नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy)

प्रत्येक परमाणु के नाभिक में प्रोटान तथा न्यूट्रान होते हैं तथा इलेक्ट्रान विभिन्न कक्षाओं में नाभिक को घेरे रहते है। वैज्ञानिकों ने अध्ययनों से यह ज्ञात किया कि किसी पदार्थ के परमाणुओं के केन्द्र में स्थित नाभिक असीमित ऊर्जा के भंडार हैं इसी ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहा जाता है। नाभिकीय ऊर्जा दो प्रकार की अभिक्रियाओं से प्राप्त किया जाता है। ये निम्नवत है।

नाभिकीय ऊर्जा प्रकार

1.नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)

2. नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

    नाभिकीय विखण्डन (Nuclear Fission) 

     इस प्रकार की नाभिकीय अभिक्रिया में एक भारी नाभिक के विखण्डन से अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है जिनके द्वारा यांत्रिक कार्य किया जा सकता है। नाभिकीय विखण्डन के लिए उपयुक्त ईंधन यूरेनियम है । यूरेनियम तत्व दो रूपों में पाया जाता है ।

    समस्थानिक U-238 तथा U-235 यूरेनियम तत्व (U-235) का नाभिक बहुत ही अस्थाई होता है। यदि बहुत मंद गति से भी गतिशील कोई न्यूट्रान इससे टकरा जाये तो यह उसे पूर्ण रूप से खंडित कर सकता है। अतः नाभिकीय विखण्डन वह अभिक्रिया है जिसमें एक भारी नाभिक पर मंद गति के न्यूट्रानों की बमबारी करते हैं। जिससे भारी नाभिक दो हल्के नाभिक में विखंडित हो जाता हैं तथा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है।

    U-235 के नाभिक में 92 प्रोट्रॉन तथा 143 न्यूट्रॉन उपस्थित होते हैं चूंकि यह भारी तत्व हैं अतः इसके परमाणु के नाभिक में नाभिकीय आकर्षण बल एवं स्थिर वैद्युत प्रतिकर्षण बल के बीच संतुलन बहुत लचीला होता है। जब U-235 मे मंद न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है तो संतुलन बिगड़ जाता हैं और यूरेनियम नाभिक का विखण्डन हो जाता हैं जिससे दो हल्के नाभिक जाता है

    यूरेनियम नाभिक का विखण्डन हो जाता है जिससे दो हल्के नाभिक बेरियम (Ba-139) तथा क्रिप्टान (Kr-94) उत्पन्न होते है। ये अदृश्य विकिरण उत्सर्जित कर स्थायित्व प्राप्त कर लेते है। बेरियम और क्रिप्टान के साथ साथ तीन न्यूट्रॉन भी उत्सर्जित होते हैं। ये तीन न्यूट्रॉन अन्य U-235 नाभिक का विखण्डन करते हैं जिसमें से प्रत्येक विखण्डन क्रिया में 3 अन्य न्यूट्रॉन अर्थात कुल 9 न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। ये 9 न्यूट्रॉन पुनः अन्य U-235 नाभिकों का विखण्डन करते हैं और विखण्डन क्रिया का क्रम स्थायी तत्व के नाभिक बनने तक होता रहता है। इस प्रकार के नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया को श्रृंखला अभिक्रिया (Chain reaction) कहते हैं। श्रृंखला अभिक्रिया असीमित होने पर नाभिकीय विस्फोट होता हैं अर्थात परमाणु बम का रूप ले लेता है।

    इस नाभिकीय विखण्डन की अभिक्रिया में कम तरंग दैर्ध्य की गामा किरणें भी उत्पन्न होती है। यह श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती है।

    श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती है

    1.अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction)

    जब यूरेनियम 235 के नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला सतत एवं अबाध रूप से चलने दिया जाये तो अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा के साथ साथ हानिकारक नाभिकीय विकिरण भी उत्सर्जित होते हैं जो बहुत ही कम समय में मानव जाति के लिए विनाशकारी हो सकता हैं तथा आनुवांशिक रोग पैदा कर सकते हैं जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी शहरों में परमाणु बम गिराया गया था जिसका प्रभाव आज भी वहां दिखाई पड़ता है।

    2.नियमित या सीमित श्रृंखला अभिक्रिया (Controlled Chain Reaction)

    जब श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित रूप से संपन्न कराते हैं तो इससे उत्पन्न ऊर्जा को उपयोगी कार्य में प्रयुक्त किया जाता | U-235 के विखण्डन से प्राप्त 3 न्यूट्रॉनों में से दो न्यूट्रॉनों का अवशोषक छड़ों द्वारा अवशोषण कराकर श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित किया जाता हैं। इस प्रकार की नियंत्रित अभिक्रिया को नाभिकीय रियेक्टर में संपन्न कराया जाता है।

    नाभिकीय रियेक्टर (Nuclear Reactor)

    नाभिकीय विखण्डन द्वारा मुक्त ऊर्जा पानी को वाष्पित करने में उपयोग होती हैं जिससे उत्पन्न भाप द्वारा टरबाइन को घुमाया जाता हैं जिससे अंततः विद्युत उर्जा उत्पन्न होती है वे स्थान जहां पर क्रिया संपन्न होती हैं तथा इस प्रकार मुक्त ऊष्मीय ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित की जाती हैं नाभिकीय रियेक्टर कहलाते हैं।

    नाभिकीय रियेक्टर के प्रमुख भाग तथा उनके कार्य

    1. ईंधन- वह पदार्थ है जिसका विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं यूरेनियम अथवा प्लूटोनियम (Pu-239) की छड़ें नाभिकीय रियेक्टर के ईंधन हैं।

    2. मंदक- भारी जल बेरीलियम आक्साइड तथा ग्रेफाइट का उपयोग मंदक के रूप में कियाजाता हैं न्यूट्रानों के वेग को मंद करता है।

    3. नियंत्रक कैडमियम की छड़े नियंत्रक का कार्य करती है अतिरिक्त न्यूट्रानों को अवशोषित कर क्रिया की दर को नियंत्रित करता है।

    4. शीतलक- शीतलक के रूपमें जल का उपयोग करते है जो अतिरिक्त ऊष्मा को लेकर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है यह बाष्प टरबाइन को प्रचालित करती है।

    5. परिरक्षक- रियेक्टर के चारों ओर क्रांकीट की मोटी दीवारें होती हैं जो हानिकारक विकिरणों को बाहर आने से रोककर परिरक्षण का कार्य करती है।

    भारत में नाभिकीय रियेक्टर- भाभा परमाणु शोध केन्द्र मुंबई (महाराष्ट्र) में हैं।

    परमाणु शक्ति संयंत्र

    1.तारापुर परमाणु शक्ति संयंत्र, मुंबई (महाराष्ट्र)

    2. राजस्थान परमाणु शक्ति संयंत्र, कोटा (राजस्थान)

    3. इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र- कलपक्कम, (तमिलनाडू)

    4.नरोरा परमाणु शक्ति केन्द्र - नरोरा,(उ.प्र.)

    नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

    जब अति उच्च दाब तथा उच्च ताप (10K) पर दो हल्के नाभिकों का परस्पर संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाने की अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन कहा जाता हैं। इस अभिक्रिया में अपार ऊर्जा मुक्त होती है।

    उदाहरण के लिए हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम के दो नाभिक संलयित होकर एक हीलियम नाभिक बनाते है।

    ड्यूटीरियम के 1 ग्राम के संलयन से प्राप्त उर्जा कोयले के 6-10 किग्रा को वायु में जलाने से प्राप्त ऊर्जा से भी बहुत अधिक है । यह अभिक्रिया एक अनियंत्रित क्रिया हैं। सूर्य में नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से ही ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इस अभिक्रिया के संपन्न होने के लिए अधिक ताप की आवश्यकता होती है।

    नाभिकीय ऊर्जा के लाभ

    1. U-235 की छोटी सी मात्रा में अत्यधिक मात्रा से ऊर्जा मुक्त होती है।

    2. यूरेनियम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर नाभिकीय ऊर्जा सदैव मिल सकती है।

    3. नाभिकीय विखंडन क्रिया के लिए आक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है।

     नाभिकीय ऊर्जा से हानियां:-

    1. नाभिकीय विखंडन क्रिया में अनेक रेडियों एक्टिव उत्पाद भी उत्पन्न होते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है।

    2. अनेक विकिरणों से मानव शरीर उद्भासित होने से शरीर की कोशिकाएं नष्ट हो सकती है।

    3. नाभिकीय अपशिष्ट से पर्यावरण को हानि पहुँचती है।