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(Organisation of Rajyasabha)
राज्यसभा
(Rajasabha)
यह संसद का उच्च सदन है। इस सदन में राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं । संघीय व्यवस्था में विधायी कार्यों में राज्यों का प्रतिनिधित्व आवश्यक आधार पर राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व निश्चित किया जाता है।
राज्यसभा का गठन
(Organisation of Rajyasabha)
यह संसद का उच्च सदन है। इस सदन में राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं । संघीय व्यवस्था में विधायी कार्यों में राज्यों का प्रतिनिधित्व आवश्यक आधार पर राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व निश्चित किया जाता है। प्रथम लाख एक सदस्य तथा उसके बाद प्रत्येक लाख पर एक सदस्य हिसाब राज्यों को राज्य सभा में प्रतिनिधित्व दिया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्यसभा के लिए सदस्य जाते हैं। संविधान के अनुसार इसके सदस्यों की संख्या अधिकतम 200 निश्चित की गई है। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने हैं।
जो कला, साहित्य, विज्ञान एवं समाजसेवा क्षेत्र ख्याति प्राप्त
व्यक्ति होते छह सदस्यों का निर्वाचन राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य तथा केन्द्र
शासित प्रदेशों सदस्य, समानुपाती
प्रतिनिधित्व प्रणाली आधार एकल संक्रमणीय प्रणाली गुप्त मतदान प्रणाली, शासित क्षेत्रों विधान सभाएं नहीं होती। अतः
संसद विधि निर्माण करके इनके निर्वाचन प्रणाली निश्चित करती वर्तमान राज्यसभा में
सदस्यों संख्या 245 हैं।
राज्यसभा स्थायी सदन इसको कभी नहीं किया जाता परंतु इसका प्रत्येक सदस्य 6 वर्ष के निर्वाचित मनोनीत राज्य सभा सदस्य
प्रति दो वर्ष के बाद अवकाश ग्रहण करते अतः 2 वर्ष बाद 1/3 स्थान लिए चुनाव होता किंतु सदस्य कार्यकाल की अवधि 6 वर्ष होती किंतु बिना पूर्व सूचना लगातार दिन अनुपस्थित
सदस्यता समाप्त जा सकती है। दल बदल होने पर त्याग पत्र देने उसकी सदस्यता खत्म हो
जाती है।
राज्य सभा के सदस्यों की योग्यताऐं
1) भारत का नागरिक हो।
(2) उसकी आयु वर्ष कम
(३) संघीय या राज्य सरकार अधीन लाभकारी पद पर हो
(4) विकृत मस्तिष्क (पागल, दिवालियो) न हो
(5) संसद द्वारा निर्मित कानून द्वारा अयोग्य न ठहराया गया हो।
(6) उस राज्य वह संसद का मतदाता जिस राज्य वह राज्यसभा हेतु
प्रत्याशी हो
गणपूर्ति
लोकसभा की भांति राज्यसभा की गणपूर्ति भी समस्त सदस्यों का 1/10 भाग होती अर्थात 25 सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है।
राज्यसभा के पदाधिकारी
भारत का उप राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेनसभा पति होता है। राज्य सभा के सभा पति
को ही अधिकार प्राप्त होते जो लोकसभा के अध्यक्ष को होते हैं। उसे वही वेतनभत्ते
मिलते हैं, जो लोकसभा के अध्यक्षों
को मिलते हैं, किन्तु वह किसी
भी विधेयकों को वित्त विधेयक घोषित करने का अधिकार नहीं रखता। राज्य के सदस्यों
में ही एक सभापति भी जाता है। जो उसकी अनुपस्थिति बैठकों
की अध्यक्षता करता है तथा अध्यक्ष के अधिकारों का उपभोग भी करता है।
राज्य के विशेषाधिकार
(1) राज्यसभा साधारण विधेयकों को छह माह तक कानून बनाने से रोक
सकती है। इस अवधि में जनमत उस विधेयक पर जाना जा सकता है। यदि वह जन विरोधी है तो
न उसे रोका जा सकता है।
(2) राज्य सभा वित्त विधेयकों को 14 1) दिन तक रोक कर विचार-विमर्श का अवसर देती है।
(3) संविधान में
संशोधन के संबंध में राज्य सभा की स्वीकृति आवश्यक है।
(4) राज्य सभा राज्य सूची के किसी भी विषय को 2/3 बहुमत से राष्ट्रीय महत्व को घोषित कर सकती है
तथा उस विषय पर एक वर्ष के लिए संसद को कानून बनाने का अवसर भी देती है।
(5) राष्ट्रपति यदि संकटकाल की घोषणा करता है और लोकसभा उस समय
विघटित हो अर्थात भंग हो तो राज्य सभा राष्ट्रपति की संकटकालीन घोषणा को दो माह की
स्वीकृति प्रदान करती है तथा राष्ट्रपति को तानाशाह बनने से रोकती है। इस प्रकार
वह लोकतंत्र की भी रक्षा करने में समर्थ है। वह अपने सभापति को अपदस्थ कर सकती है।
(6) राज्यसभा एक स्थायी सदन है अतः राष्ट्रपति उसे भंग विघटित
नहीं कर सकता है। इस प्रकार राज्य सभा शासन संचालन में पुनर्विचार एवं जनमत
निर्माण तथा सरकार को शीघ्रता की नीति पर नियंत्रण कर लोकतंत्र की
स्थापना करती है।
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