प्राकृतिक गैस(Natural gas)

वर्तमान युग में कोयला तथा पेट्रोलियम के स्थान पर गैस के उपयोग में तीव्रगति से वृद्धि हो रही है क्योंकि यह गन्ध एवं कालिख रहित अत्यधिक ज्वलनशील ईंधन है ।

कोयला तथा खनिज तेल की अपेक्षा इसके उत्पादन तथा वितरण में खर्च कम होता है। इसे संचय करने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता नहीं होती है। प्राकृतिक गैस जिस रूप में प्राप्त होती है। उसी रूप में उसका उपयोग होता है। प्राकृतिक गैस का उपयोग घरों को गर्म करने, भोजन बनाने उर्वरक, कारखानों, उद्योगों, ताप विद्युत गृहों आदि को चलाने के लिए हो रहा है।

    वितरण 

    प्राकृतिक गैस सामान्यतः उन क्षेत्रों में पाई जाती है जिन क्षेत्रों में खनिज तेल मिलता है। भारत में प्राकृतिक गैस उत्पादन के दो क्षेत्र हैं:

    1) स्थलीय क्षेत्र:- स्थलीय क्षेत्र के अंतर्गत उसम, गुजरात तथा आन्ध्र प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, अरूणाचल प्रदेश में गैस का उत्पादन होता है।

    (2) अपतटीय क्षेत्र समुद्रतल से दूर छिछले भाग अपतटीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। बाम्बे हाई, कृष्णा, कावेरी बसिन, पोरतोनोबा (कावेरी बेसिन) में प्राकृतिक गैस प्राप्त होता है।

    प्राकृतिक गैस की वितरण व्यवस्था :( Distribution system of natural gas )-

     देश के विभिन्न भागों में प्राकृतिक गैस के परिष्करण एवं वितरण का कार्य गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड करती हैं इसका गठन सन 1984 ई. में किया किया गया । यह कम्पनी देश में गैस पाइपलाइन बिछाने तथा घरेलू संयंत्र लगाने का काम कर रही है। इस कम्पनी ने सबसे पहले एम. बी.जे. गैसे पाइपलाइन का निर्माण किया। इसके माध्यम से 6 उर्वरक कारखानें: उत्तरप्रदेश के चार, मध्यप्रदेश व राजस्थान के एक-एक और तीन ताप बिजली घरों कावस (गुजरात), अन्ना (राजस्थान) व औरया (उत्तर प्रदेश) में गैस पहुँचाई जाती है। यह पाइपलाईन विश्व की सबसे लंबी भूमिगत गैस पाइप लाइन है।

    प्राकृतिक गैस का संरक्षण :( Natural gas conservation )

    प्राकृतिक गैस का संरक्षण कठिन होता है। इसे सिलेण्डरों में भरकर रसोई ईंधन के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है। किन्तु अधिक समय तक रखने पर इसमें आग लगने की आशंका रहती है। अतः प्राकृतिक गैस का तुरंत उपयोग करना ही उचित है। पेट्रो रसायन एवं रासायनिक उर्वरक उद्योगों में इसकी अधिक खपत करने से इसका संरक्षण होता है।

    परमाणु खनिज(Atomic minerals)

    रेडियो धर्मी तत्व वाले खनिज पदार्थों को परमाणु खनिज कहते हैं। जैसे-यूरेनियम, बैरीलियम, थोरियम, ग्रेफाइट, एण्टीमनी, प्लूटोनियम, जिरकोनियम आदि हैं। इन खनिज पदार्थों में अणुओं तथा परमाणुओं के विघटन से ऊर्जाशक्ति उत्पन्न होती है। जिसे परमाणु ऊर्जा कहते हैं। 'बचत'

    भारत में परमाणु ऊर्जा बोर्ड द्वारा देश के विभिन्न भागों में परमाणु ऊर्जा केन्द्र स्थापित किए गए हैं। राजस्थान के कोटा जिले में रावाभाटा में, चेन्नई के समीप कलपक्कम में, उत्तरप्रदेश में बुलन्दशहर में नरौरा नामक स्थान पर एवं गुजरात के कांकरापारा नामक स्थानों पर परमाणु ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना की गई है।

    परमाणु ऊर्जा का महत्व:( Importance of nuclear energy)

    1.भारत में ऊर्जा के नश्वर संसाधनों, उत्तम कोटि के कोयला, खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के भण्डार सीमित मात्रा में है। अतः हमें जलशक्ति एवं परमाणु उर्जा पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।

    उर्जा संसाधन

    2) परमाणु उर्जा केन्द्र कहीं भी आसानी से स्थापित किये जा सकते हैं।

    3) परमाणु खनिजों के विघटन से अत्यधिक शक्ति की प्राप्ति होती है।

    4) चिकित्सा एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में भारत का स्थान विश्व में अग्रणी रहा है।

    संरक्षण:( Protection )

    परमाणु खनिज की उपयोगिता को देखकर भारत में इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि जब निकट भविष्य में कोयला और खनिज तेल के भण्डार समाप्त हो जायेंगे तब परमाणु खनिजों से शक्ति पैदा करके भारत अपनी जरूरतों की पूर्ति कर सकता । अतः परमाणु खनिज का संरक्षण आज की महती आवश्यकता है।

    ऊर्जा के गैर परम्परागत साधन :( Non-conventional sources of energy )

    कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि का उपयोग व्यापक रूप से होता रहा है। अतः संसाधनों के अतिशोषण से इन संसाधनों के उत्पादन में कमी का अनुभव किया जाने लगा। क्योंकि यह सभी संसाधन एक बार प्रयोग करने के बाद नष्ट हो जाते हैं। चूंकि इन संसाधनों के भण्डार एक निश्चित मात्रा में ही होंगे। अतः वैज्ञानिकों ने ऊर्जा के गैरपरम्परागत संसाधनों को खोजा है। जिनसे नवीन उर्जा-संसाधनों को विकसित किया जा रहा है। जो निम्नलिखित है

    पवन ऊर्जा :( Wind power)

     पवन ऊर्जा का उपयोग पानी खीचने के लिये किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों की सिचाई एक प्रमुख आवश्यकता है। इससे बिजली भी बनाई जा सकती है। ऐसा अनुमान कि पवन का उपयोग करके 2000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है। गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उड़ीसा इसके लिए उपयुक्त राज्य है चक्कियाँ इन्हीं में लगाना उचित है। जहाँ पवन गति से और निरंतर चलती है। मार्च 1987 तक 1750 पवन चक्कियाँ लगाई जा चुकी हैं।

    भारत में पवन ऊर्जा नवीन श्रोत नहीं है। भारतीय कृषक अपने कृषिगत कार्यों में इसका उपयोग प्राचीन काल से कर रहे हैं। आज जब पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन होने लगा है तो भारत के जनमानस में इसकी लोकप्रियता भी बढ़ गई है। भारत में पवन उर्जा को सुदृढ़ बनाने के लिए केन्द्र सरकार पवन संसाधन कार्यक्रम चला रही है। पवन उर्जा परियोजना के लिए 208 केन्द्र की पहचान की जा चुकी है। वर्ष 2002-03 के तहत देश में निर्मित 25 करोड़ रूपए की - टरबाइनों का निर्यात किया गया है।

    सौर ऊर्जा :( Solar energy )

    सूर्य ऊर्जा का अक्षय साधन है। इससे विपुल मात्रा में ऊर्जा मिलती है। यह एक सर्वव्यापी तथा विशाल संभावनाओं वाला साधन है। इस संदर्भ में सौर चूल्हों का विकास एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। सौर ऊर्जा से लगभग बिना किसी खर्च के भोजन बनाया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए छोटे और मध्यम दर्जे के सौर बिजलीघरों की भी योजना बनाई जा रही है। आजकल खाना पकाने, पानी गर्म करने, पानी के खारेपन को दूर करने, अंतरिक्ष ताप तथा फसलों को सुखाने में सौर ऊर्जा का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। यह भविष्य की ऊर्जा का साधन है। क्योंकि कोयला और खनिज तेल जैसे जीवाश्म ईंधन तो तब तग पूर्णतः समाप्त हो जायेंगे । भारत में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीवगांधी के द्वारा भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए हैं। देश में 50-100 लीटर क्षमता के घरेलु वाटर हीटर से लेकर प्रतिदिन 2,40,000 लीटर तक की क्षमता वाले औद्योगिक वाटर स्थापित किये जा चुके हैं। देश में 5 लाख से अधिक सौर कुकर प्रयोग किए जा रहे हैं। भारत 2004 के अनुसार सौर ताप ऊर्जा कार्यक्रम के तहत राजस्थान के जोधपुर जिले में मथानिया गाँव में मेगावाट की एक समन्वित सौर संयुक्त चक्र बिजली सहित 35 मेगावाट की सौर ताप ऊर्जा प्रणाली की स्थापना का प्रस्ताव है।

    सौर ऊर्जा द्वारा सौर फोटोवोल्टिक औद्योगिकी विकसित की गई है जो न केवल प्रकाश, जल पम्पिंग और दूर संचार आदि प्रयोजनों वरन् हेतु ग्रामीण, विद्यालय और स्वास्थ्य केन्द्रों आदि की बिजली संबंधी आवश्यकता को सुचारू रूप से पूरा करने वाले विद्युत संयंत्रों के लिए भी उपयोगी है।