ऊर्जा के विभिन्न रुप (DIFFERENT FORMS OF ENERGY)

कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं तथा किसी भी कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं। मानव जीवन को बनाये रखने तथा विभिन्न क्रियाकलापों को संचालित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। स्वचालित वाहनों का संचालन कल कारखानों का चलना, विद्युत उपकरणों के उपयोग से भोजन पकाना आदि कई कार्य ऊर्जा द्वारा ही संचालित होते हैं। आज कई प्रकार के उपकरण जीवन के लिए आवश्यक हो गये है, जिनका संचालन ऊर्जा द्वारा ही हो रहा है। यह ऊर्जा हमें विभिन्न ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त होती है।

    ऊर्जा के स्रोतों को दो वर्गो में बांटा जा सकता है

    1. ऊर्जा के नवीन स्रोत

    2 ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत

    ऊर्जा के नवीन स्रोत (New sources of energy)

    हमारे देश में ऊर्जा के नवीन स्रोतों का विशाल संग्रह है और उनको उपयोग में लेने के लिए नवीन तकनीकों का विकास किया जा चुका है। ऊर्जा के नवीन स्रोतों को गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत भी कहते है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा, जल ऊर्जा, नवीन ऊर्जा स्रोतों के उदाहरण है।

    ऊर्जा के पारम्परिक स्रोत (conventional sources of energy)

    ये वे स्रोत हैं जिनका उपयोग मानव कई वर्षों से करता आ रहा है। कोयला, जलाऊ लकड़ी पेट्रोलियम पदार्थ प्राकृतिक गैसें आदि इनके उदाहरण हैं। ऊर्जा के ये स्रोत अनवीनीकरण योग्य संसाधन है क्योंकि ये स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध होते हैं तथा खपत की दर से इनका पुनः पूरण निश्चित अवधि में संभव नहीं है।

    सौर ऊर्जा का स्रोत (Sources of Solar Energy)

    सूर्य से प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त ताप ऊर्जा तथा प्रकाश ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते है। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पृथ्वी पर वायु प्रवाह तथा जल चक्र को निरन्तरता प्रदान करती है तथा समस्त जीवन का संपोषण करती है। पौधों में प्रकाश संश्लेषण क्रिया के फलस्वरूप निर्मित भोजन से पृथ्वी पर समस्त जीवधारियों का संपोषण होता है। सौर ऊर्जा ऊर्जा का वह साधन है जो कि मूल्य रहित तथा कहीं भी प्राप्त होता है। इसके उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता।

    सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin of Energy in the Sun)

    प्रारंभ से ही मनुष्य की सूर्य में ऊर्जा उत्पत्ति के कारण जानने की जिज्ञासा रही हैं। सन 1939 के पूर्व सूर्य की ऊर्जा के स्रोत के संबंध में निम्नानुसार दो विचार थे।

    1. सूर्य जलते हुए कोयले का एक बड़ा गोला है परन्तु यह सत्य नहीं है क्योंकि खगोलीय अध्ययन के अनुसार सूर्य का द्रव्यमान लगभग 102 टन है यदि हम सूर्य को कोयले से बना

    माने तो कोयले की यह मात्रा (1029 टन) 5,000 वर्षो के लिए पर्याप्त होगी जबकि सूर्य लगभग पिछले 7 या 8 अरब वर्षो से ऊर्जा प्रदान कर रहा हैं। अतः यदि सूर्य कोयले से बना होता तो अब तक इसके स्थान पर केवल राख ही शेष रह गयी होती।

    2.सन 1920 के आसपास सूर्य से उत्सर्जित प्रकाश के तरंग दैर्ध्य का अध्ययन करके यह परिणाम प्राप्त किया गया कि सूर्य मुख्यतः हाइड्रोजन से बना हैं । तथा यह माना गया है कि सूर्य की ऊर्जा हाइड्रोजन के दहन से प्राप्त ऊर्जा है, लेकिन हाइड्रोजन के दहन के लिए आक्सीजन का होना आवश्यक हैं । अतः केवल हाइड्रोजन का दहन ही सूर्य में ऊर्जा उत्पति का कारण नहीं हो सकता है।

    सौर तापन युक्तियाँ (Solar Heating Devices)

    वे युक्तियाँ जिनमें सौर ऊर्जा का अधिकाधिक संग्रह किया जा सके सौर तापन युक्तियां कहलाती है।

    सौर तापन युक्तियों का सिद्धांत

    सौर तापन युक्तियों के डिजाइन इस प्रकार बनाये जाते हैं कि जिससे वे अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का संग्रह कर सकें। हम जानते है कि काली सतह चमकीली सतह की अपेक्षाकृत अधिक ऊष्मा का अवशोषण करती हैं अतः सौर प्रकाश में रखी हुई कोई काली सतह एक सरल सौर तापन युक्ति मानी जा सकती है, परन्तु इस प्रकार की काली सतह कुछ समय पश्चात अवशोषित ऊष्मा का विकिरण प्रारंभ कर देती है और अंततः उसका ताप वातावरण के ताप के बराबर होने लगता हैं। अतः उपयोगी रूप में ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए ऊष्मा की हानि को कम करने के लिए उचित व्यवस्था आवश्यक है।

    हम जानते है कि ऊष्मा का क्षय चालन संवहन अथवा विकिरण द्वारा होता है। चालन तथा संवहन द्वारा ऊष्मा क्षय को रोकने के लिए वस्तु को काली सतह के किसी ऊष्मा रोधी बाक्स में रखकर उसकी उपरी सतह को किसी काँच की पट्टी से ढंक दिया जाता है। काँच का विशिष्ट गुण यह है कि काँच केवल दृश्य प्रकाश तथा लघु तरंग दैर्ध्य के अवरक्त विकिरण ही अपने अंदर गुजारता है तथा है अधिक दैर्ध्य के अवरक्त विकिरण को रोक लेता है।

    फलतः बाक्स के भीतर की ऊष्मा को बाहर नहीं निकलने देता जिससे बाक्स भीतर की ऊष्मा को संचित किये रहता है। बाक्स की दीवारें अंदर की ओर काले रंग से पोत दी जाती है जिससे बाक्स के अंदर पहुंचने वाली अधिकांश ऊष्मा का अवशोषण हो जाए तथा परावर्तन द्वारा ऊष्मा का क्षय कम हो जाए। इस प्रकार बनायी गई सौर तापन युक्ति को कुछ समय के लिए सूर्य के सामने रखने पर उसकी अंदर की काली सतह सौर ऊर्जा का अवशोषण कर गर्म हो जाती है तथा स्वयं भी ऊर्जा का उत्सर्जन करने लगती हैं। चूंकि उत्सर्जित अवरक्त विकिरण अधिक तरंग दैर्ध्य की होती हैं इसलिए ये विकिरण काँच की पट्टी से पार नहीं हो पाते फलस्वरूप बाक्स के अंदर का ताप बढ़ता रहता है

    सोलर कुकर (Solar Cooker)

    एक सरल सौर तापन युक्ति को चित्रित किया गया हैं। इसमें परावर्तक का उपयोग कर सौर ऊर्जा संग्रहण के क्षेत्र को बढ़ाया गया हैं। यह एक सरल सोलर कुकर हैं। इस प्रकार के डिजाइन को बाक्स नुमा सोलर कुकर कहते है।

    इस प्रकार के सोलर कुकर का आंतरिक ताप दो तीन घंटों की अवधि में 100°C से 140°C तक हो जाता है। इस सोलर कुकर में ऐसे भोजन को बनाया जाता हैं जिन्हें मंद तापन की आवश्यकता होती है। उदाहरण-दाल चावल व सब्जिया उबालने के लिए। सोलर कुकर में तलने या सेंकने का कार्य नहीं किया जा सकता है।

    सौर जल उष्मक (Solar Water Heater)

    बाक्सनुमा सोलर कुकर के डिजाइन में कुछ रूपान्तर कर सौर जल ऊष्मक बनाया जाता है इस प्रयोजन हेतु काली सतह के स्थान पर तांबे की किसी ट्यूब का प्रयोग किया जाता है, जिसमें बाहर की ओर से काला रंग करके एक बोर्ड में फिट किया जाता है। इस ट्यूब का एक सिरा जलस्रोत से जुडा रहता है जबकि दूसरा सिरा गर्म जल प्राप्त करने के लिए किसी नल से जुडा रहता है। तांबा ऊष्मा का सुचालक है अतः इसमें ऊष्मा शीघ्र ही अवशोषित होकर नली मे भरे जल को मिल जाती है तथा जल गर्म हो जाता है।

    गोलीय परावर्तक सोलर कुकर

    यह बाक्स नुमा सोलर कुकर का संशोधित रूप हैं। इसमें समतल दर्पण (परावर्तक) के स्थान पर गोलीय परावर्तक (अवतल दर्पण) अथवा परवलयिक परावर्तक का उपयोग किया जाता है। गोलीय परावर्तक के सतह पर आपतित सूर्य की किरण परावर्तन के पश्चात फोकस पर केन्द्रित होती हैं। अब यदि परावर्तक के फोकस पर उचित बर्तन में भोजन बनाने हेतु। खाद्य पदार्थ रख दिया जाये तो यह खाद्य पदार्थ शीघ्र ही पक जाता है क्योंकि इसके अंदर का ताप बाक्सनुमा सोलर कुकर की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। यह ताप परावर्तक के आकार व पृष्ठ की गुणवत्ता पर

    निर्भर करता हैं। इसका ताप लगभग 180°C से 200°C के बीच होता है। इस प्रकार के कुकर में तलने व सेंक कर बनाये जाने वाले व्यंजन नहीं बनाये जा सकते है। इस प्रकार के परावर्तक सोलर कुकर में पानी उबालकर पानी की भाप से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है ।

    इस सिद्धांत का प्रयोग करके फ्रांस में माउन्ट लुई में एक बहुत बड़ी सौर भट्टी लगाई गई है। इसके परावर्तक में लगभग 3500 छोटे दर्पण हैं । यह भट्टी छोटे से क्षेत्र में सोलर ऊर्जा को संग्रहित करके लगभग 3000°C तक ताप उत्पन्न करती है।

    सोलर कुकर से लाभ

    सोलर कुकर के उपयोग से निम्नलिखित लाभ है।

    1.इससे ईंधन की बचत होती है। अतः भोजन बनाने की सस्ती विधि है।

    2 वायु प्रदूषण नहीं होता है, पर्यावरण हितैषी है।

    3.इसमें कम ताप पर खाना पकने से विटामिन नष्ट नहीं हो पाते है।

    4 इसमें एक साथ कई चीजें बना सकते है।

    सोलर कुकर की सीमाएं

    इसकी निम्नलिखित सीमाएं है:

    1) सौर ऊर्जा दिन में ही उपलब्ध होने से इसका उपयोग रात्रि में नहीं किया जा सकता है।

    2) सोलर कुकर की दिशा को सूर्य से आपतित किरणों की दिशा में बार-बार बदलना पड़ता है।

    3) इसमें किसी भोज्य पदार्थ का तलना या सेंकना संभव नहीं हो पाता है। आजकल सौर तापन युक्तियों का प्रयोग व्यावसायिक तौर पर होटलों अस्पतालों औद्योगिक प्रतिष्ठानों आदि में किया जाने लगा है। व्यावसायिक स्तर पर ऊर्जा के दोहन हेतु अनेक सौर ऊर्जा उद्यानों की योजना बनाई जा रही है।

    सोलर सेल (Solar Cell)

    सोलर सेल एक ऐसी युक्ति है जो सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। सोलर सेल में उपयोग होने वाला प्रमुख तत्व सिलिकॉन (Silicon) है। प्रथम सोलर सेल सन 1954 में बनाया गया था इस सोलर सेल की दक्षता लगभग 10 प्रतिशत थी। अर्थात यह सोलर सेल लगभग 10 प्रतिशत सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था।

    आजकल प्राय: सोलर सेल सिलिकान तथा जरमेनियम जैसे अर्द्ध चालकों से बनाये जाते हैं। अर्द्धचालक ऐसे पदार्थ है जिनकी विद्युत चालकता बहुत कम होती हैं । लेकिन इनमें कुछ विश अपद्रव्य मिलाने से इनकी विद्युत चालकता बहुत बढ़ जाती हैं। इन पर प्रकाश पडने पर इनका तार बढ़ता है जिससे इनकी चालकता बढ़ जाती है। सोलर सेल में अपद्रव्य मिश्रित अर्द्धचालक पदार्थ की परते इस प्रकार व्यवस्थित की जाती है कि प्रकाश पड़ने पर अर्द्धचालक के दो भागों में विभवान् उत्पन्न हो जाये।

    किसी एक सोलर सेल से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा का मान बहुत कम होता है। 4 वर्ग सेन्टीमीटर आकार के किसी सौलर सेल द्वारा 60 मिली एम्पियर धारा लगभग 04V-05V पर उत्पन्न होती हैं जो बहुत कम है। किन्तु अधिक संख्या में परस्पर सोलर सेल पर्याप्त मात्रा में विद्युत उत्पन्न कर सकते है। जब बहुत अधिक संख्या में सोलर सेलों को जोड़कर उपयोग किया जाता है तो इस व्यवस्था को सौर पैनल कहते हैं।

    सौर पैनलों द्वारा उत्पन्न विद्युत को संग्रहित करने के लिए संचायक बैटरियों को चार्ज कर लेते है। जिनसे हमें केवल दिष्टधारा (D.C.) ही मिल सकती है। इस दिष्टधारा को प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) में बदल कर प्रत्यावर्ती धारा से चलने वाले उपकरणों में उपयोग किया जाता है। जिससे उसकी दक्षता में वृद्धि हो जाती है।

    सोलर सेलों का उपयोग

     सोलर सेलों के प्रमुख उपयोग निम्नानुसार है

    1. विद्युत ऊर्जा के रूप में समस्त कृत्रिम उपग्रहों में।

    2.दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाश व्यवस्था में।

    3. प्रकाश स्तंभ में विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए।

    4.  जल पम्प, रेडियो तथा टी वी अभिग्राहियों को प्रचालित करने में।

    5.केलकुलेटर घडियों तथा 'खिलौनों में ।

    पवन ऊर्जा (Wind Energy)

    पवन ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य हैं। सौर ऊर्जा समुद्र भूमि तथा पहाड़ों को अलग अलग दरों पर गर्म करती हैं जिससे असमान ताप उत्पन्न होता हैं तथा गर्म वायु उपर उठती है और कम दबाव का क्षेत्र निर्मित करती है। ठंडी वायु में उच्च दबाव बनाने की प्रवृत्ति होती है। जैसे ही गर्म वायु उपर उठती है, ठंडी वायु उसका स्थान ले लेती है। यह गतिशील वायु पवन कहलाती हैं। चूंकि पवन में गति होती हैं अतः इसमें गतिज ऊर्जा होती हैं। अतः पवन ऊर्जा (Wind Energy) वायु की गति के कारण प्राप्त गतिज ऊर्जा हैं।

    पवन ऊर्जा नवीनीकरणीय ऊर्जा है। कई सदियों से मानव इस ऊर्जा का उपयोग करते आ रहा हैं, इसका उपयोग भूसे व अनाज के दानों को फटकने की क्रिया से अलग करने में होता हैं, प्राचीन काल में भी पाल वाली नौकाओं तथा पवन चक्कियों का प्रयोग किया जाता था। आज पुनः पवन ऊर्जा के दोहन की आवश्यकता है। तकनीकी विशेषज्ञ अब पवन चक्कियों में फिर से रुचि लेने लगे हैं तथा नवीन तकनीकी का प्रयोग कर इसे अधिक उपयोगी बनाया जा रहा है।

    पवन चक्की (Wind Mill)

    पवन चक्की की संरचना धान उड़ावनी पंखा या विद्युत पंखे के समान होती हैं। पवन चक्की का आकार विशाल होता है जो एक मजबूत आधार पर स्थित होता हैं। जब इसके पंखे के ब्लेडों से वायु टकराती है तो उन पर बल लगता है जिससे पवन चक्की घूमने लगती हैं। पवन चक्की का घूर्णन उसके ब्लेडों की विशिष्ट बनावट के कारण संभव होता है। घूर्णन की चाल वायु की गति के अनुसार बदलती रहती है।

    पवन चक्की का उपयोग यांत्रिक कार्य में किया जाता है। विद्युत उत्पादन के लिए पवन चक्की का संबंध जनरेटर के आर्मेचर को घुमाने के लिए किया जाता है। किसी एक पवन चक्की से पर्याप्त विद्युत उत्पन्न नहीं की जा सकती इसका व्यावसायिक उपयोग करने के लिए कई पवन चक्कियां एक साथ लगाई जाती हैं। जिससे अधिक मात्रा में विद्युत उत्पादन किया जा सके। प्रत्येक पवन चक्की को प्रचालित करने के लिए न्यूनतम 15 किमी / घंटा की वायु की गति आवश्यक है। अतः पवन चक्की को चलाने के लिए वर्ष के अधिकांश समय में वायु प्रवाह उपलब्ध होना चाहिए।

    पवन ऊर्जा के लाभ (Advantage of wind Energy)

    1. पवन ऊर्जा निःशुल्क उपलब्ध है।

    2. पवन ऊर्जा प्रदूषण मुक्त होता है। 1

    3. पवन ऊर्जा को सरलता से यांत्रिक ऊर्जा में बदला जा सकता है।

    पवन ऊर्जा की सीमाएं (Limitation of wind Energy)

     1) वर्ष भर सभी स्थानों पर वायु गतिशील नहीं होती है।

    2) वायु की पर्याप्त मात्रा नहीं होने से पवन चक्की को नहीं चलाया जा सकता है।

    जल ऊर्जा (Water Energy)

    नदियों में बहता हुआ पानी अथवा बाधों में संग्रहित पानी ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। बहते हुए पानी में गतिज ऊर्जा होती है। बहते हुए पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग लकड़ी के लठ्ठों के परिवहन में किया जाता है। इस ऊर्जा का उपयोग पक्की चलाने में भी होता है जिसका उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा है। आप जल चक्र के बारे में पहले ही पढ़ चुके है। सौर ऊर्जा हो प्रकृति में जल चक्र का नियमन करती है। जिससे समुद्र तथा पृथ्वी तल से वर्षा एवं हिम के रूप में जल चक्र का पुनः चक्रण होता रहता है।

    जल ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग विद्युत उत्पादन में है। नदियों के बहाव को रोककर बाध बनाये जाते है। इस विधि से जल की गतिज ऊर्जा उसकी स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है। बांध के जल को पाइपों द्वारा उसके तली के पास लगाए गये टरबाइन के ब्लेडों पर गिराया जाता है। टरबाइन विद्युत जनरेटर के आर्मेचर को घुमाता है जिससे विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इस प्रकार प्राप्त विद्युत को जल विद्युत (Hydro-electric) कहते हैं।

    छत्तीसगढ़ में धमतरी जिला में स्थित गंगरेल बांध से जल विद्युत का उत्पादन क्षमता 10 मेगावाट कोरबा पश्चिम रिटर्न कैनाल मिनिहागडल 1000 किलोवाट पर उत्पादन की जा रही है।

    इसके अतिरिक्त मटनार में 3x20 मेगावाट सिकासार में 2x35 मेगावाट तथा बोधघाट (दंतेवाडा) में 4x12.5 मेगावाट परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है।

    यद्यपि जल विद्युत ऊर्जा का उत्पादन प्रदूषण मुक्त है। तथा यह नवीनीकरण स्रोत भी है । फिर भी किसी नदी में बांध बनाने के परिणाम स्वरूप उसके आसपास के पर्यावरण तथा सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बांध के बनने से उस स्थान की अनेक वनस्पतियां जीव जन्तु तथा आवास नष्ट हो जाते हैं अतः जल विद्युत उत्पादन के लिए नदी में बांध बनाने से पहले इस पर विचार करना आवश्यक है।

    बायो गैस (Bio Gas)

    जंतु एवं वनस्पति के अवशेष वायु की अनुपस्थिति में सूक्ष्म जीवों द्वारा पानी की उपस्थिति में अवक्रमणित हो जाते हैं। इसप्रक्रिया में मीथेन, कार्बनडाइआक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गैसे बनती हैं। गैसों के इस मिश्रण को बायोगैस कहते है। जिसमें लगभग 70% प्रतिशत तक मीथेन गैस होती हैं । जो एक उत्तम ईंधन हैं। इस गैस से ऊष्मा प्राप्त की जा सकती है। इसका उपयोग घरों में ईंधन व प्रकाश के रूप में तथा सड़कों में प्रकाश करने के लिए किया जाता हैं इसे ईंधन व विद्युत के वैकल्पिक स्रोत के रूप में स्वीकार किये जाने लगा है।

    सामान्यतः बायोगैस संयंत्र के दो प्रकार के डिजाइन प्रयोग में लाये जाते है।

     1. स्थायी गुम्बद प्रकार (Fixed Dome type)

    2. तैरती गैस टंकी (Floating Gas Holder type) । कम लागत में बनने के कारण स्थायी गुम्बद प्रकार के संयंत्रों का प्रयोग अधिक किया जा रहा है।

    बायो गैस बनाने की विधि

    बायोगैस बनाने के लिए घरेलू पशुओं के गोबर को पानी में मिलाकर गाढा घोल (स्लरी बनाया जाता है। इस स्लरी को एक पूर्ण रूप से कक्ष भूमिगत टैंक जिसे संपाचक कहा जाता है में डाला जाता है। संपाचक में सूक्ष्म जीवों की क्रिया से स्लरी का निम्नीकरण (Degradation) वायु की अनुपस्थिति में होता है। इस प्रक्रिया को पूर्ण होने में कुछ दिन लग जाते है। तथा बायोगैस उत्पन्न होती हैं। सतत रूप से बायो गैस प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन एक निश्चित मात्रा में स्लरी डाला जाता है। कुछ शहरों में जैविक अपशिष्ट मल जल का प्रयोग भी बायोगैस संयंत्रों में किया जाता है। इससे न केवल लाभप्रद गैस मिलती, बल्कि जल प्रदूषण की समस्या भी नियंत्रित होती हैं।

    जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels)

    आप जानते हैं कि कोयला पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को जीवाश्म ईंधन कहा जाता हैं।

    जीवाश्म ईंधन कई करोडो वर्ष पूर्व की प्राकृतिक आपदा एवं दुर्घटनाओं के कारण जिसमें जन्तुओं तथा पेड पौधों के दब जाने के फलस्वरूप बने हैं जीवाश्म ईंधन अनवीनीकरणीय ऊर्जा के स्रोत है अतः ऐसे ईंधन स्रोतों का उचित उपयोग किया जाना चाहिए।

    1. कोयला- कोयले में मुख्यतः कार्बन एवं अकार्बनिक पदार्थ होते हैं कोयले को कार्बन की उपस्थिति के आधार पर निम्नलिखित चार वर्गो में विभाजित किया गया है।

    (1) पीट- 27% (2) लिग्नाइट 28.30% (3) बिटुमेनी 78.86% (4) एन्थ्रासाइट 94-98% । कोयले को वायु की अनुपस्थिति में भजन करने पर "कोक" प्राप्त होता हैं कोक का उपयोग संयंत्रों में ईंधन के रूप में किया जाता है। कोयले के दहन से CO एवं CO2 गैसें प्राप्त होती हैं।

    2. पेट्रोलियम- पेट्रोलियम हाइड्रोजन व कार्बन के अनेक यौगिकों का मिश्रण हैं जिन्हें हाइड्रोकार्बन कहा जाता है। पेट्रोलियम के विशाल भंडार पृथ्वी के अंदर चट्टानों के बीच सुरक्षित है जिन्हें तेल कुआँ कहा जाता है। पेट्रोलियम का शोधन इसके प्रभाजक आसवन द्वारा किया जाता है। इसके शोधन से प्राप्त घटक में एस्फाल्ट स्नेहक तेल, ईंधन तेल, पैराफिन वैक्स, डीजल केरोसीन तथा पेट्रोल प्राप्त होते है। तेलशोधक संयंत्रों से उप-उत्पाद के रूप में पेट्रोलियम गैस प्राप्त होती हैं जिसमें मुख्यतः ब्यूटेन होती हैं जिसका उपयोग खाना पकाने की गैस (L.P.G) की तरह किया जाता है।

    3. प्राकृतिक गैस- तेल कुओं में पेट्रोलियम के साथ पाई जाने वाली गैस एक महत्वपूर्ण जीवाश्म ईंधन है। प्राकृतिक गैस का मुख्य घटक मेथेन गैस है। जिसका उपयोग घरेलू ईंधन एवं कारखानों में ईंधन के रूप में किया जाता है। उच्च दाब लगाकर इसे C.N.G. (कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस) में परिवर्तित कर देते है। आजकल बसों में C.N.G. का उपयोग किया जा रहा हैं।

    आदर्श ईंधन- आदर्श ईंधन के चयन करने के पूर्व हमें उस ईंधन की भौतिक स्थिति उसके ऊष्मीय मान दहन दर आदि पर विचार करना आवश्यक है ।

     

    ईंधन का ऊष्मीय मान- किसी ईंधन के ऊष्मीय मान का अर्थ उस ईंधन के एक ग्राम मात्रा के पूर्ण दहन से प्राप्त ऊष्मा की मात्रा से है। कुछ पदाथों के ऊष्मीय मान निम्नलिखित सारणी में प्रदर्शित है।