भूमि संसाधन ( land resources ) |मृदा संरचना |जलोढ़ मिट्टी |काली (रेगड़) मिट्टी |लाल-पीली मिट्टी |लैटराइट मिट्टी etc.

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भूमि संसाधन ( land resources ) |मृदा संरचना |जलोढ़ मिट्टी |काली (रेगड़) मिट्टी |लाल-पीली मिट्टी |लैटराइट मिट्टी etc.

 GOES - Environment 

Soil Composition | Alluvial Soils | Black (Sand) Soils | Red-Yellow Soils | Laterite Soils



Land resources

भूमि संसाधन( land resources ) -

भूमि संसाधन के रूप में समझना आवश्यक हैं । जैविक या अजैविक पदार्थ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक होते है । भूमि मिट्टी, जल, हवा, सूर्य ताप, वन, वन्यजीव, खनिज पदार्थ आदि मानव के लिए उपयोगी हैं । अतः ये सभी संसाधन हैं।

भूमि एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं। क्योंकि मनुष्य भूमि पर ही रहता है और उस की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भी भूमि से होती है भूमि की सहायता से कृषि, उद्योग-धन्धे आदि संभव हैं।

भारत का कुल क्षेत्रफल 328 करोड़ हेक्टेयर हैं। देश की कुल भूमि के 922 प्रतिशत भाग का उपयोग वर्तमान में हो रहा हैं।

भूमि का उपयोग मुख्यतः कार्यों में होता है(The land is mainly used for )-

1)      कृषि(Agriculture)

2)      चारागाह(Pasture)

3)      वन( Forest)

4)      उद्योग(Industry)

5)      यातायात व्यापार व मानव आवास भारत में लगभग 51% भूमि पर कृषि की जाती हैं। इसमें शुद्ध बोया गया तथा परती भूमि दोनो सम्मिलित हैं।

मृदा संरचना :( Soil texture )-

मिट्टी हमारे जीवन का आधार है मिट्टी का निर्माण लाखों वर्षो में हुआ हैं। मुख्य शैलों के विखंडित पदार्थो से मिट्टी बनती है । प्रकृति की अनेक शक्तियाँ जैसे परिवर्तनशील तापमान, प्रवाहित जल पवन आदि इसके विकास में सहायता करते हैं। मिट्टी की परतों में होने वाले रासायनिक तथा जैव परिवर्तन भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। वनस्पति एंव जीव जन्तुओं के अवशेष मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ाते हैं ।

धरातलीय में उपयोगिता के आधार पर भारतीय मिट्टियों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं।

1.      जलोढ़ मिट्टी(Alluvium)

2.      काली (रेगड़) मिट्टी(Black soil)

3.      लाल, पीली मिट्टी(Red yellow clay)

4.      लैटराइट मिट्टी( laterite soil)

5.      मरूस्थली मिट्टी(Desert soil)

6.      पर्वतीय मिट्टी(Mountain soil)

1.जलोढ़ मिट्टी ( Alluvium)-

यह अत्यंत उपजाऊ मिट्टी हैं। यह मिट्टी हिमालय से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों सतलज, गंगा तथा ब्रम्हपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गई और उत्तरी मैदान में जमा की गई हैं।

यह मिट्टी पूर्वी तटीय मैदानों विशेष कर महानदी, गोदावरी कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टाई प्रदेशों में भी मिलती हैं। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों में नदियों ने नवीन कांप मिट्टी का जमाव किया हैं । उसे "खादर मिट्टी" के नाम से जाना जाता हैं ।

2.काली (रेगड़) मिट्टी ( Black soil)-

मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निकले लावा के जमने और फिर उस के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ हैं। इस मिट्टी का रंग काला होता हैं ।

इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है इसमें लोहांश, मैग्नेशियम, चूना, एल्युमिनियम तथा जीवांश तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती हैं। इस मिट्टी में कपास अधिक बोया जाता है अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश में मालवा केमिट्टी पठारी भागों में विस्तृत हैं।

3.लाल-पीली मिट्टी:( Red yellow clay)-

यह मिट्टी लाल-पीले भूरे रंग की होती हैं। इसमें फास्फोरिक अम्ल, नाइट्रोजन पदार्थो की कमी पाई जाती हैं। भारत में इस मिट्टी का विस्तार कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा तथा छोटा नागपुर का पठार पर पाया जाता हैं ।

4.  लैटराइट मिट्टी : (laterite soil )-

 इस मिट्टी का निर्माण उस कटिबन्धीय क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षारण (Leaching) क्रिया के फल स्वरूप हुआ है। इसमें नमी ठहर नही पाती, चूना पोटाश और फास्फोरस कम पाया जाता है। यह  कम उपजाऊ होती है। केवल घास एवं झाड़ियों के लिए उपयुक्त हैं। यह मिट्टी केरल, कर्नाटक, उड़ीसा, झारखण्ड तथा दक्षिणी महाराष्ट्र में पाई जाती है।

5.  मरूस्थली मिट्टी:( Desert soil)-

 इस मिट्टी में बालू की प्रधानता होती है। मरूस्थली मिट्टी में नदी तथा जीवांश तत्वों की कमी पाई जाती हैं। नमी धारण करने की क्षमता कम होती है। सिंचाई की सुविधा होने पर इस मिट्टी में अच्छी फसल पैदा होती हैं। इस मिट्टी में सिंचाई द्वारा ज्वार, बाजरा, मूंगफल्ली चना, उड़द आदि फसले उत्पन्न की जाती हैं।

यह मिट्टी मुख्यतः उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान गुजरात, दक्षिणी पंजाब तथा दक्षिणी-पश्चिमी हरियाणा में पाई जाती है।

6.   पर्वतीय मिट्टी:( Mountain soil )-

इसमें हिमालय प्रदेश की मिट्टियाँ शामिल हैं। यह मिट्टी बहुत नवीन हैं। वास्तव में यह मिट्टी अभी निर्माण की अवस्था में हैं। इस में पोटाश फास्फोरस एवं चूने की मात्रा होती है इस मिट्टी का विस्तार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश उत्तरी- उत्तर प्रदेश उत्तरांचल तथा अरूणाचल प्रदेश में हैं ।

मृदा प्रदूषण(Soil pollution)

प्रदूषित जल तथा वायु के कारण मृदा भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा आदि के जल के साथ ये प्रदूषक पदार्थ मृदा में आ जाते हैं। इसके अतिरिक्तजनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ अधिक फसल उगाने के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाये रखने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।

विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक पदार्थअपतृणनाशी पदार्थ आदि फसलों पर छिड़के जाते हैं। ये सब पदार्थ मृदा के साथ मिलकर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसी को 'मृदा प्रदूषण कहते हैं।

मृदा प्रदूषण के कारण तथा प्रभाव:( Causes and Effects of Soil Pollution)-

·     काफी मात्रा में ठोस अपशिष्ट पदार्थ घरों से बाहर फेंक दिये जाते हैं। सब्जियों के शेष भागपैकिंग का व्यर्थ सामानडिब्बेकागज के टुकडेकोयले की राखधातुप्लास्टिकचीनी व मिट्टी के बर्तन आदि कूड़े के ढेर बनाते हैं। ऐसे गन्दे स्थान अनेक जीव-जन्तुओंचूहेमक्खियोंमच्छरों आदि अनेक रोगवाहकों के रहने तथा बढ़ने के स्थान बन जाते हैं तथा मनुष्यों व पशुओं में रोग उत्पन्न करते हैं।

·     खानों-खदानों आदि की मृदा में अनेक प्रदूषण पदार्थ पाये जाते हैं। ये पदार्थ विषैले होते हैं। जो पौधों के शरीर में एकत्रित होकर बाद में मनुष्यों तथा पशुओं के शरीरों में पहुँचकर रोग उत्पन्न कर देते हैं।

·        अनेक उद्योग जैसे-लुग्दी व कागज मिलतेलशोधक कारखानेरासायनिक खाद के कारखानेलौह व इस्पात कारखाने, प्लास्टिक व रबर संयंत्र आदि मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्रोत है।

·      रेडियोधर्मी पदार्थ मृदा में पहुँचकर अनेक प्रकार से हानियाँ पहुँचाते हैं। इनसे पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्तपौधों द्वारा अनेक हानिकारक पदार्थ मनुष्यों तथा जीवों में पहुँचते हैं और भयंकर रोग पैदा करते हैं।

मृदा प्रदूषण को रोकने के उपाय:( Measures to prevent soil pollution ) 

v  घरेलू अपशिष्टोंवाहित मल आदि का उचित निबटारा होना चाहिए। इस कार्य का प्रबन्ध समितियों के द्वारा उचित प्रकार से होना चाहिए।

v  परमाणु विस्फोटों पर रोक लगाई जानी चाहिए। परमाणु संस्थानों से रिसाव को रोकने के लिए समुचित उपाय किये जाने चाहिए।

v  कृषि के अपशिष्टगोबर आदि कार्बनिक पदार्थों का निबटारा हानिकारक विधियों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। इनका प्रयोग अधिक उर्जा उत्पादन तथा उचित खाद के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

v  उद्योगों के लिए निश्चित किया जाये कि वे अपने अपशिष्टों के निष्कासन के लिए ऐसी योजनाएँ बनायें कि वे जलवायु तथा मृदा में अपने निम्नतम हानिकारक स्वरूप में ही पहुँच सकें।


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