मादा जनन अंग

    मादा जनन तंत्र निम्न अंगों 

    1. अण्डाशय (Ovary) 

     स्त्री में एक जोडी अण्डाशय उदर गुहा में पृष्ठतल से चिपके रहते हैं।

    2. अण्डवाहिनी या फेलोपियन नलिका

     प्रत्येक अण्डाशय के पास से एक नलिका शुरु होती है. जिसे अण्डवाहिनी या फेलोपियन नलिका कहते हैं। अण्डवाहिनी के दूसरे सिरे गर्भाशय से जुड़े रहते है।

    3. गर्भाशय ( Uterus)

    यह नाशपाती के आकार की रचना है। यह निषेचित अण्डाणु को भ्रूण बनने तथा उनके विकास के लिए स्थान प्रदान करता है।

    4. योनि (Vagina)

    गर्भाशय एक संकरे कक्ष में खुलता है जिसे योनि कहते है। यह एक संकरे छिद्र द्वारा बाहर खुलती है जिसे योनिद्वार कहते हैं। मैथुन के समय शुक्राणु योनिमार्ग से अंडवाहिनी में पहुँचते हैं, जहाँ अंडकोशिका से मिल सकते है। निषेचन के पश्चात् निषेचित अंड या युग्मनज गर्भाशय में स्थापित हो जाता है तथा विभाजन होने लगता है।

    अतः गर्भाशय प्रत्येक माह भ्रूण को ग्रहण करने एवं उसके पोषण की तैयारी करता है। इसकी आंतरिक पर्त मोटी होती जाती है और भ्रूण के पोषण हेतु रुधिर प्रवाह भी बढ जाता है। भ्रूण को माँ के रुधिर से ही पोषण मिलता है। इसके लिए एक विशेष संरचना होती है जिसे प्लेसेंटा कहते हैं। यह माँ से भ्रूण को ग्लूकोज, ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों का स्थानातरण करती है। यदि अडकोशिका का निषेचन नहीं होता तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है।

    अण्डाशय प्रत्येक माह एक अंडे का मोचन करता हैं। निषेचन अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय प्रति माह तैयारी करता है। अतः इसकी अंकभित्ति मांसल एवं स्पॉजी हो जाती है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में इसके पोषण के लिए आवश्यक है परन्तु निषेचन न होने की अवस्था में इसकी आवश्यकता नही होती अतः यह पर्त धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधिर तथा म्यूकस के रूप में निकलती है। इस चक्र में लगभग 28 दिन का समय लगता है इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।