GOSE - Biology
Phloem | sieve tubules | captive cells | phloem parenchyma | bast fibers |
फ्लोएम (Phloem)
संवहनी ऊतकों में पाया जाने वाला यह दूसरा जटिल ऊतक है, इसे बास्ट भी कहा जाता है। पत्तियों द्वारा संश्लेषित फोटोसिंथेट (Synthesized photosynthate) या कार्बनिक पदार्थों का एक से दूसरे अंगों को जो स्थानान्तरण इसी के माध्यम से होता है। प्राथमिक पोषवाह का निर्माण प्राक्एधा (Procambium) से और द्वितीयक पोषवाह का निर्माण संवहन एधा (Vascular cambium) से होता है।
यह निम्न कोशिकाओं का बना होता है -
v चालनी नलिका (ieve tube),
v सखि कोशिकाएँ (Companion cells)
v पोषवाह मृदू फ्लोएम पैरेनकायमा (Phloem parenchyma)
v बास्ट रेशे (Bast fibres)
A.चालनी नलिका (Sievetube) -
ये लम्बी,
पतली एवं नालाकार कोशिकाएँ होती हैं, जो एक-दूसरे के ऊपर लम्बवत् दिशा में स्थित
होती हैं। इनकी भित्तियाँ पतली और की बनी होती हैं। कोशिकाओं की अनुप्रस्थ दीवार
पर छलनी के समान छिद्र पाये जाते हैं। ये छिद्रित अनुप्रस्थ भित्तियाँ चालनी पट्ट (Sieve plate) कहलाती हैं। इन छिद्रों से होकर समीपस्थ कोशिकाओं से इनका
कोशिकारसीय तन्तुओं द्वारा संबंध रहता है। जब चालनी पट्ट में एक ही चालनी क्षेत्र (Sieve area) हो तो उसे सरल (Simple)और यदि अनेक चालनी क्षेत्र हों तो उसे संयुक्त चालनी पट्ट (Compound sieve plate) कहते हैं।
कभी-कभी चालनी क्षेत्र पाश्र्वय लम्बवत् (Lateral longitudinal) भित्ति पर भी होते हैं। जैसे- फर्न में।
शीतकाल में चालनी पट्ट कैलोस (Callose) नामक कार्बोहाइड्रेट द्वारा एक पतले स्तर जिसे कैलस (Callus) कहते हैं, के द्वारा ढँक दिये जाते हैं, जिनसे चालनी क्षेत्र बन्द हो जाता है और खाद्य का आवागमन रुक आता है। बसन्त ऋतु (Spring season) में कैलस घुल जाता है और चालनी नलिका पुनः क्रियाशील हो जाती है। प्रौड चालनी नलिका का केन्द्रक नष्ट हो जाता है।
B.सखि कोशिकाएँ (Companion cells) -
ये लम्बी एककोशिकीय जीवित कोशिकाएँ होती हैं, जो हमेशा चालनी नलिका के बाजू में स्थित होती हैं, प्रत्येक चालनी नलिका के पार्श्व में प्रायः एक सखि कोशिका होती है। चूंकि ये केन्द्रक युक्त कोशिकाएँ होती हैं, इसलिये ये चालनी नलिका के परिवहन विषयक कार्य (Conductive function) पर नियन्त्रण रखती हैं। (चालनी नलिका में केन्द्रक नहीं होता) सखि कोशिकाएँ पुष्पीय पादपों की विशेषताएँ हैं। पौधों के अन्य समूह में ये नहीं पाई जाती हैं। सखि कोशिका एवं चालनी नलिका एक ही कोशिका से उत्पादित होती हैं।
C. फ्लोएम पैरेनकायमा (Phloem parenchyma):-
यह मृदूतकी कोशिकाओं की बनी रचना है। इनका कार्य और रचना साधारण मृदूतक के समान होता है। फ्लोएम में पाये जाने के कारण, इन्हें फ्लोएम मृदूतक कहते हैं। एकबीजपत्री पौधों में ये नहीं पाई जातीं। इनका प्रमुख कार्य भण्डारण है, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर बालनी नाल से यह खाद्य पदार्थों को मज्जा किरणों (Medullary rays) को पहुँचाती है।
D. बास्ट रेशे (Bast or Phloem fibres ): -
फ्लोएम के साथ सम्बद्ध दृढ़ोतक कोशिकाएँ बास्ट रेशे कहलाती हैं। ये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के पोषवाह में पाई जाती हैं। ऐसा समझा जाता है कि प्राथमिक पोषवाह की अपेक्षा द्वितीयक पोषवाह में ये अधिकता से मिलते हैं। इनकी कोशिकाएँ लम्बी एवं लिग्निन युक्त होती हैं, जिनमें साधारण गर्त पाये जाते हैं।
दारु के समान ही पोषवाह भी प्राकृोषवाह (Protophloem) और अनुपोषवाह (Mutaphloem) में विभेदित होता है। प्राक्पोषवाह में स्थित चालनौ तत्व संकीर्ण और छोटे होते हैं तथा इनके साथ सहचर या सखी कोशिकाएँ नहीं पायी जातीं। शुरू की वृद्धि के समय प्रापोषवाह दब जाता है। अनुपोषवाह प्राक्पोषवाह की तुलना में लम्बी तथा विस्तृत कोशिकाओं से बना होता है। अनुपोषवाह अधिक समय तक अपनी संरचना को बनाये रखता है तथा आवृत्तबीजियों में इसमें मुख्यतः चालनी नलियाँ पायी जाती हैं।
विशिष्ट स्थायी
ऊतक(Special Permanent Tissue) -
इस प्रकार के ऊतक विशेष प्रकार के कार्यों को करते हैं-गोंद, रेजिन, तेल, श्लेष्म (Mucilage), आक्षीर (Latex) या दूध आदि को स्रावित करने वाले ऊतक इसी श्रेणी में आते हैं। इन ऊतकों की उत्पत्ति न ही एक जैसी होती है, न ही इनमें आकृतिक निरन्तरता (Morphological continuity) पायी जाती है। या तो ये ऊतक पौधों के अन्दर कोशिकाओं के छोटे-छोटे समूहों में पाये जाते हैं या इनकी कोशिकाएँ सुसंगठित होकर कुछ विशिष्ट रचनाएँ बनाती हैं स्रावण का कार्य करने के कारण इन ऊतकों को स्रावी ऊतक (Secretory tissue) भी कहते हैं।
पौधों में मुख्य दो
प्रकार के स्रावी ऊतक मिलते हैं
(A) ग्रन्थिल ऊतक (Glandular tissue)
(B) आक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue)
(A) ग्रन्थिल ऊतक (Glandular tissue) :–
ग्रन्थियाँ (Glands) सुसंगठित स्रावी रचनाएँ हैं, जो भिन्न प्रकार की कोशिकाओं की बनी रहती हैं।
इन कोशिकाओं के जीवद्रव्य द्वारा स्रावी पदार्थ उत्पन्न होकर विमुक्त होता है।
ग्रन्थियों से लावी पदार्थ या तो बनकर तुरन्त निकल जाता है या कहीं अन्य भण्डारित होता है या वह पदार्थ अन्दर ही किसी कूप में संचित हो जाता है। ग्रन्थियाँ बाह्य (External) या आन्तरिक (Internal) प्रकार की हो सकती हैं। अन्दरूनी प्रथियों की उत्पत्ति कोशिकाओं के हटने (विखण्डीजनन - Schizogenous) या नष्ट होने (लयजात = Lysigenous) से होती है।
सामान्यतः पौधों में निम्न प्रकार की ग्रन्थियाँ (Glands) पायी जाती हैं
(A.) बाह्य ग्रन्थियाँ (External glands)-
(i)ग्रन्थिल रोम (Glandular hairs) -
(ii)दंश-रोम (Stinging hair ) -
(iii)मकरन्द ग्रन्थियाँ (Nectaries) -
(B.) आन्तरिक ग्रन्थियाँ glands):-
ये ग्रन्थियाँ शरीर के आन्तरिक हिस्से में होती हैं। ये निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं
(i) परिपाची ग्रन्थियाँ (Digestive glands) -
पौधों में परिपाचन कोशिकाओं के भीतर होता है। इनमें जीवित कोशिका कुछ प्रकिण्वों का लावण करती है। कीटभक्षी पौधों (Insectivorous plants) में प्रोटोन का परिपाचन करने वाला प्रोटीनलयो प्रकिण्व (Proteolytic enzyme) उत्पन्न होता है, जो नाइट्रोजनी पदार्थों का परिपाचन कर उन्हें पौधों को उपलब्ध कराता है। यहाँ पदार्थ का परिपाचन कोशिका के बाहर होता है ड्रॉसेरा (Drosera) में यह ग्रन्थि स्पर्शक (Tentacles) पर और कलश पादप (Nepenthes) में कलश की अन्दरूनी सतह पर स्थित होती है।
(ii) रेजिन नलिकाएँ
एवं तेल ग्रन्थियाँ (Resin ducts and oil glands):—
रेजिन जिम्नोस्पमों में एवं आवृतबीजयों में उत्पादित होते हैं। ये विशेष प्रकार की कोशकाओं द्वारा उत्सर्जित एवं प्रवाहित होते हैं। इन अंगों को नलिकाएँ कहते हैं। रेजिन नलिकाएँ विखण्डन द्वारा (Schizogeneously) बनती है और ऐली नली के समान होती हैं। रेजिन नाल छोटी पैरेनकायमी कोशिकाओं की एक तह से घिरी रहती है, जिसे इलियल स्तर (Epithelial layer) कहते हैं। उदाहरण पाइनस रेजिन इन्हीं के द्वारा उत्सर्जित होकर गुहा मैं संचित होता है। नीबू, सन्तरा, नारंगी, चकोतरा आदि के छिलकों में पाई जाने वाली तेल ग्रन्थियाँ, लयजाता गुहाओं (Lysigenous cavities) के रूप में उत्पन्न होती हैं। इन्हीं गुहाओं में सुगन्धित तेल का संचय होता है।
(iii) जलरन्थ (Hydathodes or Water stoma) -
ये कुछ पुष्पीय पादपों में पाई जाने वाली विशेष बनाएँ हैं, जिनसे पानी का बूँदों के रूप में निःस्राव होता है। इसलिये इन्हें जलमुख (Water stoma) या उतरन्ध्र (Water pore) भी कहा जाता है। इन अंगों से जल के तरल रूप में निःस्राव को बिन्दुस्स्राव (Gultation) कहते हैं। पानी की समुचित उपलब्धता, वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) की कमी और ठण्डी के बाद पत्तियों के किनारों पर पानी की बूंद उसी स्थान पर दिखती हैं, जहाँ जलरन्ध्र होगा। जलरन्ध्र के पास वाहिनिकाओं (Tracheids) समूह रहता है।
वाहिनिकाओं के ऊपर बिरल कोशिकाओं के समूह को एपिथेम (Epithem) कहते हैं। कोशिका के ऊपर एक छिद्र होता है। ये संरचनाएँ शिराओं के अग्र भाग पर रहती हैं। एपीथेम के बाहर एक गुहिका (Cavity) और उसके बाद रन्ध्र पाया जाता है। इन रन्ध्रों से जल और उसके घुले पदार्थों का निःस्राव होता है।
(B) आक्षीरी ऊतक (Laticiferous tissue) :-
अनेक पुष्पीय पादपों को चोट लगने से उनमें से एक प्रकार का दूधिया पदार्थ निकलता है इसे आधी (Latex) और जिन ऊतकों द्वारा इसका निर्माण होता है, उन्हें आक्षीरी ऊतक कहा जाता है। आक्षीर प्रोटीन, शर्करा, प्रकिण्य, स्वर, हाइड्रोकार्बन का बना होता है।
आक्षीरी तक दो प्रकार
की रचनाओं से बने होते हैं -
i. आक्षीरी कोशिकाएँ
ii. आक्षीरी नलिकाएँ
i) आक्षीरी कोशिकाएँ (Latex cells):—
ये एकल कोशिकाएँ होती हैं, जो लम्बी और बहुकेन्द्रकी (Elongated and multinucleated) होती हैं। इनकी वृद्धि अग्र भाग के सिरे पर होती है, जिनसे शाखाएँ निकलती हैं, परन्तु इनमें विभाजन पट्ट (Septa) नहीं पाये जाते, मदार (Calotropis ) और यूफॉर्बिया (Euphorbia) में ये मिलती है।
(ii) आक्षीरी नलिकाएँ (Latex ducts)-
ये वाहिकाएँ या नलिकाएँ विभज्योतकी ऊतकों से बनी हुई कोशिकाओं की श्रृंखला से उनके बीच उपस्थित भित्तियों के घुल जाने के कारण बनती हैं। ये कोशिकाएँ दीर्घ होती हैं और परिपक्व भागों में जालिका रूपी संरचना बना देती हैं आक्षीरी नलिकाएँ सोन्कस (Sonchus), पोस्त (Poppy) इत्यादि में पायी जाती हैं।
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