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(Meaning of Cold War) 


शीतयुद्ध क्या है ? शीत युद्ध से  तात्पर्य (Meaning of Cold War) - आर्ट्स GOES

शीतयुद्ध 

शीतयुद्ध का तात्पर्य (Meaning of Cold War) -

शीतयुद्ध एक ऐसी स्थिति है जिसमें राष्ट्रों के बीच युद्ध सा तनाव बना रहता है। इसमें प्रत्येक राष्ट्र एक दूसरे को नीचा दिखाने और कमजोर बनाने की चेष्टा करता रहता है। इसमें बमों या हथियारों से युद्ध तो नहीं होता, परन्तु शब्दों का युद्ध इतना तीक्ष्ण होता है कि इससे कभी भी सशस्त्र युद्ध की नौबत आ सकती है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में जिन राष्ट्रों ने रूस के साथ मिलकर जर्मनी को पराजित किया था उनमें युद्ध के साथ संबंध कटु हो गए। फलतः विश्व स्पष्टतः दो गुटों में बँट गया। इसमें एक ओर संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन तथा पश्चिमी यूरोप के देश की और दूसरी ओर रूस तथा पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देश । इन दोनों गुटों में बढ़ते हुए संघर्ष और तनावपूर्ण संबंध को शीतयुद्ध कहा जाता है।

    विश्व का दो गुठो में विभाजन (Division of word into two groups ) 

    द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात अमेरिका के बाद एक बहुत बड़ी शक्ति के रूप में रूस उभरकर आया। उसने भी 1949 में परमाणु बम बना लिया। रूस और अमेरिका के विचारों में बड़ा अंतर था। अमेरिका जहाँ

    पूँजीवादी देश था, वहाँ रूस साम्यवादी ब्रिटेन अमेरीका, फ्रांस इत्यादि साम्यवाद से भयभीत थे। कारण, साम्यवादी विचारधारा | के पनपने से उनके देशों की सरकारें कठिनाई | पड जाती। अतः वे इस चेष्टा में लग गए। कि रूस की शक्ति को किसी भी कीमत पर न बढ़ने दिया जाए क्योंकि रूस की शक्ति | के बढ़ने का अर्थ था- साम्यवादी । विचारधारा का प्रसार ।

    दूसरी ओर, रूस पूँजीवाद का विरोधी था । अतः वह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों ढंग से पूँजीवाद को रोकने और साम्यवाद के प्रसार में लग गया। इस तरह विश्व दो गुटो में बँट गया। पूँजीवादी गुट और साम्यवादी गुट। पहले का अगुआ अमेरिका बना और दूसरे का रूस दोनों एक-दूसरे से भयभीत थे। अतः दोनों अपनी-अपनी शक्ति को मजबूत बनाने में लग गए। शीतयुद्ध का यह प्रधान कारण बना।

    विकासशील एवं पिछड़ें देश की किसी एक गुट पर निर्भरता 

    (Depen dence of developing and backword nations on any one groups) 

    द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया-अफ्रीका के कई देश स्वतंत्र हुए। वर्षों की परतंत्रता ने इन्हें आर्थिक दृष्टि से इतना कमजोर बना दिया था कि अपने आर्थिक पुननिर्माण के लिए इन्हें किसी-न-किसी देश से सहायता लेनी ही थी। ऐसी सहायता का तो अमेरिका दे सकता था या रूस । अमेरिका ने यह नीति अपनाई कि जिन देशों में साम्यवाद का प्रसाद नहीं हुआ है

    उन देशों को भारी आर्थिक सहायता देकर उन्हें साम्यवाद के प्रभास से बचाया जाए और अपने प्रभाव क्षेत्र में लाया जाए ताकि अमेरिकी माल खपाने के लिए विस्तृत बाजार मिल सके। दूसरी ओर रूस भी विकासशील एवं पिछड़े देशों को आर्थिक सहायता देने लगा ताकि वे अमेरिका के प्रभाव में न आए। इस तरह पिछड़े तथा विकासशील देशों की आर्थिक विवशता से भी शीतयुद्ध को प्रश्रय मिला ।

    सोवियत संघ की भूमिका (Role of Soviet Union)

    द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ की काफी क्षति हुई थी। उसने अपने को शक्तिसम्पन्न राष्ट्र बनाने के लिए हर संभव प्रयास करने का निश्चय किया। उसने अपने सीमावर्ती पूर्वी यूरोपीय देशों में कठपुतली सरकार की स्थापना की तथा पराजित राष्ट्रों को कमजोर बनाए रखने का प्रयत्न किया। साथ ही अन्य देशों में साम्यवाद के प्रसार के लिए भी अप्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई करने लगा। धीरे-धीरे सोवियत संघ को एक बहुत बड़ा प्रभाव क्षेत्र प्राप्त हुआ। जहाँ वह साम्यवाद का प्रसार कर सकता था। थोड़े ही दिनों में पूर्वी यूरोप के अनेक देशों में साम्यवाद का प्रसार हो गया सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए अमेरिका ने भी प्रयास जारी रखा। इस तरह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद साम्यवाद के प्रसार में भी शीतयुद्ध को प्रोत्साहन मिला।

    रूस और अमेरिका में मतभेद 

    (Diffrences between Russia and America)

    द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कतिपय कारणों से रूस और अमेरिका में मतभेद जटिल होते गए। जर्मनी, निःशस्त्रीकरण, साम्यवादी चीन की मान्यता कोरियाई युद्ध आदि प्रश्नों पर दोनों में मतभेद अधिक उग्र होते गए।

    तटस्थ देशों पर शंका (Doubt on neutral nations )

    भारत जैसे बहुत से देश जो तटस्थता की नीति के पक्षधर थे और रूस सहित सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित करना चाहते थे। उन्हें भी अमेरिका और उसके सहयोगी शंका की दृष्टि से देखते थे।

    साम्यवादी दल द्वारा शासित राज्यों का उदय

    पोलैण्ड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया इत्यादि देशों में साम्यवादी सरकारों की स्थापना से अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी यूरोप के अन्य देश भी संशकित हो उठे। अतः साम्यवाद को रोकने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे।

    संयुक्त राज्य की दुर्बलता 

    संयुक्त राष्ट्र साम्यवादी एवं पूँजीवादी दोनों गुटों के देशों के मन में एक-दूसरे के प्रति शक और भय के विचारों को दूर करने में असफल सिद्ध हुआ। इसलिए भी संसार में आयुद्ध का वातावरण बना हुआ है।

    शीतयुद्ध के परिणाम

    सैनिक संधियाँ या सैनिक गुटों का निर्माण:-

    1.साम्यवादी दुनिया के इर्द गिर्द सारे संसार में अमेरिका ने सैन्य संगठनों का जाल बिछा दिया है। वह चारो ओर से रूस को घेरना चाहता है, जिससे युद्ध की स्थिति में वह उसे आसानी से पछाड़ सके।

    2.सोवियत संघ से बचाव के लिए 1945 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन की स्थपना की गई। इसके सदस्य थे- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड, पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, हालैंड और लक्जेमबर्ग बाद में तुर्की, यूनान, फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी भी इसके सदस्य बने।

    3. 1954 में दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन की स्थापना की गई। इसके सदस्य थे संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिलिपीन और पाकिस्तान ।

    4. 1955 में ग्रेट ब्रिटेन, तुर्की, इरान, इराक तथा पाकिस्तान के बीच बगदाद समझौता हुआ।

    5.रूस भी चुप बैठा नहीं रहा। उसने भी पूँजीवादी देशों के गठबंधनों के विरूद्ध यूरोप के साम्यवादी देशों पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रूमानिया ओर बुल्गेरिया के साथ वारसा समझौता किया। फिर उसने जर्मन गणतंत्र के साथ मैत्री और पारस्परिक सहायता की संधि की।


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