सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जीवन परिचय
हिन्दी नवगीत परम्परा के सर्वश्रेष्ठ कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर 1927 ई. को बस्ती उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपकी शिक्षा बस्ती, वाराणसी फिर इलाहाबाद में हुई। अपनी आजीविका के लिए पहले शिक्षकीय कार्य किये इसके बाद आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर हुए। वे साप्ताहिक पत्रिका दिनमान के उप-संपादक थे। बच्चों की पत्रिका पराग का सम्पादन कार्य भी किया। आपका स्वर्गवास 23 सितंबर 1983 ई. में हुआ था।
कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जीवन परिचय
हिन्दी नवगीत परम्परा के सर्वश्रेष्ठ कवि सर्वेश्वर दयाल
सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर 1927 ई. को बस्ती उत्तर
प्रदेश में हुआ था। आपकी शिक्षा बस्ती, वाराणसी फिर इलाहाबाद में हुई। अपनी आजीविका के लिए पहले
शिक्षकीय कार्य किये इसके बाद आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर हुए। वे साप्ताहिक
पत्रिका दिनमान के उप-संपादक थे। बच्चों की पत्रिका पराग का सम्पादन कार्य भी
किया। आपका स्वर्गवास 23 सितंबर 1983 ई. में हुआ था।
रचनाएँ
कव्य :- तीसरा सप्तक काठ की घटियाँ बास का पुल एक सूनी
नाव, गर्म हवाएँ कुआनो का दर्द
बूटियों पर टंगे लोग. क्या कहकर पुकारू प्रेम कविताएँ कविताएँ (1). कविताएँ नदी, जंगल (2) कोई मेरे साथ चले उड़े हुए
रंग
कथा-साहित्य पागल कुत्तों का मसीहा
(लघुउपन्यास) सोया हुआ जल (लघुउपन्यास), (उपन्यास) कच्ची सड़क, अंधेरे पर अंधेरा
नाटक
- 1. बकरी 2 लड़ाई 3. अब गरीबी हटाओ 4. कल भात आएगा तथा
संस्मरण - 1. कुछ रंग कुछ गंध
बाल कविता-1 बतूता का जूता 2. महगू को टाई
बाल नाटक - 1. भो भो खो-खो 2 लाख की नाक
भावपक्ष-
सक्सेना जी की कविताएँ शोषण अन्याय और
अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष और विद्रोह को प्रदर्शित करती हैं। इनकी कविताओं में
एक ओर व्यक्तिगत प्रेम और सौंदर्य चित्रित होती है तो दूसरी ओर शोषित और पीड़ित
मानव के समग्र रूप का चित्रण होता है। वे समाज में विद्यमान असमानताओं का
सूक्ष्मतम् चित्र प्रस्तुत करते हैं। आप नई कविता के जाने माने कवि कहलाते हैं
आपकी कविता नई कविता को नया मोड़ और नई दिशा देने कीदृष्टि से उल्लेखनीय हैं।
कलापक्ष
कवि की भाषा सरल और सहज
है बोलचाल की भाषा से शब्दों का सार्थक चयन उनकी कविताओं में हुआ है। लोकमानस के
चित्र के साथ ग्रामीण भाषा का पुट दिखाई देता है। उनकी कविता रूपक उपमा पुनरूक्ति
अलंकारा से अलंकृत है जिससे कविता के सौंदर्य में अभिवृद्धि होती है। कविताओं में
मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। कविता में मुक्तक छंदों का प्रयोग किया
गया है।
साहित्य में स्थान -: सक्सेना जी हिन्दी नई कविता के नवगीत परम्परा के सशक्त कवि माने जाते हैं। सम्पादक और अनुवादक के रूप में इन्हें विशेषज्ञता हासिल है। आपको अनेक बार राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है। आप हिन्दी साहित्य के इतिहास में तार सप्तक के कवि के रूप में जाने जाते हैं।
कवि धर्मवीर भारती
जीवन परिचय
प्रयोगवादी कविता के सुप्रसिद्ध कवि श्री धर्मवीर भारती का
जन्म गंगा की पवित्र नगरी इलाहाबाद में 25 दिसंबर 1926 ई. में हुआ था। इनकी शिक्षा-दीक्षा अपने गृहनगर में हुई
थी। स्वतंत्र लेखन ही उनका व्यवसाय रहा है। इन्होंने जीवन पर्यन्त सम्पादकीय कार्य
ही किया। 04 सितंबर 1997 को आपका निधन हुआ।
भावपक्ष
:धर्मवीर भारती प्रयोगवादी कविता के शीर्षस्थ
कवि रहे हैं। आप अंधायुग'
जैसे गीत-नाट्य के प्रमुख
नाटककार भी रहे हैं। अज्ञेय के प्रयोगवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में उन्होंने
महत्वपूर्ण कार्य किया। कवि और उपन्यासकार के अलावा यात्रा वृतांत की विधा में भी
माहिर रहे हैं। 'ठेले पर हिमालय
यात्रावृतांत में बहुत ही रोचक शब्दों में आत्मीय से लेखन कार्य किया है जिसे
पढ़कर सहसा ही नैनीताल की वादियों में खो जाने की कल्पना हो सकती हैं।
कलापक्ष
शैली लेखक ने अपनी भाषा
में प्रतीकों एवं बिम्बों का प्रयोग बहुत ही सार्थक रूप में किया है। गद्य में भी
ये बिम्बों और प्रतीकों की काव्य भाषा का प्रयोग सुन्दरतापूर्ण करते हैं। भाषा
प्रतीकों के कारण कहीं-कहीं दुरूह लगती है किन्तु भाषा में लयात्मकता दिखाई देती
है। इनकी आकर्षक भाषा-शैली आत्मीयता और स्वच्छंदता को स्पष्ट करती है।
रचनाएँ
कहानी संग्रह - मुर्दों
का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान, साँस की कलम से, समस्त कहानियों एक साथ
काव्य रचनाएँ :- ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कनुप्रिया, सपना अभी भी आद्यन्त
उपन्यास :- गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापनः
निबंध संग्रह - ठेले पर हिमालय, पश्यंती
कहानियाँ -अनकही नदी प्यासी थी.
नील झील मानव मूल्य और साहित्य, ठण्डा लोहा,
पद्य ना - टक अंधा युग
आलोचना - प्रगतिवाद
एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य
साहित्य में स्थान-
सम्पादक के रूप में राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है। सूरज का सातवाँ घोड़ा' जैसे उपन्यास लिखकर
हिन्दी कथासाहित्य को एक नया आयाम दिया है। 1972 में इन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा
साहित्य के कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से आपको समय-समय पर नवाजा गया था।
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