GOES
Meaning of Colonialism / Neo Colonialism
जब कोई शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश पर अधिकार कर लेता है और उसका आर्थिक,
सामाजिक और राजनैतिक शोषण करता है तो वह देश
शक्तिशाली देश का उपनिवेश कहलाता है। स्वतंत्रता से पूर्व भारत इंग्लैण्ड का
उपनिवेश था। प्रारंभ में अंग्रेजों ने भारत में आकर आर्थिक प्रभुत्व स्थापित करने
का प्रयास किया। बाद में उन्होंने वहाँ पर राजनीतिक सत्ता स्थापित कर ली। इसे
उपनिवेश का नाम दिया गया।
नव उपनिवेशवाद का अर्थ
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत सारे राष्ट्र स्वतंत्र हुए। ये नव स्वतंत्र
राष्ट्र अविकसित थे। साम्राज्यवादी देशों ने अपनी औपनिवेशिक नीति में परिवर्तन
करके नव स्वतंत्र राष्ट्रों के विकास के नाम पर वहाँ
आर्थिक सहायता करके अपना आर्थिक प्रभुत्व जमाने का प्रयत्न किया इसी को नव
उपनिवेशवाद कहा जाता है।
एशिया में साम्राज्यवादी संघर्ष
1).भारत पर अंग्रेजों की विजय
मुगलकाल के शासक औरंगजेब
की मृत्यु बाद साम्राज्यवाद का पतन बडी तेजी के साथ हुआ। छोटे-छोटे राज्यों के
आपसी संघर्षो के कारण भारत का राजनैतिक ढांचा डगमगाने लगा था। इन परिस्थतियों का
लाभ उठाकर भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से पुर्तगाली, फ्रांसीसी, अंग्रेज और डच
आए।
व्यापारिक एकाधिकार स्थापित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों और फ्रांसिसियों
में संघर्ष छिड़ गया। जिसमे अन्ततः अंग्रेजों की जीत हुई। 1757 ई में प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में
अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1857 ई. तक लगभग पूरा भारत कम्पनी के शासन के नीचे आ गया था। 1857 के सैनिक विद्रोह के कारण ब्रिटेन की सरकार ने
कम्पनी के हाथों से भारत का शासन लेकर स्वयं को भारत का शासक घोषित कर दिया। 1877 ई. में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने भारत
साम्राज्ञी की पदवी धारण की जो पहले मुगल सम्राटों की पदवी होती थी।
(2) भारत में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन
अंग्रेजों ने अपने उत्पादनों के लिए भारतीय
बाजारों में अपना उपयुक्त स्थान बना लिया था। यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग
करने के उद्देश्य से भारत में यातायात की व्यवस्था शुरू कर दिए। चाय, कॉफी और नील की खेती करने वाले बागान मालिकों को अतिरिक्त सुविधाएं
देने की घोषणा की। अंग्रेज व्यापारियों को आयात-निर्यात करों से मुक्त कर दिया
गया। भारत में अंग्रेजों ने जनमत पर नियंत्रण रखने के लिए उद्देश्य से प्रेस कानून
बना दिया । उन्होंने महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर भारतीयों को कभी नियुक्त नहीं
किया। सार्वजनिक जीवन में भी भारतीयों से अंग्रेज अभद्र व्यवहार करते थे। उनके
आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती थी।
(3) चीन में साम्राज्यवाद का प्रसार
चीन पर जापान और रूस की दृष्टि थी, क्योंकि चीन उनके समीप था। अतः उनके लिए चीन का राजनैतिक और सामरिक महत्व अधिक था। चीन के कच्चे माल के विशाल भण्डारों पर उनकी दृष्टि थी अतः यूरोपीय देशों में चीन पर अधिकार जमाने की होड़ लगी थी।
चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का प्रारंभ अफीम युद्ध से हुआ। अंग्रेज चीन से
चाय रेशम आदि खरीदते थे, परन्तु उन्होंने
बड़े पैमाने पर अफीम की तस्करी आरम्भ कर दी। यह गैर कानूनी काम अंग्रेजों के लिए
अधिक लाभ का था। वही चीन की युवा पीढ़ी पर अफीम के प्रभाव के कारण नैतिक और
शारीरिक पतन के लक्षण पनपने लगे थे।
प्रथम अफीम युद्ध
1839 ई. में कुछ चीनी अधिकारियों ने ब्रिटेन के अफीम से लदे
जहाज को पकड़ कर नष्ट कर दिया। इससे अंग्रेजों ने चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा
कर दी। जिसमें चीनियों की हार हुई। दोनों पक्षों के बीच नानकिंग की संधि हुई जिसकी
शर्तों के अनुसार चीन को युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में ब्रिटेन को आठ करोड़
रूपए तथा हांगकांग बन्दरगाह देना इसके अतिरिक्त पाँच बन्दरगाहों ब्रिटिश
व्यापारियों को व्यापार करने की छूट प्राप्त हो इस तरह अंग्रेजी साम्राज्य पहला
चरण चीन में प्रारंभ हो गया
द्वितीय अफीम युद्ध
कुछ समय पश्चात
फ्रांस ने एक की हत्या का बनाकर चीन विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी 'द्वितीय अफीम युद्ध कहा गया। इसमें भी चीन की
एवं फ्रांस को व्यापारिक छूट गयी। चीन जापान संघर्ष जापान ने अपना प्रभाव
कोरिया दर्शाया तो चीन उसका विरोध किया। अतः चीन और जापान में युद्ध छिड़ युद्ध
में चीन पराजय के साथ ही संधि हुई अनुसार चीन कोरिया को स्वतंत्र कर दिया । 15 डालर की राशि युद्ध हरजाने के रूप में चीन ने
जापान को दिया। कर्ज देने के लिए को रूस, फ्रांस, ब्रिटेन से कर्ज
पड़ा बदले में चारों को चीन अलग-अलग 'प्रभाव क्षेत्र' प्राप्त हो गये
इन्हें पूरी छूट थी कि वे अपने क्षेत्र में बिछाए खदाने खोदे या अन्य तरीके से
अधीन क्षेत्र का शोषण करें।
खुले द्वार नीति
संयुक्त अमरीका ने 'खुले द्वार'
"मुझे भी नीति सुझाव दिया
इस नीति अनुसार सभी देशों को चीन में किसी भी स्थान पर व्यापार करने की पूरी छूट
चाहिए। ब्रिटेन सयुक्त अमेरिका द्वारा सुझाई गई खुले द्वार की नीति का समर्थन किया इसके पीछे
उसका उद्देश्य यह था कि जापान और रूस द्वारा चीन पर अधिकार जमाने की योजना सफल न
हो पाए। ये दो देश ही ऐसे थे जो चीन के आन्तरिक भागों में अपनी-अपनी सेना भेज सकते
थे।
बाक्सर विद्रोह
चीन में साम्राज्यवादी शक्तियों के विरूद्ध जो विद्रोह भडका उसे बाक्सर
विद्रोह के नाम से जाना जाता है। परन्तु साम्राज्यवादी ताकतों के विरूद्ध चीन टीक
न सका और उसकी पराजय हो गई। चीन को दण्ड स्वरूप आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। वास्तव
में चीन किसी एक साम्राज्यवादी देश का उपनिवेश न रहा परन्तु चीन में इन घटनाओं के
प्रभाव औपनिवेशिक क्षेत्रों के समान ही बने रहे कुछ ही दशकों में चीन एक
अन्तराष्ट्रीय उपनिवेश बन गया। चीन की इस स्थिति को इतिहास कार 'चीनी खरबूजे का काटना' कहते हैं।
चीन में साम्राज्यवादियों की सफलता के कारण
(1) चीन के तात्कालिक शासक
अयोग्य और कमजोर थे।
(2) चीन के उच्च सैनिक अधिकारी विदेशियों का समर्थन करते थे।
क्योंकि वे अक्सर विदेशियों से कर्ज लेते रहते थे। ताकि उनकी स्थिति सुदृढ़ बनी रहे
।
(3) चीन में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए यूरोपीय शक्तियाँ एक
दूसरे का आपस में सहयोग करती थी।
(4) चीनी लोग अंग्रेजों को निर्मम समझते थे। क्योंकि उन्होंने
अफीम के व्यापार द्वारा अपना लाभ देखा। परन्तु चीनियों के शारीरिक और नैतिक पतन के
लिए उत्तरदायी वे ही थे। उन्होंने बल प्रयोग करके चीन पर अधिकार कर लिया था ।
0 Comments