प्राकृतिक
चुम्बक
बहुत दिन पहले एशिया माइनर के मैगनेशिया (Magnesia) नामक स्थान पर गहरे भूरे रंग की एक धातु खानों में पाई जाती थी। इस खनिज पदार्थ को उस स्थान के नाम पर ही ""मैगनेटाइट" (Magnetite) कहते थे। इसके खास खास गुण निम्न थे
(i) आकर्षण गुण-जब इस धातु को लोहे के बुरादे के पास लाते थे तो बुरादे के कण इसकी ओर खिंचकर इससे चिपक जाते थे। यह प्रभाव धातु के दोनों सिरों पर ही सबसे ज्यादा होता था।
(ii दैशिक गुण-जब इस धातु के टुकड़े
को बीच में पतले सुद्दढ़ धागे से बांधकर स्वतंत्रता पूर्वक लटाका देते थे तो यह
टुकड़ा हमेशा एक निश्चित दिशा में आकर ठहर जाता था तथा इसके दोनों सिरे लगभग उत्तर
दक्षिण दिशा को इंगित करते थे।
प्राचीन काल के नाविकों को इस धातु के दैशिक गुण का पता था । समुद्र में यात्रा करते हुए दिशा ज्ञान के लिए वे लोग इसका प्रयोग करते थे क्योंकि यह पत्थर उनको मार्ग बतलाता था। ऊपर बतलाए हुए दोनों गुण रखने वाला और पृथ्वी के भीतर पाये जाने वाला यह खनिज ही प्राकृतिक चुम्बक कहलाता है। कुछ दूसरी जगहों जैसे कनाडा नार्वे, फिनलैण्ड इत्यादि में भी यह पाया गया है। इस खनिज में मुख्यतः लोहा और ऑक्सीजन मिले होते है।
कृत्रिम चुम्बक
"प्राकृतिक चुम्बक" अधिकतर आकार में सुडौल होते हैं इनकी आकर्षण शक्ति भी अधिक नही होती इसलिए व्यवहारतः कुछ दूसरी धातुओं को चुम्बक बनाया जाता है इस बने हुए चुम्बकों को ही "कृत्रिम चुम्बक' कहते हैं इनके कई रुप काम मे लाये जाते है।
(i) लम्ब चुम्बक (Bar Magnet) -लम्ब चुम्बक आयताकार लंबे चपटे और ठोस होते है।
(ii) नाल चुम्बक (Horse Shoe Magnet) - यह चुम्बक लोहे के टुकडो को अग्रेजी अक्षर यू के आकार का बनाकर दोनों सिरों को थोडा सा पास कर देने से बनता है।
(iii) चुम्बकीय सुई (Magnetic Needle) - यह पतली और छोटी सी सुई के रुप में होती है। सुई के दोनों सिरे नुकीले और बीच का भाग थोड़ा चपटा होता है। सुई बीच वाले इसी चपटे भाग के बीच में (pivot) चूल पर टिकी हुई रहती हैं स्वतंत्र होने पर यह सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में रहती है।
कृत्रिम चुंबक बनाने की विधियां
कृत्रिम चुम्बक बनाने की दो मुख्य विधियाँ हैं।
(A) चुंबक को लौह पदार्थ
पर रगड़कर (By
Rubbing)
(B) विद्युत से चुम्बक बनाना (By electric current)
चुम्बक को लौह पदार्थ पर रगडकर उसे चुम्बक बनाने की
भी तीन विधियाँ है।
A) चुंबक को लौह पदार्थ पर रगड़कर (By Rubbing)
(i) एक स्पर्शी विधि (Method of Single Touch)
लोहे लंबे और प्रायोगिक छड़ AB को समतल पर रख देते हैं।
बायें हाथ से इसे पकड़कर दायें हाथ में एक लंब चुम्बक लेकर उसका एक सिरा (मान लो
उत्तर ध्रुव) चित्र की तरह, छड़ AB के एक सिरे A पर रखते हैं चुम्बक को इस सिरे से रगडते हुए छड़ के
सिरे 'A' से
दूसरे सिरे 'B' तक ले जाते है। सिरे 'B' पर पहुंचकर चुम्बक को सीधा उठा लेते हैं और फिर से पहले की
तरह चुम्बक को छड़ पर रगड़ते है।
यह क्रिया कई बार करते हैं। प्रायोगिक छड AB को पलटकर उसकी दूसरी सतह
को भी इसी तरह रगड़ते हैं इस प्रकार छड AB चुंबक बन जाता हैं। इस विधि से छड़ का A सिरा उत्तरी ध्रुव व B
सिरा दक्षिण ध्रुव
बन जाता है।
(ii) पृथक स्पर्शी विधि (Method of divided Touch)
इस विधि में एक ही जगह पर दो चुम्बक लेकर उनको चित्र के अनुसार प्रायोगिक छड (A, B) पर रगड़ा जाता है। रगड़ने से पहले दोनों लंब चुम्बकों के विपरीत ध्रुव (एक का 'N' और दूसरे का 'S') पास पास लगाकर छड (A, B) के सिरों पर पहुचने पर दोनों चुम्बकों को उपर उठा लेते है और फिर से पहले की तरह छडके मध्य भाग पर रख देते है। यह क्रिया कई बार दोहराते है इसी प्रकार छड (A, B) की उल्टी सतह को भी इसी तरह रगड़ते है।
इस विधि से बनने वाला चुम्बक एक स्पर्शी विधि से बनने वाले चुम्बक से अधिक शक्तिशाली होता हैं। रगडे जाने वाले चुम्बकों के ध्रुवों से उल्टे ध्रुव छड़ (A, B) के मध्य भाग पर रखते हुये छड़ के दोनों सिरों तक चित्रानुसार लेजाते हैं। सिरों पर पैदा होते है अतः स्पष्ट है कि छड़ का A सिरा N ध्रुव और B सिरा S ध्रुव बन जाता है।
(iii) द्वि-स्पर्शी विधि (Method of Double Touch)
इस विधि में दो लंब चुम्बक लेकर टेबल पर एक सीध में कुछ दूरी पर इस प्रकार रखे जाते हैं कि उनके विपरीत ध्रुव पास पास रहे। प्रायोगिक छड (A, B) को इन चुम्बकों के उपर दोनों के बीच में चित्रानुसार रख देते हैं। फिर दो दूसरे चुम्बक लेकर उनके विपरीत ध्रुव वाले सिरे बिल्कुल पास-पास लाकर छड (A, B) के मध्य भाग पर रख देते हैं। ध्यान रहे कि इन चुम्बकों के पास-पास वाले ध्रुवों के बीच में कार्क का टुकडा रखा रहना चाहिए। अब इन दोनों सिरों को कार्क सहित एक साथ छड (A, B) के मध्य भाग से एक
सिरे तक ले जाते हैं। सिरे A पर पहुंचकर रगड़ने की दिशा बदल देते हैं और पुनः अंतिम सिरे B तक ले जाते हैं यह क्रिया छड़ की एक ही सतह पर कई बार दोहराई जाती हैं। इसके पश्चात दूसरी सतह पर भी यही क्रिया दोहराई जाती है।
छड (A, B) पर रगडे जाने वाले सिरो के ध्रुवों से विपरीत ध्रुव छड़ पर उत्पन्न होते हैं। स्पष्ट है कि छड का सिरा A, N ध्रुव और सिरा B, S ध्रुव बनता है।
(B) विद्युत द्वारा चुम्बक
बनाना (MAGNETISATION by Electric Current)
शक्तिशाली चुम्बक बनाने की यह सर्वश्रेष्ठ विधि हैं जिस आकार का चुंबक बनाना होता हैं उसी रुप और आकार वाला इस्पात का टुकड़ा लेकर उसके उपर तांबे का पतला तार लपेट देते हैं तांबे के इस तार के उपर सूत रेशम या किसी दूसरे कुचालक पदार्थ का लेप चढा रहता है। साथ ही तार की कई लपेटे (turns) एक दूसरे के उपर कई तहों (layers) के रुप में छड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लपेटी जाती हैं। इस तरह लिपटे हुए तार को कॉइल (Coil) कहते है ।
काईल (Coil) के दोनों सिरों को एक बैटरी के सिरों से जोड दिया जाता हैं। परिपथ में धारा का मान नियंत्रण करने के लिए एक कुंजी K (key) और एक परिवर्ती प्रतिरोध (R) भी लगा होता हैं कुंजी को लगाकर धारा प्रवाहित करते हैं जिससे (Coil) के भीतर वाले छड़ में का गुण आ जाता है।
चुम्बकत्व के आणविक सिद्धांत
यदि एक दण्ड चुम्बक को सावधानी पूर्वक छोटे छोटे भागों में विभाजित किया जाये तो प्रत्येक भाग स्वयं में एक पूर्ण चुम्बक रहता हैं, और उसमें दोनों ध्रुव N व S विद्यमान रहते है। अर्थात चुम्बक को कितना भी विभाजित क्यों न किया जाये ऐसी स्थिति कभी भी नहीं आयेगी जबकि उसमें एकल N ध्रुव या S ध्रुव विद्यमान हो। इस घटना को सर्वप्रथम जर्मन वैज्ञानिक बेबर ने स्पष्ट किया था जिसमें बाद में एविंग ने इस सिद्धांत में कुछ संशोधन किया एवं चुम्बकत्व के आणविक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसकी प्रमुख परिकल्पनाएं निम्न है :-
1. किसी चुम्बक की सहायता से कुछ विशेष पदार्थों में चुम्बकत्व उत्पन्न किया जा सकता है। इन पदार्थों को चुम्बकीय पदार्थ कहते है। लोहा इस्पात आदि पदार्थों से बने विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को किसी चुम्बक से रगडकर स्थायी चुम्बक बनाया जा सकता है।
2. प्रत्येक चुम्बकीय पदार्थ का अणु
एक पूर्ण चुम्बक होता हैं इसे मूल चुम्बक कहते है।
3. प्रत्येक चुम्बकीय अणु को एक छोटे तीर द्वारा दिखाया गया हैं जिसके सिरो पर उत्तरी ध्रुव (N) तथा दक्षिणी ध्रुव (S) अंकित किया गया हैं। सामान्य अवस्था में चुबंकीय पदार्थ
अचुम्बकीय अवस्था में प्राप्त होता है। इस अवस्था को दिखाने के लिए विभिन्न अणुओं के समूह को दिखाया गया है। जो बंद समूह बनाते हैं जिसके फलस्वरुप पदार्थ चुम्बकित अवस्था में नहीं होता
4. चुम्बकीय पदार्थो को चुम्बकित करने की प्रक्रिया में उनके N-S के बंद समूह टूटने लगते हैं तथा एक रेखा में श्रेणीबद्ध होने लगते है। सभी अणु चुम्बकों के N सिरे एक दिशा में तथा S सिरे विपरीत दिशा में श्रेणीबद्ध होने लगते हैं। एक स्थिति ऐसी आ जाती हैं कि सभी अणु श्रेणीबद्ध हो जाते है। इस स्थिति में पदार्थ के एक सिरे पर केवल उत्तरी ध्रुव (N) तथा दूसरे सिरे पर केवल दक्षिणी ध्रुव (S) उपस्थित रहते हैं फलतः चुम्बकीय पदार्थ चुम्बक बन जाता है
चुम्बकत्व का विनाश (Destruction of magnetism)
आणविक सिद्धांत के अनुसार वस्तु तबतक चुम्बक बनी रहती हैं जब तक उसके अणु श्रेणियों में क्रम बद्ध रहते हैं चुम्बकत्व का विनाश तभी होता हैं जब चुम्बक बंद समूह बना लेते है। के अणु श्रेणियों को तोड़कर पुनः बंद समूह बना लेते है।
किसी स्थायी चुम्बक का चुम्बकत्व निम्न तीन कारणों से नष्ट हो सकता है।
1. चुम्बक को पीटने से पीटने अथवा पटकने से कुछ अणुओं की गतिज ऊर्जा बहुत बढ जाती हैं जिससे अणु तीव्रता से दोलन करने लगते हैं एवं समीपवर्ती विजातीय ध्रुव के आकर्षण क्षेत्र से बाहर चले जाते हैं और पुनः विभिन्न अणुओं से बंद समूह बना लेते है।
2 चुम्बक को गर्म करने से जब चुम्बक को गर्म किया जाता हैं तो उनकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि हो जाती हैं एवं अणु तीव्र वेग से दोलन करने लगते हैं। जिससे वे समीपवर्ती विजातीय ध्रुवों के आकर्षण क्षेत्र से पृथक होकर अन्य विजातीय ध्रुव के साथ बंद समूह बना लेते हैं एवं अचुम्बकित अवस्था में आ जाते है।
3. अन्य चुम्बकीय वस्तुओं से संपर्क-जब चुम्बक का कोई ध्रुव अन्य सजातीय ध्रुव के संपर्क में या प्रभाव में आता हैं तो उसमें प्रतिकर्षण होता है। जिससे श्रेणियाँ भंग हो जाती हैं और वे अणु अन्य विजातीय ध्रुवों केसाथ बंद समूह बना लेते हैं। जिससे चुम्बकत्व क्षीण हो जाता है।
चुम्बकीय रक्षक (Magnetic Keeper)
हम जानते है कि चुम्बकीय प्रभाव से किसी चुम्बक का
चुम्बकत्व क्षीण हो जाता हैं तथा यदि किसी चुम्बक को कुछ समय के लिए स्वतंत्र पडा
रहने दिया जाए तो पृथ्वी एवं अन्य चुम्बक का प्रभाव उसके चुम्बकत्व को क्षीण करता रहेगा।
इसे रोकने के लिए चुम्बकीय रक्षकों का प्रयोग किया जाता हैं चुम्बकीय रक्षक नर्म लोहे के
विभिन्न आकार में कटे टुकडो को कहा जाता हैं जिन्हें चुम्बक के सिरों पर रखते है।
प्रयोगों द्वारा पाया गयाहै कि यदि दो दण्ड चुम्बकों के विजातीय ध्रुवों को
समीप रखकर
(उनके बीच लकडी या कार्क का टुकड़ा रखकर ) उसके दोनों सिरों पर नर्म लोह के टुकडे लगा दिये जाए
तो उनका
चुम्बकत्व लंबे समय तक स्थायी बना रहता है।
क्योंकि इस प्रकार की व्यवस्था करने से एक बंद समूह का निर्माण होता हैं। जिसके कारण बाह्य चुम्बकीय बल उन्हें प्रभावित नहीं कर पाता। अश्वनाल चुम्बक में उसके दोनों विजातीय ध्रुव समीप होते हैं। अतः दोनों ध्रुवों को मिलाते हुए एक नर्म लोहे का टुकडा लगा दिया जाता हैं जो चुम्बकीय रक्षक का कार्य करता हैं।
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