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संधि | हिन्दी व्याकरण
संधि एवं संधि विच्छेद
संधि परिभाषा - दो निकटवर्ती अक्षरों या वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है, वह संधि कहलाता है जैसे सम् + तोष =संतोष, देव + इंद्र= देवेंद्र, भानु + उदय= भानूदय.
संधि तीन प्रकार की होती है.
1. स्वर - संधि
2. व्यंजन- संधि
3. विसर्ग-संधि
1.स्वर – संधि
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं.
स्वर संधि 5 प्रकार की होती है
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादि संधि
1. दीर्घ संधि
दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं. यदि 'अ', 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'क' और 'ऋ' के बाद, वे ही ह्रस्व या दीर्घ स्वर आयें, तो दोनों मिलकर क्रमश: 'आ', 'ई', 'ऊ' और 'ऋ' हो जाते हैं.
जैसे-:
अन्न + अभाव = अन्नाभाव
परम + अर्थ = परमार्थ
शिव + आलय = शिवालय
महा + आशय = महाशय
गिरि + ईश = गिरीश
मही + इन्द्र= महीन्द्र
पृथ्वी + ईश= पृथ्वीश
भानु + उदय = भानूदय
स्वयम्भू + उदय = स्वयम्भूदय
पितृ + ऋण= पितृण
2. गुण संधि
यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई', 'उ' या 'ऊ' और 'ऋ' आये, तो दोनों
मिलकर क्रमश: 'ए', 'ओ' और 'अर' हो जाते हैं, जैसे
अ +इ = ए देव + इन्द्र = देवेन्द्र
अ + ई = ए देव + ईश = देवेश
आ + इ = ए महा + इन्द्र= महेन्द्र
आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सव
आ + ऊ = ओ चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
3. वृद्धि संधि
यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ' आये, तो दोनों के स्थान में 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ' आये, तो दोनों के स्थान पर 'औ' हो जाता है. जैसे
अ + ए= ऐ एक + एक =एकैक
अ + ऐ = ऐ नव + ऐश्वर्य नवैश्वर्य
आ + ए = ऐ सदा + एव सदैव
आ + ऐ= औ महा + ऐश्वर्य महैश्वर्य
आ + ओ= औ महा + ओजस्वी = महौजस्वी
4. यण संधि
इ, ई के आगे किसी विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई का य् हो जाता है. उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ का व् हो जाता है. ॠ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ कार हो जाता है.
इ + आ अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
इ + उ अति + उत्तम • अत्युत्तम
उ + अ अनु + अय= =अंवय
उ + आ मधु + आलय = मध्वालय
उ + ओ गुरू + ओदन • गुर्वोदन
ऋ + आ पितृ + आदेश = पित्रादेश
5. अयादि संधि
यदि 'ए', 'ऐ', 'ओ', 'औ' के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो -
(क) 'ए' का 'अय्',
ने + अन= नयन
+ अन = चयन
शे + अन= शयन
(ख) 'ऐ' का 'आय्',
नै + अक= नायक
गै+ अक= गायक
(ग) 'ओ' का 'अव्' और
पो + अन = पवन
(घ) 'औ' का 'आव' हो जाता है.
पौ + अन = पावन
श्रौ + अन = श्रावण
पौ + अक = पावक
व्यंजन-संधि
व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को 'व्यंजन सन्धि' कहते हैं.
1.- यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प्' के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ
वर्ण आये, या य, र, ल, व या कोई स्वर आये, तो 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प्' के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है. जैसे
दिक् + गज= दिग्गज
सत् + वाणी = सद्वाणी
वाक् + जाल = वाग्जाल
तत् + रूप= तद्रूप
अच + अन्त = अजन्त
2- यदि 'क्', 'च्' 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं. जैसे
अप् + मय = अम्मय
षट् + मार्ग= षणमार्ग
जगत् + नाथ= जगन्नाथ
उत् + नति = उन्नति
3- यदि 'म्' के बाद कोई स्पर्श व्यंजनवर्ण आये, तो 'म्' का अनुस्वार या बादवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है. जैसे
अहम् + कार = अहंकार
किम् + चित = किंचित्
सम् + गम = संगम, सङ्गम
पम् + चम = पंचम, पञ्चम
4- यदि तु दू के बाद 'ल' रहे तो त् द् 'ल' में बदल जाते हैं और 'न' के बाद 'लू' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के साथ 'ल' होता है -
त् + ल उत् + लास = उल्लास
न् + ल महान् + लाभ= महाँल्लाभ
5- सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है. जैसे -
त् + च सत् + चित् = सच्चित्
तू + छ महत + छत्र = महच्छत्र
6- यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद 'ह' आये, तो 'ह' पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और 'ह' के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण, जैसे-उत् + हत उद्धत,
उत् + हार = उद्धार
7- हस्व स्वर के बाद 'छ' हो, तो 'छ' के पहले 'च'
जुड़ जाता है. दीर्घ स्वर के बाद 'छ' होने पर यह विकल्प से होता है.
जैसे -:
परि+छेद= परिच्छेद एवं शाला + छादन शालाच्छादन
शरत् + चंद्र = शस्तच्चन्द्र.
दिक् + गज = दिग्गज
वाक् + मय= वाङ्मय
सत् + भावना= सद्भावना
विसर्ग संधि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे 'विसर्गसन्धि' कहते हैं.
जैसे
1.यदि विसर्ग के बाद 'च-छ' हो, तो विसर्ग का 'श्' 'ट-ठ' और 'त-थ' हो तो 'स' हो जाता है. जैसे
हो तो 'ष'
: + च = श्च निः + चय = निश्चय
: + ट = ष्ट धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
2- यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क,
ख, प, फ हो, तो विसर्ग का 'ष' हो जाता है, जैसे
निः + कपट= निष्कपट
निः + फल= निष्फल
निः + पाप= निष्पाप
3- यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और परे क, ख, प, फ में से कोई वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है, जैसे
प्रातः + काल = प्रातःकाल
पयः + पान = पयःपान
4- यदि 'इ' - 'उ' के बाद विसर्ग हो और इसके बाद 'र' आये, तो 'इ'-'उ'
का 'ई'-'ऊ' हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है. जैसे
निः + रव= नीरव
निः + रस = नीरस
5- यदि विसर्ग के पहले 'अ' और 'आ' को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये। और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण
हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में 'र्' हो जाता है.
जैसे
दु: + आत्मा = दुरात्मा
निः + उपाय= निरूपाय
निः + गुण = निर्गुण
6- यदि विसर्ग के पहले 'अ' आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे, तो विसर्ग का 'उ' हो जाता है और यह 'उ' पूर्ववर्ती 'अ' से मिलकर गुणसन्धि द्वारा 'ओ' हो जाता है. जैसे
मनः + हर = मनोहर
मनः + विकार = मनोविकार
पयः + धर = पयोधर
यश: + घरा = यशोधरा
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
7- यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'अ' हो दो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर छठे नियम की तरह 'ओकार' हो जाता है और बाद वाले 'अ' का लोप होकर उसके
मनः + अभिलषित = मनोर्थभलषित
यशः + अभिलषित मनोर्थभलषित
लेकिन, विसर्ग के बाद 'अ' के सिवा दूसरा स्वर आये, तो यह नियम लागू नहीं
होगा, बल्कि विसर्ग का लोप हो जायेगा. जैसे
अतः + एव= अतएव
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अध: + गति = अधोगति
निः + आहार = निराहार
निः + चल =निरकार
नमः + ते = नमस्ते
निः + कलंक= निष्कलंक
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