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वायु प्रदूषण (Air Pollution) क्या है ? कारण |  रोकथाम एवं नियंत्रण | वायु संरक्षण के उपाय

वायु प्रदूषण (Air Pollution)

वायु विभिन्न प्रकार के गैसों का मिश्रण है। इन गैसों का वायुमण्डल में एक निश्चित अनुपात होता है। वायुमण्डलीय गैसों में अपनी मात्रा को संतुलित रखने की प्राकृतिक व्यवस्था होती है, परन्तु यदि किन्हीं कारणों से इनके अनुपात में परिवर्तन होता है अर्थात वायु के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवांछनीय परिवर्तन जो मनुष्य तथा उसके वातावरण को नुकसान पहुंचाता है वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु में नाइट्रोजन (78.08%) आक्सीजन (2095%) आर्गन (0.9346) कार्बन डाइआक्साइड (0.032%) तथा अन्य गैसें (0.002%) हैं। आक्सीजन एक आवश्यक तत्व है तथा पौधों तथा जन्तुओं के श्वसन के लिए आवश्यक है। अनॉक्सी श्वसन करने वाले जीवों की संख्या कम है।

    वायु प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution)

    (1) जीवाश्म ईंधन के दहन से कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों के दहन से CO2, CO. SO2, नाइट्रोजन आक्साइड तथा कार्बनिक कण वायु में पहुँचकर उसे प्रदूषित करते हैं।

    (2) कारखानों में होने वाली ज्वलन क्रिया से उत्पन्न धुएँ

    (3) स्वचालित वाहनों में प्रयुक्त ईंधन के दहन से उत्सर्जित धुएँ में विषैली गैसें वायु को प्रदूषित करती है। शहरों में 80% प्रदूषण इसी का परिणाम है।

    (4) ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले को जलाकर विद्युत उत्पन्न किया जाता है। जिससे कालिख एवं फ्लाई ऐश इत्यादि प्रदूषक पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

    (5) परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न रेडियोधर्मी कण प्रदूषण फैलाते हैं।

    (6) ज्वालामुखी के उद्गार से विभिन्न गैसे एवं प्रदूषक पदार्थ प्राप्त होते हैं।

    (7) रेफ्रीजरेटर से उत्पन्न रसायन क्लोरोफ्लोरो कार्बन ओजोनपत को हानि पहुँचाती है।

    (8) विलायकों के प्रयोग से उत्पन्न प्रदूषक पैंट वार्निश प्रयोगशाला में कई वाष्पशील विलायकों के प्रयोग से उत्पन्न प्रदूषक वायु को प्रदूषित करते हैं।

    वायु प्रदूषण का रोकथाम एवं नियंत्रण:-(Prevention and Control of Air Pollution)

    (1) कारखानों के चिमनियों को ऊँचा बनाना चाहिए तथा उत्सर्जित धुएँ का उपचार करना चाहिए कारखानों में ESP उपकरण का प्रयोग करना चाहिए।

    (2) अधिक धुआँ उत्पन्न करने वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

    (3) वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना चाहिए तथा वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

    (4) घरों के समीप पेड़ लगाना चाहिए जिससे पर्यावरण स्वच्छ होता हैं।

    (5) ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले रसायनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

    वायु संरक्षण(Air Conservation):-

    ऑक्सीजन वायु का एक प्रमुख अवयव है तथा सभी जीवधारियों के लिए CO2, (ऑक्सीजन) अत्यंत आवश्यक है। अतः वायु संरक्षण का अर्थ इसके समुचित उपयोग से है। अतः हमें इस और सार्थक प्रयास करना चाहिए।

    वायु संरक्षण के उपाय:-

    1. धुआं रहित ईंधन का प्रयोग करना चाहिए।

    2. कारखानों की चिमनियों को ऊँचा बनाना चाहिए।

    3. अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए जिससे O2, तथा CO2 को जैविक घटक प्राप्त कर सके।

    4. वाहनों के अनावश्यक प्रयोग से बचना चाहिए।

    5. कल कारखानों को शहर से दूर स्थापित करना चाहिए।

    मृदा प्रदूषण:-(Soil Pollution)

    जीवधारियों के लिए मृदा (मिट्टी) प्राकृतिक आवास होता है। जीवधारियों को ख़ुदा से जल एवं खनिज लवण प्राप्त होते हैं। मिट्टी जमीन का वह ऊपरी परत है, जिसमें खनिज व अन्य कार्बनिक पदार्थ मिले होते हैं, तथा जिस पर पेड़ पौधे उग सकते हैं। पौधों के माध्यम से ही जन्तुओं को पोषण मिलता हैं। बढ़ती हुई आबादी के भोजन हेतु अधिक पैदावार लेने के लिए मनुष्य अनेक कीटनाशी कवकनाशी आदि रसायनों का प्रयोग, कीट एवं कवकों को नष्ट करने के लिए करता है, वे पदार्थ खेत की मिट्टी में मिल जाते हैं, जिनके कारण खेत की उर्वरता कम हो जाती हैं तथा मृदा का स्वरुप विकृत हो जाता हैं। मृदा के विकृत होने को ही मृदा प्रदूषण (soil pollution) कहते है। बहुत से हानिकारक पदार्थ पौधों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचते हैं। जिनके कारण अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

    मृदा प्रदूषण के कारण :-(Causes of Soil Pollution)

    (1) ठोस कचरे के कारण मृदा प्रदूषण उत्पन्न होता है। ठोस कचरे के अंतर्गत प्लास्टिक, रबर, चमड़ा ईंट, कॉच, कागज आदि आते हैं।

    (2) मनुष्य तथा जीव जन्तुओं के मल-मूत्र का उचित प्रकार से निपटारा न करना।

    (3) घरेलू तथा औधोगिक अपशिष्टों को भूमि पर फेंक देना ।

    (4) कोयले तथा खनिज एवं धातु कर्म से प्राप्त वर्ज्य पदार्थ को भूमि पर फैलाना ।

    (5) उर्वरकों कीटनाशियों तथा कवकनाशियों का अधिकाधिक प्रयोग मृदा की प्राकृतिक संरचना को बदल देता है।

    (6) नाभिकीय विस्फोटों के कारण रेडियोधर्मी पदार्थों का भूमिपर गिरना ।

    (7) औद्योगिक अनुसंधान केन्द्रों एवं अस्पतालों में रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थों को भूमि पर बहा

    (8) अम्लीय वर्षा (acid rain) के घटक मृदा को प्रदूषित करते हैं।

    मृदा प्रदूषण का रोकथाम एवं नियंत्रण :-(Prevention and control of Soll Pollution)

    (1) ठोस कचरे का पुनः चक्रण कर उपयोगी पदार्थ बनाया जा सकता है।

    (2) मनुष्य एवं जीव जन्तुओं के मल मूत्र का उचित निपटारा किया जाना चाहिए।

    (3) ठोस अपशिष्ट से गड्ढों की भराई किया जावे तथा प्लास्टिक पदार्थों को कोलतार में मिलाकर सड़क बनाने में उपयोग किया जा सकता है।

    (4) कीटनाशी जैसे रसायनों का कम उपयोग किया जाये।

    (5) उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग किया जाये।

    (6) फसल चक्र अपनाकर फसलों का उत्पादन किया जावे।

    (7) प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

    (8) खेतों के किनारें और ढलान भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।

    मृदा प्रदूषण को रोकना आज की एक प्रमुख आवश्यकता है। क्योंकि खाद्य पदार्थ जल एवं अन्य सामग्रियां मृदा की गुणवत्ता पर निर्भर करती हैं।

    मृदा संरक्षण के उपाय

    1. फसल चक्र अपनाकर मृदा की उर्वरा शक्ति को संरक्षित करना चाहिए।

    2. पशुओं के अतिचारण पर रोक लगाना चाहिए।

    3. बांध बनाकर बाद तथा जल के प्रवाह द्वारा मृदा की हानि को रोका जा सकता है।

    4 ढलान वाले स्थानों पर सीढ़ीदार खेती का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे मृदा अपरदन को रोका जा सके।

    5. कंपोस्ट खाद का प्रयोग कर मृदा का पुनः पूरण करना चाहिए।

    6. रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशी का प्रयोग कम करना चाहिए।

    जल प्रदूषण:- (Water Pollution )

    जीवन के लिए जल परमावश्यक पदार्थ है साथ ही यह कृषि एवं उद्योगों के लिए भी आवश्यक है। उपलब्धता की तुलना में उसकी खपत अधिक है। यही कारण है कि भूमिगत जल का स्तर नीचे गिर रहा है। पीने योग्य जल पारदर्शी रंगहीन तथा गंधहीन होता है एवं पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन घुली होती है। यह जल हानिकारक रसायनों एवं जीवाणुओं से मुक्त होता है। परन्तु जब जल में ऐसे अवाछित पदार्थ मिल जाए जिससे जल के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाए तब जल दूषित हो जाता है तथा प्रयोग हेतु अनुपयुक्त हो जाता है इस प्रकार यह जल प्रदूषण कहलाता है।

    जल प्रदूषण के कारण :-(Causes of Water Pollution)

    जल प्रदूषण के निम्नवत कारण हैं।

    1.घरेलू अपमार्जक एवं वाहितमल (Household detergent and sewage):-

    अपमार्जकों का उपयोग नहाने धोने बर्तनों की सफाई, घरों की सफाई के लिए किया जाता है जिसके कारण जल में अनेक प्रकार के रसायनों के घुल जाने से जल प्रदूषित हो जाता है। इसी प्रकार वाहित मल छोटी बडी नालियों द्वारा जब भण्डारों में मिल जाते हैं जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। जिसमें जलीय जीव के साथ-साथ जो इस जल का प्रयोग करते हैं प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित होते हैं

    (2) औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial wastes):-

     कारखानों में प्रयुक्त कच्चे माल के कारण अनेक प्रकार से अपशिष्ट बनते हैं जिन्हें नदी नालों समुद्री या खुले स्थान पर छोड़ देते हैं। इन अपशिष्टों में हानिकारक रसायन होते हैं जिनका बुरा प्रभाव जीवों पर पड़ता है।

    (3) कृषि कार्य में प्रयुक्त कीटनाशी पदार्थों के जल में मिलने से जलीय जन्तुओं में विषाक्तता उत्पन्न होती हैं। जैसे मछलियों में इन मछलियों को खाने से छोटे जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है।

    (4) खनिज तेल- मुख्य रूप से महासागरीय जल को प्रदूषित करते हैं। तेल वाहक टैंकरों की दुर्घटना से समुद्र में तेल फैल जाता है जिससे जलीय जन्तुओं को श्वसन में कठिनाई होती है।

    (5) जल स्त्रोतों के निकट मानव के द्वारा अवांछित क्रिया कलापों से (जैसे-नहाना, पशुओं को नहलाना, घूरे का निर्माण करना आदि) जल प्रदूषित होता है। जिससे संक्रामक सूक्ष्मजीव उत्पन्न होते हैं तथा कई प्रकार के संक्रामक बीमारियाँ होती है।

    जल प्रदूषण का रोकथाम एवं नियंत्रण

    जल को प्रदूषित होने से बचाना हमारा उत्तरदायित्व है क्योंकि जल के अभाव में जीवधारी

    (1) घरेलू अपमार्जक एवं मलवाहित जल को उपचारित कर नदी नालों में प्रवाहित किया जाए। हेतु कहा जाए।

    (2) औद्योगिक अपशिष्ट युक्त जल का उपचार करने हेतु उद्योगों में जल शुद्धि संयंत्र लगाने

    (3) जल स्त्रोतो के निकट उद्योगों को न बसाया जाए।

    (4) जल स्त्रोतों में लोगों को स्नान करने की अनुमति नहीं देना चाहिए और न ही पशुओं को नहलाना चाहिए।

    (5) हानिकारक कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ।

    (6) जल शोधन संयंत्रों में कम से कम रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।

    (7) समुद्र में तेल कूपों से होने वाले तेल रिसाव पर रोक के कारगर उपाय करना चाहिए।

    (8) परमाणु कचरे को समुद्र में बहा देने के पूर्व उनको उपचारित किया जाना चाहिए।

    जल संरक्षण के उपाय

    1. पहाड़ी क्षेत्रों में जल संग्रहण प्रणाली होना चाहिए।

    2. जल प्रदूषण को रोकना चाहिए जिससे जलीय जीवों का संरक्षण भी हो सके।

    3. जंगलों को सुरक्षित रखना तथा नये वनों को लगाना चाहिए।

    4. भूमि कटाव को रोककर जलाशयों को पटने से बचाना चाहिए।

    5 बांध बनाकर जल का संग्रह करना चाहिए जिससे उद्योगों को पानी उपलब्ध हो सके।

    6. जल के विशाल स्त्रोत समुद्र के जल की उपयोगिता पर ध्यान देना चाहिए।

    ध्वनि प्रदूषण (Sound or Noise Pollution):-

    अवांछित तीव्र ध्वनि या आवाज को शोर (noise) कहते हैं। जब किसी वस्तु से उत्पन्न ध्वनि कानों की सहन सीमा से अधिक हो जाती है तो वह ध्वनि अरुचिकर हो जाती है। उसे ही शोर कहते हैं। इस प्रकार अवांछित आवाज या ध्वनि जो मानव के कानों को अप्रिय लगे या कष्ट पहुचाए उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। वातावरण में चारों ओर फैली अवांछनीय ध्वनि को प्रदूषण कहा जाता है। यह अवाछित ध्वनि आज के आधुनिक समाज की एक हिस्सा बन गई हैं।

    ध्वनि तरंगों के रुप में हमारे कानों तक पहुँचाती हैं और हम उसको सुनते हैं ध्वनि तरंगे अपने स्त्रोत के केन्द्र से चारों दिशाओं में वायु से होकर गोलीय रूप में चलती है। ध्वनि वायु द्रव, ठोस सभी माध्यमों में चलती है। ध्वनि की तीव्रता इकाई डेसिबल है सामान्य बातचीत से उत्पन्न ध्वनि 60 डेसिबल होती है। 100 डेसिबल शोर से रक्त वाहिनी छोटी हो जाती है और सिकुड जाती है श्वसन प्रक्रिया भी प्रभावित होता है। देर तक चलने वाले शोर से श्रवण शक्ति का ह्रास होता है। इसके अतिरिक्त हृदय रोग और उच्च रक्त चाप (High blood pressure) भी हो सकता है।

    ध्वनि प्रदूषण के कारण (Causes of Sound Pollution)

    1. प्राकृतिक कारणों:- से बिजली की कड़क बादलों की गरज तूफानी हवाएँ, झरनों से उत्पन्न ध्वनि वन्य जीवों की आवाजें आदि। इनसे उत्पन्न शोर क्षणिक होता है तथा इसका प्रभाव भी क्षणिक होता है।

    2. परिवहन के साधन:- स्कूटर कार, बस ट्रेन वायुयान, टैंक, ट्रक आदि से उत्पन्न शोर

    3. सुरक्षा उपकरणों से बंदूक बम मशीनगनों प्रक्षेपास्त्र परमाणु विस्फोट आदि से भयंकर शोर होता है। इनसे उत्पन्न आवाजों दूर-दूर तक सुनाई देती है।

    4. खनन (mining) कार्य करते समय विस्फोटकों के प्रयोग से तथा आकस्मिक चट्टान के धसक जाने से उत्पन्न शोर कामगारों को प्रभावित करते हैं।

    5. आकस्मिक दुर्घटनाओं जैसे गैस सिलिण्डर का फटना बस, ट्रक आदि का टायर फटने से पटाखे की दुकान में आग लगने से भी ध्वनि प्रदूषण होता है।

    6. मनोरंजन के साधनों के प्रयोग से रेडियो, टेपरिकार्डर पॉप संगीत, नगाडों ढोल आदि के आवाज (जिनका उपयोग उत्सवों में किया जाता है) से ध्वनि प्रदूषण होता है।

     ध्वनि प्रदूषण का रोकथाम एवं नियंत्रण (Prevention and Control of Sound Pollution):-

    ध्वनि प्रदूषण से मानव ही नहीं अपितु अन्य जीव भी प्रभावित होते हैं। ध्वनि प्रदूषण को पूर्ण रूप से समाप्त कर देना संभव नहीं है परन्तु निम्नलिखित उपायों से इसे कम किया जा सकता है.

    1.ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। घरों में भी टी.वी. रेडियो आदि उपकरणों आवश्यकतानुसार ही उपयोग में लोना चाहिए। को

    2. कारखानों को बसावट (आबादी) से दूर स्थापित करना चाहिए।

    3. सडक किनारे पर्याप्त संख्या में वृक्षारोपण कर ध्वनि प्रदूषण को कम कर सकते है।

    4. कारखानों तथा उद्योगों में शोर अवशोषक दीवारों का निर्माण करना चाहिए।

    5. ऐसे उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए जो कम शोर करते हैं।

    6. वाहनों में लगे हानों को आवश्यकतानुसार ही प्रयोग में लाना चाहिए। वाहनों के शोर को नियंत्रित करना चाहिए।

    7.हवाई अड्डों,रॉकेटो तथा यानों के शोर को नियंत्रित करना चाहिए।

    मृदा संरक्षण (Soil Conservation)

    मृदा (Soil) भूमि की उपरी परत होती है इस परत में खनिज लवण वायु एवं जल पाये जाते हैं जो जीवन के आवश्यक हैं। मनुष्य समुदाय भोजन के लिए कृषि पर आधारित रहता है। अतः इसका नियंत्रित एवं संतुलित प्रयोग करना मनुष्य का उत्तरदायित्व है। मृदा की उर्वरा शक्ति को बनाये रखना तथा कृषि योग्य भूमि को बचाये रखना मृदा संरक्षण कहलाता है।