पंचायती राज्य |
पंचायती राज्य की संकल्पना (Concept of Panchayati Raj)
भारत में ग्राम पंचायतों का इतिहास बहुत पुराना हैं। प्राचीन काल में आपसी
झगड़ों का फैसला ग्राम पंचायतें ही करती थी स्वतंत्रता के बाद इसकी शुरूआत का
श्रेय नेहरू जी को हैं उनका कहना था
कि गांव के लोगों को काम करने दो, चाहे वे हजार
गलतियां करें, धीरे-धीरे
ग्रामीण सीखेगें व लोकतंत्र की जड़े मजबूत होगी। (2 अक्टूबर 1959 को नेहरू जी द्वारा राजस्थान के नागौर जिले में इसकी शुरूआत की गई ।
त्रिस्तरीय पंचायत राज्यों की स्थापना -
संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम 1993 में त्रिस्तरीय पंचायत राज्यों की स्थापना की गई, ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत विकास खंड स्तर पर जनपद पंचायत एवं जिला स्तर पर जिला परिषद । किन्तु जिन राज्यों की जनसंख्या 50 हजार से अधिक है उन्हें स्वयं निर्णय लेना होगा कि वे पंचायती राज्य संस्थाएं रखें अथवा न रखे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2000 में इस त्रिस्तरीय संगठन को स्वीकार किया गया।
त्रिस्तरीय संगठन -
1.ग्राम पंचायत ( Village Panchayat )-
राज्यपाल द्वारा जारी की गई अधिसूचना के आधार पर किसी ग्राम या ग्रामों के
समूहों के लिए एक ग्राम पंचायत |
2.जनपद पंचायत ( Janpad Panchayat )-
प्रत्येक विकास खंड के लिए जनपद
पंचायत ।
3.जिला परिषद( District
Council )-
प्रत्येक जिले के लिये एक जिला परिषद होगी ।
ग्राम सभा
(Gram sbha)
प्रत्येक पटवारी हलके के लिए एक ग्राम सभा तथा प्रत्येक ग्राम सभा के लिए एक
ग्राम पंचायत स्थापित की जाती है जहां किसी ग्राम सभा में अधिकतम तीन ग्राम हो जिसकी जनसंख्या 5000 हजार से अधिक हो वहां एक नगर पंचायत होगी । प्रत्येक ग्राम सभा में
वे व्यक्ति होगे जिनके नाम पंचायत राज अधिनियम के आधीन बनाई गई मतदाता सूची में
होगे हर ग्राम सभा में वर्ष में कम से कम एक बैठक अवश्य होगी जिसकी अध्यक्षता
सरपंच करेगा तथा उसकी अनुपस्थिति में उपसंरपच करेगा इस बैठक में वार्षिक आय व्यय
का लेखा एवं अगले वर्ष के लिए कार्यक्रम निर्धारित होंगें ।
ग्राम पंचायत
( Village Panchayat )
प्रत्येक ग्राम के लिए उस क्षेत्र की जनसंख्या को दृष्टि में रखकर 10 से 20 वार्डो में विभाजित किया जावेगा। वार्डो की संख्या जिलाधीश द्वारा निर्धारित किया जावेगा तथा प्रत्येक वार्ड एक सदस्यीय होगा । वार्ड की जनसंख्या यथा सम्भव समान होगी इस प्रकार इनकी संख्या 10 से 20 होगी । प्रत्येक व्यक्ति एक वार्ड के लिए ही चुनाव लड़ सकता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में दो प्रकार के सदस्य होग
· वार्डो से निर्वाचित पंच और निर्वाचित सरपंच ।
· अधिनियम की उपधारा 6 और 7 के आधीन पंच होगें
आरक्षण ( Reservation ) -
प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनुसूचित जाति व जनजातियों एवं महिलाओं के लिए
स्थान आरक्षित होंगे। कुल स्थानों में 50 % अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए तथा 25% स्थान पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित होगें इस 50% में महिलाओं के लिए 1/3 तथा 25% में भी महिलाओं
के लिए 1/3 स्थान आरक्षित होगें।
ग्राम पंचायतों के भिन्न-भिन्न वार्डो के लिए लाटरी निकाल चक्रानुक्रम से पद आवंटन
किया जावेगा ।
सरपंच व उपसरपंच ( Sarpanch and Deputy Sarpanch )-
प्रत्येक ग्राम मे एक सरपंच व एक उपसरपंच होगा जिनका चुनाव ग्राम पंचायत क्षेत्र के मतदाता करेगे, इन पदों के लिए वही व्यक्ति उम्मीदवार होगे जो
1. पंच बनने की योग्यता रखते हो ।
2. संसद या विधान सभा के सदस्यनहीं हैं।
3. किसी सहकारी समिति के सभापति या उपसभापति नहीं हो । ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए ग्राम पंचायतो के सरपंचों के उतनी संख्या में स्थान आरक्षित होगे जो अनुपात इन जातियों का खंड की कुल जनसंख्या में है अर्थात् 50% अनुसूचित एवं जनजाति हेतु तथा 25% स्थान आरक्षित किये जावेंगे तथा ये भी चक्रानु क्रम से आंबटित होगें । निर्वाचित पंचों के मध्य से उपसरपंच चुना जावेगा। यदि सरपंचआरक्षित जातियों का नहीं है तो उपसरपंच आरक्षित जाति का चुना जावेगा। ये पदाधिकारी निर्वाचित पंचों की कुल जनसंख्या के कम से कम 2/3 बहुमत से अविश्वास का प्रस्ताव पास होने पर ही पद से हटाये जा सकेगे अन्यथा इनका कार्यकाल 5 वर्ष होगा। गणपूर्ति बैठकों हेतु कुल सदस्यों का 1/2 होगी अन्यथा बैठक स्थिगित की जावेगी ।
ग्राम पंचायत के कार्य( Work of Gram Panchayat )-
1. सड़कें, कुऐं, तालाब, धर्मशाला,सफाई, रोशनी, अस्पताल एवं मनोरंजन की व्यवस्था करना ।
2. मेलों, बाजारों, प्रदर्शनियों एवं हाटबाजारों की व्यवस्था करना
।
3.जन्म मृत्यु विवाह का पंजीयन करना।
4. संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकों का प्रबंध करना । स्वच्छ जल व्यवस्था करना ।
5. जनगणना के कार्य में सहयोग करना, छोटा पुस्तकालय चलाना ।
6. अल्पबचत, ग्राम विकास हेतु
अन्य कार्यो की समझ ग्रामीणों में विकसित करना।
7. कार्य संचालन हेतु स्थानीय समितियां गठित करना ।
8. ग्राम की सीमा के भीतर कर लगाना। आदि कार्य इनके द्वारा
किये जाते हैं।
जनपद पंचायत
( Janpad Panchayat )
राज्यपाल अधिसूचना के द्वारा जिले को कुछ खण्डों में विभाजित करेंगे तथा ऐसे प्रत्येक खंड के लिए जनपद पंचायते होगी।
जनपद पंचायत की संरचना -
1. निर्वाचन क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्य
2. उपधारा 34 और 5 के आधीन सहयोजित सदस्य, यदि कोई हो
3. राज्य विधान सभा के सभी ऐसे सदस्यजो जनपद के सदस्य न हों ।
4 जनपद पंचायत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति त पिछड़े वर्ग के लिए महिला पद आरक्षित होगें। ये आरक्षित स्थान चक्रानुक्रम से लाटरी द्वारा आवंटित होगे ।
निर्वाचित सदस्यों की संख्या ( Number of elected members)-
राज्यपाल अधिसूचना के द्वारा इतने खंडों में विभाजित किया जावेगा जिससे
प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या यथा संभव 5000 हो तथा प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र एक सदस्यीय है। किन्तु
यदि विकास खंड की जनसंख्या 5000 से कम होगी तो
उसे कम से कम 10 विकास खंडो में
विभाजित किया जावेगा तथा इन क्षेत्रों की जनसंख्या यथा संभव समान होगी। प्रत्येक
निर्वाचन क्षेत्र एक सदस्यीय होगा।
पदाधिकारी( Officer) -
जनपद सदस्यों में से एक अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को निर्वाचित किया जावेंगे। एक जिले मे जनपद पंचायत के अध्यक्ष पद उतनी ही संख्या में आरक्षित होगें जिस अनुपात में ये जातियां, इस जिले में हैं। अध्यक्षों के कुल संख्या के 1/3 पद महिलाओ के लिए आरक्षित होगें तथा आरक्षित पद विहित रीति से आबंटित होगें।
जनपद के कार्य( District Functions )-
1. एकीकृत ग्रामीण विकास, कृषि सामाजिक वाणिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, स्वास्थ और स्वच्छता, प्रौढ़ शिक्षा, कुटीर उद्योग, महिला एवं बाल कल्याण निःशक्तजनों का कल्याण, परिवार नियोजन, ग्रामीण रोजगार आदि ।
2. आग, बाढ़, सूखा, भूकम्प, दुर्भिक्ष, महामारी, प्राकृतिक आपदाओं ने सहायता की व्यवस्था ।
3. सार्वजनिक बाजारों मेलो प्रदर्शनियों का प्रबंध तीर्थ यात्राओं व त्यौहारों की व्यवस्था ।
4. राज्य सरकारों या जिला पंचायतों के द्वारा सौंपे गये अन्य कार्य ।
जिला पंचायत (जिला परिषद्) गठन:
( Formation of Zila Panchayat (Zilla Parishad).)
प्रत्येक जिले में एक जिला पंचायत होगी जिसे जिलापंचायत या जिला परिषद् कहा जायेगा।
1. निर्वाचन क्षेत्र की निर्वाचित सदस्य
2. जिला सहकारी एवं जिला सहकारी विकास बैंक के अध्यक्ष
3. जिले के संसदीय क्षेत्र के लोकसभा सदस्य
4. पंचायत की मतदाता सूची के राज्यसभा सदस्य
5. जिले से निर्वाचित विधानसभा सदस्य लोकसभा व राज्यसभा के वे
सदस्य जिनका निर्वाचन क्षेत्र नगरीय है इसके सदस्य नहीं होते ।
पदाधिकारी( Officer )-
सक्षम अधिकारी के द्वारा निर्वाचिन होने के बाद सदस्यों में एक अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के निर्वाचन हेतु सम्मेलन बुलाया जाता है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए अध्यक्ष पद आरक्षित रखने का प्रावधान है। राज्य की कुल जनसंख्या में अ. जा. व अ.ज.जा का जो अनुपात है उसी अनुपात में उनके पद आरक्षित होगे । महिलाओं के लिए 1/3 पद तथा 25% पद पिछडा वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इसके लिए लाटरी डालकर चक्रानुक्रम से पद आरक्षित हैं। यदि अध्यक्ष अ. जा. या अ.ज.जा. का नहीं हैं तो उपाध्यक्ष इसी जाति का होगा। कार्य
(1) जिले के भीतर आने वाली ग्रामपंचायतों पर नियंत्रण रखना व सहयोग देना, मार्गदर्शन देना ।
(2) जनपद पंचायतों की योजनाओं को समन्वित करना ।
(3) विशेष प्रयोजन हेतु राज्यसरकार द्वारा दी गई राशि को जनपद पंचायतों तक पहुंचाना तथा उनकी मांगों को राज्य शासन को सौंपना ।
(4) विकास, कल्याण व खेलकूद
संबंधी विषयों में राज्य सरकार को परामर्श देना ।
(5) राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त शक्तियों व कत्तव्यों का समय-समय पर पालन सुनिश्चित करना । पंचायती राज्य व्यवस्था के सफल संचालन हेतु आवश्यक हैं कि पंचायतों को पूरे अधि कार दिये जायें तथा पंचायतों अपने कर्त्तव्यों का समुचित पालन करे तभी देश का सही विकास संभव हैं।
स्थानीय स्वशासन (छत्तीसगढ़
के संदर्भ में )
स्थानीय समस्याओं के संबंध में स्थानविशेष को सदस्यों के द्वारा जो कार्य किया जाता है उसे स्थानीय प्रशासन कहते हैं, मनु स्मृति एवं महाभारत जैसे ग्रन्थों में भी स्थानीय स्वशासन का उल्लेख मिलता हैं।
पंचायती राज्य की संकल्पना वर्तमान में नगरीय व शहरी क्षेत्रों में निम्न स्थानीय संस्थाएं हैं - 1. निगम या नगर महा पालिकाऐं 2. नगर पालिकाऐं 74 वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार जनसंख्या व वित्तीय साधनों को देखते हुए निम्न तीन प्रकार की नगरपालिकाएँ। होगी:-
1. ग्रामीण क्षेत्र में नगर पालिकाऐ
2. लघुत्तर में नगर पालिका परिषद
3. वृहत्तर नगर क्षेत्र के लिए या महानगरों
के लिए नगर निगम: नगर पालिकाओं (तीनों प्रकार की नगर पालिकाऐं) की संरचना :-
नगर पालिका वार्डो की संख्या संबंधित नगर की जनसंख्या आदि को दृष्टिगत रखते हुए
निश्चित की जावेगी। ऐसे वार्ड से एक पार्षद प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना
जावेगा। विधान मंडल के सह सदस्य नगरपालिका की कार्यवाही में भाग लेने के अधिकारी
होगें किंतु मत देने का इन्हें अधिकार नहीं होगा।
स्थानों का आरक्षण :-
नगर पालिका परिषद् में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित होंगे कितने पद आरक्षित हों इसका निर्धारण जनसंख्या के अनुपात को ध्यान में रख कर किया जावेगा। महिलाओं के लिए 30% स्थान आरक्षितहोगें अनुसूचित जाति व जनजातियों के आरक्षित पदों में 30% स्थान इस जाति की महिलाओं को आरक्षित होगें । सभी वर्गों के लिए आरक्षित स्थान नगरपालिका के विभिन्न क्षेत्रों में चक्रानुक्रम (By rotation) से आंबटित किए जायेंगे
नगर पालिका के अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, जनजातियों और महिलाओं के लिए ऐसी रीति से आरक्षित किए जाएंगे जैसा कि विधान मंडल, विधि बनाकर उपबन्ध करे।
अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए यह आरक्षण उस अवधि तक प्रभावी रहेगा जिस अवधि तक उन्हें आरक्षण प्राप्त है। वर्तमान समय में यह अवधि 2010 तक है। महिलाओं के लिए आरक्षण की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई हैं।
सदस्यों की योग्यताएं :
(1) 18 वर्ष की आयु से कम न हो।
(2) वह व्यक्ति राज्य विधान मण्डल निर्वाचित होने की अन्य योग्यताऐं रखता हो ।
(3) राज्य विधान मंडल द्वारा निर्धारित नगरपालिका का सदस्य बनने की योग्यतारखता हो।
कार्यकाल -
तीनों श्रेणी की नगरपरिषदों का कार्य काल 5 वर्ष रखा गया हैं। इस अवधि के पूर्व भी इन परिषदों का विघटन किया जा सकता हैं किन्तु विघटन के पूर्व नगरपालिका | का उचित सुनवाई का अवसर दिया जावेगा नगरपालिका परिषद् के गठन के लिए चुनाव
(क) पांच वर्ष पूर्ण और
(ख) विघटन की विधि से 6 माह की अवधि समाप्त होने के पूर्व कर लिया जावेगा।
सभी नगर पालिकाओं की शक्तियां, प्राधिकार एवंउत्तरदायित्व
(Powers, Authority and
Responsibilities of all Municipalities)
राज्य विधान मंडल के द्वारा नगरपालिकाओं को शक्तियां प्राधिकार एवं उत्तरदायित्व सौंपा जाता है जो उन्हें स्वायत्त प्रशासन करने के योग्य बनाता हैं । संविधान की 12वीं अनुसूची में 18 विषयों का उल्लेख है जिन पर नगर पालिकाओं को विधि या कानून बनाने के अधिकार दिये गये हैं इनमें प्रमुख विषय हैं:
नगररीय योजना, आर्थिक व सामाजिक विकास योजना, सडकें एवं पूल निर्माण, अग्निशमन सेवाऐं, पर्यावरण संरक्षण, लोकस्वास्थ स्वच्छता, सफाई व कूड़ा करकट प्रबंध गन्दी बस्ती सुध् र, शवदाह, शव गाड़ना, जन्म, मृत्यु रजिस्ट्रेशन, पार्क उद्यान खेल मैदान का निर्माण आदि। इसके अतिरिक्त नगरीय सुख सुविधा व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करना भी इनके कार्यों के अन्तर्गत आता है। इन विषयों पर आवश्यकतानुसार ये पालिकाऐं कार्य करती हैं।
कर लगाने की शक्ति और नगरपालिकाओं की विधियां
(Power to
levy taxes and statutes of municipalities)
राज्य विधानमंडल विधि के द्वारा नगरपालिकाओं के कर शुल्क, पथकर एवं फीसें निर्धारित करने, संग्रहित करने और विनियोजित करने के लिए प्राधिकृत कर सकता है राज्य सरकार राज्य की संचित निधि से नगरपालिकाओं को सहायता भी देती हैं।
वित्त आयोग(Finance Commission) -
राज्यस्तर पर गठित वित्त आयोग नगर पालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन
करेगा। वित्त आयोग राज्य व नगरपालिकाओं के बीच साधनों के वितरण तथा राज्य की संचित
निधि से नगरपालिकाओं की सहायता अनुदान की राशि घटाने या बढ़ाने के संबंध में सिफारिश करेगा।
वित्त आयोग सुझाव देगा कि किस प्रकार नगरपालिकाऐं अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार
कर सकते हैं।
नगरपालिकाओं के निर्वाचन( Municipal elections)
इन संस्थाओं के लिए निर्वाचक नामावली तैयार करने निर्वाचन का संचालन करने निर्देशन व नियंत्रण का कार्य राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा इस कार्य को छत्तीसगढ़ में एक निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की गई ।
नगर निगम का सर्वोच्च पदाधिकारी महापौर या मेयर कहलाता है। छत्तीसगढ़ में -5 नगर निगम हैं। महापौर की सहायता के लिए एक
उपमहापौर भी होता है इनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता के आधार
पर होती हैं।
मुख्य नगर अधिकारी (Chief city officer)
प्रत्येक नगर निगम में एक मुख्य नगर अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा
की जाती है जो निगम को प्रशासन का आवश्यक मार्गदर्शन देता है।
समितियां (Committees) -
कुशल कार्य संचालन के लिए निगम की अनेक समितियां होती हैं। जैसे शिक्षा
स्वास्थ, सफाई समिति आदि ।
प्रत्येक समिति का एक सदस्य होता हैं।
कार्य निगम दो प्रकार के कार्य करते हैं –
1.अनिवार्य (2)
2. एच्छिक अनिवार्य कार्य में सड़क निर्माण, जल विद्युत आपूर्ति या सफाई एवं खाद्य पदार्थों
की मिलावट को रोकना, शिक्षा का प्रबंध
एवं जन्ममृत्यु पंजीकरण आदि आते हैं।पंचायती राज्य की संकल्पना
ऐच्छिक कार्य :- एच्छिक कार्य निगम के साधनों, क्षमताओं एवं परिस्थिति पर निर्भर करता हैं।
जैसे बाग बनाना, स्टेडियम बनाना।
वृक्षारोपण, विकलांग लोगो की
सहायता, भवनों व भूभि सर्वेक्षण,
मेले, प्रदर्शनियों की व्यवस्था नगर यातायात आदि ।
आय :-
निगम के आय का प्रमुख साधन कर लगाना तथा उसकी वसूली है। केन्द्रीय व राज्य सरकारों से भी विशेष कार्यों के लिए उसे अनुदान मिलता हैं। आय प्राप्ति हेतु निगम द्वारा कुछ लाभकारी उद्यम या व्यापार भी चलाये जा सकते हैं। यदि राज्य सरकार समझे कि निगम अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर रहा है, तो वह निगम को विघटित कर सकती है तथा विघटन के 6 माह के बाद नये चुनाव करवाना आवश्यक हैं।
भारत में नगर पालिका
भारत में नगर पालिका का जन्म 1887 ई. में हुआ इनकी सदस्य संख्या भी नगर की जनसंख्या पर निर्भर होती है। इसका कार्यकाल भी पांच वर्ष होता हैं। नगरपालिका का प्रमुख नगरपालिका हँ । अध्यक्ष निर्वाचित पार्षदों द्वारा चुना अध्यक्ष होता जाता है तथा पार्षद ही उसे अविश्वास का प्रस्ताव लगाकर पदच्युत कर सकते हैं। अध् यक्ष की अनुपस्थिति में उसका कार्यभार उपाध्यक्ष सम्हालता हैं। अध्यक्ष वित्त संबंधी एवं प्रशासकीय दोनों कार्य करता हैं। परिषद के वित्तीय व कार्यकारी प्रशासन पर वह कडी सर्तक निगाह रखता है। राज्य सरकार व परिषद् के सभी का व्यवहार उसके नाम रे होते हैं। उपाध्यक्ष का चुनाव भी पार्षदों में से किया जाता हैं तथा वह अध्यक्ष की अनुमति में उसका पद सम्हालता हैं नगरपालिका में एक मुख्य नगरपालिका अधिकारी भी होता हैं, इसकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है पर उसके वेतन का भुगतान नगरपालिका निधि से होता है। वह नगरपालिका की बैठकों में भाग लेता है पर मतदान नहीं कर सकता । नगरपालिका का बजट एवं प्रशासनिक रिपोर्ट उसी के द्वारा प्रस्तुत की जाती हैं ।
कार्य :
नगरपालिका सड़कें धर्म शाला का निर्माण, पेड़ लगाना, दमकल, अकाल आदि स्थिति में महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। बिजली पानी की व्यवस्था, स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था • उद्योग धन्धों की नियुक्ति व मनोरंजन के • साधनों की व्यवस्था नगरपालिका करती है।
आय के साधन :-
नगरपालिका विभिन्न प्रकार के कर लगाती हैं । नगरपालिका की निजी सम्पत्ति का किराया व सरकार से प्राप्त अनुदान इसके आय के साधन होते हैं।
यदि नगर पालिकाऐं ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती तो शासन द्वारा उसे भंग कर प्रशासक नियुक्ति का कार्य किया जाता है। राज्य सरकार अन्य तरीकों से भी नगरपालिकाओं पर नियंत्रण रखती हैं इनके संचालन, मार्गदर्शन व यथोचित नियंत्रण के लिए संचनालय की स्थापना की गई जो अपने पदाधिकारियों के माध्यम से जनहित में इस पर कुछ प्रभावशाली नियंत्रण लगाते हैं। स्वशासन के हित में यह आवश्यक है कि नगरपालिकाओं पर शासन द्वारा कम से कम नियंत्रण लगाये जावें |
GOES
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