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Price hike |Due to price increase


मूल्य वृद्धि(Price Hike) 

किसी भी अर्थव्यवस्था की विकास प्रक्रिया में कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक होता है। विकास योजनाओं को लागू करने पर वस्तुओं तथा साधनों की माँग तथा पूर्ति के बीच सामंजस्य होना अनिवार्य हैं। निरन्तर बढती हुई जनसंख्या, सुरक्षा व्यय, प्रशासकीय अविकासीय दबाव के कारण मांग में वृद्धि होती हैं।

परन्तु मांग के अनुरूप पूर्ति में परिवर्तन नहीं हो पाता, क्योंकि अर्द्ध विकसित देशों में ऐसी परियोजनाओं पर विनियोजन किये जाते हैं जो परिपक्व होने में बहुत समय लेते हैं। पिछड़ी तकनीकी, निम्न कुशलताऐं, अपूर्ण बाजार तथा अन्य अड़चने उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति को नियंत्रित करती हैं, मांग तथा पूर्ति के बीच का यह अंतर कीमतों में वृद्धि कहलाता हैं।

भारत विकासशील देश हैं। यहाँ भी पिछले 50 वर्षो से मूल्य वृद्धि ने एक जटिल रूप धारण कर लिया हैं। प्रथम पंचवर्षीय योजना को छोड़ कर शेष अवधि में यहाँ प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत की दर से कीमतों में वृद्धि हुई हैं। तथा अभी भी यह क्रम जारी हैं।

    मूल्य वृद्धि के कारण(Due to price increase) -

    The main reasons for price rise in India are as follows)-

    (1) कालाबाजा ( Black market ) -

    वस्तुओं की कृत्रिम कमी करके उसे ऊँचे मूल्य पर बेचना काला बाजार कहलाता हैं। व्यापारियों द्वारा अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए पहले वस्तुओं की कृत्रिम कमी कर दी जाती हैं । बाद में मांग अधिक होने पर मूल्य वृद्धि कर वस्तुओं का विक्रय किया जाता हैं।

    (2) जमाखोरी ( Hoarding ) -  

    इसमें अनिवार्य वस्तुओं का एक जगह भंडारण कर लिया जाता है। जब बाजार में वस्तु की मांग बढ़ जाती हैं। तो इससे भी मूल्यवृद्धि की समस्या उत्पन्न होती

    (3) तस्करी ( Smuggling ) -

    तस्करी का अर्थ बिना आयात शुल्क चुकाये, चोरी-छिपे विदेशी को देश में लाकर बेचने से हैं। यहाँ भी वस्तुओं को ऊँचे दाम पर बेचा जाता हैं। जिससे मूल्य वृद्धि समस्या होत

    (4) भ्रष्टाचार :( Corruption )

     अनुचित एवं अवैधानिक रूप से आर्थिक लाभ प्राप्त करना भ्रष्टाचार कहलाता है। इसके अंतर्गत व्यक्तिक हितों के लिए सामूहिक हितों की अवहेलना की जाती है। भौतिकवादी समाज में धन ही श्रेष्ठता का मापदण्ड हैं। फलस्वरूप प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक धन अर्जित कर अपने को सम्पन्न बनाने का प्रयास करता है । साधन बढ़ने से हमारी आवश्यकताऐं बढ़ जाती हैं। उसके अनुसार पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता । अतः मूल्य वृद्धि की समस्या उत्पन्न होती हैं। रने के लिए शासन द्वारा उपाय

    मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए शासन द्वारा उपाय(Measures by the Government to Control Price Escalation)-

    मूल्य वृद्धि के कारण उपभोक्ताओं को बढ़े हुए मूल्य में वस्तुओं को खरीदना पड़ता हैं। जिससे उन्हें हानि होती हैं। तीव्र गति से मूल्यों में वृद्धि होने के कारण जनता की बचत करने की क्षमता घट जाती हैं। मूल्य वृद्धि से परेशान लोग आय में वृद्धि न कर पाने के कारण चोरी, लूटपाट, डकैती आदि कार्य करने लगते हैं, जिससे समाज का नैतिक पतन होने लगता हैं। तथा समाज में अशांति एवं राजनैतिक अस्थिरता का जन्म होता है जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया में रूकावट आती हैं। इस प्रकार मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए शासन द्वारा अनेक उपाय किये जा रहे हैं जो निम्न लिखित हैं :

    1.राशनिंग ( Rationing ) -

    सरकार अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुओं को आबंटित करने के लिए राशनिंग  होती की प्रणाली अपनाती हैं। वस्तुओं की निश्चित मात्रा उपभोक्ताओं को प्रदान की जाती है, ताकि कम पूर्ति की समस्या को एक दूर किया जा सके ।

    2.मूल्य नियंत्रण ( Rate control ) -

     उचित मूल्य की दुकानो के माध्यम से अनिवार्य वस्तुओं का अधिकतम मूल्य निश्चित किया जाता हैं। ताकि मूल्य वृद्धि को रोका जा सके।

    (3) बैंक ब्याज दर में कमी ( Bank interest rate cut ) -

     मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने समय-समय पर बैंक दर में वृद्धि की हैं। 30 मई 1974 को बैंक दर 6 से 7 प्रतिशत कर दी गई जो बढ़ते बढ़ते 9 अक्टूबर 1991 में 12 प्रतिशत हो गई थी। लेकिन वर्तमान में इसे कम करके 7.5 प्रतिशत रखा गया हैं।

    (4) उत्पादन में वृद्धि ( Increase in production ) -

    मूल्य वृद्धि पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा सभी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हेतु आवश्यक मशीन, तकनीक, पूँजी आदि का आयात किया जा रहा हैं। तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सरकार कृषकों को कम ब्याज पर ऋण देती हैं। तथा प्रमाणित बीज, दवाओं का वितरण करती हैं।

    (5)खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय की स्थापना :( Establishment of the Ministry of Food and Civil Supplies )-

     अक्टूबर 1974 को केन्द्रीय सरकार ने उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय के अंतर्गत एक नागरिक आपूर्ति एवं सहकारिता विभाग की स्थापना की, किन्तु अब केन्द्र में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय का कार्य आवश्यक वस्तुओं की वितरण व्यवस्था में सुधार करना तथा केन्द्रीय व राज्य सरकारों के नागरिक आपूर्ति मंत्रालयों में सहयोग करना हैं जिससे कि आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति निर्धारित मूल्यों पर बनायी रखी जा सकें।

    (6) अनिवार्य जमा योजना ( Compulsory deposit scheme ) -

    19 जुलाई 1974 को एक अध्यादेश से आयकर अधिनियम में परिवर्तन किया गया हैं। जिसके अनुसार वर्तमान समय में 40,000 रूपये से अधिक आय वाले कर दाताओं को अपनी आय का एक भाग सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर अनिवार्य रूप से जमा कराने की व्यवस्था की गई हैं।

    (7) जमाखोरी व काला बाजारी पर अंकुश :( Curb hoarding and black marketing )-

    सरकार द्वारा ऐसे व्यापारियों पर कठोर नियम लागू करना चाहिए जो वस्तुओं का कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर, अधिक लाभ कमाते हैं। प्रशासनिक सजगता व कुशलता के द्वारा ऐसे लोगों पर अच्छी तरह अंकुश लगाया जा सकता हैं।

    v  जो लोग जमाखोरी या काला बाजारी करते पाये जायें उन्हें तत्काल जेल भेज दिया जाये ।

    v  वस्तुओं के भंडारण की एक निश्चित सीमा निर्धारित की जाये, उससे अधिक भंडारण होने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जावे ।


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