संक्रामक या संसर्ग रोग

(COMMUNICABLE OR INFECTIOUS DISEASES)

 

ये रोग अधिक हानिकारक होते हैं, क्योंकि ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित होकर पूरे समुदाय को प्रभावित कर सकते हैं। कभी-कभी ये बहुत बड़े क्षेत्र में अचानक फैल जाते हैं। ऐसी स्थिति में इन्हें महामारी (Epidemic) कहते हैं।

    संक्रामक रोगों का संचरण (Transmission of Infectious Diseases)

    प्रत्येक संक्रामक रोग के रोगाणुओं के लिये एक रोगाणुकोष होता है, जहाँ से ये रोगाणु स्वस्थ व्यक्तियों के शरीर को संक्रमित करते हैं। यह रोगाणुकोष किसी जन्तु का शरीर, वायु, जल इत्यादि हो सकता है। रोगाणुओं का संचरण निम्नलिखित विधियों द्वारा हो सकता है।

    1.परोक्ष या सीधा संचरण (indirect or direct transmission)-

    वह संचरण है, जिसमें रोगाणु सीधे रोगी से स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में जाता है यह संचरण निम्नलिखित विधियों द्वारा हो सकता है

    (a) रोगी तथा स्वस्थ व्यक्ति का स्पर्श, (b) थूक, छींक, साँस इत्यादि के द्वारा संचरण, (c) वस्त्र इत्यादि के द्वारा रोगी तथा स्वस्थ व्यक्ति का सम्पर्क, (d) माता से बच्चे में संक्रमण, (e) भूमि तथा जल द्वारा रोगी तथा स्वस्थ व्यक्ति का सीधा सम्पर्क।

     (2) अपरोक्ष संचरण (Indirect transmission)-

     वह संचरण है, जिसमें रोगी तथा स्वस्थ व्यक्ति का सीधा सम्पर्क नहीं होता है। यह संचरण कुछ निश्चित वाहकों के द्वारा होता है। ये वाहक कीट, दूसरे जन्तु तथा स्वयं मनुष्य हो सकते हैं। ऐसे जीवों को, जिनमें किसी रोगी के रोगाणु तो हों, लेकिन उसमें रोगाणु से पैदा होने वाला रोग न लगा हो, वाहक (Carrier) कहते हैं ।

      अत: संक्रामक रोग अग्रलिखित कारकों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है

     (i) वायु (By air) —संक्रामक रोगों के कारक सूक्ष्म जीव मुख्यतः वायु के द्वारा ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। चेचक, खसरा, क्षय-रोग, निमोनिया इत्यादि वायु के माध्यम से फैलने वाले प्रमुख संक्रामक रोग हैं। वायु से संचरित होने वाले संक्राम रोगों को वायु वाहित रोग कहते हैं।

     (ii) भोजन, जल तथा दूध (By liquids, like milk, water and food)-  कुछ संक्रामक रोग दूषित या संक्रमित भोज्य पदार्थों के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। ऐसे रोगों को भोजन, जल अथवा दूध वाहित रोग कहते हैं।हैजा टायफॉइड, पेचिस तथा अंकुश कृमि रोग, इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

     (iii) कीटों, जानवरों अर्थात् वाहक (By animals, insects or carrier) -उन जीवों को, जो संक्रामक रोगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुँचाते हैं, वाहक कहते हैं। मक्खी, मच्छर तथा स्वयं मनुष्य संक्रामक रोगों के वाहक हैं। मलेरिया, हैजा, प्लेग तथ रैबीज वाहकों द्वारा फैलने वाले संक्रामक रोग हैं। वाहकों द्वारा फैलने वाले रोगों को वाहकजन्य रोग कहते हैं।

     (iv) संसर्ग (Contact)-एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के स्पर्श को संसर्ग कहते हैं। दाद, खाज-खुजली, पायरिया इत्यादि सीधे सम्पर्क से फैलने वाले संक्रामक रोग हैं। ऐसे रोगों को संसर्गजन्यरोग कहते हैं। संक्रामक या संसर्ग या संचारी रोगों की अवस्थाएं

    सामान्यतः रोग, रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं द्वारा उत्पादित विष के कारण होता है। प्रत्येक संक्रामक रोग के लक्षण अलग अलग होते है।

     लेकिन प्रत्येक संक्रामक रोग में कुछ निश्चित अवस्थाएँ पायी जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं

    (1)संप्रति काल ( inclination period) - इस  अवस्था में रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर विष उत्पन्न करने के साथ-साथ अपनी संख्या में वृद्धि करके रोग की नींव डालते हैं।

    2) संकनमा काल (Onset period)-इस अवस्था में रोगाणु द्वारा रोग के लक्षण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं, जिससे रोगी के अस्वस्थता बढ़ने लगती है।

     3) प्रकोप काल (Climax period)—इस अवस्था में रोग अन्तिम बिन्दु पर पहुँचकर उसके लक्षण पूर्ण करते हैं। इस अवस्था में रोगी की मृत्यु हो जाती है।

     (4) शमन काल (Decline period) इस अवस्था में रोग के लक्षण और प्रकोप कम होने लगता है।

     (5) समाप्ति काल (Period of convalescence )-इस अवस्था में रोगाणु द्वारा होने वाला रोग समाप्त हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी को कुछ खाने की इच्छा होती है, भूख लगने लगती है तथा घूमने-फिरने की इच्छा होती है, परन्तु कुछ रोगियों में अस्वस्थता समाप्ति के पश्चात् कुछ रोगाणु के अंश उसके शरीर में सुप्त अवस्था में विद्यमान रहते हैं और यदि पूर्ण सावधानी नहीं बरती गई तो रोग का आक्रमण फिर से होने की सम्भावना रहती है। इस अवस्था को रोग का दोबारा आक्रमण या रोग की पुनरावृति कहते हैं, जो अत्यन्त खतरनाक अवस्था रहती है। कुछ संक्रामक रोगों में रोगी कमजोर होकर मर जाता है।

    संक्रामक रोगों के प्रकार (types of infectious diseases)-

    रोगकारकों के आधार पर संक्रामक रोग निम्न चार प्रकार के होते हैं

     1. प्रोटोजोअन रोग (protozoan disease) – ये परजीवी प्रोटोजोआ (जन्तु) के संक्रमण के कारण फैलते हैं। उदाहरण मलेरिया, कालाजार, पेचिस (अमीबिएसिस), निद्रा रोग आदि ।

    2. हेल्मिन्थ रोग (helminth disease) – ये रोग विभिन्न प्रकार के कृमि अथवा हेल्मिन्थ के कारण उत्पन्न होते हैं। उदाहरण फाइलेरियेसिस, एस्केरिएसिस, टिनिओसिस, ट्राइकोमोनिएसिस आदि ।

     3. जीवाणुजनित रोग (Bacterial diseases)—ये परजीवी जीवाणुओं के संक्रमण के कारण होते हैं। उदाहरण- टी.बी. हैजा, टिटेनस, प्लेग, कोढ़, कुकुर खाँसी, मोतीझरा (टायफॉइड), निमोनिया आदि।

    4. विषाणुजनित रोग (Viral diseases) – ये रोग विषाणुओं के संक्रमण के कारण होते हैं। उदाहरण- चेचक, बड़ी मात खसरा, गलसुआ, रैबीज, ट्रैकोमा, इन्फ्लूएन्जा, साधारण जुकाम, चिकन, गुनिया, डेंगू आदि ।

     5. कवकजनित रोग (Fungal diseases) – ये रोग विभिन्न प्रकार के कवकों द्वारा उत्पन्न होते हैं। उदाहरण- दाद, आदि।