राष्ट्रपतिराष्ट्रपति का चुनाव (President's election ) कैसे होता है ?केन्द्रीय कार्यपालिका राष्ट्रपति केन्द्रीय कार्यपालिका राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद से मिलकर बनती है। राष्ट्रपति भारतीय संघ का प्रधान अधिकारी है। कार्यपालिका के सभी अधिकार राष्ट्रपति में निहित है और उसी के द्वारा संचालित होते हैं। भारतीय संघ का सर्वोच्च अधिकारी होने के नाते राष्ट्रपति के अधिकारों व कार्यों का हमें स्पष्ट ज्ञान रखना आवश्यक है। |
भारतीय संघ सरकार के तीन अंग हैं -
1. केन्द्रीय व्यवस्थापिका संसद,
2. केन्द्रीय कार्यपालिक
3. केन्द्रीय न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय)
राष्ट्रपति के लिए योग्यताएँ
राष्ट्रपति पद के इच्छुक उम्मीदवार में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए :
1. वह भारत का नागरिक हो।
2. उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो।
3. उसमें लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता हो ।
4. वह सरकारी लाभ के पद पर न हो । केन्द्रीय या राज्य के मंत्रियों पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होता है। अतः वे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकते हैं।
राष्ट्रपति संसद या राज्यों के विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं बन सकता। राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के पूर्व वह किसी सदन का सदस्य है तो निश्चित करने के बाद, उक्त सदन में उसका स्थान खाली समझा जायेगा
राष्ट्रपति का चुनाव
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष रूप से एक ऐसे निर्वाचन मंडल द्वारा होता
है जिसमें भारतीय संसद के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों के विधान सभाओं के
निर्वाचित सदस्य ही भाग लेने के अधिकारी हैं। किसी भी विधानमंडल के नाम निर्देशित
सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार नहीं है। साथ ही राज्यों
के विधानमंडलों के द्वितीय सदन भी राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने के अधिकारी
नहीं है। इस प्रकार ( राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा होता
है।
यह निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत पद्धति
द्वारा होता है। ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त मतपत्र के द्वारा होगा। यह प्रणाली
इसलिए अपनाई गई है कि राष्ट्रपति के चुनाव में संघ के विभिन्न राज्यों को समान
प्रतिनिधित्व दिया जा सके। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी थे।
वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती प्रतिभा देवी पाटील हैं।
राष्ट्रपति कार्यकाल
संविधान द्वारा राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित है। इसके पहले भी यदि राष्ट्रपति चाहे तो त्याग पत्र देकर अपने पद से अलग हो सकता है। साथ ही संविधान का उल्लंघन करने पर कार्यकाल समाप्त होने के पहले भी उसे संसद द्वारा पद से हटाया जा सकता हैं। यदि संसद का कोई सदन समझता है कि राष्ट्रपति ने संविधान
उल्लघन किया तो वह उस पर महाभियोग लगाता फिर वह एक प्रस्ताव संसद दूसरे सदन
राष्ट्रपति हटाये जाने प्रार्थना करता दूसरा सदन महाभियोग प्रस्ताव विचार यदि उसे
दो-तिहाई मत पारित कर तो राष्ट्रपति का महाभियोग सिद्ध हुआ समझा तब राष्ट्रपति
अपने से हटना पड़ता यदि मृत्यु पदत्याग पदच्युति कारण कार्यकाल समाप्त के पहले
राष्ट्रपति का स्थान रिक्त जाये अधिक अधिक माह के भीतर चुनाव कराना आवश्यक जब तक
नया चुनाव हो जाये उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति का उत्तरदायित्व संभालता नया चुनाव नया
राष्ट्रपति वर्ष की अवधि लिए अपने पर कार्य करता अपने कार्यकाल समाप्ति बाद
राष्ट्रपति एक बार पुनः चुनाव लड़ सकता है।
रिक्त स्थान की पूर्ति
यदि बीमारी, त्यागपत्र अथवा
प्रवास के कारण राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति कार्य न कर सकते हो, तो संविधान द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया
है। वह उसके कार्यों के लिए नई व्यवस्था करें।
वेतन व अन्य सुविधाएँ
अपने कार्यकाल में राष्ट्रपति को रहने के लिए मुफ्त अधिवास (राष्ट्रपति भवन) व संसद द्वारा निर्धारित भत्ते मिलते हैं।
राष्ट्रपति के कार्य
राष्ट्रपति भारतीय संघ का सर्वोच्च
अधिकारी है। इस नाते उसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य करने पड़ते हैं। वह राज्य में
सुरक्षा व शांति की व्यवस्था करता है- संसद का प्रथम अधिवेशन बुलाता है। वह राज्य
में संविधान अन्य विधियों को कार्यान्वित करता है तथा मंत्रिपरिषद का निर्माण करके
उसकी सलाह से देश का शासन चलाता है। वह राज्यपालों, उच्चतम् न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, राजदूतों, महान्यायवादी आदि की नियुक्ति करता है।
राष्ट्रपति के कार्य व शक्तियाँ
राष्ट्रपति भारतीय संघ का प्रधान शासक है। शासन के इस बड़े उत्तरदायित्व को निभाने के लिए उसे संविधान ने महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान किए गए हैं। राष्ट्रपति के अधिकारों को हम छह भागों में बांट सकते
1. शासन संबंधी
2.संकट कालीन
3. व्यवस्था संबंधी
4. अर्थ संबंधी
5. न्याय संबंधी
6. विविध शक्तियाँ
(1) शासन संबंधी कार्य व शक्तियाँ:-
1.राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री, राज्यपाल,
राजदूत, सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधिशों, न्यायवादी या एटार्जी जनरल आदि बड़े-बड़े
पदाधिकारियों व लोक सेवा आयोग, अंतर्राज्य परिषद,
निर्वाचन आयोग व भाषा आयोग आदि महत्वपूर्ण
संस्थाओं के सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार है।
2. राष्ट्रपति भारत की नौसेना, थलसेना व वायुसेना का उच्चतम प्रधान है। इस हैसियत से व भारत के प्रधान सेनापति की नियुक्ति करने व विदेशों से युद्ध अथवा संधि करने का अधिकारी है।
3. संघ सरकार के सारे अधिकार राष्ट्रपति में निहित है और उसी के नाम से संचालित होते हैं।
(2) संकटकालीन कार्य व शक्ति:-
संकटकालीन अधिकारों को राष्ट्रपति का विशेषाधिकार भी कहा जा सकता है। तीन अवसरों पर राष्ट्रपति उन अधिकारों का प्रयोग कर समस्त देश या उसके किसी भाग का शासन अपने हाथों में ले सकता है।
1.सर्वप्रथम तो
राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाने पर कि देश या उसके किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध,
बाह्य, आक्रमण या किसी प्रकार के आंतरिक उपद्रव से खतरा है, तो वह इस संकटकाल की घोषणा करके समस्त देश का शासन सूत्र
अपने हाथ में ले सकता है। संकटकालीन अवधि में संसद को राज्यसूची में उल्लेखित
विषयों पर समस्त देश या उसके किसी भाग के लिए विधि बनाने का अधिकार है तथा राज्यों को संघ सरकार
के आदेशों का पालन करना अनिवार्य होता है।
साथ ही राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए नागरिकों के भाषण, निवास, संगठन, संपत्ति, व्यवसाय आदि से संबंधित मूल अधिकार संकटकालीन अवधि में स्थगित करने का अधिकार है। परंतु उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता और अधिकारों में राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकारों द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।
2. दूसरे यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाय कि किसी राज्य का शासन, विधान के अनुसार चलना असंभव है तो वह संकटकाल की घोषणा द्वारा राज्य की विधानसभा व उच्च न्यायालयों के अधिकारों को छोड़कर अन्य सारे कार्य अपने हाथ में लेकर राज्य के विधानमंडल को यह आदेश दे सकता है कि उसके सारे कार्य संसद द्वारा या संसद के निर्देशानुसार किये जाये। इस प्रकार की स्थिति केरल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में की जा चुकी है।
3. तीसरे यदि किसी परिस्थिति के कारण राष्ट्रपति को ऐसा विश्वास हो जाये कि भारत की आर्थिक स्थिरता एवं साख खतरे में है तो वह संकटकाल घोषणा द्वारा राज्य सरकारों को आर्थिक मामलों में अपने आदेशों को मानने के लिए बाध्य कर सकता है। साथ ही आवश्यक समझने पर वह सरकारी नौकरों, उच्च न्यायाधीशों व सर्वोच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों आदि के वेतनों में भी कमी कर सकेगा। इसके अलावा राज्य के विधान मंडल द्वारा पारित आर्थिक विधेयकों को अपनी स्वीकृति के लिए रखे जाने का आदेश भी दे सकता है।
पूर्वोक्त में तीन प्रकार से की गई घोषणाओं के लागू रहने की अवधि में कुछ अंतर
है। युद्ध या उसकी संभावना अथवा आंतरिक उपद्रव से देश या देश की किसी भाग की
सुरक्षा के लिए की गई घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जायेगी और दो माह तक
लागू हो सकेगी। यदि दो माह के भीतर संसद उस घोषणा को स्वीकार कर लेगी तो वह और
अधिक समय के लिए भी लागू हो सकेगी। परंतु यदि दो माह के भीतर ऐसी घोषणा को केवल
राज्यसभा की स्वीकृति प्राप्त हो
लोकसभा के भंग हो जाने के कारण उसकी स्वीकृति न हो पायी तो घोषणा की अवधि नई
लोकसभा के प्रथम अधिवेशन के 30 दिन तक ही हो
सकती है। परंतु 30 दिन के भीतर ही
लोकसभा द्वारा स्वीकृत किये जाने के बाद घोषणा की अवधि बढ़ाई जा सकती है। दूसरे
राज्यों में वैधानिक शासन की असफलता के समय या किसी आर्थिक संकट के समय की गई
घोषणाएँ भी इसी प्रकार संसद की स्वीकृति के लिए
रखी जायेगी। परंतु संसद द्वारा स्वीकृत किये जाने के बाद उक्त दो अवसरों पर की गई
घोषणाएँ छह माह तक लागू रहेगी। छह माह के बाद संसद की स्वीकृति से उसकी अवधि और
बढ़ाई जा सकती है परंतु ऐसी कोई घोषणा 3 वर्ष से अधिक लागू न रह सकेगी। राष्ट्रपति को कभी भी ऐसी घोषणा को रद्द करने
का अधिकार है।
(3) व्यवस्था संबंधी कार्य व शक्तियाँ :-
व्यवस्था के क्षेत्र में राष्ट्रपतिको
अनेक महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं:
1. राष्ट्रपति को राज्यसभा के बारह सदस्यों तथा लोकसभा के दो एंग्लोइंडियन को नामजद करने का अधिकार है।
2. वह संसद के दोनों सभाओं की सयुक्त या किसी एक ही सभा की बैठक बुला सकता है। उसे स्थगित कर सकता है आ आवश्यकता पड़ने पर लोकसभा को भग कर सकता है।
3. वह संसद की बैठकों का समय और स्थान निर्धारित कर सकता है और संसद की दोनों सभाओं के संयुक्त अधिवेशन या किसी एक सभा के अधिवेशन में भाषण दे सकता है।
4.आवश्यकता पड़ने पर वह संसद की किसी एक सभा या दोनों सभाओं में संदेश भेजकर सदस्यों का मत जान सकता है। राष्ट्रपति द्वारा संसद या उसकी किसी सभा को भेजे गये संदेशों पर सभा को यथाशीघ्र विचार करना आवश्यक है।
5. संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के अनुमति के बिना विधि नहीं बन सकता। अर्थ संबंधी विधेयक को छोड़ अन्य प्रकार के विधेयकों को पहली बार पास किये जाने पर राष्ट्रपति यदि उचित समझे तो स्वीकृत करने इंकार कर सकता है। परंतु ऐसे विधेयकों को दुबारा पास होने पर राष्ट्रपति स्वीकृति की अनुमति देने बाध्य है। संसद द्वारा कोई भी अर्थ संबंधी विधेयक पास होने पर स्वीकृति न देने का अधिकार उसे नहीं है। परंतु कोई भी अर्थसंबंधी विधेयक संसद में राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पेश किया जा सकता है।
6. आकस्मिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए राष्ट्रपति को अध्यादेश या आर्डिनेन्स जारी करने का अधिकार दिया गया यदि संसद का अधिवेशन नहीं हो रहा या किसी आकस्मिक परिस्थिति परिस्थितियों के काल के लिए विशेष प्रकार नितांत आवश्यकता तो राष्ट्रपति पर उस आशय आर्डिनेंस जारी कर सकता है। आर्डिनेस का प्रभाव वैसा ही होता जैसा संसद द्वारा बनाई गई। विधियों को। ऐसे आर्डिनेंस केवल विषयों संबंध ही लागू किये सकते। जिन पर संसद को विधि बनाने के अधिकार प्राप्त हैं। साथ ही संसद का अधिवेशन प्रारंभ होने पर सभी आर्डिनेंस राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए उसके सामने रखे जाते हैं। यदि संसद उन्हें स्वीकार कर अधिवेशन आरंभ वे सप्ताह तक लागू सकते अधिक नहीं। यदि उन्हें अस्वीकार करें वह तुरंत रदद जाते हैं।
7. राज्य के विभिन्न मंडलों संबंध भी राष्ट्रपति को अनेक
महत्त्वपूर्ण अधिकार प्राप्त
(अ) राज्य द्वारा संपत्ति प्राप्त करने, समवर्ती सूची उल्लेखित विषयों संसद नागरिकी जीवन के आवश्यक
ठहरायी गयी वस्तुओं की क्रय-विक्रय लगाने से संबंधित राज्य विधानमंडलों द्वारा
पारित किए विध यक केवल राष्ट्रपति की अनुमति ही सकते
(ब) किसी राज्य के भीतर या व्यापार प्रतिबंध लगाने विधेयक राष्ट्रपति पूर्व अनुमति
ही राज्य के मंडल जा सकते हैं। पूर्व अनुमति मिलने वे राज्य के विधानमंडल कदापि
नहीं किए जासकते।
(स) संकटकालीन घोषणा की अवधि अपने हाथ लेकर संसद को सकता है।
(4). अर्थ संबंधी कार्य व शक्तियाँ:-
1.राष्ट्रपति सिफारिश ही संघ राज्य आय-व्यय का वार्षिक ब्यौरा प्रतिवर्ष संसद
पेश जा सकता राष्ट्रपति की सिफारिश बिना संघ सरकार की कोई आर्थिक सकती।
2. आय कर होने वाली आमदनी की रकम संघ तथा बीच अधिकार
राष्ट्रपति को है। इसी प्रकार जूट निर्यात आमदनी का कुछ भाग पश्चिम बंगाल, उड़ीसा द्वारा सहायता चाहने पर देने अधिकार संघ
तथा राज्यों को किसी प्रकार आर्थिक सहायता कर की आमदनी कुछ भाग देने के लिए
राष्ट्रपति एक अर्थ-आयोग करने का अधिकार ऐसे आयोगों की अवधि पाँच होती है। प्रति
पाँच वर्ष बाद नये आयोगों नियुक्ति जानी आवश्यक है।
5) न्याय कार्य व शक्तियाँ:-
में भी राष्ट्रपति अनेक महत्वपूर्ण अधिकार दंडादेश दोष सिद्धों को क्षमा या उसका दंडादेश बदल कर किसी दूसरे प्रकार का दंडादेश का अधिकार साथ ही सैनिक न्यायालयों द्वारा दिये दंडादेश भी करने, करने या बदल देने का अधिकार प्राप्त
(6) विविध कार्य व शक्तियाँ:-
1. निर्वाचन आयोग के सदस्यों की संख्या नियत करना ।
2. अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए विशेष अधिकारी नियत करना ।
3 अनुसूचित जाति व जनजाति की प्रगति जाँचने आयोग नियुक्त करना।
4. संविधान लागू होने पर 15 वर्ष में संघ सरकार के किसी भी कार्य के लिये अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी एवं देवनागरी लिपि को प्रयुक्त करने की व्यवस्था करना ।
5 संघ लोकसेवा आयोग व संयुक्त लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या नियुक्त करना । उनके सदस्यों एवं अध्यक्षों की नियुक्ति करना । उनके वेतन भत्ते आदि का निर्धारण करना। उनका प्रतिवेदन संसद के समक्ष प्रस्तुत करना ।
6. राज्य में बहु प्रयुक्त भाषा को राज्य की जनता की मांग के
अनुसार अन्यतम राज्य भाषा के रूप में स्वीकृत करने का आदेश दे सकता है।
7. लोकसभा भंग करने एवं नये निर्वाचन के लिये आदेश देने का अधिकार राष्ट्रपति को है।
राष्ट्रपति की स्थिति
राष्ट्रपति के अधिकारों के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि उसे
प्रायः हर क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण व विस्तृत अधि कार प्राप्त हैं। उसके
अधिकारों की देखते हुए यह लगता है कि यदि राष्ट्रपति चाहे तो राज्यों व नागरिकों
की स्वतंत्रता का लोप कर भारत में प्रजातंत्र के स्थान पर तानाशाही की स्थापना कर
सकता है। परन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि वह इंग्लैण्ड के राजा केन्द्रीय कार्यपालिका के समान संवैधानिक प्रधान
है शासन का उसके नाम से होते है। किंतु उसके प्रत्येक अधिकार का उपयोग व्यवहार में
मंत्रि परिषद करती है जो सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
राष्ट्रपति राष्ट्र का नेता होता है, कार्यपालिका का नही, वह राष्ट्र का
प्रतिनिधि है
शासक नहीं, इसलिएवह सदैव
मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है। यदि कोई राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से
काम न करे तथा मनमानी करने लगे तो संसद उसपर 2/3 बहुमत से अविश्वास का प्रस्ताव लगाकर सरलता से हटा सकती
है। अत राष्ट्रपति की तानाशाह होने की कोई संभावना नहीं है। वास्तव में उसका पद
महत्वपूर्ण इसलिए है कि वह कुछ परिस्थितियों से स्वविवेक से कार्य कर सकता है।
जैसे- प्रधानमंत्री की नियुक्ति यदि लोकसभा में किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत न हो
तो व अपने विवेक से ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकता है जो उसकी नजर में
प्रधानमंत्री बनने के योग्य हो। वह मंत्रिपरिषद से पुर्नविचार करवा सकता। संसद को
किसी विधेयक पर पुनर्विचार करवा सकता है तथा लोकसभा भंग होने की स्थिति में भारत
का प्रशासक होता है।
महा न्यायवादी
राष्ट्रपति को कानूनी सलाह देने के लिए महान्यायवादी की नियुक्ति की जाती है। इसे एटार्नी जनरल ऑफ इंडिया भी कहते हैं। इसकी नियुक्ति राष्ट्रपति भी करता है तथा उसका कार्यकाल राष्ट्रपति की इच्छा पर ही निर्भर होता है। राष्ट्रपति ऐसे व्यक्तियों को महा न्यायवादी के पद पर नियुक्त करता है। जिससे उच्चतम न्यायालय को न्यायाधीश बनने के समस्त योग्यताएँ हो |
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