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साम्राज्यवाद (Imperialism)
साम्राज्यवाद का अर्थ (Meaning of imperialism)
जब कोई शक्तिशाली राष्ट्र दुर्बल राष्ट्र का आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन पर नियंत्रण स्थापित कर उनका शोषण करता है तो उसे साम्राज्यवाद कहते हैं। दूसरे शब्दों में जब कोई राष्ट्र शक्ति प्रयोग कर किसी अन्य राष्ट्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है तथा उसके आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों का हनन करके अपने नियंत्रण में ले लेता है ऐसी स्थिति में शक्तिशाली राष्ट्र की प्रकृति साम्राज्यवादी कहलाती है।
साम्राज्यवाद की परिभाषाएँ (Definitions of imperialism)
"साम्राज्यवाद वह
अवस्था है, जिसमें पूँजीवादी
राज्य शक्ति के बल पर दूसरे देशों के आर्थिक जीवन पर अपना नियंत्रण स्थापित करते
हैं।
साम्राज्यवाद के प्रभाव(Effects of imperialism)
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक तक साम्राज्यवाद ने एशिया और अफ्रीका को पूरी तरह से अपने पंजे में जकड़ लिया था । विश्व की लगभग दो तिहाई जनसंख्या पर विदेशी शासको ने अपना अधिकार कर लिया था। साम्राज्यवाद का प्रभाव लोगों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रूप में पड़ा था ।
सकारात्मक प्रभावः (Positive impact )
1.राष्ट्रीय एकीकरणः(National integration) -
साम्राज्यवादी देशों ने अपने उपनिवेशों में एक ही तरह के कानून, न्याय व्यवस्था और आर्थिक नीति लागू की। साम्राज्यवादी देश पूरे उपनिवेश को एक राजनीतिक और आर्थिक इकाई मानकर शासन करते थे। जिसके फलस्वरूप उपनिवेश का जनता में एकता और राष्ट्रीयकरण की भावना उत्पन्न हुई। हमारा भारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
(2) यातायात और संचार के साध नों में सुधार:( Improvement in means of transport and communication) -
अपने उपनिवेशों का पूरी तरह से शोषण करने के लिए साम्राज्यवादी देशों ने उपनिवेशों में यातायात एवं संचार के साधनों में सुधार किया। जिसके फलस्वरूप उपनिवेशों को नवीन यातायात और संचार के साधन प्राप्त हुए और वहाँ पर रेलवे एवं टेलीफोन जैसे साधनों का विकास हुआ।
(3) आंशिक उदारीकरणः(Partial liberalization) -
यूरोप के पूँजीपतियों तथा सरकार ने अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उपनिवेशों में कुछ आधुनिक उद्योग लगाए ।
(4) पाश्चात्य शिक्षा का प्रसारः(spread of western education) -
औपनिवेशिक देशों में अपने व्यापार, उद्योग को चलाने के लिए बहुत अधिक संख्या में क्लर्कों एवं छोटे कर्मचारियों की आवश्यकता को हुए साम्राज्यवादी देशों ने वहाँ पर पाश्चात्य ढंग की शिक्षा, भाषा एवं साहित्य का प्रचार-प्रसार किया। इसके फलस्वरूप उपनिवेशों में पश्चिमी विचारधाराओं का प्रसार हुआ। साथ ही वहाँ स्वतंत्रता, समानता तथा लोकतंत्र के प्रति प्रेम विकसित हुआ ।
(5) नये प्रदेशों की खोज:( discovery of new territories) -
साम्राज्यवाद के प्रसार के कारण विश्व के अनेक नये प्रदेशों की खोज की गयी। बीसवी सदी में विश्व साम्राज्यवादियों ने वहाँ पर अपने उपनिवेश बसाये। जिसमें विश्व के विभिन्न भागों में सभ्यता और संस्कृति का आदान प्रदान हुआ।
साम्राज्यवाद के नकारात्मक प्रभावः(Negative effects of imperialism)
1.. आर्थिक शोषणः(Economic exploitation) -
साम्राज्यवादी देश एशिया और अफ्रीका के देशों से सस्ते दामों में कच्चा माल उठाते और फिर तैयार माल उन्हीं देशों में ऊंचे दामों पर बेच कर भारी लाभ कमाते थे ।
2. 2.आर्थिक पिछड़ापन:( Economic backwardness) -
साम्राज्यवादी देश द्वारा अपने उपनिवेशों की कृषि, उद्योग धंधों या व्यापार के विकास में कोई रूचि नहीं ली जाती थी।
3.रंगभेद और जातीय भेदभावः(Apartheid and racial discrimination) -
साम्राज्यवादी देशों द्वारा अपने उपनिवेशों की कृषि उद्योग धंधों या व्यापार के विकास में कोई रूचि नहीं ली जाती थी ।
4.निरंकुश शासन:( Autocratic rule )-
साम्राज्यवादी | देश अपने देश में स्वतंत्रता, समानता आदि की बात करते थे। किन्तु उपनिवेश में उनका व्यापार निरंकुश तथा दमनात्मक रहता था।
5 युद्ध और अशांतिः (War and unrest ) -
यूरोपीय देश | अपने उपनिवेशों की संख्या अधिक रखना चाहते थे। जिसके कारण वे आपस में लगातार युद्ध करने की स्थिति में रहते थे। सभी जानते थे कि अधिक उपनिवेश रखने से अधिक मात्रा में कच्चा माल प्राप्त करने के स्त्रोत तथा माल बेचने के लिए बाजार उपलब्ध होंगे।
साम्राज्यवाद के
विकास अद्योगिक क्रान्ति की भूमिका(Role of Industrial Revolution in the development of
imperialism)
1.अधिक लाभ(More profit) -
औद्योगिक क्रान्ति ने एक
नयी पद्धति को जन्म दिया। जिसे पूँजीवादी पद्धति कहा गया। इस पद्धति से नये-नये
क्षेत्रों में पूँजी लगाने की लालसा बढ़ने लगी जिससे लाभ भी अधिक मिला। व्यापारी
वर्ग ने शासकों पर जोर डाला कि नये क्षेत्रों पर अधिकार जमाएं, जिससे कि वे अपने
व्यापारिक गतिविधियों का वहाँ प्रसार कर सकें ।
2.कच्चे माल के नये स्त्रोतों की आवश्यकता:( Need for new sources of raw materials) -
उद्योगपतियों को उत्पादन
के लिए सस्ते एवं अच्छे माल की आवश्यकता थी अतः उन्होंने अपने-अपने देश पर दबाव
डाला कि वे अन्य देशों पर अधिकार करें।
3. तैयार माल के लिए बाजार:( Market for finished goods) -
यूरोप में तैयार माल की खपत लगभग समाप्त हो चुकी
थी। लोगों की आवश्यकता पूर्ति से कई गुना अधिक उत्पादन होने लगा। इस हेतु उन्हें
नये विदेशी बाजारों की आवश्यकता थी । जहाँ वे अपना माल खपा सकें। एशिया और अफ्रीका
में जहाँ एक ओर कच्चे माल के भरपूर भण्डार थे, वहीं दूसरी ओर सस्ते मजदूर भी उपलब्ध थे। यूरोप में लगी
पूँजी पर केवल तीन या चार प्रतिशत लाभ होता था । परन्तु अन्य देशों में बीस
प्रतिशत से भी अधिक लाभ मिल सकता था। पूँजी की सुरक्षा के लिए इन देशों पर
राजनीतिक अधिकार होना आवश्यक था।
4. यातायात और संचार साधनों का विकास-( Development of means of transport and communication) :
साम्राज्यवाद के प्रसार
में यातायात और संचार साधनों का बहुत अधि क महत्व था। साम्राज्यवादी देशों ने अपने
नियंत्रण वाले क्षेत्रों में रेल लाईन बिछाई और जल यातायात का विकास किया। इनका
मुख्य उद्देश्य माल को लाने-लेजाने में सुविधा प्राप्त करना था। ऐसा सोचना बेकार
होगा कि साम्राज्यवादी देश जनता की सुविध के लिए रेलों आदि का प्रबंध करते थे ।
5. कट्टर राष्ट्रवाद:( Radical nationalism) -
19वीं सदी में यूरोप में कट्टर राष्ट्रवाद की भावना अपने में
चरमसीमा पर थी। इंग्लैण्ड,
जर्मनी, फ्रांस, हॉलैण्ड जैसे
छोटे देशों के अधीन विशाल साम्राज्य देखकर अन्य राष्ट्रों को भी इस दौड़ में शामिल
होने की इच्छा जागृत हुई। यह बात उनके राष्ट्र के गौरव और प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक
थी।
6.सभ्य बनाने का बीडा उठाना: ( Civilize )-
यूरोप की श्वेत जातियों का यह सिद्धांत था कि
ईश्वर ने उन्हें श्रेष्ठ बनाया है और वे पिछड़ी हुई जाति को सभ्य बनाए। वे पिछडी जातियों को दास
बनाने के लिए नहीं बल्कि सभ्य बनाने के महान दायित्व की पूर्ति के लिए जी रहे हैं।
7.ईसाई धर्म का प्रसारः(Spread of Christianity) -
इसाई मिशनरियों ने धर्म के साथ-साथ साम्राज्यवादी विचारों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अक्सर मिशनरियाँ अंजान स्थानों में ऐसे लोगों के बीच जाते थे, जो भोले-भाले और छलकपट से दूर होते थे। धीरे-धीरे उसके पीछे लाभ कमाने के लालची व्यापारी और सैनिक भी जाते थे। जो जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा के बहाने युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर देते थे। एशिया और अफ्रीका के लोगों को तरह-तरह का लालच देकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता था । ऐसा करना वे अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझते थे ।
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