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पर्यावरण ह्रास (Environmental degradation)
मानव ने अपने विकास के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र को परिवतर्तित किया है। उसने वनों, वन्य जीवों, खनिजों, कृषि भूमि, मत्स्य आदि का अत्यधिक शोषण किया तथा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अत्यंत तीव्र गति से बिना किसी नियोजन के किया है। मानव जंगलों को अन्धाधुन्ध साफ करके, मिट्टियों का अवैज्ञानिक प्रयोग कर और उद्योगधन्धों के द्वारा जल, वायु, ध्वनि प्रदूषण आदि में वृद्धि करके पारिस्थितिक तन्त्र को हानि पहुँचाता आ रहा है।
इस प्रकार अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में वृद्धि करके मानव ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है और अपने अस्तित्व को संकट में डाल दिया है।
पर्यावरण में हास हमें निम्नलिखित रूपों में दिखाई देता है
1.प्रदूषण की समस्या( pollution problem)
प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिससे मानव सहित जैव जगत की कठिनाइयाँ बढती जा रही
है। पर्यावरण के तत्वों वायु, जल, भूमि आदि में गुणात्मक ास होने के कारण प्रकृति
और जीवों का आपसी संबंध बिगड़ता जा रहा है। हवा, जल, धरातल अपनी
गुणवत्ता खोते। जा रहे हैं। प्रदूषण के कारण ही मौसम का स्वभाव बदल रहा है तथा
मानव विभिन्न प्रकार की बीमारियों के चंगुल में फँसता जा रहा है।
2. वानस्पतिक आवरण
मानव ओर वन का अति प्राचीन काल से ही गहरा संबंध है। आदिकाल में मानव पूर्णतः वनों पर आश्रित था। मानव सभ्यता विकसित होने के साथ ही साथ मानव ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु वन-सम्पदा का लकड़ी प्राप्त करने के लिए, कृषि भूमि के विस्तार के लिए, कच्चे माल की पूर्ति के लिए, पशुचारण के विस्तार के लिए तथा अन्य अनेक कार्यों के लिए अनियोजित तरीके से शोषण किया है। वनों को काटे जाने के कारण पर्यावरण प्रदूषित हुआ है जिससे भू-अपरदन, अनावृष्टि, बाढ़ आदि समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं तथा वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों में बाधा आने से उनके जीवन को संकट उत्पन्न हुआ है।
3. जनसंख्या वृद्धि का कुप्रभाव:( effects of population growth )
जनसंख्या यद्यपि महत्वपूर्ण संसाधन हैं, परन्तु प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में तीव्र वृद्धि पर्यावरण
को क्षतिग्रस्त करती है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से खाद्यान्न, आवास, वस्त्र, वायु प्रदूषण
जैसी अनेक गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हो गई है । चारागाह व वन प्रदेशों के हास तथा
अन्य जीवों की संख्या में कमी के कारण पर्यावरण असन्तुलन की गम्भीर समस्या उत्पन्न
हो गई है।
पर्यावरण को नियन्त्रित करने के उपाय:( Measures to control environmental pollution )
(1) जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण: पर्यावरण में असन्तुलन वास्तव में तीव्र जनसंख्या की परिणति है। इसलिए जनसंख्या पर नियंत्रण करके इस भयावह स्थिति को रोका जा सकता है।
(2) वृक्षारोपण एवं वन्य-जीव संरक्षण- प्रदूषण से बचने के लिए वनों के क्षेत्रफल में वृद्धि करना बहुत आवश्यक है। भारत में सुन्दरलाल बहुगुणा का 'चिपको आन्दोलन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है पारिस्थितक तंत्र एवं पर्यावरण को सन्तुलित बनाये रखने के लिए वन्य-जीवों का संरक्षण एवं उनका संवधर्न बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि साँप समाप्त हो जायें तो चूहों की संख्या में वृद्धि हो जायेगी जो फसलों एवं मिट्टी को नष्ट करके प्राकृतिक पर्यावरण को हानि पहुँचायेंगे ।
3. मत्स्याखेट पर नियंत्रण:( Fish control )
जल क्षेत्रों में मछलियों के पकड़ने के कारण उनकी संख्या में निरंतर कमी होती जा रही है। विकसित तकनीक का प्रयोग कर मत्स्य संसाधनों के उपभोग से नियमित मछलियाँ प्राप्त की जा सकती है। ऐसे क्षेत्रों में प्रदूषण को रोका जाना अति आवश्यक है अन्यथा मछलियाँ ऑक्सीजन की कमी से नष्ट हो सकती है।
4.रासायनिक पदार्थों के फैलाव पर रोक:( Prohibition on the spread of chemical substances )
मानव अनेक विषैले एवं रासायनिक पदार्थों का उपयोग कृषि क्षेत्र में भारी मात्रा में करने लगा है। इससे भू-क्षरण, वायु प्रदूषण आदि की समस्याएँ पैदा हो गई है। रसायन फैलाकर कृत्रिम वर्षा कराना अब सामान्य बात हो गई है। वायुमण्डल में ओजोन की परत में छेद होने की सम्भावना से समस्त विश्व व्याकुल है। इसलिए रासायनिक पदार्थों के उपयोग व प्रसार पर प्रभावी रोक लगाना अत्यंत आवश्यक है।
5. कृषि उत्पादन वृद्धि हेतु नयी तकनीक:( Prohibition on the spread of chemical substances )
भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग से यद्यपि कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, किन्तु इससे वायु प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हुई। इसके लिए हरी खाद, कम्पोस्ट खाद तथा अन्य वानस्पतिक खादों अधिकतम उपयोग किया जाये और फसल चक्र में परिवर्तन किया जाये ।
6.भूमि सम्मेलनों का आयोजन :( Organizing land conferences )
पर्यावरण ह्रास व प्रदूषण आज एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भूमि सम्मेलनों के आयोजन की नितान्त आवश्यकता है। जिसमें विकसित राष्ट्र भूमि की सुरक्षा के समुचित उपाय करें। इसके लिए भूमि सुरक्षा कोष' की स्थापना कर सभी देशों की सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए।
7.पर्यावरण के साथ अनावश्यक हस्तक्षेप पर रोक:( Avoid unnecessary interference with the environment )
प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ के कारण ही आज पर्यावरण असन्तुलन एवं प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गयी है। मनुष्य को चाहिए कि प्रकृति के द्वारा दिये गये निःशुल्क उपहारों जैसे- वन, जल, भूमि, खनिज, वन्यजीव आदि से अनावश्यक छेड़छाड़ बन्द कर देनी चाहिए। वृक्षारोपण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
8.राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीति:( National and International Policy )
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ बनाकर ऐसे मानक निर्धारित कर देने चाहिए जिसके अंतर्गत रहकर ही मानव को अपने विकास कार्यों को चलाने की अनुमति हो । प्राकृतिक संसाधनों के अनियोजित उपयोग पर रोक लगाना बहुत आवश्यक है।
अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरण में संतुलन करना आज हमारा प्राथमिक कर्तव्य है। पश्चिमी देशों के लिए पर्यावरण विकास का अर्थ वहाँ के जीवन स्तर को ऊपर उठाना हो सकता है। किन्तु भारत के लिए यह जीवन-मृत्यु का प्रश्न है।
पर्यावरण ह्रास
की रोकथाम के लिए सरकार द्वारा किये गये उपाय(Measures taken by the government to prevent
environmental degradation)
पर्यावरण संरक्षण के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने अनेक कानून बनाये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कानून हैं- जल प्रदूषण (निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974, वायु प्रदूषण (निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981, फैक्ट्री अधिनियम, कीटनाशक अधिनियम | इन अधिनियमों के क्रियान्वयन का दायित्व केन्द्र एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कारखानों के मुख्य निरीक्षकों और कृषि विभागों के कीटनाशक निरीक्षकों पर
पर्यावरण संबंधी समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए सरकार ने सन 1972 में एक पर्यावरण समन्वय समिति का गठन किया जिसकी सिफारिश पर सन 1980 में पर्यावरणनिर्माण उद्योग विभाग की स्थापना की गई। पर्यावरण के कार्यक्रमों के आयोजन, प्रोत्साहन और समन्वय के लिए सन 1985 में 'पर्यावरण, वन्य और वन्य जीव मन्त्रालय' की स्थापना की गई है।
पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 19 नवंबर सन 1986 से लागू किया गया है जिसका उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करना है।
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