राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त
जन्म
बुंदेलखण्ड के चिरगाँव जिला झाँसी में
मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन् 1886 ई. में हुआ। शिक्षा- घर पर ही
इन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं
बांग्ला साहित्य का ज्ञान प्राप्त किया।
लेखन के प्रति रुचि (प्रेरणा)
मैथिलीशरण गुप्त के पिता
सेठ रामचरण गुप्त कवि तथा रामभक्त थे जिसका गहरा प्रभाव बालक मैथिलीशरण पर भी पड़ा। आचार्य
महावीर प्रसाद द्विवेदी आपके काव्य गुरु थे। द्विवेदी जी की प्रेरणा से ही इनकी
रचनाएँ 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित होने लगी।
सम्मान
1. भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण के अलंकरण से
सम्मानित । 2. मंगलाप्रसाद
पारितोषिक मिला। अनेक वर्षों तक राज्य सभा के सदस्य रहे।
मृत्यु
सन् 1984 ई. में आपका स्वर्गवास हुआ।
रचनाएँ
1. महाकाव्य-साकेत, जय भारत। 2. खंडकाव्य- पंचवटी
यशोधरा आदि। 3. काव्य- भारत भारती, किसान, पृथ्वी पुत्र आदि 4. पद रूपक चन्द्रहास, तिलोत्तमा । 5. अनूदित - मेघनाद वध, स्वप्न वासवदत्ता
भावपक्ष काव्यगत विशेषताएँ
गुप्त जी राष्ट्रवादी
विचार धारा के मूर्धन्य कवि माने जाते हैं। उनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1) गुप्त जी राष्ट्रीय विचारधारा के कवि थे 'मातृभूमि कविता ऐसी ही रचनाओं में से एक है।
2) नारी के प्रति गुप्त जी सदैव आदर भाव रखते थे।
3) गुप्त जी मूलत रामभक्त थे किन्तु सभी धर्मों के प्रति उनमें
आदर भाव था। राम की आराधना में वे लिखते है - "राम । तुम्हारा नाम स्वयं ही काव्य
है. कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।"
4) गुप्त जी मानवतावादी कवि थे। गाँधीवादी विचारधारा से
प्रभावित होकर आपने कई रचनाएँ कीं।
5) ये स्वदेश प्रेमी और अतीत गौरव के उपासक थे।
6) गुप्त जी अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज का आदर्श विकास
करना चाहते थे।
7) गुप्त जी को ईश्वर की भक्ति पर पूरा विश्वास था।
8) ये शांति के प्रेरक और कर्मवाद के समर्थक थे।
9) गुप्त जी ने नव रसों में काव्य रचनाएँ की है। 'साकेत में संयोग और वियोग श्रृंगार, शांत रस तो 'यशोधरा में वात्सल्य और वियोग श्रृंगार रस तथा जयद्रथ वध में
वीर रस में घटनाओं का वर्णन है।
10) मातृभूमि कविता भारत माता को समर्पित हैं।
उदाहरणार्थ
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेष
की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।।
कलापक्ष-भाषा शैली
मैथिलीशरण गुप्त
की रचनाओं का कलापक्ष इस प्रकार है.
1) गुप्त जी ने अपना काव्य सृजन परम्परागत ब्रज भाषा से आरंभ
किया।
2) आगे चलकर आपने साहित्यिक खड़ी बोली में लेखन कार्य किया।
साकेत, यशोधरा जैसी रचनाएँ इसके
उदाहरण है।
3) गुप्त जी की भाषा भावानुकूल सरल एवं गमीर दोनों ही है। सहज, सुबोध, भावप्रवण रचना का एक उदाहरण दृष्टव्य है अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी आँचल में है दूध, और आँखों में पानी।"
4) गुप्त जी की भाषा शैली के बारे दिनकर जी लिखते हैं- गुप्त
जी खड़ी बोली अँगुली पकड़कर चलना सिखाया
5) इनकी रचनाओं में अलंकारों की छटा देखते ही बनती है।
अनुप्रास, रूपक, आदि उदाहरण उनकी रचनाओं में भरे पड़े हैं।
6) आपकी रचनाओं ओज, प्रसाद और माधुर्य गुणों स्वाभाविक उदाहरण मिलेंगे। 7) मात्रिक एवं वर्णिक छन्दों के विविध रूपों का आपने प्रयोग
किया है।
8) आपकी रचनाओं में शृंगार, वात्सल्य, करुण, और वीर रस का प्रचुर सामग्री पढ़ने मिलेगी 9)
कविता में संवाद योजना आपकी सबसे बडी विशेषता
है। 'यशोधरा इसका उदाहरण
10) सीधी, सरल पर लाक्षणिक भाषा आपकी कविता की सबसे बड़ी
विशेषता है। साहित्य में स्थान मैथिलीशरण गुप्त जी अपने युग के प्रतिनिधि कवि थे।
उनकी रचनाएँ हिन्दी काव्य जगत की अमूल्य निधि है। सच्चे अर्थो 'राष्ट्र कवि थे।
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