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रस | हिन्दी व्याकरण 


 

 

            
रस की परिभाषा- काव्य सुनने पढ़ने या देखने (नाटक आदि) से जिस आनंद की प्राप्ति होती है उसे रस कहते हैं। रस को काव्य  की आत्मा माना गया है।

"विभावानुभाव संचारीभावः संयोगाद्रस निष्पत्तिः ।

अर्थात -विभावअनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रस के निष्पत्ति होती है।" इस प्रकार रस के निम्नलिखित चार अंग होते हैं

1. स्थायी भाव

2 संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव

3. विभाव

4. अनुभाव

भाव :- मन के विकारों को नाव कहते हैं। आचार्य भरतमुनि ने इसके दो प्रकार बताये हैं- -1 2. संचारी भाव या व्यभिचारी भाव

1. स्थायी भाव

सहृदय अर्थात श्रोतादर्शक या पाठक के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से मौजूद रहते हैं उन्हें स्थायी भाव कहते आचार्य भरतमुनि ने इसकी संख्या 9 बताई है। प्रत्येक रस का निश्चित स्थायी भाव होता है वर्तमान में वात्सल्य नामक एक और रस मान लिया गया है जिसका स्थायी भाव वत्सल या पुत्र-प्रेम माना गया है।

रस के प्रकार :- दस रस और उनके स्थायी भाव  है।

   क्रमाक

 

   रस के नाम

 स्थायी  भाव 

1.

   श्रृंगार रस

रति या प्रेम

 

2.

     हास्य

 

  हास

 

3.

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कोध

4.

      भयानक

 

     भय

 

5.

       वीर

 

  उत्साह

 

6.

    अद्भुत

  आश्चर्य

 

7.

      करूण

 

   शोक

8.

     वीभत्स

 

   घृणा

 

9.

       शांत

 

   निर्वेद

 

10.

    वात्सल्य

 

  वत्सलता

 

 

2. संचारी भाव या व्यभिचारी भाव 

                                                जो भाव सहृदय के हृदय में अस्थायी रूप से प्रगट होते हैंऔर जल्द ही मिट जाते हैं उन्हें सचारी भाव या व्यभिचारी भाव कहा गया है। आचार्य भरतमुनि ने इसकी संख्या 33 बताई है। शंकामोहगर्वचिताहर्षआदि भाव संचारी भाव है। इनकी तुलना पानी के बुलबुलों से की गई है।

3. विभाव-

             स्थायी भावों को जागृत करनेवाले कारकों को विभाव कहा गया है। यह रस निष्पत्ति का प्रमुख कारण होता है। इसके 3 प्रकार होते हैं.

1. आलंबन विभाव

2. उद्दीपन विभाव

3. आश्रय

4. अनुभाव-

        आश्रय की चेष्टाओं को अनुभाव कहते हैं। इसके दो प्रकार होते हैं बाह्य चेष्टाएँ 2 आंतरिक चेष्टाएँ।

                      स्थायी भाव तथा संचारी भाव में अंतर

 

स्थायी भाव

 

संचारी भाव

 

1.

सदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से मौजूद रहते हैं उन्हें भाव कहते हैं।

 

ये सहृदय के हृदय में अस्थायी रूप से प्रगट होते हैं और जल्द ही मिट जाते हैं।

 

2.

आचार्य भरतमुनि ने इसकीसंख्या 9 बताई है।

 

 

         इसकी संख्या 33 है।

 

3.

प्रत्येक रस का एक ही स्थायी भाव होता है।

 

एक ही रस के एक से अधिक सचारी भाव हो सकते हैं।

 

4.

कोई भी एक स्थायी भाव एक ही रस के साथ आता है।

 

कोई भी एक संचारी भाव एक से अधिक रसों के साथ आ सकता है। इसीलिए

इसे भाव कहा गया है।

 

 

रस के प्रकार और उनकी परिभाषाएँ -:

1. श्रृंगार रस

सहृदय के हृदय में स्थित रति नामक स्थायी भाव का जब विभावअनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है तब श्रृंगार रस की निष्पत्ति होती है। यहाँ स्त्री-पुरुष के प्रेम-भाव का वर्णन किया जाता है। इसके दो भेद हैं

क.   संयोग श्रृंगार

. वियोग श्रृंगार

क. संयोग श्रृंगार –

               जहाँ नायक-नायिका के प्रेममिलनस्पर्शआलाप आदि का वर्णन होता है। वहाँ संयोग श्रृंगार होता है

उदाहरण  -:    राम को रूप निहारति जानकी.

                      कंकन के नग की परछाही ।

                      या ते सजै सुधि भूल गई कर

                         टेकि रही पल हारत नाही

ख. वियोग श्रृंगार-

                            जब नायक तथा नायिका के मध्य वियोग का वर्णन होता है वहाँ वियोग श्रृंगार होता है।

   उदाहरण-          "मधुवन तुम कत रहत हरे।

                             विरह-वियोग श्यामसुंदर के.

                                     ठाडे क्यों न जरे।

2. हास्य रस

             जब किसी भी विचित्र वेशभूषाकथनहाव भाव देखकर हंसी आती हो तो वहाँ हास्य रस होता     है। इसका स्थायी भाव हास है।

उदाहरण -:     इस दौड़ धूप में क्या रखा. आराम करोआराम करो।

                        आराम जिंदगी की कुणी इससे न तपेदिक होती है।

                         आराम सुधा की एक बूंद तन का दुबलापन खोती हैं।

                        आराम शब्द में राम छुपाजो भवबंधन को खोता है।

                         इसलिए तुम्हें समझाता हूँमेरे अनुभव से काम करो

3. रौद्र रस

       शत्रु द्वारा अपमानशत्रु का सम्मुख आ जानाशत्रुओं के द्वारा अनुचित कार्य होने का वर्णन पर रौद्र   रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव कोष है।

उदाहरण -:   श्री कृष्ण के वचन सुनअर्जुन क्रोध से जलने लगे।

                     सब शोक अपना मूलकर करतल युगल मलने लगे।

                    संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।

                      करते हुए यह घोषणा के हो गए उठकर खड़े

4. भयानक रस

                           जब किसी वर्णन से भय उत्पन्न होता होवहाँ भयानक रस होता है। इसका स्थायी भाव भय है।

उदाहरण -:   एक ओर अजगरहि लखि एक ओर मृगराज।

                     विकल बटोही बीच में परयो मूरछा खाय।।

 5. अद्भुत रस

                      इसका स्थायी नाव आश्चर्य है। आश्चर्यजनक घटना या वस्तु का वर्णन सुनकरदेखकर या - पढ़कर जब व्यक्ति के मन में आश्चर्य या विस्मय पैदा हो तो वहाँ अदभुत रस होता है।

उदाहरण  -:   बिनु पग चले सुने बिनु काना।

                      कर बिनु कर्म करे विधि नाना।

                      आनन रहित सकल रस मोगी।

                      बिनु बानी बक्ता वह जोगी ।

 6. करुण रस

                           इसका स्थायी भाव शोक है जहाँ मृत्युतुल्य वियोग का वर्णन होता है वहाँ करुण रस होता है।

 

उदाहरण -: अभी तो मुकुट बँधा था माथ

 हुए अब ही हल्दी के हाथ

हाय :क गया यही संसार

बना सिन्दूर अंगार

 

8ohभत्स रस

                 इसका स्थायी भाव घृणा है। घृणा को उत्पन्न करने वाले दृश्यों का वर्णन होने पर वीभत्स रस

                        होता है।

उदाहरण-:        सिर पर बैठ्यो कामआँख दोउ खात निकारत।

                       खींचत जीनहिं स्यारअतिहि आनंद उर पारत।।

9. शांत रस

इसका स्थायी भाव निर्वेद या वैराग्य है। जहाँ सुख दुख चिंताराग-द्वेष आदि कुछ भी भाव नहीं है वहाँ शांत रस होता है। यहाँ सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति का वर्णन होता है।

उदाहरण -:          सुन मन मूढ़ सिखावन मेरो।

                           हरिपद विमुख लक्ष्यो न काहू सुख

                                  सठ। यह समझq lcsjkA

 

10 वात्सल्य रस

                            बच्चों की चेष्टाओं से माता-पिता के हृदय में जो आनंद का भाव पैदा होता हैउसे वात्सल्य रस      कहते हैं। इसका स्थायी भाव वत्तल या पुत्रप्रेम है।

उदाहरण  -: माँ ओ कहकर बुला रही थी.

                    मिट्टी लेकर आयी थी.

                       कुछ मुँह में कुछ लिए हाथ में

                         मुझे खिलाने आई थी 


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