों पर आधारित लाख उद्योग की भारत में लगभग 350 इकाइयाँ कार्यरत हैं। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 50,000 टन लाख का उत्पादन होता है। बिहार, म.प्र. उड़ीसा के जंगलों से लाख प्राप्त होता है। दियासलाई उद्योग के लिए कोमल लकड़ी वनों से ही प्राप्त होती है। भारत में 400 से अधिक दियासलाई उद्योग कार्यरत हैं। वनों पर आधारित प्लाईवुड उद्योग ने हमारे देश में तेजी से विकास किया है। असम, पश्चिम बंगाल तथा केरल प्लाईवुड निर्माण में अग्रणी हैं। इनके अतिरिक्त नारियल की जटाओं से रस्सी तैयार करने का उद्योग, फर्नीचर उद्योग, रेशम उद्योग, रबर उद्योग आदि वनों पर ही आधारित हैं।
(5) खनिज आधारित उद्योग:-( Mineral based industries)- पृथ्वी पर जाने वाला महत्वपूर्ण संसाधन है, मानव के विकास खनिज योगदान महत्वपूर्ण जिन उद्योगों में कच्चे माल रूप में खनिजों का उपयोग किया जाता है वे खनिज आधारित उद्योगों के अंतर्गत आते हैं। इस श्रेणी के उद्योगों को दो वर्गों रखा जाता है लौह प्रधान उद्योग तथा अलौह उद्योग ।
(अ) लौह धातु उद्योग- ये उद्योग ऐसी धातुओं पर आधारित होते हैं जिनमें लोहांश होता है। लोहा तथा इस्पात उद्योग, रेल इंजन, भारी इंजीनियरिंग उद्योग आदि इसके उदाहरण हैं।
(ब) अलौह धातु उद्योग ये उद्योग ऐसे खनिजों पर आधारित होते हैं जिनमें लोहांश नहीं होता जैसे- ताँबे व ऐल्युमिनियम पर आधारित उद्योग
इंजीनियरिंग उद्योग महत्वपूर्ण खनिज आधारित उद्योग है। इंजीनियरिंग उद्योग के भारत में सैकड़ों कारखाने हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार की मशीनों का निर्माण किया जाता है। इस उद्योग केन्द्र राँची, दुर्गापुर, विशाखापट्टनम, नैनी, बंगलौर, हैदराबाद, पिंजौर, श्रीनगर, जादवपुर, भोपाल, कोलकाता चेन्नई, मुम्बई, नासिक, चितरंजन आदि हैं। भारत में हल्के मशीन उपकरण साइकिल, सिलाई मशीनें, टाइपराइटर, टेलीफोन, घड़ियाँ, पंखे, रेडियो, टी. वी. बनाने के औद्योगिक केन्द्र चण्डीगढ़, दिल्ली, फरीदाबाद, गाजियाबाद, अहमदाबाद, हैदराबाद, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, इन्दौर आदि में स्थापित हैं। वास्तव में खनिज एवं उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि खनिज पर आधारित उद्योगों के अंतर्गत ही आधारभूत उद्योग सम्मिलित हैं और बिना आधारभूत उद्योगों के किसी प्रकार के अन्य उद्योगों का विकास संभव नहीं है। खनिज आधारित उद्योगों में लौह-इस्पात उद्योग के पश्चात् सीमेण्ट उद्योग का विशेष महत्व है। भारत में सीमेण्ट तैयार करने के लगभग 98 बड़े तथा 250 छोटे संयंत्र हैं। इनकी उत्पादन क्षमता 700 मिलियन टन है। सीमेण्ट उद्योग का स्थानीयकरण बिहार, म.प्र., गुजरात तथा आन्ध्रप्रदेश में सर्वाधिक हुआ है।
(6) पशुओं पर आधारित उद्योग (Animal based industry) - पशुओं से अनेक प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं, जिन्हें विभिन्न उद्योगों में कच्चा माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। पशुओं से प्राप्त दूध, खाल, चमडा, रेशा, मांस इत्यादि का महत्व सर्वविदित हैं। प्राचीन काल में पशु उत्पादों पर कुटीर उद्योग चलते थे । वर्तमान में दुग्ध उद्योग, चमड़ा उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग, मांस उद्योग आदि सीधे पशुओं पर निर्भर हैं। दूध से दूध पाउडर, पनीर, बटर बनाये जाते हैं। चमड़े से जूता, चप्पल, थैला, पर्स बनाये जाते हैं। भेडों से प्राप्त रेशों का उपयोग ऊनी वस्त्र, कालीन, गलीचा आदि बनाने में होता है। देश में अनेक स्थानों पर मांस उद्योग केन्द्रित हैं, जहाँ पर पशुओं को काटने तथा मांस को डिब्बों में बन्द करने का कार्य होता है।
पशुओं पर दुग्ध उद्योग पूर्णतः आधारित है। स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे देश में इसका सुनियोजित विकास किया गया है। दूध से घी, मक्खन तथा पाउडर बनाने का उद्योग उत्तर प्रदेश के खुर्जा, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, कासगंज, बिहार के दरभंगा व दीनापुर, म.प्र. के इन्दौर व उज्जैन, गुजरात के आनन्द, मेहसाना व अहमदाबाद, आन्ध्रप्रदेश के गुन्तूर तथा कर्नाटक के मैसूर नगर में स्थापित हैं।
पशुओं पर आधारित दूसरा महत्वपूर्ण उद्योग चमड़े का है। उल्लेखनीय है कि सन् 1950 से पूर्व भारत विश्व का सबसे बड़ा चमडा निर्यातक देश था। भारत में लगभग 40 करोड़ पालतू पशु पाये जाते हैं। इन पशुओं के मरने से प्रतिवर्ष भारी मात्रा में चमड़ा प्राप्त होता है। इन चमड़ों को साफ करने तथा उपयोगी वस्तुएँ बनाने का कार्य अनेक स्थानों पर किया जाता है। चमड़ा उद्योग के प्रमुख केन्द्र कानपुर, आगरा, चेन्नई, कोलकाता व दिल्ली हैं। वर्तमान में चमडे से जूते बनाने का उद्योग महत्वपूर्ण स्थान ले चुका है। जूते बनाने के विशाल संयंत्र कानपुर तथा आगरा में स्थापित हैं। भारत चमडे से बनी वस्तुओं का निर्यात भी करता है। सन् 1994-95 में 5,000 करोड़ रूपये से अधिक मूल्य का चमड़े का सामान निर्यात किया गया ।
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