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उच्चतम न्यायालय | सर्वोच्च न्यायपाति उच्चतम न्यायालय की कार्य तथा शक्तियाँ  - GOES

उच्चतम न्यायालय 

उच्चतम न्यायालय | Supreme court

(Uchttam Nyalay )

भारत एक संघ राज्य है। संघात्मक शासन में न्यायालय दो प्रकार के होते हैं- प्रथम संघ न्यायालय जो संघ के कानूनों की व्याख्या व उनका प्रयोग करते हैं और दूसरे इकाई राज्यों के न्यायालय जो राज्य के कानूनों की व्याख्या तथा प्रयोग करते हैं। किंतु भारत की न्याय व्यवस्था एकीकृत है। यहाँ दोहरी न्याय व्यवस्था को नहीं अपनाया गया है। एकीकृत न्याय व्यवस्था से तात्पर्य है कि सम्पूर्ण भारत के लिए एक न्यायालय है। 

भारत के संविधान ने शीर्ष पर एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की है। जिसके आधीन प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय है। उच्च न्यायालय के अधीन छोटे न्यायालय हैं इस प्रकार भारत के उच्चतम न्यायालय को विश्व के अन्य न्यायालय से अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं वह अपने आधीनस्थ न्यायालयों के कार्यों पर नियंत्रण रखता है। हमारी न्याय व्यवस्था एकात्मक है। 

जबकि राजनैतिक स्तर पर भारत राज्यों का संघ है। देश का उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है। एकीकृत न्याय व्यवस्था जिला न्यायालयों की अपील राज्यों के उच्च न्यायालय में की जाती है तथा राज्य न्यायालयों की अपील उच्चतम न्यायालय में की जाती है ।

     उच्चतम न्यायालय की आवश्यकता व महत्व

    The need and importance of the Supreme Court

    सरकार के तीन अंग हैं:- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका । प्रजातंत्र में न्यायपालिका का महत्व संविधान की रक्षा तथा सरकार की स्वेच्छाचारिता और मनमानी को रोकना है। भारत में संघात्मक सरकार है इसलिए उच्चतम न्यायालय की आवश्यकता व महत्व अधिक बढ़ जाता है ।

    हमारी सर्वोच्च न्यायपाति उच्चतम न्यायालय की कार्य तथा शक्तियाँ

           (Functions and Powers of Supreme Court)

    उच्चतम न्यायालय की कार्य शक्तियाँ विस्तृत है। श्री अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर के अनुसार:- - भारत के उच्चतम न्यायालय को विश्व के किसी भी उच्चतम न्यायालय की अपेक्षा अधिक शक्तियाँ प्राप्त है। उच्चतम न्यायालय को प्रारंभिक, अपीलीय एवं परामर्श संबंधी अनेक व्यापक शक्तियाँ प्राप्त है। ये शक्तियाँ निम्नलिखित हैं:-

    प्रारंभिक क्षेत्राधिकार

    initial jurisdiction

    (1) जब केन्द्र सरकार और एक या अधिक राज्य सरकारों के बीच विवाद हो ।

    (2) जब किसी विवाद में एक पक्ष केन्द्र सरकार तथा एक या अधिक राज्य सरकार हो और दूसरा पक्ष एक या अधिक राज्य हो ।

    (3) जब दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद हो जिसमें वैध अधिकारों के अस्तित्व या विस्तार से संबंधित कोई विचारणीय प्रश्न हो ।

    (4) मूल अधिकार संबंधी मुकदमें भी सर्वोच्च न्यायालय में प्रारंभिक रूप से दायर किये जाते हैं।

     मौलिक अधिकारों से संबंधित शक्तियाँ

    (Powers relating to Fundamental Rights)

    यदि कोई व्यक्ति या संस्था, सरकार या विधायिका किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन करती है तो वह व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय से मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवेदन कर सकता है। उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों का रक्षक है, इसलिए वह मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रकरणों की सीधी सुनवाई करता है। वह परमादेश, प्रतिषेध, बन्दी प्रत्यक्षीकरण अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण आदि लेख जारी कर उनकी रक्षा करता है।

    नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा का यह अधिकार उच्चतम न्यायालय के साथ उच्च न्यायालयों को भी दिया गया है। पर यदि नागरिक सीधे उच्चतम न्यायालय से आवेदन करता है, तो फिर सर्वोच्च न्यायालय विचार करता है। मौलिक अधिकारों से संबंधित वैधानिक प्रश्न पर अंतिम निर्णय उच्चतम न्यायालय का ही होता है। मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायपालिका निम्नलिखित लेख जारी करती है | 


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