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Life Resources Forest and Wild

जीवन संसाधन किसे कहते है ?  Jivan Sansadhan kya hai | वन एवं वन्य


जीवन संसाधन वन एवं वन्य 

(Life Resources Forest and Wild)

वन का अर्थ ऐसे विस्तृत क्षेत्रों से है। जहाँ पेड़, पौधों, का सघन आवरण पाया। जाता है। इन्हें जैविक संसाधनों की श्रेणी में रखा जाता है। सामान्य बोल चाल की भाषा में इसे प्राकृतिक वनस्पति या वन कहते हैं। पृथ्वी पर जीवधारियों को भोजन वनस्पति से प्राप्त होता है।

छत्तीसगढ़ में वनों की बात की जाए तो छत्तीसगढ का 46 % क्षेत्र वनों से आच्छादित है। बस्तर संभाग में विस्तृत वन है तथा लगभग तीन चौथाई क्षेत्रफल प्राकृतिक वनों से ढका है। बस्तर के आदिवासी दूरस्थ घने वनों में रहना पसंद करते हैं। इससे स्वाभाविक तौर से कोई भी यह अनुमान लगा सकता है। कि लोग अपना जीवकोपार्जन मुख्यतया शिकार करके अथवा वनों से खाद्य पदार्थ एकत्रित करके करते हैं। किन्तु इस के विपरीत उनकी जीविका का मुख्य आधार कृषि है। बस्तर संभाग वन संसाधन में धनी है। किन्तु इन का सही उपयोग अब तक नहीं हो पाया है।

    वनों को चार भागों में बाँटा गया है:( Forests are divided into four parts )-

    1.      उत्तर के मिश्रित वन

    2.      मध्य के आर्द्र साल वन

    3.      सागोन वन

    4.      शुष्क मिश्रित वन

    छत्तीसगढ़ में पतझड़ वाले वन मुख्यतः पाये जाते हैं। मार्च-अप्रैल के महीनों में इन के पत्ते झड़ जाते हैं। छत्तीसगढ़ में ये वन रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, सरगुजा, कांकेर, बस्तर, दंतेवाड़ा, जशपुर आदि में पाये जाते हैं। इन वनों में नील गाय, भालू, तेंदुआ, वनभैंसा, चीतल आदि पाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान इन्द्रावती टाइगर प्रोजेक्ट दंतेवाड़ा एवं संजय राष्ट्रीय उद्यान सरगुजा है।

    भारत में वनों के प्रकार वितरण एवं वनस्पति:( Types of Forests in India, Distribution and Vegetation )-

    प्राकृतिक वनस्पति पर किसी स्थान वहाँ के उच्चावच जलवायु तथा मिट्टी का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्रकृति ने भारत को वनों के रूप में अमूल्य उपहार दिया है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में पौधों की 49000 प्रजातियाँ पाई जाती है। जिन में 5000 प्रजातियाँ तो अकेले भारत में ही विद्यमान है। हमारा देश पुष्पी और गैरपुष्पी पौधों में धनी है। कर्न, शैलाव, कवच, गैरपुष्पी पौधे है जिनकी विविधता, उच्चावच में विभिन्नता, मिट्टी की संरचना, दैनिक एवं वार्षिक तापांतर, वर्षा की मात्रा अवधि आदि तत्वों द्वारा निर्धारित होती है। संक्षेप में भारत में उष्ण कटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक उगती है।

    भारतीय वनस्पति को पाँच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:( Indian vegetation can be classified into five parts )-

    1.उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन ( Tropical evergreen forest )-

    200 से.मी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र जहाँ 70% से अधिक आर्द्रता एवं तापमान 25° से 27° डिग्री से.ग्रे. के मध्य होता है ये वन पाये जाते हैं। ये सदैव हरे भरे होते है । अतः इन वनों के वृक्ष किसी विशेष ऋतु में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते, वे सदा हरे रहते है। भारत में इस तरह के वन पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलानों, पश्चिम बंगाल के मैदान, उड़ीसा तथा असम, मेघालय, त्रिपुरा में पाये जाते हैं। इन वनों में ताड़, महोगनी, बांस, रबड़, रोजबुड़ आदि वृक्ष मिलेते हैं ।

    2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन ( Tropical deciduous forest )-

    इन्हें मानसूनी वन भी कहा जाता है। भारत के लगभग सभी भागों में ये वन पाये जाते है । परंतु 45 से 200 से.मी. वर्षा वाले भागों में विशेष रूप से पाये जाते हैं वर्षा की कमी के कारण इन वनों के वृक्ष ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इसे पतझड़ का मौसम माना जाता है। आर्थिक दृष्टि से ये वन बहुत ही उपयोगी है। इन वनों में साल, सागौन एवं शीशम, चन्दन, आंवला, महुआ आदि उपयोगी वृक्ष मिलते हैं। ये वृक्ष पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों पर एवं छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उडीसा तथा झारखंड के छोटा नागपुर के पठार में सामान्य रूप से पाये जाते हैं।

    3.कंटीले वन व झाड़िया ( Thorn forests and shrubs )-

    जहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 75 से.मी. से कम रहता है। शुष्कता एवं अधिक गर्मी के कारण इन वनों के वृक्ष कम ऊँचें या छोटे होते हैं। इन वनों में बबूल, बेर, खजूर, नागफनी, आदि वृक्ष अधिक पाये जाते हैं।

    भारत में इन वनों का विस्तार राजस्थान उत्तरी गुजरात, उत्तरी मध्यप्रदेश (मालवा का पठार) दक्षिणी पश्चिमी, हरियाणा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश में है।

    4.ज्वारीय वन ( Tidal forest )-

    गंगा, ब्रह्मपुत्र का डेल्टा तथा अन्य नदियाँ के डेल्टाई भागों में मैनग्रीव के वृक्ष पाये जाते हैं। सुन्दरी नामक वृक्ष इन वनों का प्रमुख वृक्ष है। ये वृक्ष खारे पानी तथा ताजेपानी दोनों में पनप सकते हैं। सुन्दरी वृक्ष के नाम पर गंगा, ब्रह्मपुत्र डेल्टा के वनाच्छादित भाग को सुन्दरवन कहा जाता है। इन वृक्षों की कठोर लकड़ी का उपयोग नाव बनाने तथा नमकीन छालों का उपयोग चमड़ा रंगने एवं पकाने में किया जाता है।

    ज्वारीय या डेल्टाई वन गंगा - ब्रह्मपुत्र डेल्टा के अतिरिक्त कृष्णा, कावेरी एवं महानदी के डेल्टाओं में उगते हैं।

    5.पर्वतीय वन( Mountain forest) -

     पर्वतीय प्रदेशों में वनस्पती के वितरण में ऊँचाई की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्योंकि ऊँचाई के बढ़ने पर तापमान घट जाता है। अतः पर्वतीय भागों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति पाई जाती है। प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन ससाधन ये सभी पेटियाँ 6000 मीटर की ऊँचाई ही मिलती हैं। इससे अधिक ऊँचाई पर धरातल हिमाच्छादित है।

    वन संसाधन उपयोगिता

    ( Forest resource utility )

    भारत  के वन भूमि का क्षेत्रफल 75 हेक्टेयर है। इन वनों का तीन-चौथाई व्यापारिक से उपयोगी है।

     इन वनों से दो प्रकार से लाभ होते हैं।

    §  प्रत्यक्ष लाभ

    §  अप्रत्यक्ष लाभ

    प्रत्यक्ष लाभ:-

    1.प्रधान उपजे :- वनों की मुख्य उपज है। वनों से प्राप्त होने वाली आय 75 प्रतिशत लकड़ी प्राप्त होता देवदार, सागौन, चीड़, शीशम, साल वृक्ष से उत्तम लकड़ी है।

     

    2.गौण उपजें:- आर्थिक से उपयोगी अनेक हमें वनों से प्राप्त हैं बबूल, नीम, पीपल आदि वृक्षों गोंद प्राप्त है। खैर लकड़ी कत्था किया जाता है।

    3.चमड़ा रंगने तथा पकाने पदार्थ:- बबूल, सुन्दरी, हरड़, बहेड़ा आदि की छाले तथा पत्तियाँ चमड़ा व साफ में सहायता करती हैं ।

    4.उत्तम चरागाह:- वनों में हुई उगी हरी घास पशुओं लिए उतम चरागाह हैं।

    5.वनों आधारित उद्योग:- वनों आधारित उद्योग जैसे- दियासलाई, फर्नीचर, जड़ी बूटियाँ आदि उद्योग औषधि रबड़, रीठा, शहद अतिरिक्त जंगली जानवरों प्राप्त मास, चमडा, हड्डी, पंख आदि अनेक प्रकार उपयोगी हैं । सरकार लोगों वनों की उपयोगिता प्रति जागरूकता बढ़ाई है। अनेक पर्यटन स्थल खोले हैं। जिस से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती हैं।

    (2) अप्रत्यक्ष लाभ:

    v  वन जलवायु को प्रभावित करते हैं। तापमान को गर्मियों में कम करते हैं। वनों की हरियाली आकाश में चलते हुए बादलों को आकर्षित कर पानी बरसाती है।

    v  वृक्षों की जड़े मिट्टी को बांधे रखती है। जिससे भूमि का अपक्षय नहीं होता। 3. वन मरूस्थल के प्रसार को रोकते हैं। वृक्षों से वायु की गति मंद हो जाती है तथा तीव्र आंधियों से होने वाली हानि भी कम हो जाती है।

    v  वनों के वृक्षों गिरी हुई पत्तियाँ मिट्टी में मिल कर सड़ने से उसकी उर्वराशक्ति को बढ़ा देती है। इससे मिट्टी में जीवांशों की मात्रा में भी वृद्धि होती हैं।

    v  वन मिट्टी में दब जाने पर कालान्तर में कोयले तथा खनिज तेल का निर्माण करते हैं ।

    वन्य जीवन का हास 

    ( wild life loss )

    लगातार तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के कारण वनों की अत्यधिक कटाई के कारण वन्य पशुओं के लिए आवास की समस्या उत्पन्न हो गई है। स्थान की कमी के कारण अब वे स्वतंत्र रूप में विचरण नहीं कर सकते। इन वन्य पशुओं के रहने के स्थान बहुत गंदे हैं। जिसके कारण उनको अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती है। परंतु उनके इलाज का समुचित प्रबंध नहीं हो पाता।

    वन्य पशुओं की खाले, दांत, सींग, मांस आदि की तस्करी की जाती है। इस कारण उनका शिकार किया जाता है। जो वन्य जीव मांसाहारी नही हैं उनके लिए पर्याप्त चरागाह उपलब्ध नहीं है।

    वन जीवन का संरक्षण एवं परिवर्धनः(Conservation and enhancement of forest life )-

    वन्य जीवन हमारे प्राकृतिक धरोहर है। आने वाली पीढ़ी के लिए इनका संरक्षण अनिवार्य है। मनुष्य की शिकारी प्रकृति के कारण आज हमारे जीव जन्तु लुप्त हो रहे हैं।

    राजस्थान और मालवा में पाई जाने वाली सोन चिडिया के भी विलुप्त हो जाने की आशंका है। सिंहों की संख्या के विलुप्त हो जाने की आशंका है। चूंकि मनुष्य विवेकशाली प्राणी है। अतः उसने आने वाले संकट को भाप लिया है और उसने वन्य प्राणियों के संरक्षण और परिवर्धन हेतु अनेक कदम उठाये हैं।

    1)      वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाना ।

    2)      जिन वन्य प्राणियों की जाति विलुप्त हो रही है। उन्हें विशेष संरक्षण देना। भारत में शेर की जातियों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर आंदोलन के अंतर्गत टाइगर रिजर्व स्थापित किये गये हैं।  राष्ट्रीय अभ्यारण्यों की स्थापना करना। 

    1)    वन्य प्राणियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाना ।

    2)      जिन वन्य प्राणियों की जाति विलुप्त हो रही है। उन्हें विशेष संरक्षण देना। भारत में शेर की जातियों के संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर आंदोलन के अंतर्गत टाइगर रिजर्व स्थापित किये गये हैं।
    3)      राष्ट्रीय अभ्यारण्यों की स्थापना करना। इस समय भारत में 366 वन्यप्राणी शरणस्थल है।
    4)      वन्य प्राणियों के संरक्षण के विषय में लोगों को शिक्षित किया जाये। जिस से उनके प्रति लोगों के व्यवहार में परिवर्तन हो ।
    5)      चिड़िया घरों की स्थापना कर के वन्य प्राणियों के नस्लों को सुधारा जाये।
    6)      मनोरंजन के लिए शिकार करने पर प्रतिबंध लगाया जाये ।


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