GOSE - SOCIOLOGY
Polyandry | Features of Marriage | Objective | Type | Reason | Dowry system
विवाह (Marriage)
बहुविवाह (Polyandry) -
शाब्दिक रूप से विवाह का अर्थ कतिपय दायित्वों के संगठन से है। विवाह एक शपथ या संस्कार है। जिसका विवाह युग्म के द्वारा निर्वाह किया जाता है। दूसरे शब्द में विवाह स्त्री पुरूषों का एक सामाजिक ठेका है। जिसमें स्त्री के ऊपर बालक की परवरिश तथा पुरूष अपने ऊपर स्त्री व बच्चे की भूख प्यास से सुरक्षा का उत्तरदायित्व लेता है।
विवाह की विशेषताएँ ( Features of marriage) -
- यह सार्वभौम एवं मूलभूत संस्था है।
- दो विषम लिंगी व्यक्तियों में संबंध बनाती है।
- यह सामाजिक स्वीकृति है |
- स्त्री पुरुषों में स्थायी संबंध बनाना व्यक्तित्व विकास के आवश्यकताओं की पूर्ति |
- सामाजिक तथा आर्थिक सहानुभूति पर आधारित होती है।
विवाह के उद्देश्य ( Purpose of marriage) -
· विवाह मानव जाति के अस्तित्व को निर्भर रखता है।
· विवाह स्त्री पुरूषों की सेक्सुएल संतुष्टि देते हैं।
· विवाह से परिवार में वृद्धि होती है।
· वंश परम्परा, बच्चों का लालनपालन, परिवार का निर्माण तथा समाज निर्माण इसका मुख्य उद्देश्य होता है।
विवाह के प्रकार
(Classification) -
( There are mainly two types of marriages )-
(1) एक विवाह (A marriage)
(2) बहुविवाह(Polygamy)
(1) एक विवाह (A marriage) -
एक विवाह का अर्थ एक पुरूष, एक स्त्री से विवाह संबंध है।
(2) बहुविवाह :(Polygamy) )-
बहुविवाह के तीन भेद हैं।
o अनेक पुरूषों की एक स्त्री से विवाह को बहुभर्तता कहते हैं।
o एक पुरुष के अनेक स्त्रियों से विवाह का बहुभार्यता कहते हैं।
o अनेक पुरूषों अनेक स्त्रियों से विवाह को यूथ विवाह कहते है ।
बहुविवाह भारत के बहुत भागों में प्रचलित है(Polygamy is prevalent in many parts of India ) -
बहुविवाह का एक रूप एक स्त्री के अनेक पति होना है। इसके दो रूप हैं पहले रूप
में कई भाई मिलकर एक स्त्री से विवाह कर लेते है। दूसरे रूप में एक स्त्री से
विवाह करने वाले कई लोग आपस में भाई नहीं होते हैं। प्रथम प्रकार में स्त्री व पति
एक ही स्थान पर रहते हैं। दूसरे प्रकार में स्त्री भिन्न-भिन्न समयों में
भिन्न-भिन्न पतियों के घर जाकर रहती है।
जब स्त्री एक पति के साथ रह रही हो तब तक अन्य पतियों का उस पर अधिकार नहीं होता। नायर लोगों में यह प्रथा प्रचलित है। बहुविवाह का पहला प्रकार नीलगिरी के टोडा जिले के जौनसार जिले में प्रचलित है। कश्मीर से असम तक जो इन्डो आर्यन लोग हैं उनमें भी यही बहुविवाह के प्रथा प्रचलित है। लद्दाखीभोटा में भी यही प्रथा प्रचलित है।
नीलगिरी टोडा के जौनसार बहुविवाह के प्रकार प्रचलित का कारण आर्थिक व्यवस्था
यदि प्रत्येक भाई अलग-अलग विवाह तो भूमि के इतने छोटे-छोटे टुकड़े में आयेंगे की
खेती करना जायेगा इसमें बड़ा भाई विवाह करता है। वह स्त्री प्रथागत भाईयों की बन
जाती है। यह प्रथा आर्थिक है। सामाजिक है। कुछ विचारकों मत है कि जहाँ स्त्रियों
की संख्या कम बहु विवाह प्रथा स्वयं लागू हो जाती है। बहुविवाह तीसरा प्रकार-
बहुभार्यता है। एक-पुरूष की अनेक स्त्रियाँ होना समाजों पाया जाता है।
प्रारंभ में व घर के कार्य में विभाजन उद्देश्य प्रथम पत्नी की अनुमति दूसरा विवाह जाता था। बाद में गाँव का मुखिया अपनी के लिए पत्नी के रूप में (भार्या संस्कृत है पत्नी हेतु अनेक स्त्रियाँ लगा। बाद में उनके देखी सम्पन्न के लोग भी, श्रम विभाजन, कृषि में सहयोग, तथा मजदूरी देना पड़े। उद्देश्य बहुविवाह करने लगे। दूसरे में एक व्यक्ति सम्पत्ति बढ़ने उसकी पत्नियाँ बढ़ने लगी। यह नागा, गोंड, बैगा जाति प्रमुख रूप पाई जाती
बहुविवाह कारण (Reasons ) -
1. पुरूषों अपेक्षा स्त्रियों की संख्या कम होगा।
2. सम्पत्ति व भूमि बंटवारा रोकने उद्देश्य से ।
3. विभिन्न भोग विकास कामनाओं पूर्ण करने लिए।
4. समाज में स्त्रियों की संख्या कम होने पर।
5. अनेक स्त्रियाँ कार्य करके घर में सम्पत्ति बनाती हैं तथा खेती व बैल खरीदने में सहायता होती हैं।
6. इस प्रणाली के विकास का कारण समाज में अनेक पत्नी होना प्रतिष्ठा का कारण माना जाता था।
7. पुत्र कामना भी कभी-कभी बहुविवाह का कारण बनती है।
8. प्राचीनकाल के यूथ प्रथा भी इसका कारण है। क्योंकि एक परिवार के सब भाईयों को दूसरे परिवार की सब बहनों से विवाह करना पड़ता था। संकर विवाह भी बहुविवाह के कारण थे क्योंकि आने वाली पीढी प्रतिभावान बने। एक ही खून में विवाह करने से गुणसूत्रों में विविधता तथा प्रतिभा नहीं आने पाती है। वर्तमान समय में आर्थिक एवं सामाजिक कारणों से बहु विवाह पर रोक लगाना आवश्यक है बहु विवाह कानूनी अपराध है।
बहिर्विवाह (Exogamy) -
यद्यपि बहुविवाह का कारण संकर विवाह या बर्हिविवाह भी है किन्तु संसार के कई
समाजों में यह निषेध है। बहिर्विवाह से तात्पर्य समूह से बाहर विवाह करने से है.
अर्थात एक व्यक्ति को एक निश्चित सामाजिक समूह में ही विवाह करना पड़ते हैं। यह
प्रथा आज भी प्रचलित हैं जैसे ब्राम्हण समूह को ब्राम्हण समाज में ही विवाह करने
पड़ते हैं। इसका प्रमुख कारण कि एक रूधिर में विवाह करने से नस्ल में विकार
उत्पन्न
नहीं हो पाते हैं। अतः बर्हिविवाह आवश्यक है। बर्हिविवाह से सामाजिक संबंधों
में विस्तार होता है तथा समुदाय की शक्ति बढ़ती है। मनुष्य विवाह अपने वंश के
विकास के लिए सामाजिक जागरूकता करता है। प्राचीनकाल में एक
कबीले लोग दूसरे कबीलों से लड़कियों लूट में लाते थे तथा उन्हें पत्नी बना लेते
थे।
जिससे बर्हिविवाह प्रथा का प्रारंभ
हुआ। भाई-बहन, मां-बहन, मां-बेटों में नैतिकता बनाये रखने के लिए
बर्हिविाह प्रथा आज भी हमारे समाज में प्रचलित है। वर्तमान समाज में अन्तर्जातीय
विवाहरों को सरकार प्रोत्साहन दे रही है। क्योंकि इससे रक्त की शुद्धता सांस्कृतिक
एकता, संघर्ष में कमी तथा
परंपराओं सदैव पुष्ट होती है।
दहेज निषेध (Dowery Prohibition) -
दहेज प्रथा भारतीय समाज के लिए अभिशाप है। दहेज कन्या के अभिभावक संपत्ति या
उपहार के रूप में कन्या और वर को देते हैं । दहेज का तात्पर्य उस संपत्ति से है या
उन उपहारों से है जो कन्याओं को उसके विवाह के समय दिया जाता है जब वह अपने पिता
के घर से विदा होकर पति गृह के लिए प्रस्थान करती हैं। दहेज एक गंभीर सामाजिक
बुराई है। जिसकी परिणति आत्महत्या और वधूदाह में होती हैं वास्तव में देखा जाये तो
अब भारत में दहेज के | कारण होने वाली
हत्याएँ और आत्महत्याएं गहरी चिंता का विषय बन गई है। पहले कन्या के अभिभावक
स्वेच्छा से खुशी-खुशी | अपनी सामर्थ्य के
अनुसार दहेज देते थे। किन्तु अब इसका स्वरूप बदल गया है। अब यह दहेज न होकर
"वर-मूल्य" बन गया है। वर पक्ष सौदेबाजारी करता है। लड़के की शिक्षा,
नौकरी और सामाजिक स्थिति के अनुसार दहेज लिया
जाता है।
दहेज प्रथा के निम्नलिखित दुष्परिणाम(Following are the consequences of dowry system) -
1) जो लड़कियाँ अधिक दहेज नहीं ला पाती या समय-समय परं ससुराल वालों की मांगे पूरी नहीं कर पाती, उन्हें अनेक शारीरिक व मानसिक यातनाएँ भुगतनी पड़ती है। कभी-कभी वे विवश होकर आत्महत्या भी कर लेती है। अनेक बार ससुराल वाले उनकी हत्या भी कर देते हैं।
2) अनेक बार दहेज को लेकर विवाह मंडप में विवाह शुरू हो जाता है और कभी-कभी यहाँ तक नौबत आती है कि बिना विवाह किये ही बारात लौट जाती है।
3) दहेज कम लाने के कारण अनेक बहुओं को ससुराल में ताने व अपमानजनक बातें सुननी पड़ती है। इससे परिवार में सदैव तनाव रहता है।
4) जिन लडकियों के माता-पिता दहेज नहीं जुटा पाते तो कभी-कभी ऐसा भी होता है। कि लड़कियाँ अविवाहित रह जाती हैं।
5) दहेज प्रथा के कारण वर ढूंढना बहुत मुश्किल हो जाता है। लड़की के अभिभावक को वर खोजने में समय व धन का अपव्यय करना पड़ता है।
6) लड़की का जन्म अभिशाप माने जाने लगा है। राजस्थान जैसे प्रदेशों में जन्म होते ही लड़कियों को मार डाला जाता है। लड़की के जन्म से ही माता-पिता चिंतित होने लगते हैं।
7) जो लोग दहेज देने में असमर्थ होते हैं वे विवश होकर पुत्री का अनमेल विवाह भी करते हैं। दहेज प्रथा की बुराई हटाने सरकार ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 बनाया है । इस अधिनियम को दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 कहा जाता है। इस अधिनियम के तहत ऐसे व्यक्ति को दंडित करना है जो कि दहेज की मांग करता है या दहेज लेता है। इस अधिनियम के तहत छह मास से दो वर्ष का कारावास के अलावा 10,000 रूपए तक जुर्माने का प्रावधान है।
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