कार्यालयीन पत्र किसे कहते है  ? official letter / Hindi

कार्यालयीन पत्र किसे कहते है 

कार्यालयीन पत्र, प्रारूप और प्रारूपण का अर्थ एक ही होता है। इनकी परिभाषा, स्वरूप, भेद आदि समान हैं। इन तीनों की विशेषताएँ भी एक ही होती है। अतः यहाँ कार्यालयीन पत्र, प्रारूप और प्रारूपण तीनों शब्दों के प्रयोग किये गये हैं। इन्हें प्रारूप लेखन, रूपरेखा, ड्राफ्टिंग, आलेख और मसौदा भी कहा जाता है।

 विभिन्न कार्यालयों जब किसी आदेश, प्रस्ताव, विज्ञप्ति, परिपत्र या पत्र आदि भेजने के पूर्वजो कच्च मसौदा, आलेखन या ड्राफ्ट तैयार किया जाता है, उसे प्रारूप कहते हैं।

    परिभाषा

    किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए, किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लिखितस्वरूप में तैयार की जाने वाली आदर्श तर्कसम्मत रूपरेखा या मसौदे को 'प्रारूप लेखन' या प्रारूपणकहते हैं। प्रारूप-लेखन', 'आलेखन' या प्रारूपण को अंग्रेजी भाषा में Drafting (ड्राफ्टिंग) कहा जाता है।

    अच्छे प्रारूप की विशेषताएँ

    प्रारूप तैयार करना एक कला है। यह उस व्यक्ति के गुण को स्पष्ट करता है जिसने प्रारूप तैयार किया है। जिस व्यक्ति को प्रारूप से सम्बन्धित विषय की अच्छी जानकारी हो, विषय से सम्बन्धित ज्ञान हो, नियमों की पहचान हो, वह ही अच्छे प्रारूप को बना सकता है। एक अच्छे प्रारूप में निम्नांकित विशेषताएँ होना आवश्यक है

    1. रूपरेखा का ज्ञान-अच्छे प्रारूप हेतु उसके लिए निर्धारित प्रत्येक अंग का ज्ञान आवश्यक है,जिसमें पत्र से सम्बद्ध मुख्य बातें स्पष्ट क्रम में लिखी जा सकें।

    2. प्रारूप प्रत्येक अंग का ज्ञान-अच्छे प्रारूप हेतु उसके लिये निर्धारित प्रत्येक अंग का ज्ञान आवश्यक है। प्रारूप के लिए सबसे पहले प्रेषक और प्रेषिती की जानकारी, पत्र क्रमांक, दिनांक का उल्लेख, विषय और सन्दर्भ को लिखने का तरीका और अन्त में प्रेषक का विवरण तथा नस्ती की

     

    जानकारी होना आवश्यक है। इसके लिये प्रत्येक अंग का स्पष्ट ज्ञान आवश्यक है।

    3. शुद्धता-प्रारूप शुद्ध हो इसके लिए दो पंक्तियों के मध्य पर्याप्त स्थान छोड़ा जाना चाहिये। इसके अलावा जिन पंक्तियों को, यथा विषय और सन्दर्भ को रेखांकित करना आवश्यक हो, किया जाना चाहिये। हाशिये का भी ख्याल रखना आवश्यक है। क्रमांक, दिनांक, प्रेषिती एवं प्रेषक का नाम, विषय सन्दर्भ, विवरण, नस्ती, कहाँ लिखे जायें, इसकी शुद्धता और क्रम का ज्ञान होना भी आवश्यक है।

    4. भाषा-शैली- एक अच्छे प्रारूप के लिए स्पष्ट, सरल, शुद्ध, विनम्र और शिष्ट भाषा आवश्यक है। इसमें भाषा यथातथ्य होना चाहिए। इसके लिए सही शब्दों का चयन, वाक्यांशों और पदबन्धों का व्यावहारिक उपयोग होना आवश्यक है। वाक्य रचना संक्षिप्त एवं दोषमुक्त होनी चाहिये। अनावश्यक बातों को जोड़ने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये तथा भाषा में भावावेश में नहीं आना चाहिये। इसकी विशिष्ट एवं निर्धारित शैली का प्रयोग अपेक्षित है।

    5. संलग्नों का उल्लेख-प्रारूप में यदि संलग्न है, तो उसकी अभिप्रमाणित प्रतिलिपियाँ लगाना आवश्यक तथा उन सबका क्रमबद्ध उल्लेख प्रारूप किया जाना चाहिये।

    6. संक्षिप्तता-  प्रारूप में आवश्यक बातें ही अपेक्षित हैं। प्रारूप में ठोस और संक्षिप्त तथ्य ही दिये जाना चाहिए, लेकिन इतने संक्षिप्त भी नहीं कि मूल भाव न आ सके और स्पष्टता न रहे। संक्षिप्तता लिये अनावश्यक क्रियाओं को हटाकर विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान किया जाना चाहिये।

    7. पूर्णता-  अच्छे प्रारूप की पहचान उसके पूर्ण होने से होती है। पूर्णता ही प्रारूप को प्रभावशाली बनाती है। आवश्यक रूपरेखा, कलेवर, विषय-सामग्री आदि की दृष्टि से प्रारूप पूर्ण होना आवश्यक है।

    8. अनुच्छेद- प्रारूप हमेशा अलग-अलग अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिये। पहले अनुच्छेद के बाद में आने वाले अनुच्छेदों पर या तो क्रम संख्या लिख देनी चाहिये या उन पर उपशीर्षक लिख देन चाहिये, ताकि विषय स्पष्ट करने में सुविधा रहे।

    9. मूल शब्द या पंक्तियाँ उद्घृत होना- यदि नियमों या किसी उच्च अधिकारी के आदेश आदि कोउधृत किया जाना हो, तो उसे मूल शब्दों में ही उधृत करना चाहिए।

    10. निश्चितता - कार्यालयीन पत्र की रूपरेखा बिल्कुल निश्चित होती है। उसमें पत्र जारी करने वाली संस्था, इकाई, सन्दर्भ, क्रम संख्या, तिथि, फोन नम्बर आदि का प्रारम्भ में ही स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है। फिर पत्र के प्रकार का उल्लेख किया जाता है। मध्य में विषय-वस्तु का प्रतिपादन होता है। नीचे दाहिनी ओर सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर रहते हैं। बायीं ओर पत्र प्राप्त करने वाले का उल्लेख किया जाता है। अन्त में प्रतिलिपियों की संख्या तथा उनके प्राप्तकर्ताओं का आवश्यक निर्देशों के साथ उल्लेख रहता है।

    11. संरचनाएँ- प्रारूप में अनौपचारिक शैली, तथ्यपरकता, तार्किकता के साथ अन्य पुरुष की संरचनाएँ आवश्यक है। इसमें विषय, सन्दर्भ, उद्धरण तथा निर्देश की संरचनाएँ नियमानुसार होनी चाहिये। अच्छे प्रारूप में कर्मवाच्य की संरचनाएँ होनी चाहिये।

    12. यथोचित पर्चियों का प्रयोग- यथोचित पर उसके क्रियान्वयन के लिये निर्धारित पर्चियों का प्रयोग किया जाना चाहिये, जिससे ज्ञात हो सके कि प्रारूप का महत्व कितना है और वह कितना आवश्यक है। उस पर तत्काल, अनुमोदनार्य, सर्वप्रथम, आवश्यक, आज ही, आदि की पर्ची लगा देनी चाहिये। कार्यालयीन पत्राचार के लिये प्रारूप के मुख्य भेद इस प्रकार हैं- (1) प्रतिवेदन, (2) कार्यालयीन आदेश, (3) स्मरण पत्र, (4) कार्यालयीन ज्ञापन, (5) परिपत्र, (6) अधिसूचना, (7) सामान्य सरकारी पत्र, (8) अर्द्धसरकारी पत्र, (9) पृष्ठांकन, (10) निविदा, (11) विज्ञापन।